Opinion

जमीन से जुड़े नायकों को पुरस्कृत कर, पद्मश्री सम्मान ने एक सराहनीय वापसी की है

जाॅन ले कार्र के रशिया हाउस में, इंग्लैंड की खुफिया एजेंसी एमआई6 के शीर्ष का एक व्यक्ति एक हड़बड़ाते, नशेड़ी और बहुत छोटे से प्रकाशक को जानकारी इकट्ठी करने का एक काम सौंपते हुए कहता है, "जो चाहिए वह लेकर आओ और मैं तुम्हें साहित्य के लिए नाइटहुड दिलवा दूंगा."

यह बेपरवाह टिप्पणी, पूरी दुनिया में राज्य के द्वारा दिए गए सम्मानों के मूल्य को परिभाषित करती है. कागजों पर यह सम्मान समाज और राष्ट्र हित में सराहनीय योगदान के लिए दिये जाते हैं. लेकिन असल में, राज्य की तरफ से यह सम्मान सरकार के अंदर और बाहर के अपने सहयोगियों को दिए जाते हैं, जहां अधिकतर उनके योगदानों का महत्व मायने नहीं रखता.

यह वैचारिक समूहों का अपने चमचों को सम्मानित कर खुद को सुदृढ़ करने का तरीका भी है. निंदक इसे वैधानिक रिश्वत कहेंगे. इसी साल हुई खोजबीन में पाया गया था कि एक बहुत बड़े सऊदी व्यापारी को कथित तौर पर ब्रिटेन के राजपरिवार से नाइटहुड सम्मान, राजकुमार की फाउंडेशन में बड़े दान देने के बाद दिया गया.

भारत में पद्म सम्मानों की गाथा भी कुछ अलग नहीं रही है. 50 के दशक की शुरुआत में स्थापित हुए यह सम्मान आमतौर पर एक समय के प्रतिष्ठित लुटियन दरबार के वफादारों को दिए जाते थे. इन्हें पाने वालों में लेखक, कलाकार, फिल्म निर्माता, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, आंदोलनकारी, पत्रकार, नौकरशाह और संदेहास्पद आर्थिक तरीकों से धनी हुए संदेहपूर्ण एनआरआई व्यापारी शामिल थे.

इनके कच्चे चिट्ठे की तरफ देख यह पता चलता था कि आमतौर पर इनके सरकार में प्रभावशाली और ताकतवर लोगों से गहरे संबंध होते थे. वह सरकार की नीतियों के सक्रिय प्रशंसक होते थे और कई बार पार्टी के सदस्य भी हुआ करते थे. सम्मानित लोग आमतौर पर शहरी और बड़े 'क्लब' के सदस्य हुआ करते थे.

ऐसा कहने का यह अर्थ नहीं है कि वह सम्मान के हकदार थे ही नहीं; परंतु उनसे कहीं अधिक योग्यता रखने वाले और लोग थे जो आमतौर पर नजरअंदाज कर दिये जाते. उन्हें मिला सम्मान योग्यता और संपर्कों का एक मिश्रण होता था और अधिकतर संपर्क, योग्यता पर भारी पड़ते थे.

इसके बावजूद वह राष्ट्रपति भवन के शानदार हॉल में, देश का सबसे बड़ा सम्मान प्राप्त करते हुए गर्व और खुशी से चमकते दिखाई देते थे.

यह सम्मान काफी लोगों की नजरों से क्यों उतर गए इसका सबसे अच्छा उदाहरण 1955 में जवाहर लाल नेहरू को और 1971 में इंदिरा गांधी को भारत रत्न दिया जाना है, जब दोनों प्रधानमंत्री पद पर थे. लेकिन सरदार पटेल मौलाना आजाद और डॉक्टर अंबेडकर जैसों को यह सम्मान, राष्ट्र को महत्वपूर्ण योगदान देते हुए भी मरणोपरांत 90 के दशक में दिया गया.

शायद वह उन सरकारों में शक्तिशाली लोगों की नजरों से उतर गए थे और इसलिए उनकी तरफ से पैरवी करने वाला कोई नहीं था? यह निर्विवाद रूप से अन्यायपूर्ण था.

तो अब हमारे पास क्या है?

महत्ता रखने वाले सम्मानित

मोदी सरकार चुनाव की प्रक्रिया में बदलाव कर इन सम्मानों की प्रतिष्ठा बढ़ाने की कोशिश कर रही थी. यह बदलाव कितना सफल रहा इसका निर्णय लेने के लिए इस वर्ष के कुछ प्रमुख विजेताओं पर नजर डालते हैं.

तुलसी गौड़ा को समाज सेवा के लिए पद्मश्री मिला. वे नंगे पैर रहने वाली कर्नाटक की एक पर्यावरणवादी हैं, जो छह दशकों से पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों का हिस्सा रही हैं और जिन्होंने 30,000 से ज्यादा पौधे लगाए हैं. 12 साल की उम्र से उन्होंने हजारों वृक्ष लगाए और पल्लवित किए हैं.

कर्नाटक के मंगलुरू से 66 वर्षीय संतरा विक्रेता हरेकाला हाजब्बा को मंगलुरु में हरेकाला-न्यूपादपू गांव में एक स्कूल बनाकर ग्रामीण शिक्षा में क्रांति लाने के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया. इस स्कूल में इस समय गांव के वंचित वर्गों से आने वाले 175 विद्यार्थी हैं. 1977 से बंगलुरु के बस डिपो पर संतरे बेचने वाले हाजब्बा खुद पढ़े लिखे नहीं हैं और कभी स्कूल नहीं गए. अपने गांव में शिक्षा में क्रांति लाने का विचार उन्हें 1978 में आया, जब एक विदेशी ने उनसे संतरों का दाम पूछा लेकिन वह भाषा न समझ पाने के कारण जवाब नहीं दे पाए.

एयर मार्शल डॉक्टर पद्मा बंदोपाध्याय को भी भारतीय वायु सेना में एयर मार्शल की 3 सितारा दर्जा पाने वाली पहली महिला ऑफिसर के नाते पद्मश्री मिला. वह वायु सेना की स्वास्थ्य सेवाओं की सेवानिवृत्त डायरेक्टर जनरल हैं जहां उन्होंने लगभग चार दशक तक काम किया.

किन्नर लोक कलाकार मानजम्मा जोगाती को कला में उनके योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान मिला. 60 वर्ष की आयु पार कर चुकी माजम्मा के लिए यह सम्मान दशकों के सामाजिक और आर्थिक संघर्ष के बाद आया है. गरीबी, सामाजिक बहिष्कार और बलात्कार के बीच भी माजम्मा ने, जोगाती नृत्य और जनपद गीतों के साथ-साथ अन्य कलाओं में भी महारत हासिल की. यह गीत कन्नड़ भाषा में कई देवियों के गुणगान में लिखे गए छंद हैं. वह राज्य के लोक कला के शीर्ष संस्थान कर्नाटक जनपद एकेडमी की पहली किन्नर रेजिडेंट हैं.

उत्तर प्रदेश में अयोध्या के मोहम्मद शरीफ जिन्हें शरीफ चाचा के नाम से भी जाना जाता है को इस वर्ष पद्मश्री से सम्मानित किया गया. साइकिल मैकेनिक रह चुके इस 83 वर्षीय व्यक्ति ने पिछले तीन दशकों में अपने जिले में सभी धर्मों के लोगों की 25,000 लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार किया है. इतना ही नहीं, 72 घंटे से लावारिस पड़ी लाश को दफनाने या जलाने के लिए शरीर को दे देना अब पुलिस का तरीका बन चुका है.

पद्मश्री से सम्मानित भूरी बाई, मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भील समुदाय से कागज और कैनवस पर चित्रकारी करने वाली पहली महिला हैं. जब वह भोपाल पहली बार आई थीं तो वह 6 रुपए प्रतिदिन की दिहाड़ी पर मजदूरी करती थीं. यहीं पर वह पहली बार अपने उस्ताद मशहूर पेंटर जगदीश स्वामीनाथन से मिलीं जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें पेंट करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने पारंपरिक भील चित्रकारी की शिक्षा और संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान दिया है.

प्रोफेसर राम यत्न शुक्ला को साहित्य और शिक्षा में योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान मिला है. वे काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष हैं और संस्कृत व्याकरण और वेदांत को पढ़ाने व आधुनिकीकरण में उनके योगदान के लिए वह "अभिनव पानिनी" के नाम से मशहूर हैं.

पद्मश्री से सम्मानित राजस्थान के हिम्मतराम भांभू ने अपने गांव नागपुर के पास की 25 बीघा जमीन में 11,000 पेड़ लगाकर केवल एक जंगल ही नहीं खड़ा किया, बल्कि उन्होंने पांच सालों में पांच लाख पेड़ भी लगाए हैं. एक ऐसे राज्य में जहां गैरकानूनी शिकार खुलकर होता है, और जहां मोरों, काले हिरणों, चिंकारा और दूसरे जानवरों की अवैध तस्करी कई लोगों के लिए आजीविका है, वहां हिम्मतराम अपने जिले में इस मुद्दे को मिटा देने में अग्रणी रहे हैं.

प्रोफेसर के एस मणिलाल को वनस्पति और वर्गीकरण वैज्ञानिक के नाते उनके योगदानों के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया. उन्होंने केरल के 700 स्थानीय पौधों पर हेंड्रिक वैन रहीड् के सत्रहवीं शताब्दी के लैटिन वनस्पति आलेखों के अनुवाद, शोध और व्याख्या की, और अपने छात्रों के साथ 14 नई प्रजातियों की खोज की.

पद्मश्री पाने वाली कृष्णम्मल जगन्नाथन एक समाजसेविका हैं, जो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में यात्रा कर वहां अहिंसा के सिद्धांत के प्रचार से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बदलाव लाती हैं. उन्होंने भूमि रहित और गरीबों के उत्थान के लिए व्यापक काम किया है. उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में भी हिस्सा लिया था और छोटी सी उम्र में महात्मा गांधी के साथ मंच पर भी रही थीं.

पद्मश्री विजेता दालावाई चालापथी राव, आंध्र प्रदेश के अनंतपुर की एक छाया कठपुतली कला, चमड़े की कठपुतली खेल कला के माने हुए कलाकार हैं.

एमके कुंजोल को दलितों को न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाने और दलितों पर पुलिस के अत्याचारों के खिलाफ काम करने के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया. बीआर अंबेडकर और अय्यंकली के लेखन और विचार को व्यापक रूप से प्रचारित करने में उनका बड़ा योगदान है. न्याय के लिए उनकी यह यात्रा एक विद्यार्थी के रूप में बहुत कम आयु में शुरू हुई थी. आज 82 साल की उम्र में उनका जीवन संघर्ष की एक प्रेरणादाई कहानी है, जो उन्होंने समाज में बराबरी के लिए जिया.

पद्मश्री से सम्मानित राहीबाई सोमा पोपेरे, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले से आने वाली आदिवासी समुदाय महादेव कोली की एक आदिवासी किसान हैं. वह देसी और जैविक बीजों के पक्ष में उनके प्रयासों, और अपने इलाके में हाइब्रिड बीजों, रासायनिक बीज नाशकों व खाद की वजह से बच्चों के बीमार पड़ने के बाद उनके खिलाफ आंदोलन के लिए, "सीड मदर" अर्थात बीज मां के नाम से भी जानी जाती हैं.

"एलीफेंट मैन ऑफ इंडिया" या "एलीफेंट सर्जन" के नाम से मशहूर इस वर्ष पद्मश्री से सम्मानित डॉ. कुशल कुंवर शर्मा एक पशु चिकित्सक हैं और असम के कॉलेज ऑफ वेटरनरी साइंस में शल्य चिकित्सा और रेडियोलॉजी के प्रोफेसर हैं. उन्होंने 600 से ज्यादा हाथियों का इलाज किया है और 140 नर हाथियों को बचाया है.

कुछ राजनेताओं और नौकरशाहों को भी सम्मान दिया गया. असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और पूर्व केंद्रीय मंत्रियों अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और रामविलास पासवान, सभी को मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.

लोकसभा की पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन और शेष के नौकरशाह रह चुके नृपेंद्र मिश्रा को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. दो बार की ओलंपिक पदक विजेता पीवी सिंधु को भी पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

कंगना रानौत को पद्मश्री दिए जाने पर कई लोगों ने अपनी भौंहें चढ़ा ली हैं, लेकिन उनके सबसे बड़े आलोचक भी इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि वह बहुत योग्य अदाकारा हैं जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपना रास्ता खुद बनाया है. वो भले ही सरकार के समर्थक और भड़काऊ बातें करती हों, लेकिन इससे एक कलाकार के तौर पर उनकी उपलब्धियों में कमी नहीं आती.

करण जौहर को पद्मश्री दिए जाने पर कई लोगों को अच्छा नहीं लगा. उनका काम भले ही सबकी पसंद का न हो, लेकिन वह निर्विवाद रूप से एक सफल पटकथा लेखक, निर्देशक, टॉक शो के मेजबान, गेम शो के जज और लेखक हैं. वह भारत की सबसे बड़ी फिल्म निर्माता कंपनियों में से एक को चलाते हैं.

नई प्रक्रिया क्यों सफल है

प्रक्रिया पर वापस आते हैं.

अगस्त 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रियों के द्वारा पद्म सम्मानों के लिए नाम सुझाने की प्रक्रिया खत्म कर दी. पद्म सम्मानों के लिए नाम सुझाने को आम जनता के लिए ऑनलाइन खोल दिया गया. कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री ने नामांकनों को न्योता देते हुए इस बारे में ट्वीट भी किया था.

सरकारी मुलाजिम जिनमें पीएसयू में काम करने वाले भी शामिल हैं, इन सम्मानों के योग्य नहीं हैं हालांकि अपवाद स्वरूप वैज्ञानिक और डॉक्टर इन्हें पा सकते हैं.

पद्म सम्मान कमेटी के द्वारा विजेताओं को शॉर्टलिस्ट किया जाता है और फिर उनके नाम प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिए जाते हैं. इस कमेटी की अध्यक्षता केंद्रीय कैबिनेट सचिव करते हैं और इसमें गृह सचिव राष्ट्रपति के सचिव और 4 से 6 गणमान्य व्यक्ति होते हैं.

नतीजे बताते हैं कि इस नई प्रक्रिया ने अच्छा काम किया है.

यह बात ठीक है कि सम्मान कई क्षेत्रों में सरकार से सहमति रखने वालों को दिए गए. यह भी सही है कि कुछ पूर्व और दिवंगत मंत्रियों को भी सम्मान दिया गया, जो या तो भाजपा के सदस्य या फिर साथी थे. लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अपने-अपने क्षेत्रों में वह सफल लोग थे.

लेकिन जमीन पर अथक मेहनत करने वाले आम लोगों को सम्मानित किया जाना ही इसे पृथक और दिल को छू लेने वाला बनाता है. यह लोग न तो अमीर हैं, न मशहूर और न ही ताकतवर; कुछ तो बहुत पिछड़े हुए वर्गो से आते हैं. आमतौर पर ऐसे लोग अपने पूरे जीवन और उसके बाद भी अनजाने, अनसुने और सम्मान से वंचित रहते हैं. अगर उनकी किस्मत अच्छी हो तो ही उनकी उपलब्धियों को उनके आसपास के कुछ लोग जानते हैं.

पहले ऐसे लोगों को एक स्थानीय सम्मान तक के लिए भी कोई नहीं पूछता क्योंकि उनका कोई बड़ी जगहों पर उनके आवास उठाने और समर्थन करने वाला नहीं होता था. आज वे देश के सर्वोच्च सम्मान पाने वाले लोग हैं और उनका देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने गर्मजोशी से अभिवादन किया.

हम ध्रुवीकरण और वैमनस्य के चरण के युग में रह रहे हैं. सरकार का कोई भी कदम, हमेशा ही एक अनुमानित प्रतिक्रिया पैदा करता है. शायद ही ऐसा कुछ होता है जो निर्विवाद रूप से महान हो, जो बड़े से बड़े निंदक को भी साथ ला सके.

उम्मीद है कि यह नए प्रेरणा स्त्रोत, राज्य के द्वारा दिए गए सम्मानों और सरकार के द्वारा कुछ भी किए जाने के प्रति एक आम संदेह की भावना को कम करने में मदद कर पाएं.

आशा है कि पूरा देश इन नए नायकों और प्रेरणा स्रोतों का स्वागत करने के लिए एकजुट होगा और उन्हें राजनीति के चश्मे से नहीं देखेगा.

कमल का फूल, जिसके नाम पर इन सम्मानों का नाम पड़ा, मानवी प्रकृति की एक सर्वोत्कृष्ट उपमा है. कीचड़ में जड़ें होते हुए भी खेलने वाला फूल सबसे सुंदर होता है. हाल ही में सम्मानित हुए लोगों के जीवन और योगदानों पर यह उपमा बिल्कुल सही बैठती है, जिनकी जड़ें पूरी तरह मिट्टी से जुड़ी हुई हैं.

आशा है यह कमल ऐसे ही खिला रहेगा.

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