Opinion
अगर 40% महिलाओं को टिकट देना राजनीति है तो यह एक बेहतर राजनीति है
उत्तर प्रदेश की राजनीति हर रोज़ करवट ले रही है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस ने यूपी के आने वाले विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी सीट पर महिलाओं को उतारने का फैसला किया है! यह बेहद प्रशंसनीय है और एक नये तरह की राजनीति की शुरुआत है.
जिस प्रदेश में आज तक कमोबेश श्मशान-कब्रिस्तान, धर्म और जाति जैसे जहरीले मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया वहां इस तरह की क़वायद एक बड़ी उम्मीद लेकर आती दिख रही है. ऐसा नहीं है कि इस फैसले से सब अच्छा हो गया है, लेकिन यह फैसला एक बुनियादी गैर-बराबरी को पाटने की तरफ बढ़ाया गया उम्मीद भरा कदम है जिसका चतुर्दिक स्वागत होना चाहिए.
प्रियंका गांधी की प्रेस वार्ता के तुरंत बाद प्रदेश के अन्य दलों की ताबड़तोड़ प्रतिक्रिया आनी शुरू हुई. होना तो यह चाहिए था कि इस फैसले का स्वागत होता लेकिन टीवी मीडिया ने इसको शुरू से ही सियासी रंग दे दिया. टीवी पर कहा जाने लगा कि प्रेस वार्ता में शामिल 10 लोगों में सिर्फ तीन महिलाएं थीं. उनसे यह मतलब नहीं है कि फैसला क्या है. अगर यह राजनीति भी है तो यही असली और अच्छी राजनीति है.
अब उत्तर प्रदेश के समाज के हिसाब से कुछ व्यावहारिक चुनौतियां भी हैं जिन पर इस फैसले की सफलता का आधार है. उत्तर प्रदेश और बिहार में अधिकांश तौर पर यह देखा जाता है कि ब्लॉक प्रमुख पति, प्रधानपति, यहां तक कि सरकारी कार्यकर्ता आशा की जगह आशापति के तौर पर पुरुष ही काम करते हैं. इतना ही नहीं, पुरुष बाक़ायदा अपनी गाड़ियों पर इस तरह के विशेषण लिखकर घूमते हैं. उत्तर प्रदेश में महिलाओं की एक बड़ी आबादी अपने मन से आज भी वोट नहीं करती. यहां पर घर का कोई पुरुष सदस्य होता है जिसके कहने से पूरे घर के लोग मतदान करते हैं.
इन सबके अलावा एक बात और है कि कहीं पहले से राजनीति में रहने वाले लोगों के घरों से लोग आएं और फिर महिला के नाम पर राजनीति हो! फिलहाल यह सब चुनौतियां तो आनी ही हैं, लेकिन सैद्धान्तिक तौर पर इस फैसले का स्वागत होना चाहिए लेकिन हो क्या रहा है. आज हल्ला बोलते हुए एक टीवी चैनल पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बोल रहे थे कि उनकी सरकार ने सबसे ज़्यादा महिलाओं को मंत्री बनाया, उनके यहां कोई महिला पारिवारिक विरासत लेकर आगे नहीं बढ़ी है. जाहिर सी बात है कि यह निशाना गांधी परिवार पर था जबकि इंदिरा गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक का संघर्ष उनका खुद का है. इंदिरा गांधी ने तो अपनी योग्यता का लोहा मनवाया था.
भारतीय जनता पार्टी बार-बार यह भूल जाती है कि उनके बलात्कार आरोपी विधायक को महीनों बचाया गया, स्वामी चिन्मयानंद पर एक लड़की ने रेप का आरोप लगाया और सरकार ने पीड़िता पर ही मुकदमा लाद दिया. कश्मीर में एक रेप के आरोपी के समर्थन में वहां के भाजपा के लोगों ने रैली निकाली.
टीवी पर भाजपा के प्रवक्ता कह रहे हैं कि इससे प्रिविलेज्ड महिलाओं को फायदा होगा! अगर यह सही भी है तब भी कांग्रेस का यह फैसला बेहतरीन है क्योंकि हमारे यहां पुरुषों के सामने महिलाएं कभी प्रिविलेज्ड नहीं होतीं! सिर्फ ऑब्जेक्ट होती हैं! मज़ेदार बात ये है कि प्रिविलेज्ड महिलाओं को फायदा होने पर सारे सवाल पुरुष कर रहे हैं- पत्रकार के रूप में, प्रवक्ता के रूप में, चिंतक के रूप में.
किसान बिल से ज़्यादा जरूरी है संसद में महिलाओं को 50 फीसदी हिस्सेदारी देना. तो क्यों नहीं भाजपा इसका बिल पास करवा देती? बस टीवी पर इनके प्रवक्ता यह कहते हैं कि “देश को पहली महिला वित्तमंत्री हमने दिया”. भाजपा ने तो पुरुष मंत्रियों को फैसला नहीं लेने दिया, महिलाओं का तो ‘महिला’ होने से ही काफी है. सब मिट्टी के माधो हैं- वो पहली हों या दूसरी! ख़ैर! दो को छोड़ जिसका पूरा मंत्रिमंडल ही “मार्गदर्शक मंडल” हो, उसकी बात पर क्या टिप्पणी!
जब तक ‘पहली महिला, दूसरी महिला’ वाला राग चलता रहेगा तब तक यह समझने में कोई मुश्किल नहीं है कि महिलाओं को क्या मिला अभी तक. डॉक्टर अम्बेडकर के शब्दों में- जिसका भाव यह है कि किसी भी मुल्क/समाज की वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि वहां की महिलाओं की स्थिति कैसी है!
आज जरूरी है कि महिलाओं के लिए कानून बने न बने, लेकिन जहां कानून बनता है वहां महिलाएं पहुंचें. तभी इतनी बड़ी गैर-बराबरी समाप्त हो सकती है क्योंकि सशक्तिकरण का असली अर्थ है फैसले लेने की स्वतंत्रता मिलना.
(साभार-जनपथ)
Also Read
-
‘Bhujiya jihad’ with benefits: Your taxes will fund 100 interns at Sudarshan News
-
The fight for Pune’s green heart: A city’s soul vs 6 minutes of saved commute
-
लद्दाख में हिंसक प्रदर्शन, लेह में भाजपा कार्यालय आग के हवाले
-
HC dismisses X plea challenging govt portal over takedown orders
-
Shops shut, at least 50 lose jobs, but cops silent on Indore BJP leader’s ultimatum on Muslim workers