Rajasthan coronavirus

कोविड काल में राजस्थान सरकार ने क्यों बंद किया राशन के लिए आवेदन?

कोरोना महामारी की वजह से राजस्थान में लगाए गए लॉकडाउन की सबसे ज़्यादा मार यहां रहने वाले गरीबों पर पड़ी है. यहां रहने वाले मजदूरों और गरीब लोगों को दाने-दाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. 32 वर्षीय कविता कोटा में मज़दूरी करती थीं लेकिन लॉकडाउन के बाद से उन्हें कही काम नहीं मिल रहा है. कविता के चार बच्चे हैं. पहले पति से उनके दो बच्चे, एक लड़का और एक लड़की है. कविता के पति विकलांग थे. शारीरिक दिक्कतों के चलते पांच साल पहले उनके पति की मौत हो गई जिसके बाद कविता की शादी उनके देवर के साथ करा दी गई. देवर से कविता को दो जुड़वा बच्चे हैं. घरेलु हिंसा के चलते कविता ने दूसरे पति को घर से निकाल दिया. पिछले एक साल से कविता अकेले घर और अपने चार बच्चों की परवरिश कर रही हैं. मज़दूरी ही कमाने का एक मात्र जरिया है.

32 वर्षीय कविता

कविता, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013 के तहत दो साल से मुफ्त राशन के लिए नामांकन करने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन हर बार, ई-मित्र केंद्र पर उन्हें कह दिया जाता है कि नए नाम नहीं जोड़े जा रहे क्योंकि पोर्टल बंद है.

"मेरे ऊपर चार बच्चों की ज़िम्मेदारी है. मैं जब भी इ-मित्र केंद्र जाती हूं, हर बार खाली हाथ वापस आना पड़ता है. मेरे पास सभी दस्तावेज़ हैं लेकिन सरकार का पोर्टल नहीं चलने के कारण पिछले एक साल से मुफ्त राशन के लिए अप्लाई नहीं कर पा रही हूं." कविता कहती हैं.

वह आगे कहती हैं, “मेरा राशन कार्ड बने हुए छह साल हो गए हैं. लेकिन राशन चालू नहीं हुआ. किसी ने बताया कि ई - मित्र पर जाकर पंजीकरण कराना होता है. मै जब ई - मित्र केंद्र गई उन्होंने कहा कि पेंशन का कार्ड बनवाओ जिसके बाद राशन चालू हो जाएगा. ई- मित्र केंद्र पर जाकर पेंशन चालू कराए एक साल हो गया है. मेरे बैंक खाते में पैसा नहीं था और पेंशन आने के लिए खाते में एक हज़ार रुपये होना अनिवार्य है. 500 रुपये हर महीना पेंशन आती है. पिछली दो बार से पेंशन के 500 रुपये आते ही पैसे कट गए. हमें पेंशन का भी कोई फायदा नहीं मिला. पिछले पांच सालों में न ही राशन चालू हुआ, न उनके बच्चों को मिलने वाली पालनहार योजना का लाभ मिला है.”

बच्चों के साथ कविता

“बढ़ती महंगाई में घर चला पाना मुश्किल होता जा रहा है इसके चलते एक समय का खाना छोड़ना पड़ता है. पहले मैं महीने में तीन से चार हज़ार कमा लेती थी. पिछले साल लगे लॉकडाउन के दौरान पूरा साल घर पर बैठे रहे. लेकिन कभी-कबार लोग खाना देने आ जाते थे. इस साल वो भी नहीं आ रहे हैं. बच्चों को पढ़ा पाना और एक समय का खाना खिलाना आफत बन गई है. उधार लेकर बच्चों को खाना खिला रहे हैं. बहुत बार एक समय का खाना छोड़ देते हैं." कविता कहती हैं.

अपने बच्चों के साथ बुरी बाई

35 वर्षीय बुरी बाई कोटा के प्रेमनगर कच्ची बस्ती में रहती हैं. इनका राशन कार्ड बने पांच साल हो गए हैं लेकिन उन्हें आज तक राशन नहीं मिला है. वह कहती हैं, "हमने कई बार पार्षद के ऑफिस के चक्कर काटे. वो कहते हैं कोर्ट जाओ. गरीब आदमी कोर्ट जाकर अदालत के काम के लिए पैसा कहां से लाएगा. बुरी बाई सफ़ाई कर्मचारी हैं. वो सब्जी मंडी और लोगों के घर जाकर सीवर और टॉयलेट साफ़ करती हैं जिसके लिए उन्हें 100 रुपए मिल जाते हैं. लेकिन वर्तमान स्थिति इस क़दर खराब है कि वो एक समय की रोटी के बदले मुफ्त काम करती हैं.”

राजस्थान में कई मज़दूर और गरीब ई-मित्र केंद्र जाते हैं पर उन्हें कह दिया जाता है कि नए नाम नहीं जोड़े जा रहे, और पोर्टल बंद है. डिस्ट्रिक्ट सप्लाई ऑफिसर गोवरधन लाल मीणा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “पिछले साल 18 मई 2020 से एनएफएसए पोर्टल बंद है और यह राज्य सरकार का मामला है.”

मुबीन शेख

नानता में ई-मित्र के ऑपरेटर मुबीन शेख बताते हैं, “उन्होंने कई बार कविता का नाम योजना के अंतर्गत पंजीकृत कराने का प्रयास किया लेकिन हर बार उनकी एप्लीकेशन रिजेक्ट हो जाती है. जितनी बार कविता का नाम राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में रजिस्टर करने की कोशिश की, उतनी बार उनका नाम रिजेक्ट हुआ है. दस्तावेज़ अपलोड हो जाते हैं, टोकन कट जाता है. लेकिन 10- 15 दिनों बाद एप्लीकेशन रिजेक्ट हो जाती है."

"सरकार कोई वजह भी नहीं बताती कि आखिर ऐसा क्यों होता है. फिर पिछले एक साल से एनएफएसए का पोर्टल बंद है. हमने कई बार शिकायत की लेकिन कोई जवाब नहीं आता. कविता की तरह ऐसी कई महिलाएं हैं. या तो सरकार इस मुद्दे को देखना नहीं चाहती या सरकार के नीचे जो लोग बैठे हैं वो लापरवाह हैं." मुबीन ने कहा.

क्या है राजस्थान खाद्य सुरक्षा योजना?

राजस्थान सरकार ने खाद्य सुरक्षा योजना प्रारम्भ की है. इसके तहत राशन उचित मूल्य तथा काफी कम दाम पर मिलेगा. इस योजना का लाभ वो उठा सकते हैं जिनके पास राशन कार्ड है. इसके लिए लाभार्थी को ई- मित्र केंद्र पर जाकर खाद्य सुरक्षा योजना का फॉर्म भरना पड़ेगा. फॉर्म जमा कराने के 20-25 दिन के अंतराल नाम सूची में जोड़ दिया जाता है जिसके बाद से लाभार्थी को उचित दर पर सरकारी दुकान से राशन मिलने लगता है.

चन्द्रकला एकल नारी संस्था से जुडी हुई हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री के साथ एक सूची साझा की. 12 मार्च 2020 को जारी इस नोटिस में नौ लोगों के नाम जारी किये गए.

"इन नामों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत जोड़ने का निर्देश दिया गया. लेकिन एक साल से ज़्यादा हो गया, अभी तक इन नामों को नहीं जोड़ा गया है. राज्य में ऐसी कई महिलाएं हैं जो विधवा हैं या अकेले घर चला रही हैं. एनएफएसए पोर्टल बंद होने कारण उनका नाम योजना में नहीं जोड़ा जा रहा. हम जल्द ही कोर्ट में याचिका दायर करेंगे." चन्द्रकला ने बताया.

चंद्रकला शर्मा अविवाहित, विधवा, तलाकशुदा और परित्यक्त महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था एकल नारी शक्ति संगठन की राज्य समन्वयक (स्टेट कॉर्डिनेटर) हैं.

राजस्थान की गहलोत सरकार ने अगस्त 2020 में घोषणा की थी कि वह नवंबर तक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना (एनएफएसए) के तहत लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराएगी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के साथ-साथ एनएफएसए के तहत लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति पांच किलो गेहूं और प्रति परिवार एक किलो चना दिया जाएगा. लेकिन राशन देना तो दूर की बात, लाभार्थियों के नाम भी योजना में दर्ज नहीं किये जा रहे.

न्यूज़लॉन्ड्री ने कोटा के जिला मजिस्ट्रेट उज्जवल राठौड़ से बात की. उन्होंने बताया, “राज्य सरकार ने लाभार्थियों की संख्या हासिल कर ली है इसलिए पोर्टल बंद है. सीएम अशोक गहलोत ने कहा था कि राज्य की 2011 की जनसंख्या 6.86 करोड़ को आधार मानकर, केंद्र 4.46 करोड़ लोगों के लिए हर महीने 2.32 लाख टन गेहूं आवंटित करता है. हालांकि, 2019 तक, राज्य की आबादी 7.74 करोड़ थी, और एनएफएसए के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या 5.04 करोड़ हो गई है. केंद्र और राज्य सरकार की आपसी बहस के बीच कविता और बुरी बाई जैसी महिलाएं फंसकर रह गई हैं.”

Also Read: राजस्थान के गांवों का हाल, कोविड और मौत की छुपन- छुपाई

Also Read: कैसे कोविड-19 और लॉकडाउन ने राजस्थान के गांवों की अर्थव्यवस्था को कर दिया बर्बाद?