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हरियाणा: किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए गोद लिए दो गांवों की कहानी

दोपहर के तीन बज रहे थे. उबड़ खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए हम एक चमकीले रास्ते पर पहुंचे. यह रास्ता गुरुग्राम के अरावली के बीच बसे गांव सकतपुर जाता है. थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर सकतपुर गांव में स्वागत वाला बोर्ड लगा नजर आता है. यहीं हमारी मुलाकात गांव के रहने वाले 35 वर्षीय कृष्णा कुमार से हुई. पांच एकड़ में खेती करने वाले कुमार से जब हमने पूछा कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) ने आपके गांव को गोद लिया, उसके बाद क्या बदलाव आया?

न्यूजलॉन्ड्री के सवाल पर कुमार हैरानी से देखते हुए कहते हैं, ‘‘कब गोद लिया? आप कह रहे हैं तब मुझे पता चला कि हमारे गांव गोद लिया गया है. मुझे इसके बारे में कुछ पता नहीं है.’’

इस तरह का जवाब सिर्फ कृष्णा कुमार ही नहीं देते बल्कि आठ एकड़ में खेती करने वाले सकतपुर गांव के ही किसान हबीब खान भी देते हैं. न्यूजलॉन्ड्री ने जब खान से किसानों को आमदनी दोगुनी करने को लेकर केवीके द्वारा गांव को गोद लेने का सवाल दोहराया तो वे कहते हैं, ‘‘गांव को गोद लिया गया इसकी जानकारी मुझे नहीं है जबकि यहां के कुछेक बड़े जोत वाले किसानों में मैं एक हूं.’’

हबीब खान

साल 2016 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए 2022 तक की समय सीमा तय की है. विपक्षी दलों के सांसदों ने किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर सरकार से कई दफा लिखित में सवाल किया और हर बार सरकार द्वारा एक ही रटा-रटाया जवाब दिया गया कि सरकार इसके लिए कई स्तर पर काम कर ही है. इन कई स्तर पर चल रहे काम में से एक था ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’.

डाउन टू अर्थ पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने हर जिले में दो गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी करने का बीड़ा उठाया. ऐसा करने की जिम्मेदारी जिले के केवीके को सौंपी गई. इन्हीं गांवों को ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज' नाम दिया गया.

तीन मार्च 2020 को कृषि को लेकर बनी स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि तीस राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों के 651 कृषि विज्ञान केंद्रों ने 1,416 गांवों को गोद लिया है.

हरियाणा के गुरुग्राम जिले के शिकोहपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने दो गांव सकतपुर और लोकरा को गोद लिया था. न्यूजलॉन्ड्री ने इन दो गांवों की पड़ताल की और जानने की कोशिश की कि अब तक इन गांवों में किसानों की आमदनी की क्या स्थिति है.

गुरुग्राम के शिकोहपुर में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र

ज़्यादातर लोगों को गांव को गोद लेने की जानकारी ही नहीं

न्यूजलॉन्ड्री सबसे पहले सकतपुर गांव पहुंचा. यादव, मुस्लिम और दलित बाहुल्य इस गांव में बने एक मंदिर के सामने हमारी मुलाकात रियाज खान से हुई. रियाज के पास अपनी जमीन नहीं है. वे दूसरों के खेतों में मज़दूरी करके जीवनयापन करते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए खान कहते हैं, ‘‘हमारे यहां कोई जानकारी नहीं है जी. किसी ने इसे गोद नहीं लिया. ये सारी अफवाह है. गांव में खेती को बेहतर करने के लिए कुछ काम नहीं हुआ है. हमारे यहां तो सब गरीब आदमी हैं, करते हैं तो खाते हैं. मैं किसानों के खेतों में ही तो मज़दूरी करता हूं. मुझे नहीं लगता कि किसी की आमदनी दोगुनी हुई है.’’

रियाज खान इसे अफवाह करार देते हैं वहीं बाकी कई किसान हमारे सवाल पूछने के बाद कहते हैं कि ऐसा कुछ है इसकी जानकारी हमें आपके सवाल के बाद ही मिली.

ऐसे ही एक शख्स हैं कृष्णा कुमार. 12 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ खेती में जुट गए कुमार पांच एकड़ के किसान हैं. इन्होंने ज़्यादातर खेतों में गेहूं लगाएं हैं. गोद लेने की बात से अनजान कुमार कहते हैं, ‘‘केवीके वाले गांव में कभी-कभार तो आते हैं, लेकिन हमें कुछ देते नहीं हैं. जो बीज भी देते हैं वो एक्सपायर ही होता है.’’

एक गेहूं लगे खेत की तरफ इशारा करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘इसका बीज केवीके ने ही दिया था. आप इसे देखिए. कैसा मरा-मरा दिख रहा है. आपको लगता है कि इससे बेहतर पैदावार होगी.’’

12 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ खेती में जुट गए कृष्णा कुमार पांच एकड़ के किसान हैं.

60 वर्षीय भाव सिंह गांव के बड़े किसान हैं. भाव सिंह के पिता नंबरदार और गांव के सरपंच रह चुके हैं. इनके पास छह एकड़ जमीन है जिसके बड़े हिस्से में गेहूं, सरसों और बाजरे की खेती करते हैं. वहीं कुछ जमीन पर सब्जी उगाते हैं.

करीब एक घंटे तक गांव में भटकने के बाद भाव सिंह पहले शख्स मिलते हैं जिन्हें केवीके द्वारा गोद लिए जाने की जानकारी है. हालांकि वे केवीके से खफा नजर आते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘कृषि विज्ञान वाले सब लूटते हैं. उनके पास कुछ नहीं है. यहां आ जाते हैं समोसा खिलाकर भाग जाते हैं. खराब बीज पकड़ा जाते हैं. बीते साल मैंने उनकी दी हुई सरसों की फसल लगाई जिसमें उत्पादन बेहद कम हुआ.’’

भाव सिंह

इसके बाद गांव में हमारी मुलाकात भीम सिंह से हुई. इकलौते ऐसे किसान हैं जिन्हें केवीके के गोद लेने से कुछ फायदा हुआ है. केवीके द्वारा इन्हें मशरूम की खेती के लिए टेंट और खाद उपलब्ध कराया गया. वहीं टमाटर की खेती के लिए भी टेंट मिला है. हालांकि इन्हें भी इसकी जानकारी करीब दो महीने पहले ही मिली है.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘करीब दो महीने पहले यहां एक सेमिनार लगी थी उसमें बताया कि हमने सकतपुर को गोद लिया हुआ है. हम यहां पर काम करेंगे. गोद लेने के बाद उन्होंने हमें ये नेट दिलाया, मशरूम लगवाई. इसके लिए वे लगातार यहां आते रहते हैं.’’

भीम सिंह एक समृद्ध किसान है. खेती के अलावा उनका मसलों का भी व्यापार है जो एक एनजीओ के सहयोग से चलता है. न्यूजलॉन्ड्री से आगे बातचीत करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘मेरे अलावा गांव के कुछ और किसानों को भी उन्होंने जाली दी है, लेकिन वे खेत में लगवा नहीं पाए हैं. उन्होंने भले ही हमें टमाटर की खेती के लिए जाली दी है, लेकिन उसे खेत में लगाने के लिए पाइप और बांस का खर्च हमें खुद उठाना पड़ा है. जिसपर करीब 80 हज़ार रुपए खर्च आया है. इस लागत को निकालने के लिए हमें तीन साल इंतज़ार करना पड़ेगा.’’

अपने टमाटर के खेत में भीम सिंह

जाली मिलने के बाद उसे खेत में नहीं लगवा पाए किसानों में से एक चंद्रभान हैं. एक एकड़ अपनी और एक एकड़ किराए पर लेकर खेती करने वाले चंद्रभान बताते हैं, ‘‘अभी पैसों की थोड़ी दिक्कत है. हरियाणा में बाजरे का भाव तो बेहतर था, लेकिन पटवारी की गलत रिपोर्ट के कारण मेरा बाजरा बिक नहीं पाया. ऐसे में पैसों की दिक्कत है, लेकिन मैं जल्द ही उसे खेत में लगाकर टमाटर की खेती करूंगा.’’

सकतपुर गांव से ज़्यादा बुरा हाल लोकरा गांव का है

गुरुग्राम जिला मुख्यालय से 53 किलोमीटर दूर पटौदी तहसील में लोकरा गांव है. यहां कई अमीर किसान हैं तो कई बेहद गरीब भी हैं.

साल 2016 से गांव के सरपंच पंकज शील गांव के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे गांव में 20 के करीब में ऐसे बड़े किसान हैं जिनके पास 10 एकड़ से ज़्यादा जमीन है. इसके अलावा बाकी किसान छोटी जोत वाले हैं जिनमें किसी के पास पांच एकड़ तो किसी के पास तीन एकड़ जमीन है.’’

लोकरा गांव के ही रहने वाले सत्य प्रकाश जरावता विधानसभा पटौदी के विधायक हैं. हालांकि इन दिनों वे गुरुग्राम में ही रहते हैं. गेहूं और सरसों की खेती करने वाले इस गांव को अगर जातीय दृष्टि से देखें तो यह यादव बाहुल्य है.

सकतपुर की तरह यहां के भी ज्यादातर किसानों को इस बात की जानकारी नहीं है कि उनके गांव के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केवीके द्वारा गोद लिया गया है.

गांव में प्रवेश करते ही एक चाय की दुकान है. वहां पर बैठे लोगों से जब हमने केवीके द्वारा गांव के किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर सवाल किया तो उसमें से एक शख्स कहते हैं, ‘‘कागजों पर लिया होगा. इस सरकार का ज़्यादातर काम कागजों पर ही होता है. हमने तो गांव में कुछ बदलाव होते नहीं देखा है. जैसे पहले किसान खेती करते थे वैसे ही अब कर रहे हैं. किसानों की लागत बढ़ती गई, लेकिन फसल की कीमत ज़्यादा नहीं बढ़ी. गांव की नई पीढ़ी तो अब खेती से दूर हो रही है.’’

गांव में हमारी मुलाकात हरपाल यादव से हुई. 35 वर्षीय हरपाल 6 एकड़ में धान, गेहूं और बाजरे की खेती करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए केवीके द्वारा गांव को गोद लिए जाने की जानकारी से वे साफ इंकार करते हैं. यादव कहते हैं, ‘‘मुझे तो नहीं पता और ना ही कोई यहां आया. ना कोई मुनादी हुई और ना ही गांव में पंचायत करके बताया गया. अब किसी ने गोद लिया इसकी जानकारी तो हमें नहीं है.’’

गोद लेने से अनजान हरपाल यादव से जब हमने पूछा कि केवीके से कोई मदद मिलती है तो वे कहते हैं, ‘‘हमें कोई मदद नहीं मिलती है. ना ही कोई उन्हें जानता है.’’

हरपाल यादव

30 एकड़ में खेती करने वाले 56 वर्षीय लीला राम इस गांव के सबसे बड़े किसानों में से एक हैं. न्यूजलॉन्ड्री ने जब उनसे किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर केवीके द्वारा गोद लिए जाने को लेकर सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘इसकी जानकारी तो मुझे नहीं है, लेकिन एकाध बार वे गांव में आए हुए हैं.’’

इस गांव में कुछ किसान जैविक खेती करते हैं. उनका एक ग्रुप है जिसके प्रमुख अशोक कुमार हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘वो मेरे पास एक बार आए थे. उन्होंने कहा कि हम किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार की तरफ एक कार्यक्रम चला रहे हैं. केवीके वाले कभी-कभी आते हैं. अलग-अलग सीजन में बीज दे जाते हैं. हालांकि इससे खास फर्क तो पड़ा नहीं है. जैविक खेती से हमने अपनी आय दोगुनी से तीन गुनी की है. क्योंकि हमारा जो प्रोडक्ट है वो दोगुना तीन गुना दर पर बिकता है. लेकिन मेरी आमदनी बढ़ने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है. उनसे हमें कोई मदद नहीं मिली है.’’

अशोक कुमार की तरह ही मंगत राम जैविक खेती करते हैं. मंगत राम कहते हैं, ‘‘मुझे गांव को गोद लेने की जानकारी एक पत्रकार के ही जरिए मिली थी. कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह के अलावा हमें कोई मदद नहीं मिलती है. वे हमें कम खर्च में खेती करने का उपाय बताते हैं. अगर फसल में कीट लग जाए तो उससे बचाव का उपाय बताते हैं. मैं जैविक खेती करता हूं, लेकिन मेरे उत्पाद के लिए कोई मंडी नहीं है. हम प्राइवेट में अपना सामान बेचते हैं.’’

लोकरा गांव के सरपंच पंकज शील बीजेपी से ही जुड़े हुए हैं. जब हमने उनसे गांव में किसानों की आमदनी डबल करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा गोद लिए जाने को लेकर सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘करीब 15 दिन पहले मेरे पास केवीके वाले आए थे. उन्होंने बताया कि हमें आपके गांव के किसानों की आमदनी डबल करने पर काम करना है. मैंने उन्हें अशोक के पास भेज दिया. वे जैविक खेती करता है.’’

सरपंच पंकज शील

क्या आपको किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केवीके काम कर रहा है इसकी जानकारी 15 दिन पहले चली थी. पंकज इसका जवाब हां में देते हैं.

‘आमदनी बढ़ने की बात ही नहीं, 2022 तक हमें खेत न बेचना पड़े’

हमने दोनों गांवों में कई किसानों से सरकार द्वारा 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर किए गए वादों पर सवाल किया तो ज़्यादातर किसानों का कहना है कि आमदनी बढ़ने के बजाय घट रही है. उत्पाद की कीमत की तुलना में खेती में खर्च ज़्यादा बढ़ रहा है.

सकतपुर गांव के हबीब खान आगे कहते हैं, ‘‘जहां तक रही साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात तो ये तो भूल ही जाइये. आमदनी लगातार कम हो रही और खर्च में इजाफा हो रहा है. ऐसे में आने वाले समय में लोग खेत बेचना शुरू कर देंगे.’’

भीम सिंह का भी ऐसा ही मानना है. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘हमारे गांव के ज़्यादातर किसान गेहूं और बाजरे की खेती करते हैं. जिन्होंने पिछले सीजन में बाजरा उगाया उन किसानों का बाजरा अभी घरों में पड़ा हुआ है. सरकार ने बाजरे के लिए 2200 रुपए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित किया था. जिनका बाजरा नहीं बिका वो अब उसे 1100 से 1200 रुपए में भी नहीं बेच पा रहे हैं. उन्हें आठ-नौ सौ रुपए में बेचना पड़ रहा है. ऐसा ही रहा तो उनकी आमदनी साल 2050 तक भी दोगुनी नहीं हो पाएगी.’’

लोकरा गांव के रहने वाले हरपाल यादव 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर कहते हैं, ‘‘सरकार हर बार गेहूं और बाकी उत्पादों पर जो एमएसपी बढ़ा कर दे रही है वो 100 से 150 रुपए है. उतना ही खर्चा बढ़ता जा रहा है. यूरिया जितने में 50 किलो आता था उतने में अब 45 किलो आ रहा है. गेहूं के जो नए बीज हम बोते हैं वो प्राइवेट में 1200 से 1500 रुपए किलो लेना पड़ता है. सरकार से जो मिला है वो बेकार वाला मिला है. डीजल महंगा होता जा रहा है. मज़दूरी महंगी होती जा रही है तो हमारी आमदनी दोगुनी कैसे हो जाएगी.’’

लोकरा गांव के सरपंच पंकज शील का भी ऐसा ही मानना है. वे कहते हैं, ‘‘हर साल एमएसपी में 50 से 100 रुपए की वृद्धि होती है. किसान तो दुखी हो रहे हैं. साल 2014 में गेहूं की एमएसपी 1600 से 1700 रुपए हुआ करती थी. इस साल 1925 रुपए है. अगले साल तक 1975 रुपए हो जाएगी. छह साल में 200 से 300 रुपए की वृद्धि हुई है, ऐसे में किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे हो जाएगी.’’

‘गांव गोद लेने के लिए तो कह दिया गया, लेकिन अलग से बजट नहीं मिला’

दोनों गांवों में कई लोगों से बातचीत के बाद यह साफ हो जाता है कि केवीके ने गांव को गोद लिया है इसकी जानकारी कुछ लोगों को ही है. गांव के ज़्यादातर लोग इससे अनजान हैं. वही इसका कोई खास असर गांव के किसानों पर नहीं पड़ा है.

गांव से निकलकर न्यूजलॉन्ड्री शिकोहपुर स्थित केवीके पहुंचा. यहां हमने केवीके के अध्यक्ष डॉ. अनामिका शर्मा से बात की.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए शर्मा कहती हैं, ‘‘मैं यहां एक जनवरी 2019 में ज्वाइन की थी. मेरे आने के बाद ही गांवों को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हुई और हमने काम करना शुरू किया. हमें गांवों को गोद लेकर किसानों की आमदनी बढ़ाने की जिम्मेदारी तो दे दी गई, लेकिन इसके लिए अलग से कोई बजट नहीं दिया गया. हमें कहा गया कि आपको नाबार्ड को एक प्रोजेक्ट बनाकर देना है. हमने 2019 में भी प्रोजेक्ट जमा किया तो उसपर नाबार्ड ने बदलाव करने के लिए कहा. फिर बीते दिसंबर के आसपास नाबार्ड से हमें एक रिफ्यूजल मिला कि हम सिर्फ 20 प्रतिशत ही प्रोजेक्ट का खर्च दे सकते है. नाबार्ड से हमें अभी तक कोई पैसा नहीं मिला है. हमें उसी बजट में से खर्च करने लिए कहा गया जो केवीके के लिए मिलता है.’’

केवीके के अध्यक्ष डॉ. अनामिका शर्मा

इन दोनों गांवों को लेकर अब तक क्या काम किया गया. इस सवाल के जवाब में शर्मा बताती हैं, ‘‘जब हमने इन दोनों गांवों में काम शुरू किया तो सबसे पहले सकतपुर में करीब 100 किसानों की आय की जानकारी इकट्ठा की. हमने पाया कि यहां के किसानों की औसत सालाना आमदनी 1.50 लाख से 2:50 लाख है.’’

किसानों की आय को लेकर जानकारी इकट्ठा करने का सवाल जब हमने दोनों गांवों के किसानों से पूछा तो कोई भी किसान नहीं मिला जो इसमें शामिल हुआ हो. सकतपुर गांव के रहने वाले हबीब खान कहते हैं, ‘‘मैं तो यहां के एक बड़े किसानों में से एक हूं. मुझसे तो आजतक कोई सालाना आमदनी को लेकर पूछताछ करने कोई नहीं आया. केवीके का ज़्यादातर काम कागजों पर होता है. शायद यह काम भी कागजों पर ही हुआ हो.’’

अनामिका शर्मा केवीके द्वारा किसानों की आमदनी डबल करने को लेकर किए केवीके के किए कामों का जिक्र करते हुए कहती हैं, ‘‘सकतपुर एससी बाहुल्य गांव है. वहां के दस दलित किसानों को हमने टमाटर उत्पादन के लिए टेंट दिया.’’

हमने रिपोर्ट की शुरुआत में सकतपुर में जिन किसानों को टेंट दिया गया उसका जिक्र किया है. दस में सिर्फ एक किसान ने इस टेंट का इस्तेमाल किया है क्योंकि इसको लगाने में टेंट के अलावा 70 से 80 हज़ार रुपए की जरूरत पड़ती है. लोगों के घरों पर टेंट ऐसे ही रखा हुआ है.

साल 2019-20 में इन गांवों को गोद लिया गया. ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज' में रहने वाले किसानों की आमदनी कब तक डबल करनी थी इस सवाल के जवाब में शर्मा कहती हैं, ‘‘इन गांवों के किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करनी है. लेकिन अभी तक के कामों के आधार पर कहें तो साल 2022 तक हम इन गांवों के 30 प्रतिशत किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे.’’

किसानों की आमदनी डबल नहीं कर पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण शर्मा को कोई एक्स्ट्रा बजट नहीं देना लगता है. वो कहती हैं, ‘‘आजकल किसान हमसे ज़्यादा व्यस्त है. अगर हम उन्हें किसी कार्यक्रम में बुलाएंगे तो हमें उन्हें कुछ लालच देना होगा. उन्हें आर्थिक मदद देनी होगी. जब हमें बजट ही नहीं मिला तो हम उन्हें कैसे मदद कर सकते हैं. अगर बजट मिला होता तो हम दो कदम और आगे चलते.’’

जब ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ की आमदनी नहीं बढ़ी तो बाकि गांवों की क्या स्थिति होगी

तमाम जानकार और विपक्षी दल के नेता कहते रहे हैं कि सरकार जिस तरह से कृषि को लेकर काम कर रही है ऐसे में मुमकिन नहीं है कि तय सीमा के अंदर किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए. सरकार को इसके मिशन के तहत काम करना होगा.

आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और भारत के नामी कृषि वैज्ञानिक 74 वर्षीय डॉक्टर मंगल राय किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी होने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘आमदनी दोगुनी होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. 2022 में तो अब जो एक-दो साल रह गया. जब बात हुई थी तब से कृषि में करीब 14-15 प्रतिशत कम्पाउंड ग्रोथ होता तब जाकर आमदनी दोगुनी होती, लेकिन आपकी ग्रोथ रेट तीन से साढ़े तीन प्रतिशत पर अटकी हुई है. दूसरी तरफ डीजल- पेट्रोल का दाम बढ़ रहा है, मज़दूरी बढ़ रही है, खाद की कीमत बढ़ रही है. यातायात की कीमत बढ़ रही है. हर चीज का दाम बढ़ रहा है तो कैसे डबल हो जाएगा.’’

ऐसा कहने वालों को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में अपने एक भाषण में घेरते हुए कहा था, ‘‘किसानों की आय दोगुनी करने की बात की तो बहुत लोग ऐसे थे जिन्होंने उसका मज़ाक उड़ाया. ये तो संभव नहीं है. ये तो मुश्किल है. ये कैसे हो सकता है. देश के किसान पर मेरा भरोसा था. अगर हमारे देश के किसान के सामने कोई लक्ष्य रखा जाए. आवश्यक वातावरण पैदा किया जाए. बदलाव लाया जाए. तो मेरे देश के किसान रिस्क लेने को तैयार हैं. मेहनत करने को तैयार हैं. परिणाम लाने को तैयार हैं और भूतकाल में उसने करके दिखाया है.’’

प्रधानमंत्री ने भले ही किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर सरकार के दावे पर सवाल उठाने वालों को जवाब दिया, लेकिन जब ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ के ही किसानों की आमदनी में ख़ास बदलाव नहीं आया तो बाकी गांवों के किसानों की आमदनी क्या दोगुनी हो पाएगी? जानकारों की माने तो अभी जो कृषि में ग्रोथ रेट है ऐसे में तो यह मुमकिन होता नज़र नहीं आ रहा है.

इसी बीच बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वर्तमान में राज्यसभा के सांसद सुशील मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा है कि हम अगले पांच साल में किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे.

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दोपहर के तीन बज रहे थे. उबड़ खाबड़ रास्तों से गुजरते हुए हम एक चमकीले रास्ते पर पहुंचे. यह रास्ता गुरुग्राम के अरावली के बीच बसे गांव सकतपुर जाता है. थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर सकतपुर गांव में स्वागत वाला बोर्ड लगा नजर आता है. यहीं हमारी मुलाकात गांव के रहने वाले 35 वर्षीय कृष्णा कुमार से हुई. पांच एकड़ में खेती करने वाले कुमार से जब हमने पूछा कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) ने आपके गांव को गोद लिया, उसके बाद क्या बदलाव आया?

न्यूजलॉन्ड्री के सवाल पर कुमार हैरानी से देखते हुए कहते हैं, ‘‘कब गोद लिया? आप कह रहे हैं तब मुझे पता चला कि हमारे गांव गोद लिया गया है. मुझे इसके बारे में कुछ पता नहीं है.’’

इस तरह का जवाब सिर्फ कृष्णा कुमार ही नहीं देते बल्कि आठ एकड़ में खेती करने वाले सकतपुर गांव के ही किसान हबीब खान भी देते हैं. न्यूजलॉन्ड्री ने जब खान से किसानों को आमदनी दोगुनी करने को लेकर केवीके द्वारा गांव को गोद लेने का सवाल दोहराया तो वे कहते हैं, ‘‘गांव को गोद लिया गया इसकी जानकारी मुझे नहीं है जबकि यहां के कुछेक बड़े जोत वाले किसानों में मैं एक हूं.’’

हबीब खान

साल 2016 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए 2022 तक की समय सीमा तय की है. विपक्षी दलों के सांसदों ने किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर सरकार से कई दफा लिखित में सवाल किया और हर बार सरकार द्वारा एक ही रटा-रटाया जवाब दिया गया कि सरकार इसके लिए कई स्तर पर काम कर ही है. इन कई स्तर पर चल रहे काम में से एक था ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’.

डाउन टू अर्थ पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने हर जिले में दो गांवों के किसानों की आमदनी दोगुनी करने का बीड़ा उठाया. ऐसा करने की जिम्मेदारी जिले के केवीके को सौंपी गई. इन्हीं गांवों को ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज' नाम दिया गया.

तीन मार्च 2020 को कृषि को लेकर बनी स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि तीस राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों के 651 कृषि विज्ञान केंद्रों ने 1,416 गांवों को गोद लिया है.

हरियाणा के गुरुग्राम जिले के शिकोहपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने दो गांव सकतपुर और लोकरा को गोद लिया था. न्यूजलॉन्ड्री ने इन दो गांवों की पड़ताल की और जानने की कोशिश की कि अब तक इन गांवों में किसानों की आमदनी की क्या स्थिति है.

गुरुग्राम के शिकोहपुर में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र

ज़्यादातर लोगों को गांव को गोद लेने की जानकारी ही नहीं

न्यूजलॉन्ड्री सबसे पहले सकतपुर गांव पहुंचा. यादव, मुस्लिम और दलित बाहुल्य इस गांव में बने एक मंदिर के सामने हमारी मुलाकात रियाज खान से हुई. रियाज के पास अपनी जमीन नहीं है. वे दूसरों के खेतों में मज़दूरी करके जीवनयापन करते हैं.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए खान कहते हैं, ‘‘हमारे यहां कोई जानकारी नहीं है जी. किसी ने इसे गोद नहीं लिया. ये सारी अफवाह है. गांव में खेती को बेहतर करने के लिए कुछ काम नहीं हुआ है. हमारे यहां तो सब गरीब आदमी हैं, करते हैं तो खाते हैं. मैं किसानों के खेतों में ही तो मज़दूरी करता हूं. मुझे नहीं लगता कि किसी की आमदनी दोगुनी हुई है.’’

रियाज खान इसे अफवाह करार देते हैं वहीं बाकी कई किसान हमारे सवाल पूछने के बाद कहते हैं कि ऐसा कुछ है इसकी जानकारी हमें आपके सवाल के बाद ही मिली.

ऐसे ही एक शख्स हैं कृष्णा कुमार. 12 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ खेती में जुट गए कुमार पांच एकड़ के किसान हैं. इन्होंने ज़्यादातर खेतों में गेहूं लगाएं हैं. गोद लेने की बात से अनजान कुमार कहते हैं, ‘‘केवीके वाले गांव में कभी-कभार तो आते हैं, लेकिन हमें कुछ देते नहीं हैं. जो बीज भी देते हैं वो एक्सपायर ही होता है.’’

एक गेहूं लगे खेत की तरफ इशारा करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘इसका बीज केवीके ने ही दिया था. आप इसे देखिए. कैसा मरा-मरा दिख रहा है. आपको लगता है कि इससे बेहतर पैदावार होगी.’’

12 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ खेती में जुट गए कृष्णा कुमार पांच एकड़ के किसान हैं.

60 वर्षीय भाव सिंह गांव के बड़े किसान हैं. भाव सिंह के पिता नंबरदार और गांव के सरपंच रह चुके हैं. इनके पास छह एकड़ जमीन है जिसके बड़े हिस्से में गेहूं, सरसों और बाजरे की खेती करते हैं. वहीं कुछ जमीन पर सब्जी उगाते हैं.

करीब एक घंटे तक गांव में भटकने के बाद भाव सिंह पहले शख्स मिलते हैं जिन्हें केवीके द्वारा गोद लिए जाने की जानकारी है. हालांकि वे केवीके से खफा नजर आते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘कृषि विज्ञान वाले सब लूटते हैं. उनके पास कुछ नहीं है. यहां आ जाते हैं समोसा खिलाकर भाग जाते हैं. खराब बीज पकड़ा जाते हैं. बीते साल मैंने उनकी दी हुई सरसों की फसल लगाई जिसमें उत्पादन बेहद कम हुआ.’’

भाव सिंह

इसके बाद गांव में हमारी मुलाकात भीम सिंह से हुई. इकलौते ऐसे किसान हैं जिन्हें केवीके के गोद लेने से कुछ फायदा हुआ है. केवीके द्वारा इन्हें मशरूम की खेती के लिए टेंट और खाद उपलब्ध कराया गया. वहीं टमाटर की खेती के लिए भी टेंट मिला है. हालांकि इन्हें भी इसकी जानकारी करीब दो महीने पहले ही मिली है.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘करीब दो महीने पहले यहां एक सेमिनार लगी थी उसमें बताया कि हमने सकतपुर को गोद लिया हुआ है. हम यहां पर काम करेंगे. गोद लेने के बाद उन्होंने हमें ये नेट दिलाया, मशरूम लगवाई. इसके लिए वे लगातार यहां आते रहते हैं.’’

भीम सिंह एक समृद्ध किसान है. खेती के अलावा उनका मसलों का भी व्यापार है जो एक एनजीओ के सहयोग से चलता है. न्यूजलॉन्ड्री से आगे बातचीत करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘मेरे अलावा गांव के कुछ और किसानों को भी उन्होंने जाली दी है, लेकिन वे खेत में लगवा नहीं पाए हैं. उन्होंने भले ही हमें टमाटर की खेती के लिए जाली दी है, लेकिन उसे खेत में लगाने के लिए पाइप और बांस का खर्च हमें खुद उठाना पड़ा है. जिसपर करीब 80 हज़ार रुपए खर्च आया है. इस लागत को निकालने के लिए हमें तीन साल इंतज़ार करना पड़ेगा.’’

अपने टमाटर के खेत में भीम सिंह

जाली मिलने के बाद उसे खेत में नहीं लगवा पाए किसानों में से एक चंद्रभान हैं. एक एकड़ अपनी और एक एकड़ किराए पर लेकर खेती करने वाले चंद्रभान बताते हैं, ‘‘अभी पैसों की थोड़ी दिक्कत है. हरियाणा में बाजरे का भाव तो बेहतर था, लेकिन पटवारी की गलत रिपोर्ट के कारण मेरा बाजरा बिक नहीं पाया. ऐसे में पैसों की दिक्कत है, लेकिन मैं जल्द ही उसे खेत में लगाकर टमाटर की खेती करूंगा.’’

सकतपुर गांव से ज़्यादा बुरा हाल लोकरा गांव का है

गुरुग्राम जिला मुख्यालय से 53 किलोमीटर दूर पटौदी तहसील में लोकरा गांव है. यहां कई अमीर किसान हैं तो कई बेहद गरीब भी हैं.

साल 2016 से गांव के सरपंच पंकज शील गांव के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे गांव में 20 के करीब में ऐसे बड़े किसान हैं जिनके पास 10 एकड़ से ज़्यादा जमीन है. इसके अलावा बाकी किसान छोटी जोत वाले हैं जिनमें किसी के पास पांच एकड़ तो किसी के पास तीन एकड़ जमीन है.’’

लोकरा गांव के ही रहने वाले सत्य प्रकाश जरावता विधानसभा पटौदी के विधायक हैं. हालांकि इन दिनों वे गुरुग्राम में ही रहते हैं. गेहूं और सरसों की खेती करने वाले इस गांव को अगर जातीय दृष्टि से देखें तो यह यादव बाहुल्य है.

सकतपुर की तरह यहां के भी ज्यादातर किसानों को इस बात की जानकारी नहीं है कि उनके गांव के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केवीके द्वारा गोद लिया गया है.

गांव में प्रवेश करते ही एक चाय की दुकान है. वहां पर बैठे लोगों से जब हमने केवीके द्वारा गांव के किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर सवाल किया तो उसमें से एक शख्स कहते हैं, ‘‘कागजों पर लिया होगा. इस सरकार का ज़्यादातर काम कागजों पर ही होता है. हमने तो गांव में कुछ बदलाव होते नहीं देखा है. जैसे पहले किसान खेती करते थे वैसे ही अब कर रहे हैं. किसानों की लागत बढ़ती गई, लेकिन फसल की कीमत ज़्यादा नहीं बढ़ी. गांव की नई पीढ़ी तो अब खेती से दूर हो रही है.’’

गांव में हमारी मुलाकात हरपाल यादव से हुई. 35 वर्षीय हरपाल 6 एकड़ में धान, गेहूं और बाजरे की खेती करते हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए केवीके द्वारा गांव को गोद लिए जाने की जानकारी से वे साफ इंकार करते हैं. यादव कहते हैं, ‘‘मुझे तो नहीं पता और ना ही कोई यहां आया. ना कोई मुनादी हुई और ना ही गांव में पंचायत करके बताया गया. अब किसी ने गोद लिया इसकी जानकारी तो हमें नहीं है.’’

गोद लेने से अनजान हरपाल यादव से जब हमने पूछा कि केवीके से कोई मदद मिलती है तो वे कहते हैं, ‘‘हमें कोई मदद नहीं मिलती है. ना ही कोई उन्हें जानता है.’’

हरपाल यादव

30 एकड़ में खेती करने वाले 56 वर्षीय लीला राम इस गांव के सबसे बड़े किसानों में से एक हैं. न्यूजलॉन्ड्री ने जब उनसे किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर केवीके द्वारा गोद लिए जाने को लेकर सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘इसकी जानकारी तो मुझे नहीं है, लेकिन एकाध बार वे गांव में आए हुए हैं.’’

इस गांव में कुछ किसान जैविक खेती करते हैं. उनका एक ग्रुप है जिसके प्रमुख अशोक कुमार हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कुमार कहते हैं, ‘‘वो मेरे पास एक बार आए थे. उन्होंने कहा कि हम किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार की तरफ एक कार्यक्रम चला रहे हैं. केवीके वाले कभी-कभी आते हैं. अलग-अलग सीजन में बीज दे जाते हैं. हालांकि इससे खास फर्क तो पड़ा नहीं है. जैविक खेती से हमने अपनी आय दोगुनी से तीन गुनी की है. क्योंकि हमारा जो प्रोडक्ट है वो दोगुना तीन गुना दर पर बिकता है. लेकिन मेरी आमदनी बढ़ने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है. उनसे हमें कोई मदद नहीं मिली है.’’

अशोक कुमार की तरह ही मंगत राम जैविक खेती करते हैं. मंगत राम कहते हैं, ‘‘मुझे गांव को गोद लेने की जानकारी एक पत्रकार के ही जरिए मिली थी. कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह के अलावा हमें कोई मदद नहीं मिलती है. वे हमें कम खर्च में खेती करने का उपाय बताते हैं. अगर फसल में कीट लग जाए तो उससे बचाव का उपाय बताते हैं. मैं जैविक खेती करता हूं, लेकिन मेरे उत्पाद के लिए कोई मंडी नहीं है. हम प्राइवेट में अपना सामान बेचते हैं.’’

लोकरा गांव के सरपंच पंकज शील बीजेपी से ही जुड़े हुए हैं. जब हमने उनसे गांव में किसानों की आमदनी डबल करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा गोद लिए जाने को लेकर सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘करीब 15 दिन पहले मेरे पास केवीके वाले आए थे. उन्होंने बताया कि हमें आपके गांव के किसानों की आमदनी डबल करने पर काम करना है. मैंने उन्हें अशोक के पास भेज दिया. वे जैविक खेती करता है.’’

सरपंच पंकज शील

क्या आपको किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केवीके काम कर रहा है इसकी जानकारी 15 दिन पहले चली थी. पंकज इसका जवाब हां में देते हैं.

‘आमदनी बढ़ने की बात ही नहीं, 2022 तक हमें खेत न बेचना पड़े’

हमने दोनों गांवों में कई किसानों से सरकार द्वारा 2022 तक किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर किए गए वादों पर सवाल किया तो ज़्यादातर किसानों का कहना है कि आमदनी बढ़ने के बजाय घट रही है. उत्पाद की कीमत की तुलना में खेती में खर्च ज़्यादा बढ़ रहा है.

सकतपुर गांव के हबीब खान आगे कहते हैं, ‘‘जहां तक रही साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात तो ये तो भूल ही जाइये. आमदनी लगातार कम हो रही और खर्च में इजाफा हो रहा है. ऐसे में आने वाले समय में लोग खेत बेचना शुरू कर देंगे.’’

भीम सिंह का भी ऐसा ही मानना है. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘हमारे गांव के ज़्यादातर किसान गेहूं और बाजरे की खेती करते हैं. जिन्होंने पिछले सीजन में बाजरा उगाया उन किसानों का बाजरा अभी घरों में पड़ा हुआ है. सरकार ने बाजरे के लिए 2200 रुपए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित किया था. जिनका बाजरा नहीं बिका वो अब उसे 1100 से 1200 रुपए में भी नहीं बेच पा रहे हैं. उन्हें आठ-नौ सौ रुपए में बेचना पड़ रहा है. ऐसा ही रहा तो उनकी आमदनी साल 2050 तक भी दोगुनी नहीं हो पाएगी.’’

लोकरा गांव के रहने वाले हरपाल यादव 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर कहते हैं, ‘‘सरकार हर बार गेहूं और बाकी उत्पादों पर जो एमएसपी बढ़ा कर दे रही है वो 100 से 150 रुपए है. उतना ही खर्चा बढ़ता जा रहा है. यूरिया जितने में 50 किलो आता था उतने में अब 45 किलो आ रहा है. गेहूं के जो नए बीज हम बोते हैं वो प्राइवेट में 1200 से 1500 रुपए किलो लेना पड़ता है. सरकार से जो मिला है वो बेकार वाला मिला है. डीजल महंगा होता जा रहा है. मज़दूरी महंगी होती जा रही है तो हमारी आमदनी दोगुनी कैसे हो जाएगी.’’

लोकरा गांव के सरपंच पंकज शील का भी ऐसा ही मानना है. वे कहते हैं, ‘‘हर साल एमएसपी में 50 से 100 रुपए की वृद्धि होती है. किसान तो दुखी हो रहे हैं. साल 2014 में गेहूं की एमएसपी 1600 से 1700 रुपए हुआ करती थी. इस साल 1925 रुपए है. अगले साल तक 1975 रुपए हो जाएगी. छह साल में 200 से 300 रुपए की वृद्धि हुई है, ऐसे में किसानों की आमदनी दोगुनी कैसे हो जाएगी.’’

‘गांव गोद लेने के लिए तो कह दिया गया, लेकिन अलग से बजट नहीं मिला’

दोनों गांवों में कई लोगों से बातचीत के बाद यह साफ हो जाता है कि केवीके ने गांव को गोद लिया है इसकी जानकारी कुछ लोगों को ही है. गांव के ज़्यादातर लोग इससे अनजान हैं. वही इसका कोई खास असर गांव के किसानों पर नहीं पड़ा है.

गांव से निकलकर न्यूजलॉन्ड्री शिकोहपुर स्थित केवीके पहुंचा. यहां हमने केवीके के अध्यक्ष डॉ. अनामिका शर्मा से बात की.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए शर्मा कहती हैं, ‘‘मैं यहां एक जनवरी 2019 में ज्वाइन की थी. मेरे आने के बाद ही गांवों को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हुई और हमने काम करना शुरू किया. हमें गांवों को गोद लेकर किसानों की आमदनी बढ़ाने की जिम्मेदारी तो दे दी गई, लेकिन इसके लिए अलग से कोई बजट नहीं दिया गया. हमें कहा गया कि आपको नाबार्ड को एक प्रोजेक्ट बनाकर देना है. हमने 2019 में भी प्रोजेक्ट जमा किया तो उसपर नाबार्ड ने बदलाव करने के लिए कहा. फिर बीते दिसंबर के आसपास नाबार्ड से हमें एक रिफ्यूजल मिला कि हम सिर्फ 20 प्रतिशत ही प्रोजेक्ट का खर्च दे सकते है. नाबार्ड से हमें अभी तक कोई पैसा नहीं मिला है. हमें उसी बजट में से खर्च करने लिए कहा गया जो केवीके के लिए मिलता है.’’

केवीके के अध्यक्ष डॉ. अनामिका शर्मा

इन दोनों गांवों को लेकर अब तक क्या काम किया गया. इस सवाल के जवाब में शर्मा बताती हैं, ‘‘जब हमने इन दोनों गांवों में काम शुरू किया तो सबसे पहले सकतपुर में करीब 100 किसानों की आय की जानकारी इकट्ठा की. हमने पाया कि यहां के किसानों की औसत सालाना आमदनी 1.50 लाख से 2:50 लाख है.’’

किसानों की आय को लेकर जानकारी इकट्ठा करने का सवाल जब हमने दोनों गांवों के किसानों से पूछा तो कोई भी किसान नहीं मिला जो इसमें शामिल हुआ हो. सकतपुर गांव के रहने वाले हबीब खान कहते हैं, ‘‘मैं तो यहां के एक बड़े किसानों में से एक हूं. मुझसे तो आजतक कोई सालाना आमदनी को लेकर पूछताछ करने कोई नहीं आया. केवीके का ज़्यादातर काम कागजों पर होता है. शायद यह काम भी कागजों पर ही हुआ हो.’’

अनामिका शर्मा केवीके द्वारा किसानों की आमदनी डबल करने को लेकर किए केवीके के किए कामों का जिक्र करते हुए कहती हैं, ‘‘सकतपुर एससी बाहुल्य गांव है. वहां के दस दलित किसानों को हमने टमाटर उत्पादन के लिए टेंट दिया.’’

हमने रिपोर्ट की शुरुआत में सकतपुर में जिन किसानों को टेंट दिया गया उसका जिक्र किया है. दस में सिर्फ एक किसान ने इस टेंट का इस्तेमाल किया है क्योंकि इसको लगाने में टेंट के अलावा 70 से 80 हज़ार रुपए की जरूरत पड़ती है. लोगों के घरों पर टेंट ऐसे ही रखा हुआ है.

साल 2019-20 में इन गांवों को गोद लिया गया. ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज' में रहने वाले किसानों की आमदनी कब तक डबल करनी थी इस सवाल के जवाब में शर्मा कहती हैं, ‘‘इन गांवों के किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करनी है. लेकिन अभी तक के कामों के आधार पर कहें तो साल 2022 तक हम इन गांवों के 30 प्रतिशत किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे.’’

किसानों की आमदनी डबल नहीं कर पाने के पीछे सबसे बड़ा कारण शर्मा को कोई एक्स्ट्रा बजट नहीं देना लगता है. वो कहती हैं, ‘‘आजकल किसान हमसे ज़्यादा व्यस्त है. अगर हम उन्हें किसी कार्यक्रम में बुलाएंगे तो हमें उन्हें कुछ लालच देना होगा. उन्हें आर्थिक मदद देनी होगी. जब हमें बजट ही नहीं मिला तो हम उन्हें कैसे मदद कर सकते हैं. अगर बजट मिला होता तो हम दो कदम और आगे चलते.’’

जब ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ की आमदनी नहीं बढ़ी तो बाकि गांवों की क्या स्थिति होगी

तमाम जानकार और विपक्षी दल के नेता कहते रहे हैं कि सरकार जिस तरह से कृषि को लेकर काम कर रही है ऐसे में मुमकिन नहीं है कि तय सीमा के अंदर किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए. सरकार को इसके मिशन के तहत काम करना होगा.

आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और भारत के नामी कृषि वैज्ञानिक 74 वर्षीय डॉक्टर मंगल राय किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी होने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘आमदनी दोगुनी होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. 2022 में तो अब जो एक-दो साल रह गया. जब बात हुई थी तब से कृषि में करीब 14-15 प्रतिशत कम्पाउंड ग्रोथ होता तब जाकर आमदनी दोगुनी होती, लेकिन आपकी ग्रोथ रेट तीन से साढ़े तीन प्रतिशत पर अटकी हुई है. दूसरी तरफ डीजल- पेट्रोल का दाम बढ़ रहा है, मज़दूरी बढ़ रही है, खाद की कीमत बढ़ रही है. यातायात की कीमत बढ़ रही है. हर चीज का दाम बढ़ रहा है तो कैसे डबल हो जाएगा.’’

ऐसा कहने वालों को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में अपने एक भाषण में घेरते हुए कहा था, ‘‘किसानों की आय दोगुनी करने की बात की तो बहुत लोग ऐसे थे जिन्होंने उसका मज़ाक उड़ाया. ये तो संभव नहीं है. ये तो मुश्किल है. ये कैसे हो सकता है. देश के किसान पर मेरा भरोसा था. अगर हमारे देश के किसान के सामने कोई लक्ष्य रखा जाए. आवश्यक वातावरण पैदा किया जाए. बदलाव लाया जाए. तो मेरे देश के किसान रिस्क लेने को तैयार हैं. मेहनत करने को तैयार हैं. परिणाम लाने को तैयार हैं और भूतकाल में उसने करके दिखाया है.’’

प्रधानमंत्री ने भले ही किसानों की आमदनी दोगुनी करने को लेकर सरकार के दावे पर सवाल उठाने वालों को जवाब दिया, लेकिन जब ‘डबलिंग फार्मर्स इनकम विलेज’ के ही किसानों की आमदनी में ख़ास बदलाव नहीं आया तो बाकी गांवों के किसानों की आमदनी क्या दोगुनी हो पाएगी? जानकारों की माने तो अभी जो कृषि में ग्रोथ रेट है ऐसे में तो यह मुमकिन होता नज़र नहीं आ रहा है.

इसी बीच बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और वर्तमान में राज्यसभा के सांसद सुशील मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा है कि हम अगले पांच साल में किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे.

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