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पवार परिवार के सकाळ ग्रुप और पुणे पुलिस द्वारा न्यूज़लॉन्ड्री के पत्रकार का उत्पीड़न
प्रतीक गोयल ने सकाळ टाइम्स में हुई छंटनी पर एक रिपोर्ट की, जिसके बाद उनके खिलाफ एफआईआर हो गई और न्यूज़लॉन्ड्री को 65 करोड़ का मानहानि का नोटिस भेजा गया. हालांकि, प्रतीक ने अग्रिम ज़मानत ले ली है लेकिन अब पुलिस उनका लैपटॉप ज़ब्त करना चाहती है.
27 मार्च को न्यूज़लॉन्ड्री ने एक रिपोर्ट में यह बताया था की महाराष्ट्र के प्रतिष्ठित सकाळ मीडिया ग्रुप ने अपने 15 कर्मचारियों की छुट्टी कर दी. यह कार्रवाई केंद्र सरकार के उस आदेश के विरुद्ध की गई जिसमें यह कहा गया था की कोविड महामारी के दौरान किसी कर्मचारी को नौकरी से न निकाला जाए या आय में कटौती ना हो. सभी 15 कर्मचारी सकाळ ग्रुप के दैनिक पत्र सकाळ टाइम्स के एडिटोरियल स्टाफ का हिस्सा थे.
इस रिपोर्ट के ढाई महीने बाद सकाळ टाइम्स ने अपने 50-60 लोगों के पूरे एडिटोरियल स्टाफ को ही हटा दिया और अपना प्रिंट संस्करण बंद कर दिया. न्यूज़लॉन्ड्री ने इस पर भी 11 जून को रिपोर्ट की थी. 16 जून को सकाळ मीडिया प्रा. लि. ने न्यूज़लॉन्ड्री को 65 करोड़ का मानहानि का नोटिस भेजा जिसमें यह दावा किया गया था कि हमारी रिपोर्ट्स गलत और मीडिया ग्रुप के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली हैं.
इसी के साथ पुणे पुलिस की मदद से शुरू हुआ सकाळ मीडिया ग्रुप द्वारा हमारे संवाददाता प्रतीक गोयल के उत्पीड़न का कभी ना ख़त्म होने वाला अभियान. प्रतीक ने ही सकाळ में की जाने वाली छंटनी को रिपोर्ट किया था. सकाळ मीडिया ग्रुप का स्वामित्व महाराष्ट्र के रसूखदार पवार परिवार के पास है. ग्रुप की वेबसाइट के अनुसार बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स के प्रमुख प्रकाश जी. पवार हैं. जबकि उनके बेटे अभिजीत पवार मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. प्रकाश पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार के भाई हैं. पवार की बेटी और सांसद सुप्रिया सुले भी बोर्ड की सदस्य हैं. प्रताप और शरद पवार के भतीजे अजित पवार महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री हैं.
हमने तुरंत ही मानहानि के नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि सभी आरोप बेबुनियाद हैं. साथ ही सकाळ ग्रुप से कहा कि वह बताएं कि रिपोर्ट में कौन सी जानकारी गलत है. हमारे जवाब के कुछ महत्वपूर्ण अंश निम्न हैं:
'हमें आपका नोटिस मिला जिसमें दावा किया गया है कि न्यूज़लॉन्ड्री ने गलत मंशा और बदले की भावना से आपके मुवक्किल के खिलाफ गलत और सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित की है. यह दावा न केवल गलत बल्कि अजीब है और हम इसे अस्वीकार करते हैं.
'मुख्यतया आपका कहना है की हमारी रिपोर्ट्स में सही और तथ्यात्मक जानकारी नहीं है. फिर भी आपने किसी ऐसी विशेष जानकारी या बिंदु की ओर इशारा नहीं किया जो आपके अनुसार आपत्तिजनक है. यदि आप बताएं तो हम जानना चाहेंगे कि हम किस जगह गलत हैं. यह दावा इसलिए भी आश्चर्यजनक है क्योंकि हमने पत्रकारिता के मानकों पर खरा उतरते हुए, सकाळ ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर अभिजीत पवार, मानव संसाधन प्रमुख वासुदेव मेदनकर, और सीओओ महेन्द्र पिसल से भी बात की उनके पक्ष को सही रूप से अपनी रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया.
'हम फिर कहते हैं कि न्यूज़लॉन्ड्री की दोनों रिपोर्ट्स में दी गई सारी जानकारियां सही और तथ्यात्मक हैं. हमारे पास इस बात को साबित करने के लिए पुख्ता सुबूत हैं जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय के समक्ष रखा जा सकता है. 'हमें इस बात का खेद है कि एक मीडिया संस्थान की पत्रकारिता की समझ और पत्रकारों के प्रति सम्मान इतना कम है कि उन्हें ऐसा पत्र भेजना पड़ा.
'ऐसे समय में जब हमारे न्यायालयों का ध्यान इस से कहीं अधिक गंभीर और ज़रूरी मुद्दों पर है, इस बेबुनियाद मामले में आपका 65 करोड़ का मानहानि का दावा न केवल पत्रकारिता का बल्कि न्यायपालिका के बहुमूल्य समय का भी अपमान है. इसके बाद भी यदि आप इस मामले में आगे बढ़ना चाहते हैं तो हम अदालत में आपसे मिलने को तत्पर हैं.' इसके बावजूद, यह बताने की बजाय कि हमारी रिपोर्ट्स के कौनसे तथ्यों में उन्हें आपत्ति है, सकाळ मीडिया ने प्रतीक के ख़िलाफ़ एफआईआर कर दी. यह एफआईआर सितम्बर में महेंद्र पिसल द्वारा दर्ज कराई गई जिसमें उन्होंने खुद को सकाळ मीडिया प्रा. लि. का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी बताया. पुणे के विश्रामबाग पुलिस थाने में दर्ज इस शिकायत में पिसल ने दावा किया कि प्रतीक ने सकाळ टाइम्स की मानहानि करने वाली रिपोर्ट्स प्रकाशित कीं.
'गोयल ने यह आर्टिकल्स प्रकाशित करने से पहले सकाळ मीडिया ग्रुप की सहमति नहीं ली और उसके आधिकारिक ट्रेडमार्क (लोगो) का भी चालाकी से गलत इस्तेमाल किया.' पिसल ने शिकायत में कहा. 'इसके कारण हमारा मार्केट शेयर बुरी तरह गिर गया और हमें बहुत बड़ा आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ा जिसका नाहक प्रभाव हमारे कर्मचारियों और पदाधिकारियों पड़ा.' जिस दिन यह एफआईआर हुई उसी दिन प्रतीक को पड़ोसियों ने बताया कि जब वह बाहर थे तो उनको गिरफ्तार करने पुलिस आई थी. उन्हें यह भी बताया गया कि पुलिस के साथ सकाळ मीडिया ग्रुप की एक गाड़ी भी थी. प्रतीक को यह भी पता चला कि पुलिसवाले विश्रामबाग पुलिस स्टेशन से आए थे.
प्रतीक ने तुरंत विश्रामबाग के एसएचओ दादासाहेब चुदप्पा को फ़ोन किया और पूछा कि उनके घर पुलिस क्यों आई? एसएचओ ने बताया कि सकाळ मीडिया ग्रुप ने उनके खिलाफ रिपोर्ट मे उनका लोगो इस्तेमाल करने के लिए ट्रेडमार्क कानून के तहत मामला दर्ज किया है. लेकिन उन्होंने यह साफ नहीं किया कि क्या पुलिसवाले प्रतीक की गिरफ़्तारी के लिए गए थे. प्रतीक ने एफआईआर की प्रति मांगी लेकिन चुदप्पा ने देने से मना कर दिया. इसके बाद न्यूज़लॉन्ड्री ने बॉम्बे उच्च न्यायलय से गुहार लगाई कि प्रतीक के खिलाफ हुई एफआईआर को निरस्त किया जाए. साथ ही पुणे जिला न्यायलय में अग्रिम जमानत की अर्ज़ी भी दी.
उच्च न्यायलय ने 20 अक्टूबर को हुई सुनवाई में कहा कि पुलिस जांच में आगे बढ़ सकती है लेकिन बिना अदालत की अनुमति के आरोप-पत्र दाखिल नहीं होगा. इस मामले में अगली सुनवाई 24 नवम्बर को होगी. इसके कुछ ही समय बाद प्रतीक को जिला अदालत से अग्रिम ज़मानत भी मिल गई और उन्होंने विश्रामबाग पुलिस स्टेशन जाकर सारी कानूनी कार्रवाई पूरी कर ली. उन्हे अगले दिन एक गारंटर के साथ बुलाया गया.
प्रतीक ने अगले दिन एसएचओ चुदप्पा से मुलाकात की, जो कि अच्छी नहीं रही. "आपको लगता है आप सकाळ को नुकसान पहुंचा सकते हैं?" चुदप्पा ने पूछा. "सकाळ तुम जैसे 50 पत्रकारों को खरीद सकता है. वह बहुत बड़े हैं और तुम तो पत्रकार भी नहीं हो. तुम्हारे पास सकाळ के जैसी प्रेस नहीं है. न्यूज़लॉन्ड्री क्या है? केवल ऑनलाइन है."
जब प्रतीक ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि वह केवल पत्रकार के तौर पर अपना काम कर रहे हैं, तो चुदप्पा ने कहा, "तुम फिर से सकाळ का लोगो इस्तेमाल कर के दिखाओ, मैं तुम सबको अंदर कर दूंगा." जब प्रतीक कागज़ी प्रक्रिया पूरी कर रहे थे तो एक पुलिस अधिकारी ने उनसे कहा कि वह सकाळ की शिकायत दर्ज करने में कतरा रहे थे लेकिन महाराष्ट्र गृह मंत्रालय से दबाव आने के बाद उन्हें ऐसा करना पड़ा. अब पुलिस प्रतीक का लैपटॉप ज़ब्त करना चाहती है. एक नवम्बर को इंवेस्टिगेटिंग अफसर दीपक जाधव ने प्रतीक को फ़ोन करके कहा कि वह अगले दिन अपना लैपटॉप जमा कर दें. प्रतीक ने उनसे आदेश की कॉपी मांगी. जिसपर उन्होंने कहा कि मौखिक आदेश ही काफ़ी हैं.
प्रतीक ने उनसे पूछा कि क्या वह उन्हें लैपटॉप की हैश वैल्यू देंगे? हैश वैल्यू एक तरह का कोड होता है जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से छेड़छाड़ करने पर बदल जाता है. जब भी पुलिस किसी से कोई उपकरण ज़ब्त करती है तो उसे हैश वैल्यू प्रदान करनी होती है जो इस बात का आश्वासन होता है की उस से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. लेकिन जाधव ने प्रतीक की यह मांग मानने से मना कर दिया. और यह सब केवल इसलिए कि न्यूज़लॉन्ड्री ने एक सामान्य, तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रकाशित की.
सम्पादकीय सूचना: इस रिपोर्ट का उद्देश्य केवल अपने पाठकों को न्यूज़लॉन्ड्री की रिपोर्ट्स के बाबत, पत्रकारिता के सभी मानकों का पालन करते हुए, नवीनतम जानकारी देना है. यह जांच और न्यायिक प्रक्रिया के बारे में कोई पूर्वाग्रह नहीं है. हम न्यायलय के सभी आदेशों और निर्देशों का पालन करेंगे.
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