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7 दिन बाद भी अंतिम संस्कार नहीं, हरियाणा में दलित अधिकारी की खुदकुशी पर क्यों हो मचा है बवाल
हरियाणा के सीनियर आईपीएस अफसर वाई. पूरन कुमार को खुदकुशी किए 7 दिन हो चुके हैं. हालांकि, अभी तक उनके शव का पोस्टमॉर्टम नहीं हो पाया है. मंगलवार सुबह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी उनके परिवार से मिलने पहुंचे. इस दौरान राहुल गांधी ने कहा कि हरियाणा सरकार तमाशा बंद कर दे और परिवार पर दबाव डालने की बजाए न्याय देने की ओर कदम बढ़ाए. राहुल ने कहा कि हरियाणा सरकार अफसरों पर कार्रवाई करे और दिवंगत आईपीएस का अंतिम संस्कार होने दे. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी इस मामले पर एक्शन लेने की अपील की.
राहुल गांधी के दौरे से पहले सोमवार देर रात हरियाणा सरकार ने डीजीपी शत्रुजीत कपूर को छुट्टी पर भेज दिया. उनकी जगह ओम प्रकाश सिंह को अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है. सिंह, 1991 बैच के आईपीएस अफसर हैं. वह आगामी 31 दिसंबर को रिटायरमेंट हो रहे हैं.
वहीं, दिवंगत अफसर की आईएएस पत्नी अमनीत पी. कुमार डीजीपी शत्रुजीत कपूर को पद से हटाने और रोहतक के एसपी रहे नरेंद्र बिजारणिया समेत अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग पर अड़ी हैं.
इसके अलावा परिवार और अनुसूचित समाज की तरफ से बनाई गई 31 सदस्य कमेटी की ओर से हुई महापंचायत ने कार्रवाई की मांग को लेकर हरियाणा सरकार को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया था. जो कि आज खत्म हो रहा है. कमेटी ने आरोपियों पर कार्रवाई न करने पर उग्र प्रदर्शन की चेतावनी दी हुई है.
दूसरी तरफ 17 अक्टूबर को सोनीपत में प्रस्तावित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दौरा रद कर दिया गया. इसके अलावा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने अपना दिल्ली दौरा भी कैंसिल कर दिया है.
इससे पहले सोमवार को केंद्रीय राज्यमंत्री रामदास अठावले भी परिवार को मनाने पहुंचे थे. परिवार से मुलाकात के बाद उन्होंने मुख्यमंत्री सैनी से करीब 40 मिनट तक बैठक की. बैठक के बाद अठावले ने कहा कि मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है कि आरोपियों पर कार्रवाई होगी, लेकिन पहले पोस्टमॉर्टम कराना जरूरी है. उधर, परिवार लगातार कह रहा है कि जब तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं हो जाती है तब तक पोस्टमॉर्टम के लिए वे अपनी सहमति नहीं देंगे.
अफसर पत्नी के सरकारी आवास पर लगा तांता
आईपीएस पूरन कुमार की मौत का मामला अब देशभर में तूल पकड़ रहा है. देश के अलग अलग हिस्सों में अब उनके लिए न्याय की आवाज उठने लगी है. लोग धरने प्रदर्शन कर रहे हैं. दूसरी तरफ चंडीगढ़ के सेक्टर-24 की कोठी नंबर 132 यानि आईएएस अमनीत पी कुमार के सरकारी आवास पर आने-जाने वालों का तांता लगा है. रोजाना अनेकों नेता, अधिकारी, मुख्यमंत्री अपने काफिले के साथ पहुंच रहे हैं.
हरियाणा के मुख्यमंत्री से लेकर राज्य के कई अधिकारी और नुमाइंदे उनकी आईएएस पत्नी अमनीत पी. कुमार पर पोस्टमॉर्टम के लिए दबाव बना रहे हैं. घर के बाहर मीडिया का जमावड़ा है. वह हर आने-जाने वाले को अपने कैमरों में कैद कर रहा है.
इस दौरान कुछ मीडियाकर्मियों को यह कहते हुए भी सुना जा सकता है कि बेटी अमेरिका में पढ़ती है, पत्नी आईएएस है और खुद आईपीएस थे. घर में ऑडी है, करोड़ों की प्रापर्टी है, इनके साथ कहां से जातिवाद हो गया. ये सिर्फ दलित कार्ड खेल रहे हैं.
खैर, सवाल यही है कि आज सातवां दिन है लेकिन अभी तक आईपीएस पूरन कुमार का पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ है. यह कोई सामान्य बात नहीं है कि एक आईपीएस अधिकारी की मौत हो गई हो और हफ्ताभर बीत जाने के बाद भी पोस्टमॉर्टम न हो. इसके पीछे की कहानी क्या है इसे समझने की जरूरत है.
आईपीएस पूरन कुमार ने लंबी विभागीय और कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद 7 अक्टूबर को चंडीगढ़ के सेक्टर-11 के अपने निजी निवास पर एक 8 पेज का लंबा-चौड़ा सुसाइड नोट लिखने के बाद खुद को गोली मार ली. जब पूरन कुमार खुदकुशी कर रहे थे तो उनकी आईएएस पत्नी अमनीत पी कुमार हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी के साथ जापान दौरे पर गई हुई थीं. वह अगले दिन 8 अक्टूबर को वापस लौटीं तो उन्होंने पुलिस से शिकायत करते हुए पोस्टमॉर्टम कराने से इनकार कर दिया. हरियाणा के मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी, आईएएस अफसर केएम पांडुरंग, आईएएस अफसर पीसी मीणा, आईएएस सीजी रजनीकांथन, आईएएस मोहम्मद शाइन, आईएएस राजशेखर वुडरू समेत कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी उनसे मिलने पहुंचे.
पत्नी अमनीत पी कुमार द्वारा पहली शिकायत
8 अक्टूबर को अमनीत पी कुमार ने हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत सिंह कपूर और आईपीएस नरेंद्र बिजारणिया की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ मामला दर्ज करने को लेकर चंडीगढ़ के सेक्टर-11 थाने की पुलिस को पत्र लिखा. इस पत्र में वे जिक्र करती हैं कि उनके पति पूरन कुमार ने बताया था कि डीजीपी शत्रुजीत सिंह कपूर के निर्देश पर साजिश रची जा रही है और उन्हें झूठे सबूत गढ़कर फंसाया जाएगा. इसी के तहत उनकी मृत्यु से ठीक पहले यानी 6 अक्टूबर को उनके (पति के) स्टाफ सदस्य सुशील के खिलाफ पुलिस स्टेशन, अर्बन एस्टेट, रोहतक में एक झूठी एफआईआर दर्ज की गई. इस संबंध में पूरन कुमार ने डीजीपी से बात भी की थी लेकिन उन्होंने इस बात को दबा दिया. वहीं, एसपी रोहतक नरेंद्र बिजारणिया को भी कॉल किया लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. ये दोनों उनके खिलाफ मिलकर साजिश रच रहे थे.
वे आगे लिखती हैं कि इन दोनों (डीजीपी और एसपी) के द्वारा लगातार जाति आधारित गाली गलौज, पुलिस बल पूजा स्थलों पर जाने से रोकना, जाति आधारित भेदभाव, मानसिक उत्पीड़न और सार्वजनिक अपमान किया गया है. इन अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए पूरन कुमार को मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया कि उन्हें आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखाई दिया. इस शिकायत को उन्होंने मुख्य सचिव चंडीगढ़, गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) चंडीगढ़ को भी भेजा.
इसके बाद इस मामले ने अधिक तूल पकड़ लिया और उनका सरकारी आवास हरियाणा की राजनीति का केंद्र बन गया. मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों, अधिकारियों और विपक्षी दलों के नेताओं का यहां तांता लग गया.
इसके बाद 9 अक्टूबर को सीएम नायब सिंह सैनी अमनीत पी. कुमार से मिलने पहुंचे. एक घंटे की इस मुलाकात में उन्होंने परिवार को सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया. अमनीत की मांग पर सीएम सैनी ने उनसे शाम 5 बजे तक का वक्त मांगा. इसके बाद चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री आवास पर हाई लेवल मीटिंग हुई, जिसमें चीफ सेक्रेटरी अनुराग रस्तोगी, डीजीपी शत्रुजीत कपूर और मंत्री कृष्ण लाल पंवार मौजूद रहे. डीजीपी कपूर इस मीटिंग के बाद सबसे पहले बाहर निकले.
9 अक्टूबर की देर शाम तक भी अमनीत पी. कुमार की शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की गई थी. इसी बीच दलितों के लिए काम करने वाले संगठन और अन्य सामाजिक संगठन भी सक्रिय हो गए. उन्होंने चंडीगढ़ के सेक्टर 20- डी स्थित गुरु रविदास मंदिर भवन एवं धर्मशाला में एक बैठक आयोजित की. जिसमें कई संगठनों ने हिस्सा लिया. हालांकि, इस बैठक में मीडिया को एंट्री नहीं दी गई. दलित संगठनों ने 9 अक्टूबर की शाम को 5 बजे सीएम से उनके आवास पर मुलाकात की. जिसमें संगठनों ने कार्रवाई नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी.
पत्नी अमनीत पी कुमार दूसरा शिकायती पत्र
अमनीत पी. कुमार ने सीएम को दूसरा पत्र लिखा कि सुसाइड नोट और शिकायत में उल्लिखित आरोपियों के विरुद्ध तत्काल एफआईआर दर्ज करके और उन्हें तत्काल निलंबित कर गिरफ्तार करने के साथ ही परिवार को आजीवन सुरक्षा प्रदान की जाए, क्योंकि इस मामले में हरियाणा के कई उच्च अधिकारी शामिल हैं.
वे लिखती हैं कि यह अत्यंत दुखद है कि एक स्पष्ट, विस्तृत सुसाइड नोट और औपचारिक शिकायत होने के बावजूद आज तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है. जबकि सुसाइड नोट में उत्पीड़न, अपमान और मानसिक यातना के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के नाम स्पष्ट रूप से दर्ज हैं.
वे जिक्र करती हैं कि यह कार्रवाई इसलिए नहीं की जा रही है क्योंकि मामले में हरियाणा पुलिस और प्रशासन के शक्तिशाली उच्च अधिकारी आरोपी हैं और वे चंडीगढ़ पुलिस को प्रभावित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह अधिकारी मुझे भी फंसाने या बदनाम करने की कोशिश करेंगे.
उन्होंने सीएम से अपनी मांगें रखते हुए लिखा कि जांच में हस्तक्षेप, साक्ष्यों से छेड़छाड़ या प्रभाव को रोकने के लिए सभी आरोपियों को तत्काल निलंबित और गिरफ्तार किया जाए, वाई पूरन कुमार के परिवार विशेषकर उनकी दोनों बेटियों के लिए स्थायी सुरक्षा प्रदान की जाए.
इसके बाद भारी दबाव के बाद 9 अक्टूबर की देर रात चंडीगढ़ के सेक्टर-11 थाने में एक एफआईआर दर्ज की गई. हालांकि, इस एफआईआर में आरोपियों के नाम दर्ज नहीं किए गए. जिसके बाद परिवार ने आरोपियों को बचाने का आरोप लगाया.
पत्नी अमनीत पी कुमार तीसरा शिकायती पत्र
अमनीत पी कुमार ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) चंडीगढ़ को भी एक पत्र लिखा. दरअसल, एफआईआर की कॉपी खुद एसएसपी चंडीगढ़ उन्हें सौंपने पहुंचे थे. अमनीत ने अपने पत्र में लिखा कि उन्हें दी गई एफआईआर की कॉपी में अधूरी जानकारी है. शिकायत के अनुसार, शत्रुजीत सिंह कपूर और नरेंद्र बिजारणिया के नाम एफआईआर में दर्ज नहीं किए गए हैं. मालूम हो कि एफआईआर के कॉलम-7 में आरोपियों के नाम दर्ज होते हैं लेकिन यहां ये कॉलम खाली था.
अमनीत ने आरोप लगाया कि एफआईआर में एससी/एसटी एक्ट की भी कमजोर धाराओं में मामला दर्ज किया है. उन्होंने लिखा कि 7 अक्टूबर को पूरन कुमार की जेब से बरामद "अंतिम नोट" और उनके लैपटॉप बैग से मिला एक अन्य नोट उन्हें आज तक उपलब्ध नहीं कराया गया है. दोनों "अंतिम नोट" की प्रमाणित प्रतियां रिकॉर्ड और सत्यापन के लिए तुरंत उपलब्ध कराए जाने की मांग की.
एफआईआर में क्या है?
10 अक्टूबर को देर रात दर्ज हुई एफआईआर में कॉलम-7 में आरोपियों का नाम लिखने की बजाय वहां पर ‘एज़ पर फाइनल नोट’ लिख दिया गया था. जबकि परिवार और दलित संगठनों की मांग है कि सुसाइड नोट में शामिल सभी आरोपियों के नाम लिखे जाएं. इस एफआईआर में बीएनएस की धारा 108, 3 (5) और एससीएसटी एक्ट की धारा 3 (1)(R) का जिक्र किया गया है. जो कि परिवार के मुताबिक हल्की धाराएं हैं. फिर दवाब के बाद, 12 अक्टूबर को एफआईआर में तब्दीली की गई. जिसमें नामों का तो खुलासा नहीं किया गया लेकिन एससी/एसटी एक्ट की धाराएं पहले से सख्त 3 (2) (V) कर दी गई हैं. जिसमें अब आजीवन कारावास तक का प्रावधान है. हालांकि, अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि पुलिस ने कुल कितने लोगों को इसमें आरोपी बनाया है.
अब तक हुई कार्रवाई
कार्रवाई की बात करें तो आत्महत्या के पांच दिन बाद यानी शनिवार को प्रदेश सरकार ने रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारणिया को उनके पद से हटा दिया. उन्हें अभी कहीं नई पोस्टिंग नहीं मिली है. उनकी जगह मधुबन पुलिस अकादमी में तैनात आईपीएस सुरेंद्र सिंह भोरिया को रोहतक का नया एसपी बनाया गया है.
वहीं सोमवार देर रात डीजीपी शत्रुजीत कपूर को छुट्टी पर भेज दिया गया. उनकी जगह आईपीएस ओम प्रकाश सिंह को ये कार्यभार सौंपा गया.
इसके अलावा 10 अक्टूबर को मामले की जांच के लिए चंडीगढ़ डीजीपी ने 6 अधिकारियों की एसआईटी टीम गठित की है. इसे वरिष्ठ आईपीएस पुष्पेंद्र कुमार लीड करेंगे. इनमें आईपीएस पुष्पेंद्र कुमार के अलावा एसएसपी कंवरदीप कौर, एसपी सिटी केएम प्रियंका, डीएसपी चरणजीत सिंह विर्क, डीएसपी गुरजीत कौर और इंस्पेक्टर जयवीर सिंह राणा, एसएचओ थाना सेक्टर-11 (वेस्ट) को शामिल किया गया है.
महापंचायत ने 48 घंटे का दिया अल्टीमेटम
परिवार को न्याय दिलाने के लिए समाज की ओर से एक 31 सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया है. प्रोफेसर जय नारायण इस कमेटी के प्रवक्ता हैं. उन्होंने बताया कि चंडीगढ़ सेक्टर-20 के वाल्मीकि गुरुद्वारा में सभी वर्गों और 36 बिरादरी के लोग इकठ्ठा हुए. जिसे महापंचायत नाम दिया गया. 31 सदस्यीय कमेटी और परिवार का फैसला अंतिम होगा.
कमेटी के सदस्य और पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट ओपी इंदर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि अगर आरोपियों का निलंबन और गिरफ्तारी नहीं की गई तो 15 अक्टूबर को चंडीगढ़ बंद करने का आह्वान होगा. हालांकि, सीएम ने वादा किया था कि कार्रवाई करेंगे लेकिन कोई भी सख्त कार्रवाई नहीं देखने को मिली है.
वहीं इस कमेटी के एक और सदस्य कर्मवीर सिंह कहते हैं कि दो दर्जन से ज्यादा दलित और सामाजिक संगठन इस महापंचायत में शामिल हुए हैं. एससी/एसटी/ओबीसी संगठन हरियाणा, रविदास सभा, रविदास सभा पंचकूला, रविदास सभा सेक्टर-30, रविदास सभा सेक्टर- 20, रविदास सभा माहौली, कबीर सभाएं, बाल्मीकि सभाएं, अंबेडकर सभाएं पंचकूला, अंबेडकर सभा हिसार, अंबेडकर सभा रोहतक, अंबेडकर सभा सोनीपत, अंबेडकर सभा यमुनानगर और इसके अलावा कई अन्य संगठन भी इसमें शामिल हैं. साथ ही सिख समाज के लोगों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया.
वे कहते हैं कि जब एक एडीजीपी लेवल का इतना बड़ा अधिकारी आत्महत्या करता है तो इससे पता चलता है कि उस व्यक्ति को कभी सिस्टम ने यह अहसास ही नहीं होने दिया कि वह भी एक आईपीएस अधिकारी है. उसे पल-पल टॉर्चर और बेइज्जत किया गया. जाति के आधार पर इस तरह से उनके साथ भेदभाव किया गया कि उनके पास अपना जीवन समाप्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिखाई दिया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें किस तरह से टारगेट किया गया होगा.
अंबेडकर बाल्मीकि अधिकार मंच के प्रदेश संयोजक दिनेश बाल्मीकि ने कहा कि जब तक दोनों अधिकारियों का निलंबन और गिरफ्तारी नहीं हो जाती तब तक पूरन कुमार का पोस्टमॉर्टम नहीं होगा.
पोस्टमॉर्टम के नाम पर जब मची खलबली
एक समय ऐसा भी आया जब परिवार सहित सामाजिक संगठनों में खलबली मच गई. दरअसल, शनिवार की सुबह 10 बजे से पहले ही आईपीएस वाई पूरन कुमार का शव सेक्टर-16 के सरकारी अस्पताल से पीजीआई शिफ्ट कर दिया गया.
जब इसकी भनक परिजनों को लगी तो उन्होंने इसका विरोध किया और शव को लेने से इनकार करने की चेतावनी दी. परिजनों के इस रुख से प्रशासन में हड़कंप मच गया.
हालांकि, बाद में चंडीगढ़ के डीजीपी परिवार से मिलने आए और उन्होंने बयान जारी कर कहा कि परिजनों की अनुमति के बिना पोस्टमॉर्टम नहीं किया जाएगा. वहीं, शाम होते-होते वाई पूरन कुमार का शव सेक्टर-16 सरकारी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया है.
सुसाइड नोट में क्या है?
अंग्रेजी में लिखे इस सुसाइड नोट में आईपीएस पूरन कुमार ने उन्हें प्रताड़ित करने वालों में 15 अधिकारियों के नामों का जिक्र किया है. कुमार ने अपने नोट में राज्य के चीफ सेक्रेटरी अनुराग रस्तोगी और डीजीपी शत्रुजीत कपूर के साथ-साथ 9 अन्य आईपीएस अफसरों के नाम लिखे हैं. इनमें अमिताभ ढिल्लो, संदीप खिरवार, संजय कुमार, कला रामचंद्रन, माटा रवि किरण, सिबास कविराज, पंकज नैन, कुलविंदर सिंह और रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारणिया का नाम लिया है. वहीं इसमें दो आईएएस और दो ऐसे आईपीएस अधिकारियों के नाम भी शामिल हैं, जो कि रिटायर हो चुके हैं. इनमें पूर्व चीफ सेक्रेटरी टीवीएसएन प्रसाद, पूर्व एसीएस राजीव अरोड़ा, पूर्व डीजीपी मनोज यादव और पूर्व डीजीपी पीके अग्रवाल शामिल हैं.
सुसाइड नोट में अपने साथ हुई घटनाओं का जिक्र करते हुए पूरन कुमार लिखते हैं, “मैं अपने पिता से आखिरी बार इसलिए नहीं मिल पाया क्योंकि तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) राजीव अरोड़ा ने छु्ट्टी मंजूर नहीं की. इस बात ने मुझे बहुत दुख पहुंचाया और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया. मेरे लिए यह अपूरनीय क्षति है. मैंने इस घटना की जानकारी हरियाणा के चीफ सेक्रेटरी को दी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.”
उन्होंने अन्य अधिकारियों का जिक्र करते हुए कहा कि बाकी अधिकारियों ने भी मेरे उत्पीड़न में कोई कमी नहीं छोड़ी है. इन्होंने जातिगत, मानसिक उत्पीड़न और सार्वजनिक रूप से अपमान किया. इनके खिलाफ कई बार शिकायत करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई.
अपने अंतिम पत्र वह लिखते हैं कि नवंबर, 2023 में उनसे सरकारी गाड़ी तक वापस ले ली गई. इसकी भी उन्होंने लिखित में शिकायत दी. साथ ही इन अधिकारियों के बारे में तत्कालीन गृह मंत्री अनिल विज को मौखिक और लिखित रूप में जानकारी दी. बावजूद इसके कुछ नहीं हुआ.
उन्होंने डीजीपी शत्रुजीत कपूर और रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारनिया का जिक्र करते हुए लिखा कि डीजीपी की ओर से नरेंद्र बिजारणिया को ढाल बनाकर मुझे झूठे मामले में फंसाने की कोशिश की जा रही है. वह लगातार जातिवाद के कारण की जा रही प्रताड़ना, सामाजिक तौर पर बहिष्कार, मानसिक पीड़ा और अत्याचार ज्यादा सहन नहीं कर सकते. आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने उन पर अत्याचारों की सीमा लांघ दी है और अब यह सब बर्दाश्त करने की हिम्मत नहीं बची है.
वह अपने खुदकुशी के लिए फैसले के लिए इन्हीं अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराते हैं.
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