Ground Report

दिल्ली: ओखला में डंपिंग यार्ड बन रही रिहायशी बस्तियां, सांस लेना हुआ मुश्किल

देश की राजधानी दिल्ली में कचरा प्रबंधन एक गंभीर संकट बनता जा रहा है. जहां एक ओर स्वच्छ भारत मिशन (अर्बन) 2.0 का लक्ष्य है कि 2026 तक सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाया जाए, वहीं ओखला इलाके की स्थिति सरकार के दावों को खोखला साबित करती है. यहां न तो डस्टबिन लगाए गए हैं, न डोर-टू-डोर कलेक्शन होता है, और न ही कचरा उठाने वाली गाड़ियां नियमित रूप से आती हैं. नतीजा ये है कि कॉलोनियों के बीचोंबीच जगह-जगह छोटे-छोटे डंपिंग यार्ड बन गए हैं. स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि कई जगहों पर स्थानीय लोग लाउडस्पीकर लगाकर चेतावनी दे रहे हैं, “यहां कूड़ा न डालें.”

ओखला निवासी नादिरा सरताज बताती हैं, “पिछले 15 दिनों से मुझे सांस लेने में तकलीफ हो रही है. मेरी बेटी को दिल की गंभीर बीमारी है. हमें अपने घर की खिड़कियां और दरवाज़े बंद रखने पड़ते हैं ताकि बदबू अंदर न आए.”

वे आगे कहती हैं, “ये सिर्फ बदबू की बात नहीं है. कॉलोनी के बीचोंबीच जो लैंडफिल बन गया है, उसकी बदबू इतनी तेज होती है कि सांस लेते ही उल्टी होने लगती है.”

हमारी रिपोर्टिंग के दौरान यह भी सामने आया कि दिल्ली नगर निगम द्वारा जो कचरा उठाया जाता है, उसे पास ही किसी अन्य जगह पर रीलोकेट कर दिया जाता है यानी एक जगह से कूड़ा हटाकर दूसरी जगह डंप कर दिया जाता है.

स्थानीय पार्षद नाजिया दानिश का कहना है, “मैं लगातार सरकार से अपील कर रही हूं कि कॉलोनी के लिए पर्याप्त कचरा उठाने वाली गाड़ियां मुहैया कराई जाएं. लेकिन अब तक जरूरी संसाधन नहीं मिले हैं, जिस कारण इलाके से कचरा पूरी तरह नहीं हट पा रहा.”

देखिए हमारी ग्राउंड रिपोर्ट– 

Also Read: भलस्वा: गंदगी, बदबू, बीमारियां और ‘जहरीला’ पानी, बस उम्मीदों के भरोसे कट रही जिंदगी

Also Read: दिल्ली एमसीडी चुनाव: कूड़ा बीनने वालों की समस्याएं चुनावी मुद्दा क्यों नहीं?