Saransh
क्लाउड सीडिंग से बारिश या भ्रम? जानिए पूरी प्रक्रिया
राजधानी दिल्ली में जल्द ही कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया जाएगा. दिल्ली सरकार ने हाल ही में प्रदूषण को कम करने के लिए इस तकनीक के इस्तेमाल को मंजूरी दी. हालांकि, मानसून की अनिश्चितता और राजनीतिक खींचतान के चलते जुलाई में प्रस्तावित यह ट्रायल फिलहाल स्थगित कर दिया गया है. पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि अब यह प्रयोग अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितंबर की शुरुआत में किया जाएगा, ताकि इसे प्राकृतिक बारिश से अलग पहचानकर मूल्यांकन किया जा सके.
क्लाउड सीडिंग यानी मेघ बीजन एक ऐसी तकनीक है, जिसमें विमान या ग्राउंड डिवाइसेज़ की मदद से बादलों में रासायनिक “बीज” छोड़े जाते हैं, ताकि उनमें बारिश कराने की संभावना बढ़ाई जा सके. आमतौर पर इसके लिए सिल्वर आयोडाइड या कैल्शियम क्लोराइड जैसे रसायनों का इस्तेमाल होता है.
भारत में इस तकनीक पर लंबे समय से शोध हो रहा है. 2009 में शुरू हुए CAIPEEX प्रोजेक्ट के तहत महाराष्ट्र, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश में ट्रायल हो चुके हैं. हालांकि, वैज्ञानिक अभी भी इस पर एकमत नहीं हैं कि बारिश सिर्फ सीडिंग से ही हुई या यह प्राकृतिक रूप से भी हो सकती थी.
वहीं, क्लाउड सीडिंग के दीर्घकालिक प्रभावों पर पर्याप्त शोध नहीं हुआ है. खासकर सिल्वर आयोडाइड के संभावित ज़हरीले प्रभावों को लेकर चिंताएं हैं. फिर भी, पानी की कमी और बिगड़ते वायु गुणवत्ता सूचकांक के बीच यह तकनीक सरकारों के लिए एक वैकल्पिक समाधान के तौर पर उभर सकती है.
देखिए कृत्रिम बारिश पर सारांश का ये अंक.
Also Read
-
2006 Mumbai blasts: MCOCA approval was based on ‘oral info’, ‘non-application of mind’
-
Sansad Watch: The Dhankhar mystery and monsoon session chaos so far
-
Pedestrian zones as driveways, parking lots: The elite encroachments Delhi won’t touch
-
4 decades, hundreds of ‘custody deaths’, no murder conviction: The curious case of Maharashtra
-
Ahead of Bihar polls: Nitish ups media pensions, BJP uses it to revive ‘sootr-mootr’ jibe