Video
पत्रकारिता पर हमले और पत्रकारों की हत्याओं के बीच मीडिया की आजादी का सवाल
इस साल की शुरुआत छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की ख़बर से हुई और गुजरे चार महीनों में कम से कम चार पत्रकार अलग-अलग मामलों में अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं करीब दो दर्जन मामले ऐसे सामने आ चुके हैं, जिनमें पत्रकार पर या तो हमला किया या उसकी ख़बर के लिए उसे निशाना बनाया गया.
इसके अलावा हाल ही में कुछ पत्रकारों के यूट्यूब चैनल्स को निशाना बनाया गया. जिनमें नॉकिंग न्यूज़ और 4 पीएम का नाम लिया जा सकता है.
उससे पहले मार्च महीने में महिला दिवस के दिन कुछ महिला पत्रकारों को दिल्ली की भाजपा इकाई ने अपने मीडिया ग्रुप से बाहर कर दिया. 12 मार्च को एक और ख़बर आई. कई मीडिया समूहों को धमकियां मिली और उन्हें अंबानी के वनतारा प्रोजेक्ट से जुड़ी ख़बर हटानी पड़ी. जहां ख़बरें दबाई नहीं जा सकी वहां पत्रकारों की हत्या कर दी जा रही है.
आज 3 मई यानि वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे है. इस दिन दुनियाभर में प्रेस की आजादी का जश्न मनाया जाता है. पत्रकारों को और उनके काम को निशाना बनाए जाने के बीच बीते सालों में बार-बार ये सवाल भी उठता है कि क्या प्रेस वाकई आजाद है? और अगर है तो वो किस तरह की आजादी है?
आज हम इन्हीं सवालों को जवाब ढूंढने की कोशिश करेंगे.
Also Read
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
Delhi’s demolition drive: 27,000 displaced from 9 acres of ‘encroached’ land
-
डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट: गुजरात का वो कानून जिसने मुस्लिमों के लिए प्रॉपर्टी खरीदना असंभव कर दिया
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
Air India crash aftermath: What is the life of an air passenger in India worth?