Opinion
शारदा सिन्हा: ‘एक मनमोहिनी आवाज से मुलाकात कराई और वापस चली गईं’
बिहार की मशहूर गायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार को निधन हो गया. दिल्ली एम्स में उन्होंने आखिरी सांस ली. अचानक तबीयत बिगड़ जाने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. सिन्हा के चाहने वाले सिर्फ बिहार या भारत तक ही नहीं बल्कि विदेशों में भी थे. उनके एक ऐसे ही चाहने वाले थे कराची, पाकिस्तान के निवासी पत्रकार और एक्टिविस्ट अहफाज उर रहमान. उन्हें शारदा सिन्हा की गायकी बहुत प्रिय थीं.
सिन्हा की गायकी से उनका परिचय भारतीय पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज ने करवाया था. सिन्हा के निधन पर अजय ब्रह्मात्मज ने हमसे वो पत्र साझा किया जिसे अहफाज उर रहमान ने नवंबर, 2015 में उन्हें भेजा था. यह पत्र पूरी तरह से शारदा सिन्हा की गायकी और आवाज़ को समर्पित था.
दरअसल, अजय ब्रह्मात्मज और अहफाज चीन के विदेशी भाषा प्रकाशन गृह में एक साथ काम करते थे. ब्रह्मात्मज वहां हिंदी के सलाहकार थे और रहमान उर्दू के सलाहकार थे. एक शाम की बैठकी में ब्रह्मात्मज ने उन्हें शारदा सिन्हा के गीतों को सुनाया. उनकी आवाज़ सुनते ही अहफाज मानो कहीं खो गए और दोनों ही लूप में शारदा जी को सुनते रहे. फिर तो हर बैठकी में शारदा जी के लिए उनकी फरमाइश रहती थी.
कुछ सालों बाद दोनों आगे-पीछे अपने-अपने देश लौट गए. लेकिन फेसबुक आदि के जरिए दोनों के बीच संपर्क बना रहा. जब कई सालों बाद ब्रह्मात्मज के एक मित्र कराची जा रहे थे तो उन्होंने शारदा जी के दो कैसेट अहफाज को भिजवाए.
बाद के दिनों में अहफाज को मुंह का कैंसर हो गया और बोलना बंद हो गया. लेकिन उन दिनों में भी वे अक्सर शारदाजी के गीत सुना करते थे. उनके इंतकाल के बाद उनकी पत्नी मेहनाज ने बताया कि आखिरी पलों में बेइंतहा दर्द से जब वह अचेत हो जाते थे तो उन्हें शारदा जी के गीत सुनाए जाते थे. गीतों की ध्वनि और संगीत से उनके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आती थी और पलकें खुलती थीं. मेहनाज बताती हैं कि शारदा जी के गीत सुनकर वे सुकून महसूस करते थे. उनकी अंतिम सांस तक शारदाजी की आवाज़ उनके कानों से दिल तक पहुंच रही थी.
शारदा सिन्हा को समर्पित अहफाज का अजय ब्रह्मात्मज को लिखा ये पत्र पढ़िए.
प्यारे अजय साहेब,
समय कितनी तेजी से सफर करता है और नई वाकयात किस तरह झपट कर पुरानी यादों की दुनिया पर कब्जा कर लेते हैं. हां, यह दुरुस्त है कि जिंदगी के मसले दुनिया में कम न होंगे, लेकिन यह भी सच है कि जो वक्त सच्ची चाहत और मीठी छांव की लगन के साथ गुजरता है, वह भुलाए नहीं भूलता. चिंगारी कहीं राख के अंदर दब जाए तो भी कुरेदने से शोले में तब्दील हो जाती है.
सो मेरे अंदर फिर पुरानी यादों के शोले भडक़े हैं. और वो दिन आंखों के सामने घूम रहे हैं, जब हम ने थोड़ा वक्त आप के साथ गुजारा, जो जिंदगी भर के साथ का बहाना बन गया. यह सच्ची चाहत की लगन का करिश्मा है, क्या दिल मोह लेने वाला मंजर है. आप अपनी नन्ही बेटी तोषी से कह रहे हैं, ‘जरा अंकल और आंटी को ठुमका लगा कर दिखाओ’. उसके पांव में चांदी की हल्की झांझर है. वह रक्स कर रही है और हम सब बैठे हुए खुशी के घूंट पी रहे हैं. प्यार के इस लिखे को कौन मिटा सकता है? यह रेत पर नहीं, चट्टान पर नक्श तहरीर है.
याद है, हिंदुस्तान से आने वाले किसी साथी के हाथ आप ने मुझे शारदा सिन्हा के गीतों के दो कैसेट रवाना किए थे. आप को मालूम था कि शारदा की खनकती आवाज मुझे पसंद है. जब वे ‘कलकतवा से आवे ला’ गाती हैं और ‘कोयल बिन बगिया ना सोहे राजा’ की तान लगाती हैं तो मैं सोचता हूं कि यह आवाज तो जनम-जनम से मेरे दिल के अंदर आबाद है. वे जब अपने, ‘बलमा को चूडिय़ों से मार कर जगाती हैं’ तो ऐसा लगता है, प्यार का शहद कतरा-कतरा हमारे होठों पर टपक रहा है. लोचदार मुरकियों के साथ ‘मार..मार..मार...’ की थरथराती हुई तकरार एक दिलनशीं झंकार हवाओं में उछाल देती है.
बात कहां से चली थी? यही कि मशरूफ वक्त की भीड़-भाड़ में कैसे पुरानी यादें छलांग लगाती हैं? कैसे दबी चिंगारी शोला बन कर भड़क उठती हैं. इस बार मैं अपने आईपैड पर, जो रमीज मेरे लिए स्विट्ज़रलैंड से लाए थे, कुछ तलाश कर रहा था. ख्याल आया कि आज पुरबिया गीत सुनते हैं. आप तो जानते हैं, यह इलेक्ट्रॉनिक की दुनिया जादू भरी है. एक खिड़की खुलती है तो जी चाहता है कि दूसरी खिड़की पर भी नजर डाल लें. अचानक भोजपुरी और मैथिली गीतों की मिठास में डूब कर गंगा मइया के पानी में तैरते-भीगते गीत और भजन सुनने लगा.
और यह तो मौशिकी का बहुत बड़ा खजाना है. चलो अंदर की सैर करते हैं. रास्ते की कथा बहुत सुंदर है. इस सफर में एक से एक आवाजों ने हाथ थाम लिया. सबसे पहले तो जानी पहचानी शारदा जी ने पकड़ लिया, ‘अब कहां जाओगे हमें छोड़ कर, दो घड़ी साथ रहो, हमारी बगिया में’ हम ने कहा था, ‘अनारदार बगिया ना जायबे राजा, लेकिन आगे दिल्लगी और छेड़छाड़ तो चलती रहती है. दरअसल राजा प्यारे हैं तो उनके रिश्तेदार भी प्यारे हैं.
अब बताइए अजय साहब, मैं क्या करता? शारदा को छोड़ कर आगे बढऩे को जी नहीं चाहा, बड़ी देर तक उनके साथ रहे और वे मेहमान की खातिरदारी के लिए भोजपुरी और मैथिली में अपने चुनिंदा गीत और भजन सुनाती रहीं. हम सुनते और सोचते रहे कि सरस्वती देवी ने शारदा को कितना कुछ बख्शा है साहब! सरस्वती देवी ने शारदा सिन्हा को मीठी खनकदार आवाज और रसभरी मुरकियों के साथ उलटती-पुलटती लय से नवाजा है. क्या सुनाएं, क्या हाल हुआ. गालिब ने कहा था: कलकत्ते का जो जिक्र किया तूने हमनशीं
इक तीर ऐसा सीने पे मारा की हाय हाय
हमें पटनावाली ने लूट लिया और लोक गीतों में छिपे सुख के सपने और दुख की परछाइयां बड़ी दिलसोगी के साथ दिखाती रहीं.
पिरितिया काहे ना लगौ ल..
हे गंगा मइया मांगी..
काहे लागे मोहन, मइया मइया..
सुन हो परदेसिया…
अबू कबू सपना मे आए के जगैइयो...
पिया, पिया,पिया...
पटना से बैद बुलाए दा..
बताव चांद केकरा के कहां मिले जाला..
पनिया के जहाज से.. ले आव.. सिंदूर बंगाल से..
केरवा के पात पर..
हम न जायब घाट..
बहुत लंबी लिस्ट है. एक गीत का रस पीने के बाद दूसरे गीत की चाहत अपने बाजुओं में जकड़ लेती है. मैंने शारदा साहिबा से कहा, ‘देवी जी, अब इजाजत दें, हम हवा के झोंको की तरह बार-बार आप की दुनिया में आते-जाते रहेंगे. आप को भुलाना आसान नहीं.’
शारदा जी मुस्कुराईं, ‘अच्छा, अब कहां जाओगे?’ मैंने कहा, ‘अभी तो कुछ और वक्त सुर-संगीत की इस फुलवारी में गुजारना है. रंग-बिरंगे फूल खिले हैं. भवंरा बनकर उन पर मंडराने को जी चाहता है.’ शारदा जी हंस कर बोली, ‘हम बाद में पूछेंगे, बताव चांद केकरा के कहां मिले जाला’.
यह तो मजाक था, बड़े दिल वाली हैं. हसद और जलन उनके अंदर नहीं है. खुद ही मेरा हाथ थामा और फुलवारी के मुख्तलिफ मनाजिर की सैर करती रहीं, जहां से सुरों की खुशबू फूट रही थी. कुछ आवाजें जानी-पहचानी थीं. लेकिन ज्यादातर आवाजें पहली बार दिल से लिपट रहीं थीं.
शारदा जी ने एक मनमोहिनी आवाज से मुलाकात कराई और वापस चली गईं.
Also Read
-
TV Newsance 305: Sudhir wants unity, Anjana talks jobs – what’s going on in Godi land?
-
India’s real war with Pak is about an idea. It can’t let trolls drive the narrative
-
How Faisal Malik became Panchayat’s Prahlad Cha
-
Explained: Did Maharashtra’s voter additions trigger ECI checks?
-
‘Oruvanukku Oruthi’: Why this discourse around Rithanya's suicide must be called out