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आया राम गया राम भाग 5: ‘ब्राह्मण चेहरा’ भाजपा में शामिल, टिकट के मसले पर कांग्रेसी ने पार्टी छोड़ी
कुल 18 उम्मीदवार पाला बदलकर पहले चरण के लोकसभा चुनावों में भाग ले रहे हैं. इनमें से 8 तमिलनाडु, 3 राजस्थान, 2 मेघालय और एक-एक असम, मिजोरम, बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के हैं.
यह आया राम गया राम का पांचवां भाग है. न्यूजलॉन्ड्री की यह शृंखला पाला बदलकर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों की पड़ताल कर रही है. इस आखिरी कड़ी में ऐसे ही दो और उम्मीदवारों पर बात की जाएगी. इसमें से एक उत्तर प्रदेश से तो वहीं दूसरे महाराष्ट्र से हैं. दोनों नेताओं ने ही कांग्रेस छोड़ दी. एक ने भाजपा तो दूसरे ने भाजपा की सहयोगी शिवसेना (शिंदे गुट) का हाथ थामा.
आइए इनकी राजनीतिक यात्रा पर एक नजर डालते हैं.
जितिन प्रसाद : राजीव गांधी को आदर्श मानने वाले पूर्व कांग्रेसी, ब्राह्मणों की आवाज
जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार हैं. 50 वर्षीय प्रसाद एक कांग्रेसी घराने से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने 2001 में अपने पिता की मृत्यु के बाद राजनीति में कदम रखा. तब वे 27 साल के थे. पहले वह कांग्रेस के युवा मोर्चे में शामिल हुए. उनके पिता जितेंद्र प्रसाद भी कांग्रेस में रहे.
प्रसाद ने श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से स्नातक और इंटरनेशनल मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट से एमबीए किया. उन्होंने राजनीति में आने से पहले डीएसपी मेरिल लिन्च और बीपीएल नेट में नौकरी की थी. राजनीति में आने के बाद वे लगातार सीढ़ियां चढ़ते गए. तीन साल के भीतर कांग्रेस की टिकट पर वे शाहजहांपुर से लोकसभा चुनाव जीत गए. उन्हें मनमोहन सिंह की सरकार में कैबिनेट में भी जगह मिल गई. यूपीए के दूसरे कार्यकाल में प्रसाद को मानव संसाधन राज्य मंत्री बनाया गया.
वह खुद को “ब्राह्मणों की आवाज” बताते और अक्सर ब्राह्मणों से जुड़े मसलों को उठाते रहते थे. “ब्राह्मण चेतना यात्रा” आयोजित करके वे वह ब्राह्मणों को ‘एकजुट’ करने का काम करते रहे.
कांग्रेस छोड़ने से पहले, वह उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने 2019 के चुनावों के समय पार्टी में व्यापक बदलावों की मांग की थी. उनके पिता भी सोनिया गांधी द्वारा पार्टी के नेतृत्व करने का विरोध करने के लिए जाने जाते हैं. हालांकि, वे अंत तक कांग्रेस के साथ ही बने रहे.
प्रसाद 2022 विधानसभा चुनावों के ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए. उन्होंने एक वक़्त भाजपा की ब्राह्मणों के हितों का ख्याल न करने के लिए आलोचना की थी. उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का वोट 12 प्रतिशत है. उनका अन्य जातियों पर भी अच्छा खासा प्रभाव है. इसके तीन महीने बाद ही प्रसाद ने भाजपा की सदस्यता ले ली. वहां उन्हें राज्य में कैबिनेट मंत्री बना दिया गया.
प्रसाद ने कहा कि भाजपा अकेली राष्ट्रीय पार्टी बची है. उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस में उन्होंने ‘अपने चारों तरफ राजनीति होते’ हुए महसूस की. कुछ साल पहले उन्होंने राजीव गांधी को अपना ‘आदर्श’ बताया था. साथ ही उन्होंने योगी सरकार पर ब्राह्मणों पर ‘जान बूझकर निशाना साधने’ का आरोप लगाया.
प्रसाद की संपत्ति 2017 में 9 करोड़ से बढ़कर 2024 में 21 करोड़ हो गई. उन्हें मीडिया ने कई उपनामों से नवाजा है. इसमें शाहजहांपुर का आकर्षक चेहरा, उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के प्रतिनिधि और उनकी टीम का युवा तुर्क आदि हैं. अब वे योगी सरकार में ब्राह्मण चेहरा हैं. योगी सरकार पर ब्राह्मण संगठनों द्वारा पार्टी के भीतर और बाहर ठाकुरवाद को बढ़ावा देने के और ब्राह्मण-विरोधी होने का आरोप लगता रहा है.
शाहजहांपुर के स्थानीय लोग प्रसाद के पुश्तैनी घर को ‘बड़े बाबा की कोठी’ कहते हैं. उनके परिवार के कपूरथला राजपरिवार और रबीन्द्रनाथ टैगोर से संबंधों के कारण कहा जाता है. उनके दादी कपूरथला राजघराने से ताल्लुक रखते थीं. वहीं उनकी परदादी रबीन्द्रनाथ टैगोर की भतीजी थीं.
राजू देवनाथ पारवे : निर्दलीय से कांग्रेस और फिर शिवसेना
राजू देवनाथ पारवे महाराष्ट्र के रामटेक लोकसभा से शिवसेना (शिंदे गुट) के उम्मीदवार हैं.
54 वर्षीय पारवे ने चुनावों के ऐन पहले कांग्रेस छोड़कर शिवसेना के शिंदे धड़े में शामिल होकर सबको चौंका दिया था. उन्हें रामटेक लोकसभा से टिकट नहीं देने पर वे खफा होकर शिवसेना में चले गए.
पारवे एक व्यापारी हैं. वह कथित तौर पर एक पेट्रोल पंप और एक बार के मालिक हैं. उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव नागपुर के उमरेद विधानसभा सीट से निर्दलीय लड़ा. वे भाजपा के सुधीर लक्ष्मण पारवे से हार गए. हालांकि वे 12.5% वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे.
2019 में उन्हें उसी विधानसभा से कांग्रेस ने टिकट दिया. इस बार वे 50% वोटों के साथ 91,000 वोटों से चुनाव जीते.
शिंदे धड़े ने पारवे को वर्तमान सांसद कृपाल तुमाने की जगह तरजीह दी. पार्टी के आंतरिक सर्वे में यह बात सामने आई कि कृपाल तुमाने का मतदाताओं से ठीक तालमेल नहीं है.
इंडियन एक्स्प्रेस ने खबर की थी कि सेना और अजित पवार की एनसीपी के साथ सीटों के बंटवारे पर भाजपा रामटेक सीट देने से हिचक रही थी. भाजपा की स्थानीय इकाई का मानना था कि अविभाजित शिव सेना इतने सालों से यहां पर इसीलिए जीत रही थी क्योंकि भाजपा की स्थानीय इकाई का जमीन पर दबदबा था.
पारवे पर ‘अभद्र भाषा’ का इस्तेमाल करके ‘भड़काने’ और ‘सरकारी कर्मचारी को धमकी देने’ के दो मुकदमे लंबित हैं.
2024 में उनकी कुल संपत्ति बढ़कर रुपये 6.6 करोड़ हो गई है जो 2014 में रुपये 2 करोड़ थी. उन्होंने व्यापार के अलावा कृषि को भी अपनी आय का स्रोत बताया है.
मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. न्यूज़लॉन्ड्री के साथ इंटर्नशनिप कर रहे अनुपम तिवारी ने इसका अनुवाद किया है.
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