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प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन: 5 साल में 49 लाख तक पहुंची 42 करोड़ के लक्ष्य वाली योजना
साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 5 मार्च को पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना (पीएम-एसवाईएम) की शुरुआत की. यह असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए एक पेंशन योजना है. जिनकी मासिक आय 15,000 या इससे कम है और जिनके पास आधार संख्या और बैंक में बचत खाता है. इस योजना में शामिल होने के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष और अधिकतम आयु 40 वर्ष है.
योजना के तहत उम्र के हिसाब से 55 से 200 रुपये तक जमा करवाने होते हैं. इतनी ही राशि सरकार सरकार जमा करती है. 60 साल की आयु के योजना में पंजीकृत कामगारों को सरकार 3000 रुपये मासिक पेंशन देगी.
सरकार का दावा था कि यह योजना असंगठित क्षेत्रों के उन श्रमिकों को समर्पित है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 50 प्रतिशत का योगदान देते हैं. पीआईबी ने प्रेस रिलीज में बताया कि इसे असंगठित क्षेत्र के लगभग 42 करोड़ कामगारों के लिए लागू किया जा रहा है.
सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत मिली जानकारी के मुताबिक, इस योजना से कामगारों को पहला लाभ साल 2038-39 से मिलना शुरू होगा.
योजना की हकीकत
न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक, सामने आया कि बीते पांच सालों में इस योजना के लिए महज 49 लाख श्रमिकों ने ही पंजीकरण कराया हैं. इसमें से आधे से ज़्यादा 27 लाख के करीब पंजीकरण मार्च 2019 में हुए हैं और यह लोकसभा चुनाव से पहले का महीना था.
भारत सरकार ने 24 जुलाई 2023 को बताया कि आर्थिक सर्वेक्षण, 2021-22 के अनुसार, 2019-20 के दौरान असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 43.99 करोड़ है.
श्रम और रोजगार मंत्रालय ने असंगठित कामगारों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिए ई-श्रम पोर्टल विकसित किया है. इसपर 18 जुलाई 2023 तक, 28.96 करोड़ से अधिक श्रमिकों को पंजीकृत किया गया है.
सरकारी आंकड़ों को भी देखें तो असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का बड़ा हिस्सा आज भी इस योजना से दूर है. खुद भारत सरकार के 42 करोड़ के लक्ष्य की तुलना में महज 49 लाख पंजीकरण हुए हैं यानी लक्ष्य का सिर्फ 1. 17 प्रतिशत ही.
जिन 49 लाख 97 हज़ार 608 लोगों ने पंजीकरण कराया है. उसमें से 21 लाख 7 हज़ार 66 पुरुष और 23 लाख 83 हज़ार 901 महिलाएं हैं, वहीं 38 ने खुद को इस पहचान से अलग रखा है.
साल 2019 के फरवरी महीने में इस योजना की शुरुआत हुई. इस बीच मार्च में प्रधानमंत्री ने गुजरात में आयोजित एक बड़े समारोह को योजना को धूमधाम से लॉन्च किया. मार्च तक इसके लिए 27 लाख 80 हज़ार 622 श्रमिकों ने अपना पंजीकरण कराया.
अगले वित्त वर्ष 2019-20 में यह आंकड़ा 16 लाख 14 हज़ार 328, 2020-21 में 1 लाख 36 हज़ार 792, 2021-22 में 1 लाख 28 हज़ार 369 और 2022-23 में यह 2 लाख 72 हज़ार 494 तक ही पहुंचा. साल 2023-24 में 27 मार्च तक इसके लिए सिर्फ 65 हज़ार श्रमिकों ने पंजीकरण करवाया है.
अगर राज्यवार आंकड़ों की बात करें तो हरियाणा में सबसे ज़्यादा 9 लाख 17 हज़ार 552 श्रमिकों ने पंजीकरण कराया है. इसमें से 5 लाख 75 हज़ार 134 ने मार्च 2019 में कराया है. उसके बाद 2019-20 में यह आंकड़ा 3 लाख 11 हज़ार 964 हुआ, 2020-21 में 16 हज़ार 136, 2021-22 में यह आंकड़ा महज 9 हज़ार 946, 2022-23 में यह आंकड़ा 3 हज़ार 922 और 2023-24 में महज 450 तक पहुंच गया है. हरियाणा में ई-पोर्टल पर 52 लाख 94 हज़ार 824 श्रमिकों ने पंजीकरण कराया हुआ है.
सबसे ज्यादा पंजीकरण कराने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर है. यहां अब तक कुल 9 लाख 2 हज़ार 491 असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों ने अपना पंजीकरण कराया है. जिसमें से 4 लाख 72 हज़ार 753 ने मार्च 2019 में करवाया है. वित्त वर्ष 2019-20 में यह आंकड़ा 3 लाख 62 हज़ार 835 था, जो 2020-21 में घटकर 23 हज़ार 964 हो गया. अगले वित्त वर्ष 2021-22 में घटकर 13 हज़ार 168 हो गया. 2022-23 में 19 हज़ार 221 और 2023-24 में और घटकर 10 हज़ार 560 तक पहुंच गया. उत्तर प्रदेश में ई-श्रम पोर्टल पर 8 करोड़ 33 लाख 49 हज़ार 947 असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों ने अपना पंजीकरण कराया हुआ है.
आंकड़ों से साफ जाहिर है कि केंद्र सरकार की यह योजना लक्ष्य के साथ-साथ असंगठित श्रमिकों से भी दूर है. आरटीआई के जवाब में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने बताया कि इसके विज्ञापन पर सरकार ने 17 करोड़ 95 लाख रुपये खर्च किए हैं.
हर साल कम होता बजट
आरटीआई से मिली जानकारी में सामने आया कि योजना के लिए आवंटित बजट में हर साल कमी हो रही है.
योजना के शुरुआती दो वित्त वर्षों- 2019-20 और 2020-21 में- 500 करोड़ रुपये का बजट जारी हुआ. जो 2021-22 में 400 करोड़ हो गया. अगले वित्त वर्ष 2022-23 और 2023-24 में घटकर 350 करोड़ हो गया. वहीं वित्त वर्ष 2024-25 के लिए जारी अंतरिम बजट में यह राशि घटकर सिर्फ 177. 24 करोड़ कर दी गई है.
क्यों असंगठित क्षेत्र के श्रमिक इससे दूर हो रहे हैं?
दिल्ली के मयूर विहार मेट्रो स्टेशन पर में ई-रिक्शा चलाने वाले 36 वर्षीय संदीप शाह को इस योजना के बारे कोई जानकारी नहीं है. शाह रोजाना के तीन से चार सौ रुपये कमाते हैं. वो कहते हैं, ‘‘एक साल पहले हमारा श्रम कार्ड बना हैं. यहीं त्रिलोकपुरी में कैंप लगा था. सौ रुपये लेकर उन्होंने कार्ड बनाया. तब कहा था कि हर महीने दो हज़ार रुपये आएंगे. लेकिन अब तक एक रुपया नहीं आया. पेंशन वाली जिस योजना की आप बात कर रहे हैं. ये तो मैंने सुना ही नहीं. श्रम कार्ड में भी हमारे पैसे नहीं काटते हैं.’’
शाह से हमारी मुलाकात चाय की दुकान पर हुई थी. इस योजना के अंतर्गत चाय विक्रेता को भी रखा गया है. शाह की तरह चाय की दुकान चलाने वाले श्याम जी चौरसिया को भी इस योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
चौरसिया कहते हैं, ‘‘कोरोना के समय मेरा श्रम कार्ड तो बना लेकिन ना ही सरकार की तरफ से कोई पैसा आया और न ही मेरे अकाउंट से वो पैसे कटते हैं. हालांकि, कार्ड बनाते हुए बैंक डिटेल्स, आधार और पैन कार्ड नंबर तो उन्होंने लिया था.’’
कुछ लोगों को जहां इसकी जानकारी नहीं है तो वहीं कुछ का मानना है कि चुनाव के पहले आई ज़्यादातर योजनाओं का भविष्य नहीं होता हैं. नई सरकार या तो उसे ख़त्म कर देती है या उसमें बदलाव कर देती है. सड़क किनारे रेहड़ी लगाने वाले मनोज कुमार सिंह का यही मानना है.
सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) असंगठित मज़दूरों पर काम करने वाला संगठन है. इसकी दिल्ली इकाई के जनरल सेक्रेटरी अनुराग सक्सेना बताते हैं, ‘‘पीएम-एसवाईएम योजना का प्रचार प्रसार ठीक से नहीं हुआ है. मैं तो असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों के साथ ही काम करता हूं लेकिन मेरी जानकारी में किसी ने भी इस योजना के लिए पंजीकरण नहीं कराया है.’’
सक्सेना हमसे पूछते हैं कि दिल्ली में इसके लिए कितने श्रमिकों ने बीते पांच सालों में पंजीकरण कराया है. हमारे 10 हज़ार 601 का आकंड़ा बताने पर वो हैरानी जताते हुए कहते हैं, ‘‘केंद्र सरकार के ही ई-श्रम पोर्टल में दिल्ली के 33 लाख के करीब असंगठित मज़दूरों ने पंजीकरण कराया है. हमने घूम-घूमकर मज़दूरों का पंजीकरण कराया. अब जब उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता तो वो हमारे पास आते हैं. चुनाव के आसपास 500 या 1000 रुपये सरकार भेज देती है.’’
योजना के लिए पंजीकरण कराने हेतू 127 कामों का चयन किया गया. जिसमें आशा वॉकर्स, आंगवाड़ी कर्मी, मिड डे मिल वर्कर्स, बीड़ी मज़दूर, साईकिल की मरम्मत करने वाले और बढ़ई भी शामिल हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने मिड डे मील वर्कर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जय भगवान से बात की. वे मुख्य रूप से हरियाणा में काम करते हैं. यहां करीब 30 हज़ार मिड डे मिल कर्मी हैं.
जय कहते हैं, ‘‘मेरी जानकारी में हरियाणा की किसी भी मिड डे मिल कर्मी ने इसके लिए पंजीकरण नहीं कराया है. एक तो पहले ही इन्हें कम वेतन मिलता है. दूसरा हरियाणा में वृद्धावस्था पेंशन ही तीन हज़ार है. जो हरेक बुजुर्ग को मिलती है. और जो आज रुपये जमा कराएंगे वो रिटायरमेंट के बाद पेंशन पाएंगे. तब तक तो हरियाणा की बुढापा पेंशन ही तीन हजार से ज्यादा हो जाएगी. ऐसे में कोई क्यों ही पंजीकरण कराए.’’
सीटू की जनरल सेक्रेटरी ए.आर. सिंधु ने इस योजना को फ्रॉड बताया था. वो कहती हैं, ‘‘जब यह योजना आई तो बैंक के कुछ कर्मचारियों के साथ मिलकर हमने हिसाब लगाया. तब सामने आया कि इस योजना में आम लोगों से जितने पैसे लिए जा रहे थे, अगर वो पैसे बैंक में ही जमा कर दें तो 60 साल बाद उन्हें 3000 हज़ार से ज़्यादा तो ब्याज ही मिल जाएगा. हमने पूरी डिटेल्स साथ सरकार को इसकी जानकारी दी. लेकिन सरकार ने हमारी नहीं सुनी. नतीजा आज यह एक असफल योजना है.’’
हमने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के मंत्री भूपेंद्र यादव और सेक्रेटरी सुमिता दावरा को इस योजना को लेकर सवाल भेजे हैं. अगर उनका जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
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