चंदे की कहानी
छापेमारी और चंदा: भाजपा का संयोग या प्रयोग?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम पर फैसला देते वक्त जो कहा उसका एक आशय यह भी था कि यह चंदा देने वाला..राजनीतिक पार्टियों से लाभ लेने के लिए चंदा दे रहा है.. इसे क्विड प्रो को करार दिया यानी यानी एक हाथ देना दूसरे हाथ से लेना.
राजनीतिक दलों को चंदा पाने के और भी रास्ते हैं. इनमें से एक है सीधे कारपोरेट कंपनियों से मिलने वाला चंदा. इसकी जानकारी राजनीतिक दल चुनाव आयोग को देते हैं. इस तरीके से चंदा हासिल करने में सत्ताधारी दल को बढ़त हासिल है, उसके पास ऐसी एजेंसिया और ताकत है, जिसका इस्तेमाल कर कारपोरेट की बांह मरोड़ी जा सकती है.
हम ऐसा क्यों कह रहे हैं. और ये सवाल क्यों उठ खड़ा हुआ है? ये जानने के लिए आपको न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट की ताजा इन्वेस्टिगेशन पढ़नी होगी.
सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारियों और दस्तावेजों का मिलान करने पर हमने पाया कि पिछले पांच-छह सालों के दौरान भाजपा को 30 कंपनियों से लगभग 335 करोड़ रुपये का चंदा मिला है. मजे की बात ये है कि इन सभी तीस कंपनियों ने भाजपा को चंदा तब दिया जब उनके ऊपर केंद्रीय जांच एजेंसियों मसलन ईडी, सीबीआई या फिर आयकर विभाग ने छापा मारा. क्या यह महज संयोग है या फिर किसी योजनाबद्ध रणनीति का हिस्सा है, हमें नहीं पता. अगर यह संयोग है, तो यह दुर्लभ संयोग है.
तो ये 30 कंपनियां कौन सी हैं.. इनके नाम जानने के लिए तो आपको न्यूज़लॉन्ड्री- द न्यूज़ मिनट द्वारा की गई तीन महीने लंबी एक पड़ताल को पढ़ना होगा. इसे हमारे साथी प्रतीक गोयल, कोराह अब्राहम, बसंत कुमार और नंदिनी चंद्रशेखर ने किया है. इस पड़ताल में कुछ बेहद दिलचस्प बाते सामने आई हैं.
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