जींद जिले के किसान बूढ़ा खेड़ा गांव में हाइवे प्रोजेक्ट के लिए मिट्टी की खुदाई के बाद अपने खेतों में अंतर दिखाते हुए.
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हाईवे के लिए बेच दी खेत की मिट्टी, अब उपज के लिए तरस रहे किसान

किसी भी खेत की ऊपरी मिट्टी बताती है कि उसमें होने वाली फसल कितनी प्रचुर मात्रा में होगी. हरियाणा के किसानों ने अपने इस अहम संसाधन को सरकारों को बेच दिया है ताकि हाईवे प्रोजेक्ट का निर्माण किया जा सके.

इसमें 227 किलोमीटर लंबा ट्रांस-हरियाणा एक्सप्रेसवे भी शामिल है, जो अंबाला और नारनौल को जोड़ता है. इसे अगस्त 2022 में जनता के लिए खोल दिया गया था. इस प्रोजेक्ट में काम करने वाले इंजीनियरों ने कहा कि हरियाणा में सड़क बनाते समय इसे और अन्य हाईवे को थोड़ी ऊंचाई देने के लिए जो मिट्टी इस्तेमाल की गई वह किसानों के खेत की मिट्टी ही थी. अपना नाम ना छापे जाने की शर्त पर वह बताते हैं कि केंद्र या राज्य सरकारें स्थानीय ठेकेदारों की मदद से मिट्टी की खुदाई करवाती हैं, जो इसका इंतजाम कर देते हैं.

वहीं, त्वरित लाभ को देखते हुए किसान अपने खेत की ऊपरी मिट्टी प्राइवेट ठेकेदारों को बेच देते हैं. अब वही किसान अपने इस फैसले के दुष्परिणाम भुगत रहे हैं. किसानों का कहना है कि वे ऐसे परिणामों के बारे में अनजान थे.

पिछले पांच सालों में हरियाणा में 19 हाईवे का निर्माण या विस्तार हुआ है. हरियाणा के मुख्यमंत्री ने हाल ही में कहा था कि संभवत: हरियाणा इकलौता ऐसा राज्य है जिसके हर जिले के मुख्यालय नेशनल हाईवे से जुड़ गए हैं. कई अन्य प्रोजेक्ट भी अभी पाइपलाइन में हैं.

हरियाणा में प्रगति पर है हाईवे निर्माण का काम. हरियाणा में ट्रांस-हरियाणा एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट में काम करने वाले इंजीनियरों का कहना है कि किसानों ने अपने खेत की ऊपरी मिट्टी बेच दी है जिसका इस्तेमाल हरियाणा में बनाई जा रही सड़कों के निर्माण में हो रहा है.

विकास की चमक से इतर

जींद जिले के केंद्र में बुद्ध खेड़ा लाठर गांव है. इस गांव में ऐसे कई प्रभावित किसान हैं जिन्होंने ट्रांस हरियाणा हाईवे यानी 152डी के निर्माण के लिए अपने खेत की ऊपरी मिट्टी बेच दी है.

हरियाणा में हाईवे निर्माण की सफलता की चर्चाओं के पीछे का कड़वा सच यह है ये किसान बुरे परिणाम भुगत रहे हैं. पिछले साल मॉनसून के समय और फिर जून-जुलाई 2023 में हुई काफी ज्यादा बारिश ने यहां कि 200 एकड़ के उपजाऊ खेतों को बारिश के पानी में डूबी बेकार जमीन में बदल दिया है. अब यह जमीन साल के ज्यादातर समय पानी में डूबी रहती है.

52 साल के उमेश लाठर एक किसान हैं और उनकी चार बेटियां हैं. उमेश उन किसानों में शामिल थे जिन्होंने जल्दी से लाभ कमाने के चक्कर में अपने खेत की ऊपरी मिट्टी बेच दी थी. अब उमेश का कहना है, “जब ठेकेदार ने मिट्टी के लिए 50 हजार रुपये प्रति फुट का रेट दिया तब मैंने भी सहमति दे दी. मुझे जरूरत थी तो मैंने डेढ़ फीट गहरी मिट्टी खोदने की अनुमति दी थी लेकिन उन लोगों ने तीन फीट की गहराई तक खुदाई की और मैं हताश और पीड़ित जैसा रह गया.”

एक और किसान करमबीर सिंह के पास नेशनल हाईवे 152डी से लगी हुई चार एकड़ खेती वाली जमीन है. उनका कहना है कि उन्होंने भारी मन से अपने खेत की ऊपरी मिट्टी बेची थी. करमबीर कहते हैं, “इस खेत की कमाई से अपने परिवार को पालना मेरे लिए काफी गर्व की बात थी. इस खेत में एक समय पर कई फसलें होती थीं. अब यहां सिर्फ धान की फसल हो पाती है लेकिन उसका भी कोई भरोसा नहीं है.”

खुदाई हो जाने की वजह से करमबीर के खेत आसपास की जमीन से नीचे हो गए हैं. मॉनसून के समय इनमें पानी भर जाता है और कहीं से यह पानी निकलने का रास्ता न होने की वजह से यह तालाब जैसा बन जाता है.

पास के ही लजवाना कलां गांव के एक अन्य किसान जगदीश का भी कुछ ऐसा हाल है. उनके खेत की मिट्टी एक लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से खोदी गई थी. अब उनका कहना है, “मैंने उन पैसों से अपनी कुछ जरूरतें पूरी कीं और अपने कर्ज चुकाए लेकिन अब मैंने अपनी खेती वाली जमीन हमेशा के लिए गंवा दी है.”

बूढ़ा कलां गांव में 10 एकड़ जमीन वाले किसान सत्यवान लाठर ने कहा है कि हाईवे के पास के गांवों के बहुत सारे किसानों ने एकमुश्त पैसों की आमदनी के लिए अपने खेतों में खुदाई करने की अनुमति दे दी.

वह कहते हैं, “नारनौल से अंबाला तक हाईवे को ऊंचा करने की जरूरत थी. इस जरूरत को किसानों के खेतों की मिट्टी से पूरा किया गया. अब किसान मॉनसून के समय खुदाई के इस नुकसान को झेलने के लिए मजबूर हैं क्योंकि उनके खेतों में पानी भर जाता है और ऊपरी मिट्टी चली जाने के कारण मिट्टी की उर्वरता भी नहीं बची है.”

हरियाणा में हाइवे प्रोजेक्ट के लिए मिट्टी की सप्लाई करने वाले एक स्थानीय ठेकेदार हाईवे की ऊंचाई बढ़ाने के लिए स्थानीय लोगों से मिट्टी लेने के फायदे और अहमियत के बारे में समझाते है. कंस्ट्रक्शन कंपनियां सड़क बनाने के लिए मशीनरी, मजदूर और एक्सपर्ट तो बाहर से ला सकते हैं मिट्टी उन्हें यहीं से लेने की जरूरत होती है.

अपना नाम न छापने की शर्त पर एक ठेकेदार समझाते हैं कि वैसे तो नियम हैं कि खेती की जमीनों से मिट्टी लेते समय ज्यादा गहरी खुदाई न की जाए. हालांकि, ऐसे में खुदाई कितनी होगी यह किसान और उसकी जरूरत पर निर्भर करता है. अगर किसान 10 फीट खुदाई के लिए भी राजी हो जाए तो मिट्टी ले ली जाती है.

इस ठेकेदार ने यह भी स्वीकार किया कि नए बने हाइवे के पास के गांवों में मौजूद खेती वाली जमीन से भारी मात्रा में मिट्टी की खुदाई की गई है. उन्होंने बताया कि कई किसानों ने पैसों की कमी के चलते मिट्टी बेचने की बात मान ली क्योंकि वे खराब मॉनसून और फसलों की बीमारियों की वजह से कर्ज और नुकसान झेल रहे थे.

सड़क बनाने वाली कंपनियों को स्थानीय ठेकेदार मिट्टी देते हैं जो कि आसपास के खेतों से मिट्टी लेते हैं.

हाईवे निर्माण के काम में लगी गुरुग्राम की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ विशेषज्ञ बताते हैं कि एक किलोमीटर हाईवे बनाने के लिए 4 से 5 लाख टन मिट्टी की जरूरत होती है. राजमार्ग मंत्रालय का दावा है कि 2014 से 2018 के बीच हरियाणा में 1872 किलोमीटर हाईवे बनाए गए हैं. हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने दावा किया था कि 2014 से अभी तक हरियाणा में सरकार ने 2200 किलोमीटर हाईवे का निर्माण करवाया है. विशेषज्ञ का कहना है कि इतने हजारों किलोमीटर हाईवे बनाने के लिए हजारों टन मिट्टी और अन्य चीजें जैसे कि फ्लाई ऐश का इस्तेमाल किया गया है.

अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर यह विशेषज्ञ बताते हैं कि हाईवे निर्माण के लिए मिट्टी काफी अहम चीज होती है और कंपनियों को स्थानीय स्रोतों से मिट्टी लेने में समस्याएं आती हैं. वह आगे कहते हैं, "विकल्प के तौर पर पानीपत और दिल्ली में मौजूद थर्मल पावर प्लांट्स से फ्लाई ऐश ली जा रही है. नियमों के मुताबिक, हाईवे को जमीन से कम से कम 3 मीटर ऊंचाई दी जा रही है. बाढ़ वाले इलाकों में इसे पांच से छह मीटर तक बढ़ाया जा रहा है."

वह इस बात का खुलासा भी करते हैं कि स्थानीय ठेकेदार अलग-अलग कीमतों पर मिट्टी की खरीदारी कर रहे हैं. 600 किलोमीटर लंबे दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे के लिए मिट्टी 2 लाख रुपये प्रति फुट प्रति एकड़ ली जा रही है. वहीं, अन्य हाईवे प्रोजेक्ट में यह उपलब्धता और जरूरत के हिसाब से अलग रेट पर ली जाती है.

ट्रांस-हरियाणा एक्सप्रेसवे से दिखने वाला दृश्य. बारिश के पानी में यहां के खेत डूबे हुए हैं.

साल 2017 में सड़क परिवरहन और राजमार्ग मंत्रालय ने हाईवे निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में मिट्टी के कार्य की जरूरत जताई थी. मंत्रालय ने सभी राज्यों को चिट्ठी लिखकर कहा था कि नेशनल हाईवे निर्माण के लिए मिट्टी की जरूरतों को पूरा करने के लिए इसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों और देश के अन्य क्षेत्रों के तालाबों की खुदाई और डीसिल्टिंग से जोड़ा जाए. मंत्रालय ने कई बार राज्यों के मुख्य सचिवों को भी चिट्ठी लिखी है और सड़क निर्माण में फ्लाई ऐश के इस्तेमाल का अनुरोध किया है.

हालांकि, अन्य राज्यों में सड़क निर्माण के लिए खेत की ऊपरी मिट्टी का इस्तेमाल किया जाना चिंता का विषय बना हुआ है. हाल ही में पंजाब के एक विधायक ने राज्य के मुख्यमंत्री को इसी संबंध में चिट्ठी लिखी थी और इस समस्या की ओर उनका ध्यान खींचा था. केरल में नेशनल हाईवे 66 के निर्माण में भी यह समस्या आ रही है क्योंकि मिट्टी की कमी हो रही है और स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.

सरकार के प्रयासों से अनजान हैं किसान

हरियाणा के खनन और भूगर्भ शास्त्र विभाग के निदेशक नरहरि सिंह बांगर ने बताया कि नियमों के मुताबिक, चाहे वह ईंट भट्टों के लिए मिट्टी का इस्तेमाल हो, हाईवे निर्माण हो या किसी भी अन्य मकसद के लिए अधिकतम पांच फीट की गहराई तक मिट्टी की खुदाई की अनुमति है. वह हरियाणा के माइनर मिनरल कंसेशन, स्टॉकिंग, ट्रांसपोर्टेशन ऑफ मिनरल्स एंड प्रिवेंशन ऑफ इल्लीगल माइनिंग रूल्स, 2012 के नियमों का हवाला देते हुए कहते हैं कि पांच फीट से गहरी किसी भी खुदाई की अनुमति नहीं है. जब उन्हें इस बारे में बताया गया कि आसपास के हाईवे निर्माण के लिए पांच फीट से भी ज्यादा गहरी खुदाई की जा रही है तो उन्होंने कहा कि विभाग इस मामले को गंभीरता से देखेगा.

रिपोर्टर ने जींद और रोहतक जिलों के अपने दौरे पर देखा कि गांवों में कई ऐसे भी खेत हैं जिनमें 8 से 10 फीट की गहराई तक खुदाई की गई है.

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के मृदा विभाग ने खेत की ऊपरी सतह की मिट्टी की महत्ता के बारे में किए गए एक ईमेल के जवाब में कहा कि ऊपर सतह की मिट्टी सबसे ज्यादा उपजाऊ होती है और किसान अपनी मिट्टी की क्षमता के हिसाब से फसलें उगा सकते हैं. खेत की ऊपरी सतह की मिट्टी बेचने के बारे में विभाग का कहना है कि यह ठीक नहीं है क्योंकि मिट्टी की उर्वरता के लिए यही सतह जरूरी है.

रोहतक में सहायक मृदा संरक्षण अधिकारी के तौर पर तैनात नीना सुहाग कहती हैं कि मिट्टी की उर्वरता संरक्षित रखने के लिए सरकार सॉइल हेल्थ कार्ड बना रही है और किसान अपने खेत की मिट्टी की क्षमता के हिसाब से फसलें उगा सकते हैं. वह कहती हैं कि उनका विभाग किसानों के क्लब के साथ समय-समय पर बैठकें आयोजित करता है ताकि किसानों को खेत की मिट्टी की ऊपरी सतह के बारे में जागरूक किया जा सके.

हालांकि, प्रभावित किसानों का दावा है कि सरकार की ओर से ऐसी किसी भी गतिविधि के बारे में उनसे संपर्क नहीं किया गया है. उनका यह भी कहना है कि वह इस बात से बिल्कुल अंजान थे कि खेत की ऊपरी सतह की मिट्टी बेचने से खेत बंजर हो सकते हैं.

रिपोर्टर ने इस बारे में नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) को एक ईमेल किया है. अभी इस ईमेल का जवाब नहीं मिला है.

साभार- Mongabay हिंदी

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