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जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पत्रकार आसिफ सुल्तान की हिरासत के आदेश को किया खारिज

श्रीनगर के पत्रकार आसिफ सुल्तान को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट से राहत मिली है. हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत उनके हिरासत वाले आदेश को निरस्त कर दिया है.

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि एक अन्य मामले में सुल्तान की गिरफ्तारी ने पीएसए के तहत उनकी हिरासत को प्रभावित किया है.

सुल्तान को पहली बार 2018 में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था. पिछले साल श्रीनगर की एक अदालत द्वारा यूएपीए मामले में जमानत दिए जाने के कुछ दिनों बाद, उन पर पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया था. 2019 में अमेरिकन नेशनल प्रेस क्लब द्वारा जॉन औबुचोन प्रेस फ्रीडम अवार्ड से सम्मानित सुल्तान एक पत्रिका के लिए काम करते थे.

बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी कौल ने कहा, “सुल्तान को हिरासत में लेते समय अधिकारियों द्वारा प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का पालन नहीं किया गया था. हिरासत के रिकॉर्ड से यह संकेत नहीं मिलता है कि यूएपीए मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के तहत दर्ज एफआईआर या बयानों की प्रतियां उन्हें कभी प्रदान की गई थीं.”

अदालत ने आगे कहा कि चूंकि हिरासत का आदेश इन दस्तावेजों के आधार पर पारित किया गया था, इसलिए सुल्तान इस सामग्री की कमी को देखते हुए अपनी हिरासत को चुनौती नहीं दे सकते थे. इसमें कहा गया है कि हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की इन दस्तावेजों को उपलब्ध कराने में विफलता हिरासत आदेश को अवैध और अस्थिर बना देती है.

अदालत ने यह भी कहा कहा, “परिणामस्वरूप, प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे हिरासत में लिए गए व्यक्ति को तुरंत रिहा कर दें, बशर्ते किसी अन्य मामले में उसकी आवश्यकता न हो.”

सुल्तान को पहली बार 27 अगस्त, 2018 को श्रीनगर में उनके आवास पर पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा छापेमारी के दौरान गिरफ्तार किया गया था. उन पर यूएपीए और रणबीर दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था.

कश्मीर नैरेटर नामक समाचार पत्रिका में सहायक संपादक के रूप में काम करने वाले सुल्तान के खिलाफ आरोपों में आपराधिक साजिश, आतंकवादियों को शरण देना, सहायता करना और उग्रवाद में भाग लेना शामिल था. उनके सहयोगियों, परिवार और मीडिया अधिकार निकायों ने इन आरोपों से इनकार किया था.

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