Khabar Baazi
समलैंगिक विवाह के समानाधिकार का मामला: जानिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कुछ कहा
सर्वोच्च न्यायालय ने विवाह के समान अधिकार को लेकर दायर याचिकाओं पर मंगलवार को अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुना दिया. फैसला सुनाने वाली पांच न्यायधीशों की संविधान पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे. उनके अलावा पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, एस. रविंद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल थे. इस मामले में अप्रैल-मई में सुनवाई करते हुए संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.
फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 को सिर्फ इसीलिए असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वह समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देता है.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायधीश ने कहा कि शादी के अधिकार में संशोधन करने का हक विधायिका के पास है लेकिन समलैंगिक लोगों के पास भी अपना जीवनसाथी चुनने और साथ रहने का अधिकार है. सरकार को उनके अधिकारों को पहचानना चाहिए ताकि समलैंगिक जोड़े भी बिना परेशानी के एक साथ रह सकें.
सर्वोच्च न्यायलय ने आगे कहा, “समलैंगिक जोड़ों का विचार सिर्फ शहरी या अभिजात्य वर्ग के बीच ही नहीं है बल्कि उन लोगों में भी है जो देश के अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं. एक अंग्रेजी बोलने वाला एवं कॉरपोरेट में काम करने वाला भी समलैंगिक हो सकता है और खेतों में काम करने वाली महिला भी क्वीर हो सकती है.”
फैसले में कहा गया है कि विपरीतलिंगी जोड़े को जो वैवाहिक अधिकार मिलते हैं, वही अधिकार समलैंगिक जोड़ों को भी मिलने चाहिए. ऐसा नहीं करना समलैंगिक लोगों के मौलिक अधिकार का हनन होगा.
बच्चा गोद लेने के अधिकार का क्या?
संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि समलैंगिक समेत अविवाहित जोड़े भी संयुक्त रूप से बच्चे गोद ले सकते हैं. हालांकि, संविधान पीठ के पांच सदस्यों में से तीन ने समलैंगिकों के लिए बच्चा गोद लेने का विरोध किया. इस तरह बहुमत के साथ समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं मिला.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश अग्रवाल ने फैसले पर कहा, “हम इसका स्वागत करते हैं. केंद्र सरकार का कहना था कि इस मामले में कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में इस बात को माना है.”
Also Read
-
TV media sinks lower as independent media offers glimmer of hope in 2025
-
Bollywood after #MeToo: What changed – and what didn’t
-
TV Newsance 326: A very curly tale, or how taxpayers’ money was used for govt PR
-
Inside Mamdani’s campaign: The story of 2025’s defining election
-
How India’s Rs 34,000 crore CSR spending is distributed