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प्रेस क्लब के मोहन भागवत बनाम प्रेस क्लब के केजरीवाल
‘मज़ा नहीं आ रहा’
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया चुनाव के सवाल पर लगभग हरेक का जवाब कुछ-कुछ ऐसा ही है. वोट मांगने और कन्वेसिंग की गर्मजोशी भी नहीं दिख रही है.
दरअसल, अलग-अलग चुनावों के गणित अख़बारों, टीवी और मीडिया के अन्य माध्यमों द्वारा जनता तक पहुंचाने वाले पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्था प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में 23 सितंबर को चुनाव होने वाला है.
पिछले दो सालों से प्रेस क्लब का चुनाव तमाम दांव-पेंच से भरा रहा है. जिस तरह राजनेता धन, बल और छल का इस्तेमाल चुनाव जीतने में करते हैं, वैसा ही कुछ यहां भी देखने को मिलता था. एक दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते हुए नारे लगाते थे लेकिन इस बार शांति है. लगातार बीते दस सालों से जीत रहे पैनल के लोग ही क्लब के लॉन में एक गोल घेरा बना कर बैठे नजर आते हैं. क्लब के एक वरिष्ठ सदस्य चुटकी लेते हुए कहते हैं, जैसे ये गोल घेरा है वैसे ही क्लब में भी इस पैनल का गोल-गोल कब्जा है.
चुनावी मैदान में कौन-कौन हैं?
प्रेस क्लब में ऑफिस बेयरर्स के पांच पद और मैनेजिंग कमेटी के 16 पदों के लिए चुनाव होते है. यहां पैनल बना कर चुनाव लड़ने की परंपरा है. हालांकि, कोई व्यक्तिगत तौर पर चुनाव लड़ना चाहे तो लड़ सकता हैं. लेकिन ऐसा कभी-कभार ही होता है.
जो पैनल यहां लगातार दस साल से चुनाव जीत रहा है, उसकी तरफ से अध्यक्ष पद पर गौतम लाहिरी, उपाध्यक्ष पद पर मनोरंजन भारती, महासचिव के लिए नीरज ठाकुर, सह सचिव के लिए महताब आलम और कोषाध्यक्ष पद पर मोहित दुबे लड़ रहे हैं. इसे गौतम-मनोरंजन-नीरज-महताब-मोहित पैनल नाम दिया गया है.
दूसरी तरफ इन पदों पर कुछ स्वतंत्र लोग भी पर्चा दाखिल कर चुके हैं. पहले तो ये लोग अलग-अलग खड़े हुए, लेकिन चुनाव नजदीक आते-आते चार लोगों ने मिलकर एक पैनल बना लिया. इसमें अध्यक्ष पद पर वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन, महासचिव के लिए प्रदीप श्रीवास्तव, सह-सचिव के लिए केवीएनएसएस प्रकाश, कोषाध्यक्ष पद पर राहिल चोपड़ा लड़ रहे हैं. इस पैनल का टैग लाइन- बी डेमोक्रेटिक, ब्रिंग चेंज है.
वहीं, मैनेजिंग कमेटी के 16 पदों के लिए कुल 22 लोग मैदान में हैं. गौतम-मनोरंजन-नीरज-महताब-मोहित पैनल ने 16 उम्मीदवार उतारे हैं. जबकि बाकी लोग व्यक्तिगत तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं.
जोश नदारद, उदासीन उम्मीदवार
किसी मजबूत विपक्षी पैनल की नामौजूदगी में इस बार प्रेस क्लब का चुनाव उदासीन नजर आ रहा है. 23 सितंबर को चुनाव होने हैं लेकिन 18 और 19 सितंबर को आधे से ज़्यादा क्लब खाली नजर आया. न प्रचार में उत्सुकता नजर आ रही है, न वोटरों में. आखिर ऐसा क्यों?
एक राष्ट्रीय अंग्रेजी अख़बार से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, ‘‘इस बार का चुनाव एकतरफा है. विपक्ष गायब है. जो लोग विपक्ष में लड़ रहे हैं वो भी वैचारिक रूप से इसी पैनल के साथ थे. विपक्ष कितनी गंभीरता से मैदान में है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अध्यक्ष पद के उम्मीदवार प्रशांत टंडन चुनाव के तीन दिन पहले तक दिल्ली शहर से बाहर हैं. ’’
हमें भी विपक्षी पैनल के सदस्य एक साथ कम ही नजर आए. राहिल जोशी अकेले ही पर्चा बांटते नजर आते हैं.
इस पैनल के एक अन्य सदस्य प्रदीप श्रीवास्तव, अध्यक्ष पद के उम्मीदवार गौतम लाहिरी से वोट मांगने जब पहुंचे तब हम वहीं मौजूद थे. श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘मैं सह-सचिव के पद पर आपके खिलाफ लड़ रहा हूं. वोट दीजिएगा. वैसे तो मैं हारने के लिए लड़ रहा हूं, लेकिन इस बार आप लोगों की कमर तोड़ दूंगा.’’
इसके बाद वे लाहिरी के सिगरेट के पैकेट से एक सिगरेट उधार मांग कर जलाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं. थोड़ी देर बाद वो हमसे कहते हैं, ‘‘मुझसे हाथ जोड़कर वोट नहीं मांगा जाएगा.’’
विपक्षी पैनल को समर्थन देने वालों में वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया भी हैं. वो प्रशांत टंडन के प्रस्तावक हैं. टंडन की नामांकन वापसी की अफवाहों पर अनिल चमड़िया कहते हैं, ‘‘अरे ऐसा नहीं होगा. नामांकन वापसी का पर्चा तो मेरे पास है. उसे मैं घर छोड़कर आया हूं क्योंकि हमें नाम वापस लेना ही नहीं था. क्लब में एक गिरोह बन गया गया है. उसी गिरोह के सदस्य घूम-फिर कर चुनाव लड़ते हैं. गौतम लाहिरी, पहले दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं. मनोरंजन भारती साल 2013 में भी चुनाव जीते थे. पिछले साल भी उपाध्यक्ष बने और फिर इस बार लड़ रहे हैं. आखिर प्रेस क्लब में कुछ लोग कुंडली मारकर क्यों बैठे हुए हैं? नए लोगों को मौका मिलना चाहिए. इसीलिए प्रशांत टंडन मैदान में हैं.’’
20 सितंबर को प्रशांत टंडन प्रचार के लिए प्रेस क्लब आए. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘प्रेस क्लब का चुनाव पत्रकारों का चुनाव है. यहां एक गुट बन गया है. जैसे मोहन भागवत भाजपा को परदे के पीछे से चलाते हैं, वैसे ही कुछ लोग प्रेस क्लब को परदे के पीछे से चलाते हैं. मेरा सवाल है कौन हैं प्रेस क्लब का मोहन भागवत?”
टंडन आगे कहते हैं, “गौतम लाहिरी मेरे अच्छे मित्र हैं. लेकिन वो यहां चार बार चुनाव लड़ चुके हैं. दूसरे भी ऐसे कई लोग हैं. चुनाव लड़ना करियर नहीं बनना चाहिए. पत्रकारों का चुनाव है, इसे लोकतान्त्रिक होना चाहिए. इसीलिए मैंने चुनाव लड़ने का फैसला किया. ऐसा न हो कि चुनाव कोई लड़े और लड़ाई कोई और.’’
अनिल चमड़िया पिछले साल के विजेता पैनल पर कई आरोप लगाते हैं. जिसमें कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और पत्रकारिता के लिए कुछ नहीं करने के आरोप शामिल है.
चमड़िया के आरोपों पर प्रेस क्लब मैनेजमेंट कमेटी के एक सदस्य चुटकी लेकर कहते हैं, ‘‘चमड़ियाजी प्रेस क्लब के केजरीवाल हैं. उन्हें अपने अलावा हर कोई भ्रष्टाचारी, निकम्मा और गड़बड़ नजर आता है. अगर उन्हें किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की ख़बर है तो वो दस्तावेज के साथ उसे उजागर करें. कागज न लहराएं, कथित 2G घोटाले की तरह.’’ इतना कहकर वो हंसने लगते हैं.
वो सदस्य बताते हैं, ‘‘आज प्रेस क्लब तीन करोड़ से ज़्यादा के मुनाफे में है. यहां के कर्मचारियों को समय पर सैलरी और अन्य सुविधाएं मिल रही हैं. दस साल पहले हमें जब मौका मिला तब क्लब कर्ज में डूबा था. प्रेस क्लब को सरकार से एक जमीन मिली है. उसके लिए सात करोड़ रुपए हमने मेंबर्स के सहयोग से चुकाए. कोरोना काल में भी कर्मचारियों को कोई नुकसान नहीं होने दिया. जहां तक भ्रष्टाचार की बात है. क्लब एक कंपनी के रूप में चलता है. हम सालाना रिपोर्ट जमा करते हैं. अभी जो केंद्र की सरकार है, वो प्रेस क्लब से कितना खुश है, सबको पता है. अगर कुछ गड़बड़ी की होती तो (सरकार) हमें छोड़ती क्या?’’
भ्रष्टाचार को लेकर जब हमने गौतम लाहिरी से सवाल किया तो उन्होंने कहा, ‘‘प्रेस क्लब बेहद पारदर्शी तरीके से काम करता है. पिछले एक साल का छोड़ दें तो यहां हमेशा पारदर्शिता रही है.’’ हमने पूछा, पिछले साल भी तो आपका ही पैनल सत्ता में था, ऐसा क्यों हुआ कि पारदर्शिता नहीं रही? इस सवाल पर वो टालमटोल करने लगे.
‘राइट आउट’ यानी ‘विपक्ष’ नदारद
पिछले दो चुनाव में जो दूसरा पैनल लड़ा उसे भाजपा-आरएसएस समर्थक बताया गया. साल 2021 में वरिष्ठ पत्रकार पल्ल्वी घोष, संजय बसक, संतोष ठाकुर, सुधीर रंजन सेन के पैनल ने चुनाव लड़ा था. 2022 में भी लगभग यही पैनल चुनाव मैदान में था. इस पैनल ने खूब जमकर मेहनत की लेकिन सफलता नहीं मिली थी.
2021 के चुनाव के समय खुद को उदारवादी और प्रेस का पक्षधर रहने का दावा करने वाले पैनल के लोग प्रचार के दौरान कहते थे कि अगर बसक-घोष पैनल जीतता है तो क्लब का नाम ‘दीनदयाल उपाध्याय कलम दावात संस्थान’ कर दिया जाएगा. इसके पीछे संतोष ठाकुर का एक ट्वीट दिखाते थे, जिसमें उन्होंने मुगल गार्डन का नाम बदलकर किसी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी या किसी भारतीय ऋतु या भारतीय परंपरा से जुड़े किसी शब्द के नाम पर रखने का सुझाव दिया था.
दो बार क्लब के महासचिव रह चुके नाजिम अहमद काजमी ने हमें बताया था, ‘‘नए पैनल में कई लोग भाजपा के करीबी हैं. सेन और सेठी (सुधीर रंजन सेन और नितिन सेठी) सिर्फ दिखावा हैं ताकि किसी को शक न हो. संतोष ठाकुर का ट्वीट बाहर आ गया. इनकी उपाध्यक्ष पद की उम्मीदवार पल्लवी घोष का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वो सरकार के साथ मिलकर काम करने की बात कह रही हैं. मैनेजिंग कमेटी में लड़ रहे पारिजात कौल और उनके पिता का संघ से पुराना रिश्ता है.’’
साल 2022 में भी यह आरोप लगता रहा. इस आरोप को तब बल मिला जब दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता हरीश खुराना ने इनके पक्ष में वोट के लिए ट्वीट कर दिया. हालांकि, बाद में उसे डिलीट कर लिया गया.
बीते साल आए चुनावी नतीजों के बाद पल्लवी घोष ने ट्वीट कर लिखा था, ‘‘ज़रूरी नहीं कि जो हारता है वो झूठा है. ज़रूरी नहीं कि जो बड़ी-बड़ी बातें करता है सोशल मीडिया पर लेकिन अंधेरे में अपने ज़मीर को बचता है, वो सच है. हम कहीं नहीं जायेंगे. हम यहीं हैं.
पल्लवी ने घोषणा जरूर की थी कि वो यहीं रहेंगी, लेकिन इस चुनाव में उनका पैनल पूरी तरह से गायब है. इस पैनल से जुड़ा कोई भी सदस्य न चुनाव मैदान में हैं और न ही प्रेस क्लब में नजर आता है. इसको समझाते हुए ‘गांधीज़ एसासिन’ नामक किताब के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र झा कहते हैं, ‘‘उनकी कमर टूट गई है. दो बार में भाजपा के लाखों रुपये खर्च हो गए. तब भी जीत नहीं मिली. जो पत्रकार उनके लिए चुनाव लड़ते थे वो भी एक्सपोज हुए. उनका साथ देने वाले भी एक्सपोज हुए. ऐसे में उन्होंने अब मैदान छोड़ दिया है.’’
भाजपा के समर्थन से चुनाव लड़ने का आरोप झेलने वाले संतोष ठाकुर कहते हैं, ‘‘चुनाव लड़ना, नहीं लड़ना तो इच्छा की बात है. हम इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.’’
लखेड़ा की चुप्पी
लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले प्रेस क्लब के निवर्तमान अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा इस बार अपने पैनल के पक्ष में प्रचार करते नजर नहीं आ रहे हैं. इसके पीछे की वजह बताते हुए ‘गौतम-मनोरंजन’ पैनल के एक सदस्य कहते हैं, ‘‘प्रेस क्लब के नियम के मुताबिक लगातर दो साल चुनाव लड़ने के बाद कोई सदस्य दो साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता है. ऐसे में लखेड़ा भी चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. वो चाहते थे कि उनका कोई खास चुनाव लड़े. वो ऐसा कर नहीं पाए. हमारे यहां कमेटी तय करती है कि कौन चुनाव लड़ेगा. अध्यक्ष पद के लिए हरतोष बल समेत कई नामों पर चर्चा हुई. इसमें से कुछ लोगों ने मना कर दिया अंत में गौतम लाहिरी के नाम पर सहमति बनी. तो वो लड़ रहे हैं.’’
लखेड़ा की नाराजगी कुछ और वजहों से है. उनके पैनल के एक अहम सदस्य ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि लखेड़ा प्रेस क्लब में सफाई का काम आउटसोर्स करना चाहते थे. वो चाहते थे कि जो कंपनी आईएएनएस की बिल्डिंग में सफाई का काम देखती है वो यहां का भी काम देखें. यह बात जब उन्होंने मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग में उठाई तो सबने एक सुर में ऐसा करने से इनकार कर दिया. एक दो लोगों ने उनका साथ दिया.
उस वक़्त हुई मीटिंग में मौजूद रहे प्रेस क्लब के एक वरिष्ठ सदस्य बताते हैं, ‘‘क्लब के कोषाध्यक्ष चंद्रशेखर लूथरा ने यह कहते हुए इस फैसले से असहमति जताई कि क्लब में पहले से ही छह सफाईकर्मी पूर्णकालिक वेतन पर हैं. हम मजदूरों के अधिकार की बात करते हैं, तो उनका क्या होगा. इसके अलावा क्लब के ऊपर आर्थिक बोझ भी बढ़ेगा.’’
इसके बाद लखेड़ा नाराज हो गए. हमने चंद्रशेखर लूथरा और विनय कुमार जो, कि महासचिव हैं, से भी इस बारे में पूछा तो उन्होंने चुप्पी साधा ली.
लखेड़ा से जब इस बारे में हमने संपर्क करना चाहा तो उनका फोन स्विच ऑफ मिला.
वादा जो वादा ही रह गया
प्रेस क्लब में एक-दो मांग तो सालों से चली आ रही हैं. उनको पूरा करने का वादा भी किया गया लेकिन आज तक वो अधूरा ही है. जैसे मुंबई प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया की तर्ज पर यहां भी अवार्ड की शुरुआत हो. वहीं, किसी पत्रकार पर हुए हमले पर प्रेस क्लब सिर्फ रिलीज जारी करने तक ही सीमित ना रहे. देश के कई पत्रकार ऐसे हैं जिन्हें क़ानूनी मदद नहीं मिल पाती है. ऐसे में उन्हें कानूनी मदद भी क्लब प्रदान करे.
साल 2021 में उमाकांत लखेड़ा-विनय कुमार पैनल ने जो मैनिफेस्टो जारी किया था. उसका टैग लाइन था- No Jumlas, only the reality.
इसमें ‘पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया अवार्ड्स’ की स्थापना.’’ वहीं दूसरा वादा था- सदस्यों को उनकी व्यावसायिक जरूरतों के लिए निःशुल्क कानूनी परामर्श प्रदान करना.
दो साल बाद आज भी यह पूरा नहीं हुआ है. वहीं इस बार के घोषणा पत्र में भी लीगल फर्म बनाने की बात की है.
अगर 2022 में किए गए वादों को देखें तो वो भी अधूरे ही हैं. जैसे कि पत्रकारों के लिए फेलोशिप प्रोग्राम शुरू करना, प्रेस क्लब की वेब मैगज़ीन शुरू करना और मेंबर्स के बच्चों के लिए साइंस वर्कशॉप, रीडिंग रूम, रोजगार के अवसरों के लिए लिंक्डइन के साथ गठजोड़ और राइटिंग/एडिटिंग वर्कशॉप आदि आयोजित करने का जिक्र था. ये वादे आज भी अधूरे हैं.
पूर्व में मैनेजिंग कमेटी के सदस्य रहे एक शख्स कहते हैं, ‘‘यह क्लब भी अवार्ड देता तो नए पत्रकार इससे जुड़ते. इसकी छवि में बदलाव होता. किसी पत्रकार पर हमला या एफआईआर दर्ज होती है तो दस पंक्तियों की एक प्रेस रिलीज जारी करने या चार लोगों को बुलाकर उस (मुद्दे) पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के अलावा (यहां) क्या होता है? मैं तो मैनेजमेंट कमेटी का हिस्सा रहा हूं. वहां इसको लेकर कोई गंभीरता नजर नहीं आती है.
वर्तमान महासचिव विनय कुमार से जब हमने अवार्ड के वादे को लेकर सवाल किया तो वो कहते हैं, ‘‘अवार्ड देने के लिए पैसों की ज़रूरत होती है. ये हमारा ड्रीम प्रोजेक्ट है. इसको लेकर हमने कोशिश भी की लेकिन कोई स्पॉन्सर नहीं मिला. मुंबई प्रेस क्लब तो किसी भी कंपनी का स्पॉन्सर ले लेता है लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते हैं. हमने नार्थ ईस्ट के युवा पत्रकारों के लिए ‘कल्याण बरुआ’ के नाम पर फेलोशिप देने के लिए एक कमेटी का गठन किया था. लेकिन वो भी नहीं दे पाए. क्योंकि हमारे पास पैसों की कमी है.”
कुमार से जब हमने वादे को अमल नहीं करने को लेकर सवाल किया तो वो कहते हैं, ‘‘यहां काफी कुछ ऐसा हुआ जिसका हमने वादा नहीं किया था. प्रेस क्लब और आईआईसी ने मिलकर टॉक आयोजित की. यहां हमारे साथ महताब आलम (सह-सचिव के उम्मीदवार) ने लगभग हर सप्ताह किताबों पर चर्चा कराई. गीतांजलि श्री, हृदयेश जोशी समेत कई नामी लेखकों, पत्रकारों की किताबों पर चर्चा हुई. एफटीआईआई के लोग यहां ट्रेनिंग देने के लिए आए. 40-40 लोगों के दो बैच ने ट्रेनिंग ली. कुल मिलाकर करीब 100 इवेंट इस पैनल के कार्यकाल में हुए हैं. मुझे नहीं लगता इतने (इवेंंट या काम) किसी और पैनल में शायद ही हुए हों. इसमें बहुत कुछ हमारे मैनिफेस्टो में नहीं था.’’
बता दें कि 23 सितंबर को प्रेस क्लब में चुनाव हैं और इसके नतीजे 24 तारीख को आएंगे.
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