Report

'उसका सबसे अच्छा दोस्त मुसलमान ही था', नूंह हिंसा में मारे गए बजरंग दल के अभिषेक के परिवार का दावा

हरियाणा के नूंह में 31 जुलाई को हुई सांप्रदायिक हिंसा में मारे जाने वाले बजरंग दल के कार्यकर्ता अभिषेक चौहान का अपने परिवार से हमेशा विवाद होता रहता था. आखिर इसकी वजह क्या थी? दरअसल, बजरंग दल की गतिविधियों में नियमित तौर पर शामिल होने के कारण उनके रोजगार में पड़ता असर इस परिवारिक बहस की वजह थी. 

अभिषेक चौहान के चेचरे भाई योगेश कहते हैं,  “हमें उसके संगठन में शामिल होने से कोई समस्या नहीं थी क्योंकि वे हिंदू धर्म का प्रचार करते हैं. लेकिन वे एक दिन में दो से तीन बैठकें आयोजित करते हैं. कोई भी नौकरी वाला आदमी अपने लिए इतना समय कैसे निकाल सकता है? इसलिए हमने उसे अपने काम पर ध्यान देने का कहा था.”

पानीपत की धमीजा कॉलोनी के रहने वाले 22 साल के अभिषेक ने कॉलेज जाना छोड़ दिया था. वह अपने माता-पिता, भाई-बहन और भाभी के साथ रहता था. परिवार के भरण-पोषण के लिए वह ऑटोमोबाइल रिपेयर गैरेज में काम करता था. 

अभिषेक ने एक साल पहले ही बजरंग दल की सदस्यता ली थी. वह पहली बार ही शोभायात्रा में शामिल होने के लिए नूंह गया था. जहां मंदिर के पास भीड़ द्वारा कथित तौर पर उसकी हत्या कर दी गई. 

गैस एजेंसी में काम करने वाले उनके पिता सतपाल बेटे की मौत से टूट चुके हैं. उन्हें अब आगे का रास्ता नहीं सूझ रहा. 

वे कहते हैं, “मैं बूढ़ा हो गया हूं और गैस सिलेंडर नहीं उठा सकता. जब उसने काम करना शुरू किया था तो मुझे लगा कि अब मैं रिटायर हो सकता हूं. मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि अब परिवार का भरण-पोषण कौन करेगा?” 

इलाके का बदला हुआ नज़ारा

अभिषेक की हत्या के कारण मीडिया के कैमरों, भाजपा और संघ परिवार के कार्यकर्ताओं की मौजूदगी से ऐसा लगता है पानीपत के बाहर धूल से भरे इस धूसर इलाके में बसी धमीजा कॉलोनी का पूरा नज़ारा ही बदल गया है. 

प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार इस इलाके में न तो ढंग की सड़के हैं और न ही निकासी का समुचित इंतजाम. जगह-जगह लगे कूड़े के ढेर अलग से मुंह चिढ़ा रहे हैं. ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर इसी इलाके में रहते हैं. ये मजदूर यहां की स्थानीय फैक्टरियों में कपड़ों की छंटाई का काम करते हैं.  12 घंटे की शिफ्ट में काम करने के एवज में इन्हें 300 रुपये तक मिलते हैं. 

लेकिन अब सांप्रदायिक हिंसा के बढ़ते खतरों के डर से लगभग 40 मुस्लिम परिवार इस इलाके को छोड़ कर चले गए हैं. ज्यादातर मुस्लिम मालिकों वाली दुकाने बंद पड़ी हैं और कई लोगों ने खुद को अपने घरों में बंद कर लिया है. 

धमीजा कॉलोनी के एक मुस्लिम निवासी ने कहा, “हम अभिषेक की मौत पर शोक व्यक्त करने के लिए उनके घर गए थे. लेकिन हम वहां अपने प्रति नफरत को देख सकते थे.” 

हालांकि अभिषेक के परिवार ने जोर देकर कहा कि बजरंग दल के साथ अभिषेक के जुड़ाव की कोई सांप्रदायिक वजह नहीं है. 

बजरंग दल के साथ अभिषेक के सांप्रदायिक जुड़ाव को लेकर उनकी मां राजो देवी सवालिया लहजे में कहती हैं, “अगर ऐसा है तो वह अपने मुस्लिम बेस्ट फ्रेंड के साथ दुकान क्यों चलाएगा?”

"वो एक अच्छा मुसलमान है, वह तिलक लगाता है और हमारे त्योहारों को भी मानता है," राजो देवी ने आगे कहा. 

इस बीच, अभिषेक की भाभी ज्योति ने लिविंग रूम में टंगी हुई अभिषेक और उसके दोस्त मोहसिन की तस्वीर की ओर इशारा किया. हालांकि मोहसिन और उनके परिवार से बातचीत के लिए संपर्क नहीं हो सका.

अभिषेक और मोहसिन का फोटो दिखाते परिजन
मुस्लिमों की ज्यादातर दुकानें बंद हैं
अभिषेक की मां राजो देवी (हरे सूट में)
मीडिया से बात करते बजरंग दल के करण सिंह

परिवार का कहना है कि अभिषेक केवल अपनी आस्था के कारण बजरंग दल में शामिल हुए थे, क्योंकि वह अक्सर पास के एक मंदिर में बजरंग दल द्वारा आयोजित हनुमान चालीसा पाठ में शामिल होते थे.

उनकी मां का कहना है कि कुछ समय बाद अभिषेक "अपने धर्म और देश के प्रति जागरूक हो गए."

वो कहती हैं, “वह हमसे मुस्लिम विक्रेताओं से फल या सब्जियां खरीदने को मना करता था. वह कहता था कि हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ एकजुट होना चाहिए.”

उनकी मां राजो देवी कहती हैं कि अभिषेक ने पड़ोस के कम से कम 20 लोगों को बजरंग दल में शामिल होने के लिए मना लिया था. 

अभिषेक से प्रेरित होकर उनके चाचा संजय और उनके चचेरे भाई महेश ने भी छह महीने पहले बजरंग दल की सदस्यता ले ली थी. 

महेश खुद को "जागरूक" बनाने का श्रेय बजरंग दल को देते हैं. 25 साल के महेश स्कूल ड्रॉपआउट हैं और एक ड्राइवर हैं. उन्होंने भी नूंह की रैली में भाग लिया था और हिंसा के दौरान घायल हो गए थे. 

महेश कहते हैं, “उन्होंने (बजरंग दल) मेरी आंखें खोल दीं. मंदिर में हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद हमें पता चला कि कैसे मुसलमान अपनी जनसंख्या बढ़ाकर और हमारी जमीनों पर कब्जा करके मुगलों की तरह हम पर शासन करने की साजिश रच रहे हैं.” 

“आने वाले वक़्त में वे हमें मंदिरों में भी नहीं जाने देंगे. जब मैं नूंह गया तो मैंने देखा कि हमें जो भी बताया गया वह सच है. यह एक मिनी पाकिस्तान की तरह है.”

मालूम हो कि नूंह जिले में लगभग 80 प्रतिशत मुसलमान आबादी होने की वजह से अक्सर दक्षिणपंथी और मीडिया का एक धड़ा इस इलाके को "मिनी पाकिस्तान" की संज्ञा देते हैं. 

हरियाणा बजरंग दल के अखाड़े के प्रमुख करण सिंह ने मीडिया से कहा कि मनोहर लाल खट्टर सरकार को या तो इसका जिम्मा लेना चाहिए था या हमें हथियारों के इस्तेमाल की अनुमति दे देनी चाहिए थी.

उन्होंने कहा कि अभिषेक एक "समर्पित" सदस्य थे और उनकी मृत्यु संगठन के लिए एक "बड़ी क्षति" है.

अभिषेक के पड़ोसियों ने कहा कि उन्होंने इलाके के कई युवाओं को बजरंग दल में शामिल कराया है.

एक पड़ोसी ने कहा, “अभिषेक के समझाने के बाद मेरा बेटा भी बजरंग दल में शामिल हो गया. इन दिनों हमारी कॉलोनी के कई युवा बजरंग दल में शामिल हो रहे हैं.”

धमीजा कॉलोनी के एक मुस्लिम मीट विक्रेता बताते हैं कि  इलाके में "नफरत" धीरे-धीरे बढ़ रही है. 

वह कहते हैं,  “इस इलाके के स्थानीय लोगों ने हाल ही में खुले में मांस बेचने पर आपत्ति जतानी शुरू कर दी है. एक बार मुर्गे की पंख उड़कर सड़क पर चली गई. इस वजह से लड़ाई हो गई और इन लोगों ने हम पर अपवित्रता फैलाने का आरोप लगाया. ऐसे झगड़े अब अक्सर होने लगे हैं.”

अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर पानीपत के एक पुलिस अफसर ने कहा, “युवाओं के लिए बजरंग दल से जुड़ना एक ट्रेंड बन गया है. क्योंकि आजकल टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर यह प्रचार किया जा रहा है कि ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ होना अच्छी बात है लेकिन ये युवा अभी अपरिपक्व हैं.”

Also Read: एनएल चर्चा 278: नूंह से लेकर बरेली तक हिंसा का व्याकरण और सांप्रदायिक होता ‘चेतन’ समाज

Also Read: हरियाणा: मोनू मानेसर, अफवाह और पुलिस की लापरवाही बनी नूंह से गुरुग्राम तक सांप्रदायिक हिंसा की वजह?