NL Tippani
आदिपुरुष वाले मनोज मुंतशिर की पैंतरेबाजियां उर्फ थिएटर ऑफ एब्सर्डिटी
देश में थिएटर ऑफ एब्सर्डिटी का मंचन हो रहा है, यानी बेतुकों का रंगमंच. भारत में 21वीं सदी में इसे परवान चढ़ाया जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि फिल्म आदिपुरुष के निर्देशक ओम राउत, मनोज शुक्ला उर्फ मुंतशिर, प्रभाष और अन्य अभिनेता-अभिनेत्रियों ने मिलकर नार्कोस देखी और उड़ता पंजाब बना दिया.
मुंतशिर फिल्म की रिलीज के बाद से ही गाल बजा रहा है. इसे थिएटर ऑफ एब्सर्डिटी कहते हैं. जिन लोगों की वरदहस्त में यह छोटा पैक बड़ा धमाका करने निकला था उन्होंने ही इसकी धज्जियां उड़ा रखी हैं. कला को लेकर अक्सर रचनात्मक स्वतंत्रता की बात आती है. पर क्या मनोज मुंतशिर जैसे नफरती बयानबाज से इस रचनात्मक स्वतंत्रता की उम्मीद की जा सकती है. बिल्कुल की जा सकती है. लेकिन इस रचनात्मक स्वतंत्रता की पहली शर्त यह है कि स्वयं मुंतशिर और फिल्म से जुड़े लोग खुले मन से यह स्वीकार करते कि उन्होंने रामकथा का नया संस्करण रचने का जोखिम उठाया है. उस पर थेथरई का किवाम पोतने की जरूरत नहीं थी.
जब देश में बिपरजॉय जैसी आपदा आ रही हो तब आप यह मानकर चल सकते हैं कि हमारे खबरिया चैनल वाले नौटंकी दिखा कर रहेंगे. अरब सागर से उठा चक्रवाती तूफान बिपरजॉय 16 जून को गुजरात के तट से टकराया. लेकिन उसके पहले ही यह खबरिया चैनलों के दिमाग से टकरा चुका था. उनका मानसिक संतुलन बिगड़ चुका था. जिस दर्जे की कल्पनाशीलता चैनलों ने दिखाई उसे कल्पना की मूर्खता कहते हैं.
Also Read
-
Two years on, ‘peace’ in Gaza is at the price of dignity and freedom
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians