Khabar Baazi
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने संसद में मीडिया कवरेज की मांग को फिर दोहराया
28 मई, 2023 को नया संसद भवन देश को समर्पित किया जाएगा. हालांकि, इससे पहले ये याद दिलाना जरूरी है कि पिछले कुछ सत्रों से संसद भवन की कार्यवाही कवर करने की अनुमति पत्रकारों को नहीं दी जा रही है. प्रवेश पर लगाए कठोर प्रतिरोधों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए संसद भवन के उद्घाटन से ठीक पहले प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) ने फिर से एक बार पत्र लिख कर प्रतिबंध हटाने की मांग की है. इससे पहले भी पीसीआई कई बार लोकसभा अध्यक्ष को इस विषय में पत्र लिख चुका है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी 30 नवंबर 2021 को इस विषय में पत्र लिखा था, पर इसपर भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया.
पीसीआई के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को लिखे गए पत्र में कोविड-19 के बाद से लगे प्रतिबंधों की ओर इशारा करते हुए लिखा, “ये प्रतिबंध मीडिया को नियंत्रित करने और प्रेस की स्वतंत्रता को काबू करने का एक बड़ा एजेंडा हो सकता है.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन सहित विभिन्न मीडिया संगठनों ने प्रतिबंधों को समाप्त करने की मांग की थी.
क्लब के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा और महासचिव विनय कुमार ने पत्र में सरकार द्वारा कवरेज के लिए अपनाए गए लॉटरी सिस्टम की निंदा की एवं इसे पक्षपाती और गलत बताया. उन्होंने कहा, “स्थाई पास वालों को भी संसद कवरेज की अनुमति नहीं दी जा रही है. यह व्यवस्था निष्पक्षता के सिद्धांतों और सूचना तक समान पहुंच को कमजोर करती है.”
"चूंकि संसद में पत्रकारों के प्रवेश पर प्रतिबंध का समर्थन बिना किसी ठोस कारण या तर्क के किया गया है, हम दृढ़ता से महसूस करते हैं कि ये प्रतिबंध मीडिया को नियंत्रित करने और प्रेस की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से एक व्यापक एजेंडे का हिस्सा हैं ताकि सूचना और संवाद के स्वतंत्र और मुक्त प्रवाह को बाधित किया जा सके."
पत्र में आगे कहा गया है, “इन प्रतिबंधों ने न केवल मीडिया की संसदीय कार्यवाही पर रिपोर्ट करने की क्षमता को बाधित किया है बल्कि सरकार, मीडिया और सांसदों के बीच संचार को भी प्रभावित किया है. इस तरह के अवरोध लोकतंत्र में विचारों के आदान-प्रदान में बाधा पहुंचाते हैं और संसदीय प्रणाली की जवाबदेही और पारदर्शिता को कमजोर भी करते हैं.”
पत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी हवाला देते हुए कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस साल 5 मई को घोषित किया कि कोविड-19 अब वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल नहीं है.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए उमाकांत लखेड़ा ने कहा, “नए संसद भवन के उद्घाटन के साथ, सरकार संसदीय लोकतंत्र की जीवंतता पर जोर दे रही है. हालांकि, लोकतंत्र के विभिन्न अंगों सांसद, सरकार और मीडिया के बीच संवाद नहीं है. जिसके कारण इसे लोकतंत्र कहना अर्थहीन है. संसद ईंट-पत्थर की इमारत नहीं है बल्कि लोकतंत्र की मिसाल है और स्वतंत्र मीडिया के बिना लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता. मीडिया को दूर रखकर सरकार संचार को एकतरफा बना रही है. यह सांसदों और लोगों के लिए भारी क्षति है.”
Also Read
-
‘Not a Maoist, just a tribal student’: Who is the protester in the viral India Gate photo?
-
130 kmph tracks, 55 kmph speed: Why are Indian trains still this slow despite Mission Raftaar?
-
Supreme Court’s backlog crisis needs sustained action. Too ambitious to think CJI’s tenure can solve it
-
Malankara Society’s rise and its deepening financial ties with Boby Chemmanur’s firms
-
Govt is ‘judge, jury, and executioner’ with new digital rules, says Press Club of India