NL Tippani
2000 की नोटबंदी और बागेश्वर धाम वाले बाबा के चरणों में मीडिया
हम उस दौर में हैं जहां थूकना और चाटना दोनों मास्टरस्ट्रोक बन चुका है. मास्टरस्ट्रोक नहीं तो कम से कम सर्जिकल स्ट्राइक तो बन ही चुका है. थूकने और चाटने के इस दोतरफा कंपीटिशन के विजेता हमारे घोघाबसंत खबरिया चैनल और उसके हुड़कचुल्लू एंकर-एंकराएं हैं. इस दौर में वही लोग साहिबे मसनद हैं जो दोतरफा बयानबाजी कर सकते हैं. चित भी मेरी-पट भी मेरी. ऐसे लोगों से हमारी खबरिया चैनलों और सियासत की दुनिया भरी पड़ी है. आरबीआई ने छह साल, छह महीने बाद 2000 के गुलाबी नोटों को बंद करने की घोषणा की है. इस मौके पर थूकने और चाटने के तमाम उस्तादों का चेहरा हमारे सामने आ गया है.
गत दिनों बागेश्वर धाम वाले धीरेंद्र शास्त्री के आगे-पीछे जिस तरह से भाजपा के शीर्ष नेताओं ने लाइन लगाकर पानी भरा उसे देखते हुए आशंका बढ़ गई है कि आने वाले दिनों में बिहार की सियासत में धर्म का विकृत रूप देखने को मिलेगा. एक अदने से कर्मकांडी बाबा की आरती उतारने की होड़ नेताओं में दिखी. सरकार का विकल्प कोई कर्मकांडी बाबा नहीं हो सकता. सरकार अगर जनता की उम्मीदों को पूरा करने में असफल रही है तो इसकी वजहें बहुत सारी हैं. उनमें से एक वजह सुधीर चौधरी जैसे एंकर और आज तक जैसे तमाम चैनल भी हैं जिन्होंने सरकार की जी-हुजूरी की दौड़ में जनता के मुद्दों से दूरी बना ली है. धीरेंद्र शास्त्री बस भटकाव का साधन है जिसे सुधीर चौधरी और अन्य एंकर एंकराएं रोज़ाना इस्तेमाल करते हैं.
Also Read
-
TV Newsance 310: Who let the dogs out on primetime news?
-
If your food is policed, housing denied, identity questioned, is it freedom?
-
The swagger’s gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream
-
Inside Dharali’s disaster zone: The full story of destruction, ‘100 missing’, and official apathy
-
August 15: The day we perform freedom and pack it away