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भारत के प्रोजेक्ट चीता पर फिर उठे सवाल, आठ महीनों में तीन चीतों की मौत

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में 9 मई की सुबह पौने 11 बजे अफरातफरी मच गई. वजह थी मॉनिटरिंग टीम ने एक मादा चीते को बाड़े में घायल देखा. आनन-फानन में इलाज शुरू किया गया लेकिन एक घंटे के भीतर ही इस चीते ने दम तोड़ दिया. यह मादा चीता-दक्षा, दक्षिण अफ्रीका से फरवरी में लाए गए 12 चीतों में से एक थी. दक्षा की मौत का आधिकारिक कारण दूसरे चीतों का हमला बताया गया है. हमला करने वाले दो नर चीते वायु और अग्नि हैं, जिन्हें 'व्हाइट वॉकर' के नाम से भी जाना जाता है.

मध्य प्रदेश के वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) जसवीर सिंह चौहान ने कहा, "मॉनिटरिंग दल द्वारा 9 मई 2023 को पौने ग्यारह बजे (दक्षा को) घायल अवस्था में पाया गया था. पशु चिकित्सकों द्वारा इसका उपचार भी किया गया. दक्षा चीता बाड़ा क्रमांक एक में छोड़ी गई थी तथा समीप के बाड़ा क्रमांक 7 में दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीता कोयलिशन वायु तथा अग्नि को छोड़ा गया था."

मृत्यु की वजह बताते हुए उन्होंने कहा, "मादा चीता दक्षा के शरीर पर पाए गए घाव प्रथम दृष्टया नर से हिंसक इन्टरेक्शन, संभवत: मेटिंग के दौरान होना प्रतीत होता है."

दक्षा को दोनों नर चीतों से मिलाने का फैसला 30 अप्रैल को कूनो में हुई एक बैठक के दौरान लिया गया था. इस बैठक में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के महानिरीक्षक डॉ. अमित मल्लिक, भारतीय वन्य-जीव संस्थान के डॉ. कमर कुरैशी, दक्षिण अफ्रीका से आये प्रो. एड्रियन टोर्डिफ और चीता मेटापोपुलेशन इनिशियटिव के विन्सेंट वैन डेर मर्व मौजूद रहे.

बैठक में मौजूद दक्षिण अफ्रीकी चीता विशेषज्ञ और चीता मेटापोपुलेशन संस्था के प्रबंधक विन्सेंट वैन डेर मर्व इन दोनों चीतों के व्यवहार से परिचित हैं. उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी के साथ बातचीत में बताया, "वायु और अग्नि भारत लाए जाने से पहले फिंडा प्राइवेट गेम रिजर्व में रहते थे. ये दोनों नर पहले भी ऐसा व्यवहार दिखा चुके हैं."

व्हाइट वॉकर यानी वायु और अग्नि साथ रहते हैं. चीता के नर जोड़ी को मेल कोयलिशन कहा जाता है.

हमला करने वाले दो नर चीते वायु और अग्नि. इन्हें ‘व्हाइट वॉकर’ के नाम से भी जाना जाता है. यह तस्वीर दक्षिण अफ्रीका के फिंडा प्राइवेट गेम रिजर्व की है जहां इन चीतों ने इसी तरह एक मादा पर हमला किया था. हालांकि, तब मादा को कोई नुकसान नहीं हुआ था. तस्वीर साभार- विन्सेंट वैन डेर मर्व/चीता मेटापोपुलेशन इनिशियटिव

वैन डेर मर्व ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा, "बाड़े में इससे पहले चीतों को मिलाया गया था, और इसी वजह से कूनो में चार शावकों का जन्म भी हुआ है. अफसोस की बात है कि इस घटना में दक्षा की जान चली गई. हमने अनुमान नहीं लगाया था कि वे मादा को मार डालेंगे, लेकिन दुर्भाग्य से उन्होंने ऐसा किया."

वह आगे कहते हैं, "नर चीतों के लिए एक दूसरे के साथ-साथ मादा चीतों के प्रति आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करना कोई असामान्य बात नहीं है. दक्षिण अफ्रीका में 8 प्रतिशत चीतों की जान आपस में लड़ाई की वजह से चली जाती है."

यह पहला मौका नहीं जब प्रोजेक्ट चीता को झटका लगा हो. कूनो नेशनल पार्क में बीते दो महीने में दक्षिण अफ्रीकी चीता उदय और नामीबिया की मादा चीता साशा की भी मौत हो चुकी है.

भारत के जंगलों में एशियाई चीता पाया जाता था जो कि 70 साल पहले विलुप्त हो चुका था. प्रोजेक्ट चीता के तहत देश के जंगलों में 70 साल बाद चीतों को वापस लाया गया. इसके लिए अफ्रीकी चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाया जा रहा है.

प्रोजेक्ट चीता के तहत कूनो में पहली बार सितंबर 2022 को नामीबिया से आठ चीते लाए गए थे. इसके बाद फरवरी 2023 में और 12 चीते दक्षिण अफ्रीका से लाए गए. बीते आठ महीनों में प्रोजेक्ट चीता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

आधे चीतों की जान संकट में

योजना के मुताबिक अगले दो महीनों में तीन दक्षिण अफ़्रीकी चीतों को खुले जंगल में छोड़ा जाना है/ बचे हुए सात चीतों को बड़े बाड़े में रखा जाएगा.

चीता मेटापॉपुलेशन संस्था के मुताबिक छोड़े गए चीतों में से कई कूनो नेशनल पार्क की सीमाओं से बाहर निकल जाएंगे और उन्हें पुनः कब्जा करने की प्रक्रिया के दौरान अल्पकालिक तनाव से गुजरना पड़ सकता है.

वैन डेर मर्व बताते हैं कि चीता में स्वाभाविक रूप से मृत्यु दर अधिक होती है. दक्षिण अफ्रीका में 41 प्रतिशत चीते जंगल में छोड़ने के पांच साल के भीतर ही मर गए.

"आने वाले समय में कठिन परीक्षा होने वाली है. हमें आशंका है कि 20 चीतों में से अप्रैल 2023 तक 10 ही जीवित बचेंगे." वैन डेर मर्व ने सवालों का जवाब देते हुए कहा.

कूनो राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य द्वार. तस्वीर- मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे

क्या चीतों के लिए पर्याप्त है कूनो का जंगल

जानकार मानते हैं कि अफ्रीकी चीता आमतौर पर घुमक्कड़ स्वभाव के होते हैं और बाड़े से छोड़े जाने पर लंबी यात्राएं करना पसंद करते हैं. ऐसा भारत लाये गए चीतों के साथ भी देखा जा रहा है. नामीबिया से लाए गए दो चीते आशा और पवन बीते दिनों कई बार बाड़े से दूर भटकते नजर आए.

बीते दो हफ़्तों में आशा कूनो के विजयपुर रेंज में पाई गई. इससे पहले चीता पवन (ओबान) भी कूनो से बाहर भागकर उत्तर प्रदेश की सीमा तक पहुंच गया था.

चीतों के इस व्यवहार को मद्देनजर रखते हुए कई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं. नामीबिया में लीबनिज-आईजेडडब्ल्यू के चीता अनुसंधान परियोजना के वैज्ञानिकों का तर्क है कि दक्षिणी अफ्रीका में, चीता व्यापक रूप से फैले क्षेत्रों में रहता है और एक चीता को 100 वर्ग किलोमीटर का दायरा मिलता है. अप्रैल 2023 में कंज़र्वेशन साइंस एंड प्रैक्टिस में प्रकाशित एक शोध पत्र में शोधकर्ता कहते हैं कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान छोटा होने के कारण, चीता पार्क की सीमाओं से बहुत आगे निकल सकते हैं.

कूनो राष्ट्रीय उद्यान लगभग लगभग 748 वर्ग किमी में फैला है जो कि चारों तरफ से खुला हुआ है.

शोध पत्र की मुख्य लेखिका डॉ बेटिना वाचर ने बताया, "चीते की एक अनूठी सामाजिक-स्थानिक प्रणाली है, जिसमें कुछ नर अपना इलाका बनाकर रखते हैं, लेकिन जिन्हें इलाका नहीं मिलता वह एक बड़े इलाके में घूमते रहते हैं. इसी तरह मादा भी एक नर से दूसरे नर के इलाके में घूमती रहती है."

उन्होंने आगे कहा, "दक्षिण अफ्रीका में चीतों का नियमित रूप से स्थानांतरण किया जाता है, लेकिन केवल ऐसे रिजर्व में जो चारो तरफ से घिरे हों."

चीतों के दूर-दूर भटकने के सवाल पर वैन डेर मर्व कहते हैं, "रिलीज के बाद शुरुआती 6 महीने की अवधि के दौरान चीता व्यापक खोजी गतिविधियों का प्रदर्शन करते हैं. उन्हें एक्सप्लोर करने दें. उनका लगातार पीछा नहीं किया जाना चाहिए, न ही बेहोश कर वापस लाना चाहिए."

वह सुझाव देते हैं कि चीता का यह प्राकृतिक व्यवहार है. उसे प्रकट होने देना चाहिए.

"जंगली चीते इंसानों के लिए खतरा नहीं हैं. कुछ पशुधन नुकसान हो सकता है, लेकिन इसके लिए मुआवजा दिया जा सकता है" उन्होंने आगे कहा.

जंगली जीवों के व्यवहार पर भारत के वन्यजीव विशेषज्ञ रवि चेल्लम कहते हैं, "जानवर भटकते नहीं हैं. उनकी पारिस्थितिक और व्यवहार संबंधी ज़रूरतें जानवरों की आवाजाही तय करती हैं."

चेल्लम मेटास्ट्रिंग फाउंडेशन के सीईओ और बेंगलुरु में बायोडायवर्सिटी कोलैबोरेटिव के समन्वयक भी हैं.

वह बताते हैं कि जंगली जानवर प्रशासनिक सीमाओं को नहीं पहचानते हैं और पारिस्थितिक सीमाओं और उनके जोखिम की धारणा के साथ काम करते हैं.

चेल्लम कहते हैं कि चीते, विशेषकर नर, अपने आवास की खोज में दूर-दूर तक जाते हैं. उन्हें चलने के लिए सड़कों, साइनबोर्ड या यातायात संकेतों की आवश्यकता नहीं होती है. उन्हें 'भटकने' से रोकने की कोशिश केवल समस्याओं को बढ़ाता है. इसके बजाए चीतों को अपना इलाका स्थापित करने और घरेलू रेंज में बसने के लिए उपयुक्त आवास प्रदान करने पर ध्यान देना चाहिए.

भारत में एशियाई चीते पाए जाते थे जो अब विलुप्त हो चुके हैं. अब यहां अफ्रीकी चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाया जा रहा है. तस्वीर साभार- चीता कंजर्वेशन फंड

क्या तनाव में हैं चीते?

एक के बाद एक तीन चीतों की मौत के बाद प्रोजेक्ट चीता को लेकर सवाल उठ रहे हैं. हालांकि, बीच में मादा चीता सियाया ने चार शावकों को जन्म दिया जिसे प्रोजेक्ट की सफलता के रूप में देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि चीता तनाव से बाहर आ रहे हैं.

डॉ बेटिना वाचर चीतों में तनाव के मुद्दे पर कहती हैं, "चीता का प्रजनन करना यह नहीं दिखाता कि चीता माहौल के साथ ढल रहे हैं. कई शोध बताते हैं कि चीते तनाव में भी प्रजनन करते हैं."

तनाव के सवाल पर वैन डेर मर्व कहते हैं, "दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने 12 दक्षिण अफ्रीकी चीतों को भारत में स्थानांतरित करने की मंजूरी देने में 7 महीने का समय लिया. इस दौरान चीते कैद में थे, जहां उनकी फिटनेस और सतर्कता खराब हुई. भारत में आने के बाद उन्हें दोबारा 2 महीनों के लिए बंद रखा गया."

चीतों के बाड़े में रहने की अवधि का हिसाब लगाते हुए वह कहते हैं, "चीतों को खुले जंगल से पकड़कर 9 महीने के लिए बंद कर दिया गया. इसका मतलब उन्होंने अपने जीवनकाल का 8 प्रतिशत समय पिंजरों में बिताया."

आने वाले समय में होने वाले स्थानांतरण के लिए वह सलाह देते हैं कि चीतों को दो महीने से अधिक क्वारंटाइन में न रखा जाए. एक महीने दक्षिण अफ्रीका में और एक महीने भारत में.

“ऐसा करने से चीते का स्वास्थ्य, फिटनेस, सतर्कता बरकरार रहेगा और यह सुनिश्चित होगा कि हम एक्टिव और फिट चीतों को जंगल में छोड़ रहे हैं,” उन्होंने कहा.

कूनो नेशनल पार्क स्थित चीतों के लिए बनाया गया बाड़ा. अगले दो महीनों में तीन दक्षिण अफ़्रीकी चीतों को खुले जंगल में छोड़ा जाना है. बचे हुए सात चीतों को बड़े बाड़े में रखा जाएगा. तस्वीर साभार- चीता कंजर्वेशन फंड

क्या सही राह पर है प्रोजेक्ट चीता?

प्रोजेक्ट चीता शुरू से ही विवादों में रहा है. भारत में विलुप्त होने से पहले एशियाई चीते पाए जाते थे, लेकिन प्रोजेक्ट चीता के तहत अफ्रीकी चीतों को लाया गया है. चीतों के जानकार इस प्रोजेक्ट पर कई तरह के सवाल उठाते रहे हैं. भारत में चीता लाए जाने के कुछ ही सप्ताह बाद इस प्रोजेक्ट के प्रमुख वैज्ञानिक और चीतों को भारत लाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिक प्रोफेसर यादवेंद्र झाला को चीता टास्क फोर्स से अलग कर दिया. प्रोफेसर झाला से इस बारे में बातचीत करने की कोशिश की लेकिन अभी तक उनका कोई जवाब नहीं आया है.

इस परियोजना को लेकर शुरू से ही मुखर रहे चेल्लम ने कहा कि देश में चीतों को जल्दबाजी में लाया गया और इस योजना की स्वतंत्र समीक्षा होनी चाहिए.

वैन डेर मर्व भी मानते हैं कि झाला का परियोजना से दूर होना परियोजना के लिए एक बड़ा झटका था. वह कहते हैं कि प्रो. झाला को तत्काल प्रभाव से परियोजना पर प्रमुख वैज्ञानिक के रूप में बहाल किया जाना चाहिए.

परियोजना से संबंधित कुछ और चुनौतियों का जिक्र करते हुए वह कहते हैं, "भारत में बाड़े में बंद चीतों को भैंस और बकरियों का मांस खिलाया जा रहा है. यहां जंगली जीवों का शिकार वैध नहीं है. चीते का भोजन छोटे आकार के शाकाहारी जंगली जीव होते हैं. इन जानवरों का पूरा शरीर इन्हें मिले ताकि वह अपने पसंद के अंग खा सकें जो कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है."

वह कूनो के अलावा, राजस्थान स्थित मुकुंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान को भी चीतों के लिए वैकल्पिक आवास बनाने की सलाह देते हैं. "आप अपने सारे अंडे एक ही टोकरी में नहीं रख सकते. मुकुंदरा टाइगर रिजर्व पूरी तरह से घिरा हुआ है," वह कहते हैं.

(साभार- MONGABAY हिंदी)

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