Karnataka Election 2023 NL Hindi
धारवाड़ में दांव पर लगी प्रतिष्ठा: हर हाल में अपने किले को बचाने में जुटे बीजेपी के दलबदलू
इस सीट पर कौन काबिज होगा? बीजेपी या श्री शेट्टार?
अपने पति जगदीश शेट्टार के चुनाव प्रचार में व्यस्त शेट्टार को कभी यह उम्मीद नहीं थी कि एक दिन उनसे ऊपर लिखा यह सवाल भी पूछा जाएगा जो कि इन दिनों उनके घर (केशवपुर रोड स्थित) आने वाले मेहमान उनसे पूछ रहे हैं. आखिर शेट्टार कर्नाटक के धारवाड़ जिले के हुबली-धारवाड़ सेंट्रल निर्वाचन क्षेत्र की सीट पर पिछले तीन दशकों से बीजेपी के विधायक निर्वाचित होते आ रहे हैं.
लेकिन इस बार कर्नाटक के 67 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री, कर्नाटक बीजेपी के महासचिव महेश टेंगीनकाई के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. महेश और शेट्टार दोनों ही लिंगायत समुदाय के बाणाजिंगा उपपंथ से आते हैं.
शेट्टार को उत्तरी कर्नाटक में लिंगायतों के वोट बीजेपी की ओर खींचने के लिए जाना जाता है. साथ ही वो एक ऐसे परिवार से आते हैं जिसका जुड़ाव आरएसएस से है लेकिन बीजेपी द्वारा हुबली-धारवाड़ सेंट्रल सीट से महेश टेंगीनकाई को चुनाव लड़ाने के फैसले के बाद बीते 17 अप्रैल को शेट्टार कांग्रेस में शामिल हो गए. अपने इस फैसले की घोषणा करने के बाद बीजेपी ने कुछ इस तरह के संकेत दिए कि शेट्टार को दिल्ली में कोई जिम्मेदारी सौपने की बात सोची जा रही है.
बात सिर्फ शेट्टार की नहीं है. बीजेपी ने खुले तौर पर कई जिलों में सत्ता परिवर्तन की लहर को महसूस करने के बाद वर्तमान 115 विधायकों में से 20 विधायकों को टिकट देने से इंकार कर दिया है. इनमें उपमुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा जैसे कुछ कद्दावर लिंगायत नेता भी शामिल हैं. इन 20 में से आधे विधायकों ने पार्टी बदल डाली जिनमें शेट्टार भी शामिल हैं जबकि ईश्वरप्पा जैसे बाकी नेताओं ने पार्टी के फैसले को मान लिया.
लिंगायत समुदाय की भावना
लिंगायतों की जनसंख्या राज्य की कुल जनसंख्या का 18 प्रतिशत है और बतौर मतदाता राज्य भर की 224 विधानसभा सीटों में से 100 पर इनका दबदबा है.
लिंगायत गौरव पर एक कथित चोट के बाद बीजेपी को 2013 के चुनावों में उनके 20 प्रतिशत कम वोट पाकर इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी. और शेट्टार उसी भावना को हथियार बनाकर- खुद को टिकट न मिलने को लिंगायत समुदाय के गौरव से जोड़कर दिखाकर बीजेपी पर निशाना साध रहे हैं.
हुबली और धारवाड़ के बीच में स्थित इस विधानसभा सीट में करीब 73000 लिंगायत वोट, 43000 मुसलमान वोट, अनूसूचित जाति व अनूसूचित जनजाति के 32000 वोट, ईसाई समुदाय के 26500 वोट, 22000 ब्राह्मण वोट और अन्य समुदायों के करीब 22700 वोट हैं.
अपने चुनाव प्रचार अभियान में शेट्टार लिंगायत समुदाय के नेताओं से यह कह रहे हैं कि बीजेपी ब्राह्मण नेताओं की जगह बनाने के लिए (उन्होंने यह उडुपी से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष और विजयपुरा से केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी की ओर इशारा करते हुए कहा) पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा जैसे कद्दावर लिंगायत नेताओं को हाशिए पर धकेल रही है.
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर उन्होंने सीधे-सीधे चुप्पी साध रखी है. उनके घर की दिवारें मोदी, शाह और बीजेपी के दिग्गज नेता रहे अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीरों से सुशोभित हैं. इस पर शिल्पा शेट्टार का कहना है कि "हमें इन लोगों से कोई समस्या नहीं है. ये तो राज्य बीजेपी के लोग हैं जिन्होंने हमें धोखा दिया है."
विकास का मुद्दा नदारद
इस सब के बीच बीजेपी जनता के बीच यह संदेश फैलाने की कोशिश कर रही है कि शेट्टार ने कांग्रेस में शामिल होकर लिंगायतों को धोखा दिया है. शेट्टार के पार्टी छोडने के बाद बीजेपी ने एक आक्रामक चुनावी अभियान चलाया जिसमें मोदी, शाह और येदियुरप्पा की रैलियां और स्थानीय लिंगायत नेताओं का घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करना शामिल है.
जहां एक ओर बीजेपी हिंदुत्व और कल्याणकारी नीतियों के एक खास सम्मिश्रण तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अपना चुनावी दांव खेल रही है जबकि दोनों ही पार्टियों ने विकास से जुड़े मुद्दों को बमुश्किल घर-घर जाकर प्रचार के दौरान ही उठाया होगा.
धारवाड़ जिले में कांग्रेस से अब तक केवल दो शीर्ष नेताओं - मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियंका गांधी- ने ही प्रचार किया है.
धारवाड़ से बीजेपी के प्रवक्ता रवि नाईक का कहना है कि "मुख्य बात यह है कि हम लोगों को इस व्यक्ति के बारे में समझा रहे हैं...दूसरी बात जो हम लोगों तक पहुंचा रहे हैं वो यह कि इस निर्वाचन क्षेत्र के विकास से शेट्टार का कोई लेनदेना नहीं है. फंड्स राज्य और केंद्र सरकार की ओर से आते हैं. हम उन्हें बता रहे हैं कि यह सब प्रह्लाद जोशी की कड़ी मेहनत का नतीजा है."
हुबली-धारवाड़ सेंट्रल सीट से 16 उम्मीदवार आस लगाए बैठे हैं. इन उम्मीदवारों में शेट्टार और टेंगीनकाई के अलावा जनता दल-सेक्युलर के उम्मीदवार सिद्दालिंगेश गोवड़ा महंता वोडेयार एक प्रमुख चेहरा हैं.
हालांकि यह मुकाबला त्रिकोणीय नहीं लगता क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों में जनता दल-सेक्युलर इस सीट पर महज 10,000 के करीब वोटों तक ही सिमट कर रह गई थी.
बीजेपी की निगरानी
जहां शेट्टार का दावा है कि उनके पार्टी से निकलने पर बीजेपी को कम से कम 20 सीटों पर इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. वहीं उनके प्रचार अभियान में जुटे सूत्रों का कहना है कि शेट्टार को टिकट मिलने से कांग्रेस के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में "निराशा" होने की वजह से कथित तौर पर उनके समर्थन की कमी और शेट्टार के समर्थकों पर बीजेपी की "निगरानी" ने इस दावे पर पानी फेर दिया है.
ऐसे संकेतों के बीच कि पार्टी शेट्टार को मैदान में नहीं उतारेगी. धारवाड़ जिले में बीजेपी के 16 निगम पार्षदों और पार्टी दफ्तर के 49 पदाधिकारियों ने लिंगायत नेता शेट्टार के समर्थन में इस्तीफा दे दिया. हालांकि बाद में उन्होंने अपने इस्तीफे वापस ले लिए लेकिन बीजेपी ने पार्टी के पदों से 27 लोगों को हटा दिया.
रवि नाईक ने कहा, "पार्षद पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर प्रचार का काम करते हैं. वो मतदाताओं को प्रभावित करते हैं. बीजेपी में रहते हुए आप विपक्ष के लिए काम नहीं कर सकते. इसीलिए हम थोड़ी निगरानी कर रहे हैं और हम ये काम करना बखूबी जानते हैं. अगर हम पाते हैं कि कुछ लोगों की सहानुभूति शेट्टार की ओर है तो हम और भी लोगों को पार्टी से निकाल बाहर करेंगे."
एक पार्षद जो अपना नाम उजागर नहीं करना चाहता था, ने कहा, "पार्टी लगातार हम पर नजर रखे हुए है. आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि यह कितना बुरा है. हर वक्त कोई हमारे घर के बाहर खड़ा रहता है और हम जहां भी जाते हैं वो हमारा पीछा करता है. हमारे फोन भी टैप किए जा रहे हैं."
नाईक फोन टैपिंग के आरोपों से इंकार करते हैं और पार्टी द्वारा "नजर रखे जाने" के बारे में विस्तार से कुछ नहीं कहते.
पूर्व पार्षद महेश बुर्ली उन 27 लोगों में से एक हैं जिन्हें पार्टी से निकाल दिया गया है और अब वो शेट्टार की टीम में शामिल हो चुके हैं. उन्होंने कहा, "हर वक्त हमारा पीछा किया जा रहा है. मैंने अपना फोन दो दिनों के लिए स्विच ऑफ कर दिया था."
सिमटता जनाधार?
शेट्टार के घर में अल-सुबह चहल-पहल दिखना कोई खास बात नहीं है. वो क्षेत्र भर में अपने सारे कार्यक्रम निपटाने के बाद ही घर पर अपने अगले दिन की कार्य योजना बनाने के लिए लौटते हैं.
शिल्पा शेट्टार का कहना है कि, "बीजेपी के फैसले के कारण मेरे परिवार को शारीरिक और मानसिक तौर पर एक कठिन दौर से गुजरना पड़ा. मेरा बड़ा बेटा एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और उसकी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है. लेकिन अपने पिता को नैतिक समर्थन देने के लिए वो पहली बार चुनाव के कामों में लग रहा है. हमारे लिए यह करो या मरो की घड़ी है."
हालांकि शेट्टार के खिलाफ बीजेपी के प्रचार अभियान ने जमीन पर कुछ जोर पकड़ा है. शेट्टार ने पिछले विधानसभा चुनावों में अब तक के अपने राजनैतिक कैरियर में सबसे बड़े फासले (20,000 वोटों) के साथ जीत दर्ज की थी.
केबी आंगरी नामक एक लिंगायत ने कहा, "लिंगायतों के साथ बीजेपी है न कि कांग्रेस. शेट्टार ने हमें धोखा दिया है. कांग्रेस बोम्मई जैसे नेताओं को भ्रष्ट बताकर लिंगायत नेताओं को बदनाम कर रही है. असल में वे ही भ्रष्ट हैं. डीके शिवकुमार जैसे कांग्रेस नेताओं के खिलाफ सीबीआई के मामले चल रहे हैं न कि बीजेपी के नेताओं के खिलाफ."
केशवपुर निवासी सरोजिनी हेरामठ एक 60 साल की लिंगायत महिला हैं उनका कहना है, "इस क्षेत्र में बीजेपी ही सत्ता में आएगी. शेट्टार ने इस निर्वाचन क्षेत्र की किसी समस्या का समाधान नहीं किया; सड़कों का निर्माण नहीं किया गया, हमें पीने के पानी की नियमित आपूर्ति नहीं कि जाती. हम उनसे कई बार शिकायत कर चुके हैं लेकिन वो हमारी बिल्कुल नहीं सुनते. पहले भी हम उनके नाम पर बीजेपी को वोट नहीं करते थे. हम बीएस येदियुरप्पा, बोम्मई और खास तौर से मोदी जैसे नेताओं के लिए वोट कर रहे थे."
हालांकि सुरेश कोटरी नामक एक लिंगायत व्यापारी ने कहा, “शेट्टार के नेतृत्व में ही बीजेपी को उत्तरी कर्नाटक में जमीनी स्तर पर लामबंद किया गया. शून्य से 74 सीटों का फासला तय किया गया. हर कोई पार्टी के प्रति उनके योगदान के बारे में जानता है. वो लिंगायतों के बाणाजिगा उपपंथ से आते हैं और मुझे पूरा भरोसा है कि इस बार बाणाजिगा बीजेपी के खिलाफ ही वोट करेंगे."
बसवराज बोम्मई की सरकार द्वारा मुसलमान आरक्षण का चार प्रतिशत कोटा हटाकर उसे वोक्कालिगा और लिंगायतों के बीच बांट दिए जाने जैसे फैसलों के साथ ही बीजेपी की सरकार से जुड़ी कई अन्य सांप्रदायिक किस्म की चीजों- हिजाब बैन से लेकर धर्म परिवर्तन कानून तक ने कुछ मतदाताओं के दिलों में थोड़ी जगह बनाई है.
शेट्टार के चुनाव प्रचार अभियान के प्रबंधक शक्तिराज डांडेली ने हमसे कहा, "घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करने के अभियान के दौरान हम लोगों को बता रहे हैं कि बीजेपी ने शेट्टार को धोखा दिया है. लेकिन उन लोगों को भड़काया जा रहा है और उनको लग रहा है कि शेट्टार ने बीजेपी को धोखा दिया है और वो सत्ता के भूखे हैं. यही हमारी सबसे बड़ी चुनौती है.
हनुमान मंदिर के बाहर बैठे शिपात्रापा संभालेगी एक लिंगायत मतदाता हैं, उन्होंने हमसे कहा, "देश नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विकास कर रहा है. भारत एक ग्लोबल सुपरपावर बनकर उभर रहा है. वो एक राजा की तरह शासन कर रहे हैं."
वहीं आंगरी ने कहा, "कांग्रेस ने हमेशा मुसलमानों का समर्थन किया है और उन्हें आरक्षण दिया है. हिजाब पर प्रतिबंध लगाकर भी बीजेपी ने उचित कार्य किया है. अपनी धार्मिक पहचान की चीजों को शैक्षणिक संस्थानों में पहनकर जाने का क्या ही मतलब है? क्या हम भी भगवा गमछा पहनना शुरू कर दें?
हालांकि धारवाड़ में सांप्रदायिकता की जड़े काफी गहरी हो चुकी हैं.
दशकों से चल रहा ध्रुवीकरण
90 के दशक की शुरुआत में राम जन्मभूमि आंदोलन के चरम पर बीजेपी ने एक और अभियान चलाया, और वो था ईदगाह मस्जिद पर तिरंगा फहराने का अभियान. 1921 में ईदगाह मस्जिद मुस्लिम संगठन अंजुमन ए इस्लाम को हुबली-धारवाड़ सिटी कॉर्पोरेशन द्वारा ईद की इबादत के लिए 999 साल की लीज पर दी गई थी.
1994 में जब बीजेपी नेता उमा भारती, अनंत कुमार हेगड़े और लिंगराज पाटिल ने मस्जिद पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए सुरक्षाकर्मियों को झांसा देकर आगे बढ़े तो इस कारण हुई सांप्रदायिक हिंसा में छह लोगों की मौत हो गई.
यह शहर सांप्रदायिक तनावों का केंद्र बन गया और कर्नाटक में सांप्रदायिक राजनीति के लिए रास्ता खोल दिया, यह शहर ऐसी कुछ घटनाओं का गवाह भी बना.
पिछले साल श्री राम सेने, विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने उसी ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया. और बीते दिसंबर में बैरिदेवरकोप्पा के नजदीक स्थित एक मुस्लिम धर्म स्थल को हुबली-धारवाड़ बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम प्रोजेक्ट के तहत सड़क चौड़ीकरण के लिए तोड़ दिया गया.
भूमि अधिग्रहण पर सवाल उठाते हुए विपक्ष के कुछ नेताओं ने बीजेपी सरकार पर हमला बोला.
जाति जनगणना, मुस्लिम कोटा और बजरंग दल पर प्रतिबंध के वादे के साथ कांग्रेस इस बार कर्नाटक में सत्ता में वापसी की आस लगाए बैठी है.
वरिष्ठ वकील और अंजुमन ए इस्लाम के उपाध्यक्ष एमआर मुल्ला ने कहा, "यह चुनाव हमारे लिए बहुत अहम है. इसीलिए बीजेपी के तमाम राष्ट्रीय नेता यहां रैली करने आ रहे हैं. हम यहां अल्पसंख्यक समुदाय की कुछ बैठके संचालित कर रहे हैं और हमने ऐसा महसूस किया है कि इस बार मुस्लिम समुदाय की ओर से 5-10 प्रतिशत अधिक मतदान होंगे. साथ ही हम जगदीश शेट्टार का भी बहुत सम्मान करते हैं, उनका उस धर्म स्थल की तोड़फोड़ से कोई लेना देना नहीं है इसलिए हम उनका सम्मान करते हैं."
एक दूसरे वोटर ने कहा, "मोदी ने हमारे भीतर एक डर का एहसास भर दिया है. अब हम अपनी बात नहीं कह पाते. लेकिन हमें अल्लाह पर भरोसा है. इस बार हम पहले से ज्यादा संख्या में वोट करने जाएंगे, ताकि हम बीजेपी को इस क्षेत्र से बाहर कर दें."
(स्वतंत्र पत्रकार शिवराज जी अराकेरी के सहयोग से)
Also Read
-
India’s real war with Pak is about an idea. It can’t let trolls drive the narrative
-
How Faisal Malik became Panchayat’s Prahlad Cha
-
Explained: Did Maharashtra’s voter additions trigger ECI checks?
-
‘Oruvanukku Oruthi’: Why this discourse around Rithanya's suicide must be called out
-
Mystery shutdown of both engines seconds after take-off: Air India crash probe