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बागेश्वर बाबा उर्फ धीरेंद्र शास्त्री: आस्था का दोहन, सियासत की शह और चमत्कार का तड़का
नवम्बर 2022 के पहले हफ्ते की एक रात को तकरीबन साढ़े 12 बजे 26 साल के संतोष सिंह बदहवास अपने घर की तरफ दौड़े जा रहे थे. उस रात छतरपुर (मध्य प्रदेश) जिले के गढ़ा गांव में रहने वाले संतोष की तीन एकड़ ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया था. उस जमीन पर मौजूद संतोष की 27 दुकानों को तोड़ दिया गया था. तकरीबन 100 लोगों का हुजूम एक बुलडोजर लेकर उनकी जमीन पर कब्जा करता जा रहा था. संतोष ने उनसे गुहार लगाई तो हमलावर हिंसक हो गए. इसके बाद संतोष को अपनी जान बचाकर वहां से भागना पड़ा.
उस रात संतोष की जमीन पर कब्जा करने वाली भीड़ बागेश्वर धाम के ख्याति प्राप्त बाबा धीरेंद्र शास्त्री के समर्थक और परिजन थे.
भूत-प्रेत भगाने और भविष्य ज्ञान का दावा करने वाले धीरेंद्र शास्त्री पिछले कुछ दिनों से खासी चर्चा में हैं. चर्चा का पहला सबब उनका पांच जनवरी से 13 जनवरी के बीच नागपुर का दौरा रहा. वो नागपुर कथा वाचन और अपने कथित चमत्कार का प्रदर्शन करने गए थे. वहां पर अखिल भारतीय अंध-श्रद्धा निर्मूलन समिति के प्रमुख श्याम मानव ने शास्त्री को अपना दावा सिद्ध करने की चुनौती दे डाली. इसके बाद शास्त्री अपना कार्यक्रम बीच में ही छोड़कर नागपुर से निकल गए.
शास्त्री अपनी रामकथाओं के दौरान दिव्य दरबार और प्रेत दरबार लगाते हैं. इस दौरान वो लोगों की समस्याएं अपनी चमत्कारिक शक्तियों के जरिए दूर करने का दावा करते हैं. इन्हीं चमत्कारी गतिविधियों को लेकर अखिल भारतीय अंध-श्रद्धा निर्मूलन समिति ने उन्हें चुनौती दी थी.
4 नवम्बर को संतोष और उनके चचेरे भाई सुम्मेर सिंह ने बमीठा पुलिस थाने में धीरेंद्र गर्ग, उनके भाई लोकेश गर्ग पर ज़बरन जमीन की रजिस्ट्री करवाने की और जान से मारने की धमकी देने की शिकायत दर्ज करवाई.
कौन हैं छतरपुर के गढ़ा गांव स्थित बागेश्वर धाम के मुखिया धीरेंद्र शास्त्री? कैसे वो इतनी कम उम्र में इतनी शोहरत पा गए? क्यों टीवी चैनल वाले उनके आगे-पीछे दुम दबाकर घूम रहे हैं. यह सब जानने से पहले हम संतोष की कहानी जान लेते हैं जो उस दिन आधी रात को शास्त्री के लोगों से अपनी जान बचाकर भागे थे.
ज़मीनों पर कब्ज़ा, दुकानों-घरों पर बुलडोज़र
संतोष सिंह घोसी बताते हैं, "उस रात धीरेंद्र शास्त्री के लोगों ने हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया. वो हमारी पुश्तैनी ज़मीन थी. इसका रकबा करीब तीन एकड़ था. शास्त्री के लोग उस रात बुलडोज़र लेकर आये और हमारी 27 दुकानें तोड़ दीं. हमने वो दुकानें किराए पर दे रखी थीं. बागेश्वर धाम का मंदिर हमारी ज़मीन के बीचों बीच है. शास्त्री को परिक्रमा का क्षेत्र बढ़ाना था, इसलिए उन्होंने हमारे ढाबे, दुकानें तोड़ दीं. हमने छह दिन तक कलेक्ट्रेट में धरना दिया, लेकिन हमारी कोई सुनवाई नहीं हुयी. शास्त्री का दबदबा है. उनके रिश्तेदार और सेवादार दादागिरी करते हैं. अगर हम उस रात वहां से नहीं भागते तो हमारी जान पर बन आती."
इससे लगभग दो महीने पहले भी धीरेंद्र शास्त्री ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए संतोष की दुकानें तुड़वाई थीं. तब संतोष और उनके परिवार ने राजनगर तहसील में प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था. अदालत ने संतोष के हक़ में फैसला सुनाते हुए निर्देश जारी किया था कि जब तक मामला लंबित है तब तक संतोष और उनके परिवार की भूमि पर कोई हस्तक्षेप न करे. न्यूज़लॉन्ड्री के पास अदालत के आदेश की कॉपी मौजूद है.
अदालत के निर्देश के बावजूद चार नवम्बर को संतोष की जमीन पर न सिर्फ कब्जा किया गया बल्कि दुकानें तोड़ दी गईं और उन्हें मारने का प्रयास भी किया गया.
बमीठा थाने में दर्ज की गई शिकायत के मुताबिक शास्त्री और उनके चचेरे भाई लोकेश गर्ग बागेश्वर धाम से लगी हुयी संतोष की खसरा नंबर 229 की भूमि को हथियाने की कोशिश कर रहे हैं. आसपास की शासकीय भूमि पर भी शास्त्री कब्ज़ा कर चुके हैं.
अपने साथ हुयी घटना का ज़िक्र करते हुए संतोष ने बताया कि दो नवम्बर को धीरेंद्र के चचेरे भाई लोकेश गर्ग ने उनके परिजनों को धीरेंद्र शास्त्री से मिलने के लिए बुलाया था, लेकिन खेती के काम में व्यस्त होने के कारण वो वहां जा नहीं पाए थे. तीन नवम्बर को लोकेश गर्ग खुद रात को आठ बजे उन्हें लेने पंहुचा और शास्त्री के पास लेकर गया. शिकायत में वो लिखते हैं, "धीरेंद्र गर्ग बोले कि अपनी ज़मीन की रजिस्ट्री तुम्हें हमारे नाम करनी पड़ेगी अन्यथा हम तुम्हारे पूरे परिवार को नष्ट कर देंगे. अभी तुम लोगों ने कितनी जगह शिकायतें की हैं हमारा क्या बिगाड़ लिया? तुम जिनसे शिकायत करते हो वो हमारे पैरों में पड़े रहते हैं?”
जान पर बनती देख संतोष ने शास्त्री से समझौता कर लिया है. संतोष के मुताबिक शास्त्री ने उनकी पौने दो एकड़ ज़मीन खरीद ली और बाकी सवा एकड़ अब उनके पास है. वह कहते हैं, "धरने पर छह दिन तक बैठे रहे लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की. उसके बाद ओबीसी महासभा के लोग हमारी मदद के लिए आये और कलेक्ट्रेट में हमारी शिकायत दर्ज हुयी. यह सब होने के बाद शास्त्री समझौते के लिए तैयार हुए और पौने दो एकड़ ज़मीन के हमें तकरीबन 32 लाख रूपये दिए. 8-10 लाख का नुकसान तो हमारी दुकानें टूटने पर ही हो गया था. अगर ओबीसी महासभा नहीं आती तो शायद यह भी नहीं बचता. मजबूरी में हमने समझौता कर लिया."
बागेश्वर धाम जिस गढ़ा गांव में स्थित हैं वहां संतोष जैसे तमाम पीड़ित मिलते हैं. बहुतों के घर बागेश्वर धाम की पार्किंग के विस्तार के लिए तोड़ दिए गए.
26 दिसंबर को गढ़ा गांव के ग्रामीणों ने छतरपुर के छत्रसाल चौराहे पर इसके खिलाफ धरना देते हुए सड़क जाम कर दी थी. ग्रामीणों का कहना था कि बिना किसी सूचना के, बिना किसी नोटिस के गांव के कुछ लोगों के मकान तोड़ दिए गए हैं.
गढ़ा गांव की निवासी रामवती साहू बताती हैं, "25 दिसम्बर की दोपहर एसडीएम, तहसीलदार, पटवारी और कुछ पुलिस वाले गांव में आये थे. उन्होंने हमारे घर आकर पूछा कि मकान किसका है. हमने बताया हमारा है. सरकारी अधिकारियों को देखकर जब गांव वालों ने सरपंच से पूछताछ की तो बताया गया कि वह पार्किंग के लिए जगह देखने के लिए आये हैं. कुछ देर बाद एसडीएम चले गए, पटवारी वहीं बैठे थे. फिर एक बुलडोज़र आया और उन लोगों ने बुलडोज़र को सीधा हमारे घर पर चढ़ा दिया. मैंने जब उन्हें रोकने की कोशिश की थी तो महिला पुलिस ने मेरी पूरी साड़ी उतार दी और डंडे से पीटना शुरू कर दिया. हम इस घर में पिछले 20 सालों से ज़्यादा से रह रहे हैं.”
इस पूरे मामले पर छतरपुर एसडीएम राकेश परमार कहते हैं, "वो घर इसलिए तोड़े गए थे क्योंकि वह सरकारी जमीन पर बने थे. किसी का भी अगर सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा होता है तो उसे हटाना पड़ता है."
जब उनसे धीरेंद्र शास्त्री और उनके द्वारा तालाब की ज़मीन पर कब्ज़े के बारे में सवाल किया तो वह कहते हैं, "अरे ऐसा कुछ नहीं है, वो तो असल में ग्राम पंचायत तालाब की ज़मीन का सौंदर्यीकरण करा रही है."
ग्रामीण बताते हैं कि गढ़ा गांव में 350 से ज़्यादा घर हैं. इनमें से 70 प्रतिशत सरकारी भूमि पर बने हैं जो कि उन्हें पंचायत द्वारा दिया गया था.
गढ़ा गांव के निवासी बताते हैं कि धीरे-धीरे उनके मकानों को तोड़ा जा रहा है. इस तरह बागेश्वर धाम की वाहन पार्किंग को बड़ा किया जा रहा है. और सड़को को भी चौड़ा किया जाएगा.
25 साल के मनीष साहू कहते हैं, "मेरा मकान जब तोडा गया उस वक़्त मैं मजदूरी करने गया था. घर पर ताला लगा था. गांव वालों ने मुझे इत्तिला दी कि मेरा घर तोड़ा जा रहा है. कुछ भी कारण नहीं बताया और सीधा घर तोड़ दिया.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में जब गांव के सरपंच सत्यप्रकाश पाठक से पूछा तो वो कहते हैं, "बागेश्वर धाम की वजह से तो लोगों को रोज़गार मिल रहा है. उलटा महाराज तो लोगों की मदद करते हैं.”
27 जनवरी को गढ़ा गांव पंचायत द्वारा वाहन पार्किंग के ठेके की नीलामी की गयी. यह ठेका 33 लाख में नीलाम हुआ और धीरेंद्र शास्त्री के चचेरे भाई लोकेश गर्ग को मिला है.
स्थानीय लोगों के मुताबिक शास्त्री और उनके सेवादार निजी भूमि के अलावा शासकीय जमीनों पर भी अपना कब्ज़ा जमा रहे हैं. गांव के सामुदायिक भवन, तालाब और मरघट पर भी उन्होंने डेरा जमा लिया है.
गौरतलब है कि राजनगर तहसील (जिसके अंतर्गत गढ़ा गांव आता है) के सरकारी भू-अभिलेखों के मुताबिक खसरा नंबर 483, 482, 428 और 485/2 क्रमश: तालाब, मरघट और पहाड़ हैं. यह तालाब, मरघट और पहाड़ बागेश्वरधाम मंदिर से लगे हुए हैं. शास्त्री के लोगों ने तालाब के कुछ हिस्से को पाट कर दुकानों का निर्माण करवा लिया. जहां मरघट था वहां पर भी अब दुकानें लगायी जाती हैं. तालाब और श्मशान की ज़मीन पर बनी दुकानों का किराया शास्त्री के परिवार को लोगों को जाता है.
निर्माण कार्य को लेकर पिछले साल तत्कालीन तहसीलदार विजयकांत त्रिपाठी ने नोटिस जारी किया था. त्रिपाठी कहते हैं, “तालाब, श्मशान भूमि का क्षेत्र शासकीय है. मैंने नोटिस जारी किया था और कार्यवाही भी की थी. उस वक़्त बाबा धीरेंद्र शास्त्री इतने प्रसिद्ध नहीं थे. उनके परिवार के लोगों का एक पक्का मकान भी था, उसे भी हमने हटाया था. उस वक़्त मुझ पर राजनेताओ का दबाव भी था, कि उस घर को हटाना नहीं है. लेकिन सारा अतिक्रमण तब हटाया था. अब फिर से धाम वालों ने अब उस तालाब के क्षेत्र को घेर लिया है.”
बागेश्वर धाम की प्रसिद्धि इतनी बढ़ चुकी है कि यहां देश भर से लोग आने लगे हैं. यहां मंगलवार और शनिवार को लगने वाले दिव्य दरबार और प्रेत दरबारों में लाखों की भीड़ आती है. जिसकी वजह से यहां लोग प्रसाद, चाय-नाश्ते आदि की दुकानें लगा कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं. इन दुकानों का एक महीने का किराया पांच हजार से लेकर एक लाख रुपए तक है. बागेश्वर धाम को भी इन दुकानों के ज़रिये ख़ास मुनाफा होता है. इसके अलावा बागेश्वर धाम की पार्किंग आदि से भी कमाई होती है. बागेश्वर धाम अपने अनुयायियों से चंदा तो लेता ही हैं साथ ही साथ अपने भक्तों के घरों में समृद्धि आने के लिए लक्ष्मी यंत्रम भी बेचता है. पांच हजार एक सौ रुपये का यह लक्ष्मी यंत्रम सिर्फ पांच हजार भक्तों को बेचा जाता है.
एक स्थानीय पत्रकार नाम नहीं लिखने की शर्त पर बताते हैं, "जिस ज़मीन का दाम 10 रुपये वर्ग फ़ीट नहीं था वो ज़मीन अब 1500 से 2000 रुपए वर्ग फ़ीट हो चुकी है. 120 वर्ग फ़ीट दुकान का किराया 50 हजार रुपये तक हो चुका है.
धीरेंद्र गर्ग से धीरेंद्र शास्त्री उर्फ बागेश्वर बाबा
दो-तीन साल पहले तक धीरेंद्र शास्त्री का नाम भी लोगों ने नहीं सुना था. बुंदेलखंड के इलाके में एक कथावाचक और अपने अंतर्ज्ञान के दावों, तंत्र-मंत्र के चलते उनकी ख्याति बनने लगी थी. आज से चार-पांच साल पहले शास्त्री का दिव्य दरबार छोटे से कमरे में लगा करता था जहां मुश्किल से 10-20 लोग आते थे. 26 साल के शास्त्री का दावा है कि वो 10 साल की उम्र से कथा वाचते आ रहे हैं. उनकी मशहूरियत को पंख तब लगा जब उन्हें टेलीविज़न का आशीर्वाद प्राप्त हुआ. 2021 में आस्था-संस्कार चैनलों ने उनकी कथा का लाइव टेलीकास्ट शुरू किया.
गढ़ा गांव के लोगों या छतरपुर में आप किसी से भी पूछेंगे तो लोग सबसे पहले यही कहेंगे कि आज से 10 साल पहले तक शास्त्री का परिवार सामान्य परिवार था और जजमानी-पंडताई करके गुजारा करता था.
शुरुआती दौर में जिस व्यक्ति ने शास्त्री को आगे बढ़ने में मदद की उनका नाम है शेख़ मुबारक. मुबारक शास्त्री के बहुत करीबी दोस्त रहे हैं. चुरारन गांव के रहने वाले मुबारक ने शास्त्री की बुरे दिनों में मदद की और उनकी बहन की शादी करवाने में अहम भूमिका निभाई. वो शास्त्री के साथ तब से हैं जब उनकी कोई हैसियत नहीं थी. मुबारक ने ही शास्त्री की कथा का आयोजन करवाना शुरू किया था.
मुबारक कहते हैं, "मेरी और धीरेंद्र की दोस्ती 2008 से है. हमारी मुलाकात इत्तफाकन हुई थी. मैं वहां बारिश से बचने के लिए रुका था. वहां धीरेंद्र मौजूद था. मैं फोन पर किसी से आधार कार्ड के सिलसिले में बात कर रहा था और थोड़ी अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहा था. इस पर पास में बैठे धीरेंद्र ने मुझे टोंका. उस वक़्त हमारी थोड़ी नोंकझोंक हुई जो बाद में दोस्ती में बदल गयी. कुछ दिन बाद उन्होंने मुझे बताया था कि वो भागवत कथा करते हैं. मेरे गांव में भी लोग कभी-कभार सत्संग करने के लिए कथावाचकों को बुलाते थे. तो मैंने अपने गांव की कमेटी से चर्चा करके धीरेंद्र की कथा चुरारन गांव में आयोजित करवाई थी. उसे गांव वालों ने बहुत पसंद किया था.”
मुबारक ने धीरेंद्र की कथाओं को तीन साल तक आयोजित करवाया था. जब धीरेंद्र का परिवार आर्थिक तंगी से गुज़र रहा था तो उनकी बहन की शादी मुबारक ने ही करवाई. इसका जिक्र धीरेंद्र भी अपने कार्यक्रमों में कर चुके हैं.
मुबारक कहते हैं, "जब मेरी और धीरेंद्र की दोस्ती का पता उनके घर वालों को चला था तो उन लोगों ने आपत्ति भी जताई. उनका परिवार पंडताई, ज्योतिष वगैरह का काम करता था. उनको आपत्ति थी कि एक मुसलमान से दोस्ती ठीक नहीं. लेकिन धीरेंद्र ने अपने घरवालों को समझाया. उसके बाद फिर कभी किसी ने कुछ नहीं कहा. धीरेंद्र के परिवार की आर्थिक स्थिति उस वक़्त बेहद खराब थी. गांव के लोग उनका मज़ाक उड़ाया करते थे. कायदे का घर तक नहीं था. एक पुराना खण्डर था. कई बार उनके लिए आवास योजना के तहत हमने अर्जी भी दाखिल की थी. बहन की शादी के वक़्त वो बहुत परेशान थे तब मैंने एक दोस्त के नाते अपना फ़र्ज़ निभाया. मेरी जगह वो होते तो वो भी अपना फ़र्ज़ निभाते."
विडंबना है कि वही शास्त्री कथावाचन के दौरान कई बार सांप्रदायिकता से लबरेज़ विवादित बयान दे चुके हैं. कभी वो कहते हैं कि कुछ दिन में टोपी वाले भी सीताराम कहेंगे, कभी कहते कि वो भारत को हिन्दुराष्ट्र बनाएंगे, कभी मुसलामानों पर निशाना साधते हुए उनके घरों पर बुलडोज़र चलाने की पैरवी करते हैं.
शास्त्री के विवादित, मुसलिम विरोधी बयानों के बारे में मुबारक कहते हैं, "तकरीबन 10-12 साल तक धीरेंद्र हमसे सलाह लेकर ही काम करते थे. आज भी हमारी दोस्ती कायम है. निजी तौर पर हिन्दू-मुसलमान जैसी कोई चीज़ मैंने उनके साथ महसूस नहीं की है. व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन होते रहते हैं. मुझे लगता है कि हिन्दू मुसलमान वाली बातें सिर्फ जुमला हैं. हिन्दू मुसलमान को लेकर उनके बयान पिछले दो सालों में ही शुरू हुए हैं. पहले वो कभी ऐसा नहीं कहते थे. वो मंच पर अलग हैं और निजी जीवन में अलग हैं.”
मुबारक के मुताबिक शास्त्री का दिव्य दरबार पिछले कुछ आठ सालों से चल रहा है लेकिन वो कोविड महामारी के बाद मशहूर हुए हैं. वह कहते हैं, "धीरेंद्र के सार्वजनिक मंच के कार्यक्रमों में फर्क ज़रूर आया है. राजनैतिक चीज़ें उनसे जुड़ती जा रही हैं. वो खुद ही बोलते हैं कि 'को ऐसा जग में जन्मा नाही, प्रभुता पाए उसे मद नाही'. यानी दुनिया में ऐसा कोई नहीं जन्मा जिसका पॉवर ने दिमाग खराब नहीं किया."
गौरतलब है बागेश्वर धाम मंदिर असल में भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है. यहां हनुमानजी की मूर्ति धीरेंद्र शास्त्री ने कुछ साल पहले ही स्थापित की थी.
राजनगर के रहने वाले महेश (बदला हुआ नाम) पिछले कई सालों से धीरेंद्र शास्त्री को बारीकी से देखते आ रहे हैं. महेश को उनके फेसबुक पोस्ट के कारण शास्त्री के लोगों की धमकियां मिलने लगीं, इसलिए उन्होंने अपना नाम उजागर नहीं किया. महेश कहते हैं, “इसमें कोई शक नहीं है कि धीरेंद्र का दिव्य दरबार उसका पब्लिसिटी स्टंट बना जिसने लोगों को आश्चर्यचकित करते हुए उसने बागेश्वर धाम से जोड़ा है. मैं शुरू से ही इसकी सिद्धियों और चमत्कार के विरोध में हूं.”
वह आगे कहते हैं, "धीरेंद्र ने अप्रैल 2021 में कोविड की दूसरी लहर के दौरान भी छतरपुर में कथा आयोजित की. इसके चलते बहुत से लोगों की जान कोविड के कारण गई. अगर वह इतना ही बड़ा भविष्यज्ञाता है तो यह भविष्य क्यों नहीं देख पाया. वह कथा का समय उचित नहीं था. उस महामारी में स्थानीय विधायक और धीरेंद्र ने कथा का आयोजन किया. जिसे आस्था और संस्कार चैनलों पर प्रसारित किया गया. नेताओं और शासन के संरक्षण से धीरेंद्र को हौसला मिलता रहा है.”
महेश बताते हैं, “कोविड के दौरान संस्कार चैनल पर धीरेंद्र की पहली कथा थी. उससे उन्हें असली प्रसिद्धि मिली. उससे पहले तक वह सिर्फ स्थानीय इलाके में सीमित था. संस्कार के साथ पेप्टेक चैनल और बुंदेली चुगली चैनल द्वारा धीरेंद्र को प्रचारित किया गया. पेप्टेक ने तो धीरेंद्र की कहानी का एक वीडियो बनाया जिसमें मशहूर बुंदेली गायक खनिज देव चौहान द्वारा गाये गए गीत- 'बागेश्वर गढ़ा के हनुमान' ने रातों रात धीरेंद्र को स्टार बना दिया.”
स्थानीय अखबार दबंग मीडिया उन चंद अखबारों में से है जिन्होंने शास्त्री के बारे में सबसे पहले लिखना शुरू किया था. दबंग मीडिया के संपादक भूपेंद्र सिंह कहते हैं, "हम लगभग 2016 से उनको कवर कर रहे हैं. धीरे-धीरे लोकल मीडिया ने भी उन्हें कवर करना शुरू किया. स्थानीय यूट्यूब चैनल, केबल चैनल सबने उनको कवर किया. इससे महाराज की ख्याति बढ़ी. 2018 से उन्होंने खुद ही अपना सोशल मीडिया बना लिया. 2021 में स्थानीय विधायक आलोक चतुर्वेदी ने उनकी विशाल कथा का आयोजन करवाया था. इससे वह देश भर में मशहूर हो गए."
हमने स्थानीय विधायक अलोक चतुर्वेदी से इस बाबत पूछा तो वह सवाल को टालते हुए कहते हैं, "मुझे पता नहीं है कि वह कथा कब हुयी थी." हालांकि उनके बेटे मिक्की चतुर्वेदी ने इस बात की पुष्टि कर दी,"हम ही ने उस कथा का आयोजन किया था और उसे आस्था पर लाइव टेलीकास्ट करवाया था."
जिस आस्था और संस्कार चैनल की बदौलत शास्त्री की ख्याति देश भर में फैली वह दोनों ही चैनल बाबा रामदेव और आचार्य बालकिशन द्वारा संचालित पतंजलि ग्रुप के हैं. रामदेव और बालकिशन के करीबी मनोज त्यागी पतंजलि ग्रुप के वैदिक ब्राडकास्टिंग लिमिटेड, संस्कार इन्फो टीवी प्राइवेट लिमिटेड के तहत आने वाले चैनलों आस्था, आस्था भजन टीवी, संस्कार, सत्संग टीवी आदि में विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं. फिलहाल वो संस्कार टीवी के सीईओ (चीफ एग्जीक्यूटिव) हैं.
साल 2022 में शास्त्री की लंदन में कथा और दिव्य दरबार करवाने में त्यागी का ही योगदान था. शास्त्री पिछले साल ब्रिटेन में दो बार (जून और सितम्बर) अपना दिव्य दरबार लगा चुके हैं. त्यागी के अलावा शास्त्री के इन कार्यक्रमों को आयोजित करने में ब्रिटेन में रहने वाले राजराजेश्वर ने मुख्य भूमिका निभाईं थी.
राजराजेश्वर खुद अपने आपको एक आध्यात्मिक गुरु बताते हैं. वह लंदन के हैरो इलाके में इंटरनेशनल सिद्धाश्रम शक्ति सेंटर चलाते हैं और संस्कार टीवी पर भी नज़र आते हैं. उन्हें साल 2022 में कैलाशा धर्म रक्षण सोशल जस्टिस ॐ अवार्ड दिया गया. गौरतलब है कि यह अवार्ड उन्हें भारत से फरार हुए बालात्कार के आरोपी स्वामी नित्यानंद की तरफ से दिया गया था, जो मध्य अमेरिका में कहीं पर 'कैलाशा' नाम का अपना खुद का देश बनाने का दावा करता है.
शास्त्री की ब्रिटेन यात्रा के दौरान राजराजेश्वर ने ब्रिटिश पार्लियामेंट में दो सांसदों की मौजदूगी में शास्त्री को वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्ड नामक एक पुरस्कार से सम्मानित किया था. राजराजेश्वर खुद इस संस्था के पीस एम्बेसडर (शांति दूत) भी हैं. 2019 में मनोज त्यागी को भी उन्होंने इस पुरस्कार से नवाजा था. जून 2022 में शास्त्री के लंदन दौरे पर उनके साथ मनोज त्यागी और छतरपुर के विधायक अलोक चतुर्वेदी दोनों मौजूद थे.
विवादित बयान और स्थानीय विरोध
शास्त्री अपने मंच से कई बार विवादित बयान दे चुके हैं. कभी वह साईं बाबा का मज़ाक उड़ाते हुए उन्हें चांद मिया बोलते हैं, कभी मुसलामानों के घर पर बुलडोज़र चलाने की बात कहते हैं, कभी किसी भक्त को अछूत कहते हैं और कभी किसी पर हिंसा करने की बात करते है. आम तौर पर देखा गया है कि उनके अधिकतर विवादित बयान सांप्रदायिक होते हैं या फिर जातिसूचक. उनके विवादित बयानों और कारगुज़ारियों के चलते उनका ऐसा विरोध शुरू हुआ जिसने छतरपुर में शास्त्री की लोकप्रियता को घटा कर रख दिया. इस विरोध को उठाया था ओबीसी महासभा ने.
छतरपुर ओबीसी महासभा के सदस्य और पूर्व विधायक आरडी प्रजापति कहते हैं, "धीरेंद्र शास्त्री विवादित बयान लंबे समय से देते आ रहे हैं. वह भूत-प्रेत भगाने के नाम पर अंध-विश्वास फैला रहे हैं. गांव में निजी और सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रहे हैं. दलितों का एक कुंआ था उसको भी पूरवा दिया. गांव के तालाब के अगल-बगल कब्ज़ा कर लिया. शासन-प्रशासन उनके आगे नतमस्तक है. उनके लगातार बढ़ते पाखण्ड और अवैध हरकतों के खिलाफ ओबीसी महासभा इकट्ठा हुयी थी और हमने सितम्बर से छतरपुर में धीरेंद्र शास्त्री के खिलाफ दर्जनों आंदोलन किये.”
स्थानीय पत्रकार मनोज सोनी कहते हैं, "महाराज को छतरपुर जिले और यहां तक की उनके गांव में भी ज़्यादा लोग नहीं मानते हैं. मुश्किल से 2-3 प्रतिशत लोग उनका समर्थन करते हैं. मौजूदा विवाद के बाद अभी हाल ही में रामलीला मैदान से मोठे के महावीर तक उनके पक्ष में एक जुलूस निकला था, मुश्किल से 200 लोग भी नहीं थे. उनके दरबार में जो भीड़ आती है वह सब बाहर के जिलों और राज्यों से आती है.”
स्थानीय ग्रामीणों की भले ही शास्त्री की तथाकतिथ शक्तियां आकर्षित ना करती हो लेकिन नेताओं में उनके प्रति काफी आकर्षण है. चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, नरोत्तम मिश्रा हो या कमलनाथ सब शास्त्री को सलाम ठोकते हैं .
बाबा ढोंगी है
जहां एक तरफ एबीपी न्यूज़ के पत्रकार ज्ञानेंद्र तिवारी और उनके जैसे कुछ पत्रकार हैं जो खुलेआम धीरेंद्र शास्त्री के पैरों में लोटकर उसके चमत्कार की जय जयकार कर रहे हैं. वहीं ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो निजी तजुर्बे के बाद धीरेंद्र शास्त्री को ढोंगी और फर्जी मानते हैं. चित्रकूट जिले के खुटहा गांव के रहने वाले दुर्गाप्रसाद आरख का परिवार भी उन्हीं में से एक है.
दो जुलाई, 2022 को दुर्गाप्रसाद अपनी पत्नी मेड़िया आखर के साथ बागेश्वर धाम गए थे. लेकिन मंदिर में परिक्रमा लगाते वक़्त उनकी पत्नी भीड़ में लापता हो गयी. इस हादसे के बाद उनकी भतीजी ने धीरेंद्र शास्त्री से मेड़िया देवी का पता करने की प्रार्थना की थी. शास्त्री ने अपनी तथकथित शक्तियों का हवाला देते हुए उनसे कहा कि वो आधे घंटे में मेड़िया देवी का पता बता देंगे. लेकिन आज सात महीने बाद भी मेड़िया देवी का कोई पता नहीं चल सका है.
दुर्गाप्रसाद बताते हैं, "मेरी पत्नी मानसिक रूप से परेशान रहती थी. हमें लगता था कि शायद उस पर कोई भूत-प्रेत का साया है, इसलिए हम बागेश्वर धाम गए थे. सात महीने से मेरी पत्नी गुमशुदा है, अगर वाकई धीरेंद्र शास्त्री के पास ऐसी कोई सिद्धियां होती जिसका वो दावा करते हैं तो वो उसी दिन मेरी पत्नी का पता बता देते. धीरेंद्र शास्त्री एक ढोंगी है और कुछ नहीं.”
आरख और उनकी भतीजी सीता परिहार ने चार जुलाई को स्थानीय बमीठा पुलिस थाने में गुमशुदगी की एफआईआर दर्ज करवाई और लगभग डेढ़ महीने तक वो दोनों मेड़िया देवी को छतरपुर में ढूंढ़ते रहे. इस दौरान उन्होंने कई बार शास्त्री से भी मिलने की कोशिश की लेकिन वो उनसे नहीं मिले.
सीता कहती हैं, "जब हमारी चाची परिक्रमा लगाते वक़्त गुम हुईं तो हमने वहां मौजूद कई पुलिस वालों को बताया लेकिन कोई मदद नहीं मिली. चार जुलाई को हमने धीरेंद्र शास्त्री के दरबार में एक पर्चा और अपनी चाची का फोटो उनके सेवादारों के ज़रिये पहुंचवाया. उस दिन शास्त्री ने मुझसे बोला था कि 'तुम परेशान मत हो, हमारे पास तुम्हारी अर्जी पहुंच चुकी है. हम आधे घंटे में आपकी चाची का पता बता देंगे. उनके सेवादारों ने हमें दरबार के बाहर इंतज़ार करने बोला. मैं शाम के सात बजे से अगले दिन सुबह तक वहीं दरबार के बाहर इंतज़ार करती रही. ना ही उन्होंने कोई अनाउंसमेंट किया और ना ही मुझे अंदर बुलाया."
सीता के मुताबिक उन्होंने शास्त्री की मां सरोज देवी से भी मुलाकात की. वह आगे कहती हैं, "उनकी मां ने पहले कहा कि वह पूछ कर बता देंगी. बाद में बोला कि शास्त्री खुद से कुछ नहीं जानते हैं, वो उन्हीं लोगों के बारे में बताते है जिनके लिए भगवान उन्हें इशारा करते हैं. इसका मतलब भगवान शास्त्री को उन्हीं लोगों के बारे में बताते हैं जिनकी जेब में हरे नोट होते हैं, जो सोना-चांदी चढ़ाते हैं."
सीता बताती हैं, "डेढ़ महीने में हमें यह समझ में आ गया था कि जिन लोगों की अर्जियां इनके पास आती है उनकी जानकारी इनके पास पहले से मौजूद होती है. यह अर्जियां भी अधिकतर शादी, ब्याह, प्यार वगैरह के मामूली मसलों से जुड़ी होती हैं. शास्त्री के पास ना ही कोई भगवान की शक्ति है और ना ही वो कोई मन की बात पढ़ सकते हैं. भगवान के नाम पर वो अंधविश्वास फैला कर पैसे बटोर रहे हैं.”
गौरतलब है कि धीरेंद्र शास्त्री के दरबारों में आने वालों के नाम आदि की जानकारी बागेश्वर धाम कमेटी के पास पहले से रहती है.
अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के प्रमुख श्याम मानव हमें बताते हैं, "जब धीरेंद्र शास्त्री का कार्यक्रम नागपुर में था उस वक़्त मैं इंडियन साइंस कांग्रेस की कांफ्रेंस के लिए नागपुर गया था और तब मुझे उनके दिव्य दरबार का पता चला था. हमने पुलिस कंप्लेंट की और शास्त्री को उनका दावा सिद्ध करने की चुनौती दी. हमने यह तक कहां था कि अगर वो अपने दावे सिद्ध कर देंगे तो हम उनके चरणों में सिर रख कर माफ़ी मांगेगे और अपना संगठन बंद कर देंगे. तब उन्होंने हमारी चुनौती स्वीकार नहीं की और फिर रायपुर जाकर हमको अपने दिव्य दरबार में बुला रहे थे. आजकल किसी की भी जानकारी पता करना मुश्किल नहीं है, यह इंटरनेट, सोशल मीडिया का ज़माना है. वहां दिव्य दरबार में उनके पास आने वालों की जानकारी जुटाने के संसाधन हो सकते हैं. भीड़ के बीच में उन्हें जांचना संभव नहीं है, क्योंकि उनके भक्त लोग लॉ एंड आर्डर की समस्या भी पैदा कर सकते हैं. अगर उनके पास दिव्य शक्तियां हैं तो वह कही भी दिखा सकते थे, नागपुर में पत्रकार भवन में भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं किया.”
मानव पहले भी कई ढोंगी धर्मगुरुओ का भांडा फोड़ चुके हैं. लेकिन उनकी शिकायत पर पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया. मानव के मुताबिक नागपुर पुलिस ने उल्टे शास्त्री को क्लीन चिट दी है क्योंकि पुलिस पर ऊपर से दबाव था. इस मामले को टालने के अलावा उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था.
रायपुर का दिव्य दरबार
नागपुर के पत्रकार भवन में पत्रकारों के सामने अपने दावे को सिद्ध करने की चुनौती तो शास्त्री ने स्वीकार नहीं की लेकिन रायपुर पहुंच कर दिव्य दरबार में वो अपनी तथाकथित चमत्कारिक शक्तियों को वहां मौजूद पत्रकारों के सामने सिद्ध करने की कोशिश कर रहे थे. एबीपी न्यूज़ के पत्रकार ज्ञानेंद्र तिवारी तो शास्त्री के चमत्कार से प्रभावित होकर मंच से ही जयजयकार करने लगे.
एबीपी न्यूज़ के पत्रकार ज्ञानेंद्र तिवारी तीन दिन से शास्त्री को रायपुर में कवर कर रहे थे. शास्त्री ने अपने दिव्य दरबार में उनके चाचा, भाई और भतीजी का नाम लेकर उन्हें हतप्रभ कर दिया, बावजूद इसके कि यह सभी जानकारियां तिवारी के फेसबुक अकाउंट पर पहले से ही मौजूद थीं. तिवारी ने ना सिर्फ शास्त्री की मंच से जयजयकार की बल्कि बाद में यह भी कहा कि शास्त्री पर हनुमान जी की कृपा है, और वह इसे अंधविश्वास नहीं मानते.
न्यूज़लॉन्ड्री ने जब रायपुर के दिव्य दरबार में मौजूद कुछ अन्य पत्रकारों से बात की. एक पत्रकार ने बताया, "धीरेंद्र शास्त्री ने जिस तरह ज्ञानेंद्र तिवारी को बुलाया था वह थोड़ा अजीब था. उनको बुलाने के पहले उन्होंने यह बोला भी था कि वो एक पत्रकार की अर्जी लगाएंगे. फिर उनके चाचा का नाम लेकर बुलाया, फिर उनके भाई, भतीजी के नाम वगैरह ले रहे थे. वह सब प्रायोजित लग रहा था. बाद में शंका और बढ़ी क्योंकि उनके बारे में यह सब जानकारी फेसबुक पर भी मौजूद थी.”
कार्यक्रम को कवर कर रहे एक दूसरे पत्रकार ने गोपनीयता की शर्त पर बताया, "वह पूरा वाकया सौ फीसदी प्रायोजित था. यह सिर्फ मेरा नहीं बल्कि वहां मौजूद अधिकांश पत्रकारों का यही मानना था. सब यही कह रहे थे कि पत्रकार के तौर पर उनको चैलेंज करना चाहिए था. उनसे कड़े सवाल करने चाहिए थे. ज्ञानेंद्र वहां पत्रकार की हैसियत से गया था न कि अनुयायी बनकर. बाद में हमें शास्त्री के ही सेवादारों से ही पता चला कि ज्ञानेंद्र के कुछ करीबी शास्त्री के अनुयायी हैं.”
आस्था और चमत्कार की नींव पर आध्यात्मिक साम्राज्य खड़ा करने वाले धर्मगुरुओं और बाबाओं की लंबी फेहरिस्त हमारे देश में है. यह जांचा परखा फार्मूला है. करोड़ों की संख्या में गरीबी और अशिक्षित आबादी की मौजूदगी ऐसे बाबाओं के फलने-फूलने के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करती है. यह सिलसिला रुकता नहीं है, कभी धीमा, तो कभी तेज़ हो जाता है.
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