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जहां बेघर ठंड से जूझ रहे हैं, वहीं दिल्ली के रैन बसेरे चलाने वाले अधिकांश एनजीओ फंड्स के संकट में फंसे हैं

दिल्ली सरकार के 195 रैन बसेरों की देखरेख करने वाले छह एनजीओ में शामिल सादिक मसीह मेडिकल सोशल सर्वेंट सोसाइटी के सचिव विनय स्टीफन ने कहा, "अगर ऐसा है, तो मैं आने वाले वर्षों में आश्रय परियोजना के लिए आवेदन नहीं करूंगा."

स्टीफन की संस्था, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड के साथ लगभग एक साल से अपना बकाया चुकाने के लिए धन के संकट से जूझ रही है. कम से कम तीन अन्य एनजीओ भी इस संकट का सामना कर रहे हैं. इन सभी को दिल्ली सरकार के तहत काम करने वाली डीयूएसआईबी द्वारा आश्रयों की देखरेख करने और देखभाल करने वालों, बिजली, रखरखाव और स्वच्छता आदि जैसी विभिन्न सेवाएं देने के लिए टेंडर दिया गया था.

यह समस्या नई नहीं है. एनजीओ, या आश्रय प्रबंधन एजेंसियों ने बार-बार सरकार (डीयूएसआईबी) से उनका बकाया चुकाने के लिए कहा है. नवंबर 2020 में भी उन्होंने कहा था कि सरकार ने उस साल मार्च में कोविड की वजह से लगे लॉकडाउन के बाद से उनके कुल खर्च का लगभग 20 प्रतिशत ही वापस किया था.

स्टीफन का एनजीओ पिछले पांच वर्षों से डीयूएसआईबी अनुबंध के तहत काम कर रहा है, वे पूछते हैं, “आश्रय में मास्क और हैंड सैनिटाइजर देने के लिए अधिकारियों का निर्देश है. हमारे इतने खर्चे हैं और इतनी सारी प्रक्रियाओं का पालन करना है, लेकिन सरकार से वित्तीय सहायता लटकी हुई है. यदि इस सहायता में देरी हुई, तो हम कैसे बचेंगे?”

बाकी पांच प्रबंधन एजेंसियों में एसपीवाईएम, सेफ एप्रोच, रचना महिला विकास संघ, प्रयास और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज हैं.

एसपीवाईएम के कार्यकारी निदेशक राजेश कुमार ने कहा कि वे कार्यवाहकों और सफाई कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने और साइटों पर बिजली का काम करने के लिए बैंकों से ऋण ले रहे हैं. 

कुमार ने कहा, "बैंकों के अलावा इससे किसी और को फयदा नहीं होता.” उनका एसपीवाईएम, डीयूएसआईबी की स्थापना के बाद से ही उसके साथ काम कर रहा है और लगभग 50 आश्रयों की देखरेख कर रहा है.

सेफ एप्रोच के कार्यकारी निदेशक संतोष कुमार ने कहा कि वे लोन के माध्यम से प्रबंधन कर रहे हैं "भले ही यह अविश्वसनीय रूप से चुनौतीपूर्ण हो. यह 2021 तक ठीक था लेकिन उस साल के बाद, चीजें गड़बड़ाने लगीं और हमें भुगतान मिलना बंद हो गया."

इस मुद्दे को पिछले साल 27 दिसंबर को राज्य स्तरीय आश्रय निगरानी समिति या एसएलएसएमसी के सदस्यों के साथ डीयूएसआईबी की बैठक में उठाया गया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इन आश्रयों की निगरानी के लिए स्थापित किया था.

5 जनवरी को न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए प्रयास के देवेश गुप्ता ने कहा, “हमने अपने मुद्दों के बारे में कल भी डीयूएसआईबी सदस्यों से बात की थी. यह साफ नहीं है कि यदि हमारा भुगतान बकाया है तो हम रखरखाव कैसे करेंगे, यह भी देखते हुए कि हमारे पास एलजी जैसे लोग नियमित रूप से आधिकारिक दौरे करते हैं जो हमें विभिन्न घटकों को बनाए रखने के लिए कहते हैं. चूंकि हम एक गैर-लाभकारी संगठन हैं. हमारी समस्याओं के कारण कर्मचारियों के भुगतान में देरी हुई है और हम पर पूरा दोष आता है.”

एसएलएसएमसी सदस्य इंदु रेणुका प्रकाश ने कहा कि भुगतान नियमित रूप से नहीं हुआ और कई मामलों में एक या दो साल से लंबित है. "एसएमए की जेबें बहुत गहरी नहीं हैं. एसएलएसएमसी की बैठकों में हमने डीयूएसआईबी से बैकलॉग को निपटाने के लिए कहा था… फिर भी यह बड़ा फर्क बना हुआ है. यह बेघरों की देखभाल और परवाह पर असर डालता है. देखभाल करने वालों को महीनों तक उनके वेतन का भुगतान नहीं हुआ है, यह उनके जीवन के साथ-साथ उन लोगों को भी प्रभावित करता है जिनकी देखभाल की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई हैं”

डीयूएसआईबी के सदस्य बिपिन राय ने कहा कि उन्होंने, "सरकार के वित्त विभाग को एक प्रस्ताव पहले ही भेज दिया है. फंड ट्रांसफर करने की सभी औपचारिकताएं पूरी हैं. यह बहुत जल्द आ जाएगा. सरकार से फंड मिलने के बाद हम उसे एनजीओ को ट्रांसफर कर देंगे.”

सर्दियां शुरू होते ही अरविंद केजरीवाल सरकार ने बेघरों को बचाने, और उन्हें भोजन व आवास प्रदान करने के लिए एक शीतकालीन एक्शन प्लान की घोषणा की थी. हालांकि दिल्ली भाजपा, पर्याप्त आश्रय सुविधाओं की गैरमौजूदगी की वजह से मौतों की संख्या में वृद्धि का आरोप लगाते हुए आप सरकार को निशाना बनाना जारी रखे है.

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