Report
मुंबई: आरे फॉरेस्ट को बचाने के लिए चल रहा प्रोटेस्ट, आदिवासियों की पीड़ा और सरकार की चुप्पी
मुंबई में हर रविवार को आरे के आसपास आदिवासी और जल, जंगल, जमीन से जुड़े कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन करते हैं. करीब दो महीने पहले जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम आरे पहुंची, तब भी यहां लोग सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी कर रहे थे.
बता दें कि आरे, आरे मिल्क कॉलोनी के नाम से भी मशहूर है. 1949 में यहां तेजी से विस्तार हुआ और जगह-जगह दूध की डेयरियां थीं, जहां से लोगों को दूध की आपूर्ति हुआ करती थी. तब सरकार ने यह सोचा कि सबको एक साथ बैठाकर, इनको एक जगह स्थापित किया जाए और फिर वहां से पूरे शहर की दूध की सप्लाई की जाए. जो सप्लाई होगी वह राज्य कॉर्पोरेशन की एक इकाई द्वारा होगी, जिसके पास सारा दूध जाएगा और फिर वहां से पूरे शहर में बिक्री के लिए सप्लाई होगा.
आरे में अभी भी बहुत सारी डेयरी मौजूद हैं, जहां पर गाय-भैंसों को पाला जाता है. इसकी शुरुआत भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी.
अब इस जमीन का शहरीकरण किया जा रहा है. इसके एक हिस्से को अलग कर मुंबई रेल मेट्रो कॉर्पोरेशन द्वारा कार्य किया जा रहा है, जिसका लोग विरोध कर रहे हैं. इसके चलते करीब 27 आदिवासी बस्तियों को डर है कि उन्हें यहां से हटाकर कहीं और बसा दिया जाएगा.
आदिवासियों को डर है कि अगर उन्हें यहां से हटा दिया गया तो उनकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. यहां जंगल में उनको लकड़ी, सब्जी और चूल्हे की व्यवस्था उपलब्ध है, और अगर उन्हें कहीं और बसाया जाएगा तो उन्हें यह सब खरीदना पड़ेगा.
सामाजिक कार्यकर्ता अमृता भट्टाचार्जी कहती हैं कि डेवलपमेंट प्लान में दिखाया गया है कि 45 एकड़ जमीन में सभी आदिवासियों को एक साथ पुनर्वासित कर दिया जाएगा. वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि जैसा आरे है उन्हें वैसा ही चाहिए, इसके अलावा और कुछ नहीं चाहिए.
बता दें कि फिलहाल यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
देखें पूरा वीडियो-
Also Read
-
‘Why can’t playtime be equal?’: A champion’s homecoming rewrites what Agra’s girls can be
-
Pixel 10 Review: The AI obsession is leading Google astray
-
Do you live on the coast in India? You may need to move away sooner than you think
-
TV Newsance 321: Delhi blast and how media lost the plot
-
Bihar’s verdict: Why people chose familiar failures over unknown risks