Newslaundry Hindi
रिपोर्ट: हिंदी और अंग्रेजी अखबारों के शीर्ष नेतृत्व पर महज 5 प्रतिशत महिलाएं
हिंदी और अंग्रेजी अखबारों के शीर्ष नेतृत्व में पुरुषों की संख्या लगभग 87 प्रतिशत है, वहीं महिलाओं की भागीदारी महज 5 प्रतिशत है. यह जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री और यूएन वीमेन की ताजा रिपोर्ट में सामने आई है.
मीडिया रंबल के कार्यक्रम के दूसरे दिन जेंडर रिप्रेजेंटेशन इन इंडियन न्यूज़रूम नाम से रिपोर्ट जारी की गई. रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि मीडिया में महिलाओं की संख्या काफी कम है और निर्णय लेने वाले पदों के लिए तो यह कमी और ज्यादा है.
रिपोर्ट में सामने आया है कि शीर्ष नेतृत्व में सबसे ज्यादा संख्या इंग्लिश न्यूज़ चैनलों में है. यहां महिलाओं की संख्या 42.62 प्रतिशत है वहीं पुरुषों की संख्या 57.38 प्रतिशत है. जबकि हिंदी टीवी चैनलों में महिलाओं की संख्या महज 22.58 प्रतिशत है.
डिजिटल मीडिया में शीर्ष पदों पर महिलाओं की संख्या 38.89 प्रतिशत, अंग्रेजी अख़बारों में 14.71 प्रतिशत, वहीं हिंदी अखबारों में यह संख्या सिर्फ 9.68% है. अगर मैगजीन की बात करें तो यहां महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 10.71 प्रतिशत है.
द इंडियन एक्सप्रेस समेत कई अखबारों में शीर्ष नेतृत्व में एक भी महिला नहीं
रिपोर्ट में सामने आया है कि हिंदी और अंग्रेजी के कई अखबारों के शीर्ष नेतृत्व में एक भी महिला नहीं है.
रिपोर्ट के मुताबिक अंग्रेजी में जहां द इंडियन एक्सप्रेस, द स्टैटमैन और हिंदी में हिंदुस्तान, अमर उजाला, दैनिक भास्कर और प्रभात खबर में शीर्ष नेतृत्व में कोई भी महिला शामिल नहीं है.
मीडिया में महिलाएं
इस रिपोर्ट को लेकर बीबीसी की पत्रकार गीता पांडे, शेड्स ऑफ रूरल इंडिया की फाउंडर पत्रकार नीतू सिंह और रागा मलिका कार्तिकेयन ने बातचीत में हिस्सा लिया.
नीतू बताती हैं, महिलाओं से जुड़ी खबरें, महिलाएं पुरुषों से ज्यादा संवेदनशीलता से करती हैं. किसी न्यूज़रूम में महिलाओं की संख्या का पता वहां छपने वाली खबरों के शीर्षक से चल जाएगा.
नीतू कुछ उदाहरण देकर समझाती हैं, “अगर कोई बच्चा सड़क किनारे फेंका हुआ मिलता है, तो खबर छपती है कि निर्मोही मां ने अपने दुधमुंहे को फेंक दिया. पत्रकारों को कैसे पता चल जाता है कि निर्मोही मां ने ही फेंका है? वहीं बलात्कार की खबर को प्रेम प्रसंग से जोड़ दिया जाता है, जो गैर जरूरी होता है."
गीता पांडे तीन दशक से मीडिया में सक्रिय हैं. वो बताती हैं, “समय के साथ मीडिया में महिलाओं की संख्या बढ़ी है. अगर मैं अपने संस्थान बीबीसी की बात करूं, तो हमारे यहां टॉप पोजिशन पर महिलाएं ही हैं. वहीं कुल संख्या का 30 प्रतिशत महिलाएं हैं.”
गीता आगे कहती हैं, “महिलाओं की संख्या बढ़ी है लेकिन अभी और बढ़नी चाहिए. इसको लेकर हमें कोशिश करनी चाहिए. अमेरिका की महिला न्यायाधीश रूथ बेडर गिन्सबर्ग से एक बार पूछा गया कि आपको कब लगेगा कि महिलाओं की भागीदारी पूरी हो गई? तो उन्होंने बताया कि जब यहां तमाम जज महिलाएं होंगी."
अक्सर ही महिला पत्रकारों को कुछ खास बीट ही रिपोर्ट करने के लिए दी जाती है. इसको लेकर पत्रकार रागा मलिका कार्तिकेयन बताती हैं, “यदि न्यूज़ रूम में कोई समलैंगिक या महिला है, तो क्या केवल उन्हें उनसे जुड़े मुद्दों का ही विशेषज्ञ माना जाएगा? हो सकता है उनकी रुचि मनोरंजन में हो या वे राजनीति को कवर करना चाहती हों.”
नीतू कहती हैं कि किसी संस्थान में काम करते हुए तो खास बीट कवर करनी पड़ती है लेकिन स्वतंत्र पत्रकार होने के बाद मैं जो करना चाहती हूं वो करती हूं.
Also Read
-
Who moved my Hiren bhai?
-
‘We have to live with air pollution’: Delhi’s athletes, parents and coaches feel they have no choice
-
I was at the India-Pakistan Oxford Union Debate and here’s what happened.
-
अखलाक हत्याकांड: यूपी सरकार न्याय के पक्ष में या अन्याय के
-
Dispatch from Dadri: The lynching that shook India, and govt U-turn stirring it again