Media
यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने पत्रकारिता के नाम पर 'ब्राह्मण पत्रकारिता' को सम्मानित किया
बीते दिनों लखनऊ में आजादी के 75 साल पूरे होने पर उत्तर प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने कई पूर्व और वर्तमान पत्रकारों के साथ ही पूर्व अधिकारियों को भी सम्मानित किया. इस दौरान सम्मानित पत्रकारों का नाम जब मंच से पुकारा गया तब एक किस्म का संगीत कानों में बजने लगा. सम्मानित पत्रकारों के नाम शुक्ला, मिश्रा, त्रिपाठी और उपाध्याय थे.
इस कार्यक्रम के आयोजक और उत्तर प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष टीबी सिंह कहते हैं, "सम्मानित किए गए सभी पत्रकार वरिष्ठ थे. इनमें पांच वर्किंग, पांच पूर्व पत्रकार और छह अधिकारियों को सम्मानित किया गया. यह सभी वे लोग थे जिन्होंने अच्छा काम किया और वर्तमान में भी कर रहे हैं."
पत्रकारिता में डायवर्सिटी के सवाल पर सिंह कहते हैं, “जब ये लोग (ओबीसी, महिला, मुसलमान, दलित और आदिवासी) हैं ही नहीं तो कहां से लाएं? हमें कोई मिला ही नहीं. हमने जो कमेटी गठित की थी उन्होंने यही नाम हमें सुझाए तो हमने उन्हीं को सम्मानित किया. इस कमेटी में इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (आईएफडब्ल्यूजे) के राष्ट्रीय सचिव सिद्धार्थ कलहंस और हेमंत तिवारी जैसे वरिष्ठ लोग शामिल थे.”
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि तत्कालीन अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल थे. उन्होंने पत्रकारों और अधिकारियों को अमृत सम्मान से नवाजा. सम्मानित नामों में सवर्ण और खास कर ब्राह्मण पत्रकारों का एकछत्र कब्जा देखकर यह सवाल उठता है कि क्या लखनऊ या उत्तर प्रदेश में ओबीसी, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी या महिला पत्रकार नहीं हैं? क्या उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता का सारा बोझ सवर्णों, उसमें भी सिर्फ ब्राह्मणों ने अपने कंधे पर उठा रखा है?
इस बारे में हमने कार्यक्रम में शामिल हुए वरिष्ठ पत्रकार और उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी से भी बात की. सम्मानित किए गए पत्रकारों को बुलाने का क्या पैमाना था? इस सवाल पर तिवारी कहते हैं, "क्या पैमाना था यह तो कार्यक्रम के आयोजक ही बता सकते हैं. हमें तो सिर्फ बतौर मेहमान बुलाया गया था तो हम चले गए. दूसरी बात, अब कहां कोई क्या पैमाना है. आज कल तो हर रोज सम्मान समारोह चलता रहता है. कौन पैमाना किससे पूछेगा? यह जर्नलिस्ट यूनियन ने प्रोग्राम रखा था. उन्होंने ही कुछ सीनियर जर्नलिस्ट को सम्मानित किया जो 40-50 सालों से काम कर रहे हैं."
क्या इस कार्यक्रम में डायवर्सिटी नहीं होनी चाहिए थी? सम्मान पाने वालों में महिला, दलित, अल्पसंख्यक या ओबीसी नहीं होने चाहिए थे? इस पर तिवारी कहते हैं, “मुझे तो नहीं लगता है कि पत्रकारों में भी महिला, दलित और ओबीसी ढूंढे जा सकते हैं. यह बात आप कार्यक्रम के आयोजकों से ही पूछिए.”
अक्सर इस तरह के सम्मान समारोहों में ददिए जाने वाले भाषणों और कार्यक्रमों में समानता, न्याय और सत्य की बात जोर-शोर से होती है, लेकिन वह जमीन पर दिखाई नहीं देती है.
जिन पत्रकारों को सम्मानित किया गया उनका पत्रकारिता क्या विशेष योगदान रहा, या उन्हें चुनने का पैमाना क्या था? इस सवाल का संक्षिप्त जवाब देते हुए सिंह कहते हैं इन सभी ने अच्छा काम किया है.
वह आगे कहते हैं कि हमने महिलाओं को ढूंढने की काफी कोशिश की लेकिन हमें कोई रिटायर्ड महिला नहीं मिलीं.
इस कार्यक्रम के आयोजन को लेकर लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, “यह सब एजेंडा है. यह पत्रकारों के भले के लिए कम और व्यक्तिगत लाभ के लिए ज्यादा होता है.”
शरत प्रधान के मुताबिक आजकल यह ट्रेंड बन गया है. लोग अपना-अपना एजेंडा चलाते हैं. इसमें मेरिट ढूंढ़ना बेवकूफी है. ऐसे कार्यक्रम व्यक्तिगत एजेंडे पर चलते हैं. ऐसे समारोह लोगों को खुश करने के लिए होते हैं. इसमें हम डायवर्सिटी ढूंढेंगे तो यह नादानी है. आजकल ऐसे लोगों की भरमार है जो इस तरह के कार्यक्रम करते रहते हैं, ऐसे लोगों का ऑब्जेक्टिव जर्नलिज्म से भी कोई ताल्लुक नहीं है.
यह कार्यक्रम राजधानी लखनऊ के होटल गोमती में आयोजित किया गया था. इनमें सम्मानित होने वाले पत्रकारों में जेपी शुक्ला, वीर विक्रम बहादुर मिश्र, प्रदीप कुमार, मुकुल मिश्रा, आशीष मिश्रा, अशोक त्रिपाठी, राम सागर शुक्ला, विजय उपाध्याय, दिनेश ठाकुर व राहुल ठाकुर शामिल हैं.
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर आए नवनीत सहगल ने यूपीडब्ल्यूजे के प्रयासों को सराहते हुए कहा कि आजादी के बाद के 75 सालों में उल्लेखनीय काम करने वाले पत्रकारों व अधिकारियों को सम्मानित करना गौरव की बात है. ऐसे कार्यक्रमों से भावी पीढ़ी को एक संदेश भी मिलता है.
Also Read
-
Newsance 274: From ‘vote jihad’ to land grabs, BJP and Godi’s playbook returns
-
‘Want to change Maharashtra’s political setting’: BJP state unit vice president Madhav Bhandari
-
South Central Ep 1: CJI Chandrachud’s legacy, Vijay in politics, Kerala’s WhatsApp group row
-
‘A boon for common people’: What’s fuelling support for Eknath Shinde?
-
हेट क्राइम और हाशिए पर धकेलने की राजनीति पर पुणे के मुस्लिम मतदाता: हम भारतीय हैं या नहीं?