Report
जलवायु संकट: पाकिस्तान में बाढ़, यूरोप में सूखा और भारत में विनाश की आहट
पाकिस्तान में जिस वक्त भयानक बाढ़ ने तबाही मचाई है, उसी वक्त यूरोप में भी “पिछले 500 साल का सबसे खराब सूखा” पड़ा है. इन दोनों ही तथ्यों में एक समानता, एक रिश्ता और एक विरोधाभास है. अब तक जो आंकड़े उपलब्ध हैं वह बताते हैं कि पाकिस्तान में अब तक कम से कम 1,000 लोगों की इस बाढ़ में मौत हो गई है. यह आंकड़ा काफी बढ़ भी सकता है क्योंकि सरकार का कहना है कि एक तिहाई से अधिक देश डूब चुका है और कई हिस्सों में तो औसत से 600 प्रतिशत तक अधिक पानी बरसा है. यहां आठ लाख से अधिक मवेशियों की मौत हुई है और 10 लाख से अधिक घर तबाह हुए हैं. करीब 20 लाख एकड़ में उगी फसल चौपट हो गई है.
इसके विपरीत यूरोप में इस साल सूखे की मार ने कई स्तर पर असर डाला है. यहां फसलों से लेकर नमक उत्पादन तक प्रभावित हुआ है. राइन जैसी नदियों में पानी सूख जाने से शिपिंग नहीं हो पा रही. नदियों के साथ झीलें भी सूख रही हैं जिससे यूरोप की कई नदियों में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान डूबे बम और जहाज भी मिलने लगे हैं. महत्वपूर्ण है कि 2018 में भी यूरोप में जो सूखा पड़ा था उसे 500 सालों का सबसे खराब सूखा कहा गया था, लेकिन चार साल बाद 2022 में ही वह रिकॉर्ड टूट गया.
आखिर अमेरिका से लेकर यूरोप और पाकिस्तान और भारत जैसे एशियाई देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया तक क्लाइमेट संकट की जो मार अब सामान्य अनुभव का हिस्सा बन रही है, उसकी चेतावनी मौसम विशेषज्ञों और क्लाइमेट वैज्ञानिकों ने लगातार दी है. पिछले कई दशकों से जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के वैज्ञानिकों के विशेषज्ञ पैनल ने कहा है कि धरती की तापमान वृद्धि के साथ विनाशकारी एक्सट्रीम वेदर की घटनाएं बढ़ेंगी. पाकिस्तान में इस बाढ़ ने सभी विकासशील देशों के लिये एक बार फिर से खतरे की घंटी की तरह काम किया है.
भूख और कुपोषण से जूझ रहे कई अफ्रीकी देशों में तो जलवायु संकट, हालात को अधिक तेज़ी से खराब कर रहा है. यही हाल लैटिन अमेरिकी और दक्षिण एशियाई देशों के कई हिस्सों में है. पाकिस्तान की क्षति को देखें तो यहां न केवल साढ़े तीन करोड़ लोग बेघर या विस्थापित हो गये हैं, बल्कि अब तक वहां हुए आर्थिक नुकसान को 1000 करोड़ डॉलर के बराबर आंका गया है. भारतीय मुद्रा में यह करीब 80 हज़ार करोड़ रुपये के बराबर की रकम है. पाकिस्तान को इस अकेली बाढ़ ने कई साल पीछे धकेल दिया है और यह सबक भारत के लिये भी है, क्योंकि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ऐसी घटनाओं की तीव्रता और संख्या आने वाले दिनों में बढ़ेगी.
जलवायु परिवर्तन के मामले में भारत दुनिया के सबसे संकटग्रस्त देशों में है. यहां उत्तर में संवेदनशील हिमालयी ग्लेशियर हैं जिन्हें थर्ड पोल (तीसरा ध्रुव) कहा जाता है. ये 10 हज़ार छोटे बड़े ग्लेशियर और यहां स्थित जंगल, देश की कम से कम 40 करोड़ लोगों की पानी की जरूरत को पूरा करते हैं. इसी तरह 7,500 किलोमीटर लंबी समुद्र तट रेखा पर करीब 25 करोड़ लोगों की रोजी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में निर्भर है. इसी तरह हमारी कृषि भूमि का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अभी भी बरसात के पानी में निर्भर है. जलवायु परिवर्तन ने लंबे सूखे के साथ-साथ असामान्य बाढ़ और कई बीमारियों के खतरे को बढ़ा दिया है.
गौर करने की बात है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव इतने व्यापक हो गये हैं कि दुनिया के किसी सुदूर कोने में होने वाली घटना को कुछ ही महीनों में आप अपने आसपास होता देख सकते हैं. जानकार कहते हैं कि यही असामान्य व्यवहार क्लाइमेट क्राइसिस या जलवायु संकट है, जिसकी सबसे अधिक चोट भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और कई अफ्रीकी देशों पर पड़ेगी. अभी भारत उत्तर-पूर्व में बाढ़ की मार से उबरा भी नहीं था कि पाकिस्तान की भयानक बाढ़ का असर गुजरात के सीमावर्ती इलाके कच्छ के रण तक दिख रहा है.
एशियन डेवलपमेंट बैंक का कहना है कि भारत में आधी से अधिक जलवायु जनित आपदाएं बाढ़ के रूप में ही आती हैं. पिछले 60 सालों में भारत को बाढ़ से करीब 5 लाख करोड़ की क्षति हो चुकी है. गर्म होते समुद्र के कारण आने वाले दिनों में अगर चक्रवाती तूफानों की संख्या या मारक क्षमता बढ़ी, तो पूर्वी और पश्चिमी तट पर संकट कई गुना बढ़ जायेगा. असम, बिहार और पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में हर साल बाढ़ से होने वाली तबाही किसी से छिपी नहीं है.
जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई में अमीर और विकासशील देशों के बीच एक क्रूर विरोधाभास भी दिखता है. जहां अमेरिका, यूरोप (और अब चीन भी) सबसे अधिक ग्लोबल कार्बन एमिशन के लिये ज़िम्मेदार हैं, वहीं क्लाइमेट क्राइसिस की सबसे बड़ी मार विकासशील और गरीब देशों को झेलनी पड़ती है, क्योंकि उनकी आबादी अधिक है और इस संकट से लड़ने के लिये संसाधनों की कमी है.
अकेले पाकिस्तान की आबादी 22 करोड़ है, जबकि पूरे यूरोप की आबादी मात्र 45 करोड़ ही है. आर्थिक स्थिति को देखें तो यूरोप की प्रति व्यक्ति जीडीपी पाकिस्तान की तुलना में 26 गुना है. आर्थिक संसाधनों और टेक्नोलॉजी की उपलब्धता का अंतर बताता है कि गरीब और विकासशील देशों के लिये क्लाइमेट प्रभावों से लड़ना आसान नहीं होगा.
जलवायु संकट की मार ऐसी है कि एक प्रतिष्ठित जर्नल, प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में छपी रिसर्च बताती है कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक असमानता बढ़ा रहा है. और अगर पिछले 50 सालों में आपदाओं की मार न होती, तो भारत का जीडीपी वर्तमान से 30 प्रतिशत अधिक होता. इस रिसर्च में कहा गया है कि क्लाइमेट चेंज के प्रभाव गरीब देशों को और पीछे धकेल रहे हैं और कुछ अमीर देशों को इस आपदा में अवसर मिल रहे हैं. एक अन्य रिसर्च के मुताबिक साल 2100 तक ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण सालाना जीडीपी में 3-10 प्रतिशत तक गिरावट हो सकती है, और 2040 तक देश की गरीबी में साढ़े तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है.
Also Read
-
Decoding Maharashtra and Jharkhand assembly polls results
-
Adani met YS Jagan in 2021, promised bribe of $200 million, says SEC
-
Pixel 9 Pro XL Review: If it ain’t broke, why fix it?
-
What’s Your Ism? Kalpana Sharma on feminism, Dharavi, Himmat magazine
-
महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजों का विश्लेषण