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सुप्रीम कोर्ट: सीजेआई रमना को विरासत में मिले मामले और उनकी स्थिति

जून 2021 में सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट जज आरवी रवींद्रन की पुस्तक के विमोचन पर उनकी प्रशंसा करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि सबसे अच्छा जज वह है जो मीडिया में कम देखा और जाना जाए.

तब जस्टिस रमना को मुख्य न्यायाधीश बने मुश्किल से दो महीने हुए थे. अब, जब उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है, तो इस बात की आलोचना हो रही है कि उन्होंने न्यायिक प्रणाली, भारत के मीडिया और राजनीतिक दलों की स्थिति पर जिस तरह के बयान दिए, वैसी कोई न्यायिक कार्रवाई उस संबंध में नहीं हुई.

पिछले साल नवंबर में, 100 से अधिक लोगों ने मुख्य न्यायाधीश को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें आग्रह किया गया कि "लोगों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करने वाले कई जरूरी मामलों" में त्वरित न्याय किया जाए. वह चिंतित थे कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370, यूएपीए, सीएए और इलेक्टोरल बॉण्ड जैसे महत्वपूर्ण मामलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. कुछ दिनों पहले, जस्टिस रमना ने स्वीकार किया था कि अदालतों में लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है. इसके लिए उन्होंने कोविड महामारी और उसके फलस्वरूप होने वाले लॉकडाउन को जिम्मेदार ठहराया.

वैसे भी जस्टिस रमना के कार्यकाल में सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों के निपटारे में थोड़ी-बहुत ही प्रगति की. शीर्ष अदालत की वेबसाइट बताती है वहां 71,411 मामले लंबित हैं, जिनमें से 483 - 53 मुख्य और 493 उनसे संबंधित संवैधानिक मामले हैं. 1 मई, 2021 को जस्टिस रमना के मुख्य न्यायाधीश का पदभार संभालने के एक हफ्ते बाद, सुप्रीम कोर्ट में 67,898 मामले लंबित थे. इनमें से 48 मुख्य संविधान पीठ के मामले थे और 396 उनसे संबंधित थे..

संविधान के अनुच्छेद 145 (3) में कहा गया है कि "संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान प्रश्न का निश्चय करने के लिए बैठने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पांच होगी". इस तरह की पीठों का गठन करना और उन्हें मामले सौंपना मुख्य न्यायाधीश का काम है, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में 'समान पद वालों में प्रथम' माने जाते हैं.

पिछले साल मराठा आरक्षण मामले पर दिया गया निर्णय, 24 अप्रैल, 2021 को जस्टिस रमना के सीजेआई के रूप में पदभार संभालने के बाद से सुप्रीम कोर्ट का एकलौता संविधान पीठ का फैसला है. मुख्य न्यायाधीश उस बेंच पर नहीं थे. सितंबर 2021 में उन्होंने अडानी पावर द्वारा गुजरात ऊर्जा विकास लिमिटेड के साथ ऊर्जा खरीद समझौते को रद्द करने के विवाद को निपटाने के लिए एक संविधान पीठ की स्थापना की. लेकिन चार महीने बाद दोनों पक्षों ने अदालत के बाहर सुलह कर ली और इसे भंग कर दिया गया.

मई में सीजेआई के नेतृत्व वाली एक पीठ ने इस मामले को संविधान पीठ को सौंप दिया कि दिल्ली की नौकरशाही राज्य सरकार नियंत्रित करेगी या केंद्र सरकार. यह निर्णय नरेंद्र मोदी सरकार को राहत देने वाला था, क्योंकि वह यही मांग कर रही थी. मामले की जल्द सुनवाई होने की संभावना नहीं है.

जस्टिस रमना को विरासत में मिले कुछ मामले और अबतक उनपर हुई कार्रवाई निम्न है:

अनुच्छेद 370 को हटाना

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में कम से कम 23 याचिकाएं दायर हुई हैं. यह अनुच्छेद भूतपूर्व जम्मू और कश्मीर राज्य को थोड़ी-बहुत स्वायत्तता प्रदान करता था. इन याचिकाओं में तत्कालीन राज्य के केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन को भी चुनौती दी गई है.

जस्टिस रमना के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है लेकिन अभी तक यह तय नहीं किया गया है कि यह संवैधानिक मामला है या नहीं और न ही इसे निपटाने की कोई तत्परता दिखी है. इस साल अप्रैल में जब वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने अदालत से कहा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की कवायद के मद्देनजर इस मामले की तत्काल सुनवाई की जरूरत है, तो सीजेआई ने कहा कि वह गर्मियों की छुट्टियों के बाद पांच न्यायाधीशों की पीठ का पुनर्गठन करेंगे जो इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

सबरीमाला फैसले की समीक्षा

2018 में केरल के सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया था. कोर्ट ने माना था कि इस प्रकार का बहिष्कार हिंदू धर्म की एक अनिवार्य प्रथा नहीं है. इस मामले ने महिलाओं के लिए उपासना के समान अधिकार का प्रश्न खड़ा कर दिया, और 2018 के फैसले की समीक्षा के लिए शीर्ष अदालत में 50 से अधिक याचिकाएं दायर हुईं. मामला फरवरी 2020 से लटका हुआ है.

नागरिकता संशोधन अधिनियम

जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं सबके लिए सर्वोपरि हैं. लेकिन कोर्ट ने नए कानून को लागू करने वाली सरकारी अधिसूचना पर रोक नहीं लगाई.

अधिकांश याचिकाओं में दलील दी गई कि संविधान के अनुच्छेद 14 ने सबके लिए विधि के समक्ष समता का अधिकार सुनिश्चित किया है और संसद ऐसे कानून नहीं बना सकता जो लोगों के समूहों के बीच मनमाने ढंग से या तर्कहीन रूप से भेदभाव करते हैं. नए कानून में विशेष रूप से मुसलमानों को छोड़कर इसी प्रकार भेदभाव किया गया है.

जून 2021 से इस मामले की सुनवाई नहीं हुई है, हालांकि कोर्ट में इससे जुड़ी 140 से ज्यादा याचिकाएं दायर हो चुकी हैं.

नोटबंदी

नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के अधिकांश नोटों को अमान्य कर देने के बाद से देश ने पांच मुख्य न्यायाधीश देखे हैं. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में इस कदम के विरुद्ध कई याचिकाएं दायर हुईं. याचिकाओं पर सुनवाई के लिए गठित तीन जजों की बेंच ने नोटबंदी पर रोक लगाकर अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया. लेकिन इसने नौ प्रश्न तैयार किए और कहा कि उनपर एक संविधान पीठ द्वारा विचार किया जाएगा. पांच साल से अधिक बीत जाने के बाद भी, जबकि छठे मुख्य न्यायाधीश अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं, इस संविधान पीठ का गठित होना अभी बाकी है.

इलेक्टोरल बॉण्ड योजना

इलेक्टोरल बॉण्ड योजना द्वारा राजनीतिक दलों को मिलने वाले गुमनाम और असीमित दान को वैध बनाया गया. इस योजना को चुनौती देने वाली याचिकाएं 2017 से लंबित हैं. जब सुप्रीम कोर्ट ने बॉण्ड की बिक्री पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन कहा था कि वह याचिकाओं पर गहन सुनवाई करेगी क्योंकि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग दोनों ने "भारी मुद्दों" को उठाया था जो "देश की चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता पर बड़ा असर" डालते हैं.

तब से कई चुनाव हो चुके हैं, जिनमें इलेक्टोरल बॉण्ड्स के माध्यम से पर्याप्त धन लगा है. चार महीने पहले, सुप्रीम कोर्ट अंततः मामले की सुनवाई करने को तैयार हुई. तब सीजेआई ने कहा था कि यदि महामारी नहीं होती तो वह इस मामले की सुनवाई पहले ही करते. लेकिन उस के बाद से इस मामले की कोई खबर नहीं है.

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