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क्या चूक रहे चौहान? ‘नो नॉनसेंस’ से पकड़ी ‘कट्टर हिंदुत्व’ की राह
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23 मार्च, 2022 को भोपाल जिले की हुजूर विधानसभा के विधायक रामेश्वर शर्मा के घर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहुंचे थे. चौहान के स्वागत में शर्मा ने घर के बाहर बुलडोजरों का काफिला खड़ा कर दिया था. उनके ऊपर लगे पोस्टर्स में लिखा था- “बुलडोजर मामा- अगर किया जनता पर अत्याचार तो बुलडोजर चलेगा फुल रफ्तार”.
यह मिलना-जुलना शिवराज सिंह चौहान के चौथे कार्यकाल की दूसरी सालगिरह के मौके पर हो रहा था. शर्मा के घर के बाहर लगे बुलडोजर ने पूरे देश की मीडिया का ध्यान खींचा क्योंकि अभी-अभी (10 मार्च को) यूपी विधानसभा चुनावों के परिणाम आए थे. वहां ‘बाबा बुलडोजर’ की छवि के जरिए योगी अदित्यनाथ ने सत्ता में वापसी की थी.
रामेश्वर शर्मा के इस स्वागत पर शिवराज सिंह के ऑफिस ने ट्वीट करते हुए कहा, “मामा का बुलडोजर हमेशा चला है, जब तक बदमाशों को साफ नहीं कर देता, यह रुकने वाला नहीं है. असामाजिक तत्वों को हम छोड़ने वाले नहीं हैं.”
प्रदेश के मुख्यमंत्री अपनी नई छवि को लेकर काफी खुश हैं. इस छवि को पुख्ता करने की गरज से मध्य प्रदेश के हर जिले में बुलडोजर की कार्रवाई की गई है. न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि इन कार्रवाईयों का निशाना खासकर अल्पसंख्यक समुदाय बना है. जाहिर है यह छवि सोच-समझ कर बनाई जा रही है और जनता के बीच कट्टर हिंदुत्व का चेहरा पेश करके ध्रुवीकरण का फायदा उठाया जा सके. अपने चौथे कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान को हिंदुत्व की गंगा में डुबकी लगाने की मजबूरी क्यों आन पड़ी.
‘बुलडोजर मामा’ की छवि क्यों?
2005 में जब चौहान के हाथों में पहली बार मध्य प्रदेश की सत्ता आई, उस समय तक वो कोई मास नेता नहीं थे. भाजपा ने उन्हें महासचिव बनाया था. लेकिन मध्य प्रदेश की बागडोर लोकप्रिय और आक्रामक उमा भारती के हाथ में थी. उस वक्त कई परिस्थितियों ने मिलकर शिवराज के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता खोला था. इसमें उनके किसी राजनीतिक कौशल का हाथ नहीं था. उमा भारती के खिलाफ हुबली ईदगाह मामले में गैर जमानती वारंट जारी हो गया, उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर के साथ उमा भारती ने रिश्ते और खराब कर लिए. लिहाजा शिवराज सिंह चौहान को भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने समझौता फार्मूले के तहत मुख्यमंत्री बनाया.
लेकिन इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने खुद को एक सौम्य, शिष्ट, विनम्र और सर्वसुलभ नेता के रूप में गढ़ा. उनके नेतृत्व में पार्टी ने अगले दो विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत हासिल किया. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुत कम अंतर से बहुमत से पीछे रह गई. कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार का गठन किया. जैसे-तैसे जोड़तोड़ के बाद भाजपा ने दो साल के भीतर कमलनाथ की सरकार गिरा दी और शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने. यहां से सौम्य, शिष्ट, सर्वसुलभ चौहान की सियसत में एकदम से बदलाव आ गया. उनकी सियासत में कट्टरता, भाषा में आक्रामकता और हिंसा, बॉडी लैंग्वेज में असुरक्षा दिखने लगी.
मध्य प्रदेश में 2018 में बनी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने भी कई माफियाओं और अपराधियों के घर पर बुलडोजर चलाया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान का बुलडोजर ही क्यों प्रसिद्ध हुआ? इसका कारण है ‘मामा’ की छवि से निकलकर ‘सख्त मुख्यमंत्री’ बनने की कोशिश और कट्टर हिंदुत्व के खेल में पिछड़ने का डर.
भोपाल के एक वरिष्ठ पत्रकार न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “जिस कट्टर हिंदुत्व और सख्त प्रशासक की छवि के जरिए योगी आदित्यनाथ ने यूपी में वापसी की, वही छवि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह भी बनाना चाहते हैं. ताकि आने वाले चुनावों में वह अपनी स्थिति को मजबूत कर सकें.”
यूपी चुनावों के परिणामों के बाद अचानक से मध्य प्रदेश में बुलडोजर की कार्रवाइयों में बढ़ोतरी हुई. मार्च महीने से शुरू हुई बुलडोजर की कार्रवाइयों ने मुख्यमंत्री की छवि को रातों-रात बदल दिया. मीडिया से लेकर पार्टी नेताओं के बीच शिवराज सरकार की तारीफ होने लगी. इससे गदगद शिवराज सिंह ने मीडिया और अन्य सभा सम्मेलनों में बुलडोजर को लेकर बयानबाजी तेज़ कर दी.
विधायक रामेश्वर शर्मा कहते हैं, “बुलडोजर त्वरित न्याय का पर्याय है. शिवराज सरकार गरीबों, माताओं-बहनों के लिए फूल से कोमल और दुष्टों के लिए दुर्जन है. इसी ध्येय को ध्यान में रखकर यह कार्रवाई हो रही है.”
शर्मा के मुताबिक, “अगर कोई मुस्लिम हमारी हिंदू लड़कियों के साथ गलत काम करेगा तो उसे साथ बैठाकर चाय तो नहीं पिला सकते? उसको जवाब तो देना होगा. सरकार वह अच्छी होती है जो तुंरत न्याय दे और हमारे ‘बुलडोजर मामा’ अपराधी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके उसे सजा दे रहे हैं.”
खुद चौहान ने एकाधिक मौकों पर कहा है कि जो बेटी, मां, बहनों की तरफ गलत नजर उठाता है, उसके लिए सामान्य सजा पर्याप्त नहीं है. अब हम ऐसा सबक सिखाएंगे कि अपराधी कांप जाएंगे. कानून सजा देगा, लेकिन बुलडोजर भी चलेगा.
शिवराज सिंह के बयानों का अनुसरण उनकी पार्टी के विधायक और मंत्री भी कर रहे हैं. भोपाल से विधायक और स्वास्थ, शिक्षामंत्री विश्वास सांरग के इलाके में भी बुलडोजर चला है. वह कहते हैं, “जो भी अपराध करेगा उसपर अब मामा का बुलडोजर चलेगा.”
यह पूछे जाने पर की कई ऐसे लोगों के घरों पर भी बुलडोजर चला जो उनके नाम पर हैं ही नहीं, इस पर वो कहते हैं, “उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. उसने अपराध किया है तो भुगतना पड़ेगा. वैसे भी अगर हमने किसी का गलत घर गिराया होता तो अभी तक यह लोग कोर्ट पहुंच गए होते.”
बता दें कि खरगोन और सेंधवा में बुलडोजर द्वारा गिराए गए घरों को लेकर वकील अशर वारसी ने इंदौर हाईकोर्ट में 17 केस दायर किया है. इन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा है. वहीं 3 केस सुप्रीम कोर्ट में दायर है. जिसमें से सेंधवा का एक मामला एहतेशाम हाशमी और दो मामले अशर वारसी ने ही दाखिल किया है. इन मामलों पर सुनवाई होना बाकी है.
भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार धनंजय सिंह बताते हैं, “शिवराज सिंह के चौथे कार्यकाल में बुलडोजर का प्रमुखता से उपयोग हो रहा है. इससे पहले बुलडोजर कभी ऐसे प्रचारित नहीं हुआ. वह अपने इस टर्म में ‘सख्त प्रशासक’ की छवि बना रहे हैं.”
प्रदेश भाजपा को कई सालों से कवर करने वाले एक पत्रकार कहते हैं, “हिंदुत्व के मुद्दे पर राजनीति अब मुखर हो गई है. जिसके कारण अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है. इसलिए रामनवमी पर निकले जुलूस के बाद हिंसा की घटनाए हुई और फिर उसके बाद बुलडोजर के जरिए लोगों के घरों को गिरा दिया गया. इससे दो छवि बनी, पहली तो कट्टर हिंदुत्व की राजनीति और दूसरा त्वरित न्याय के जरिए सख्त प्रशासक की छवि.”
वो आगे कहते हैं, “यह दो चीजें हैं जो ज्यादातर भाजपा शासित मुख्यमंत्री पाना चाहते हैं. इसके जरिए वह चर्चाओं में बने रहते हैं और शीर्ष नेताओं के पंसदीदा भी बन जाते हैं.”
किस तरह होती है बुलडोजर की कार्रवाई?
देश में किसी के घर पर बुलडोजर चलाने का कोई कानून नहीं है. वह भी सिर्फ आरोप के आधार पर किसी का घर गिराने का तो कतई नहीं. लेकिन दुर्भाग्य से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में ऐसा देखने को मिला है.
मध्य प्रदेश में बुलडोजर अभियान को लेकर कोई लिखित या आधिकारिक सूचना शासन की तरफ से जिला अधिकारियों को नहीं दी गई है. लेकिन मुख्यमंत्री के भाषणों से जो ‘मैसेजिंग’ होती है उसे सभी अधिकारी मान लेते हैं और उसी हिसाब से कार्रवाई होती है.
मध्य प्रदेश में बुलडोजर की जो परिकल्पना है वह मुख्यमंत्री के कुछ खास अधिकारियों की सोच से निकली है. शिवराज सिंह के ऊपर यह आरोप भी यदाकदा लगता रहा है कि वो अपने मंत्रियों से ज्यादा अधिकारियों पर विश्वास करते हैं.
नगर निगम चुनावों के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने शिवराज चौहान पर बयान दिया था. उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री अधिकारियों पर जितना विश्वास रखते हैं, उतना कार्यकर्ताओं पर करते तो गलती नहीं होती.”
उनके इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं. इस समय सरकार में कोई अधिकारी जो सबसे ज्यादा ताकतवार है वो हैं प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस. प्रशासन को कवर करने वाले एक पत्रकार कहते हैं, “अपने चौथे कार्यकाल में मुख्यमंत्री पूरी तरह से अधिकारियों पर आश्रित हैं. मुख्य सचिव जो बोल दें वही होता है. बुलडोजर को लेकर अधिकारियों में गुस्सा है, असंतोष है लेकिन कोई कुछ बोलता नहीं.”
मुख्य सचिव के अलावा डीजीपी सुधीर सक्सेना, अपर मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान और सीएम के ओएसडी नीरज वशिष्ट आदि सरकार के भरोसेमंद अधिकारी माने जाते हैं. इन अधिकारियों पर सीएम की छवि चमकाने का भी दारोमदार है.
मध्य प्रदेश सरकार को कवर करने वाले पत्रकार हरीश दिवेकर कहते हैं, “मुख्यमंत्री द्वारा सार्वजनिक मंचों पर यह कहना कि जमीन में गाड़ दूंगा, माफिया प्रदेश छोड़ दें, मकान खोदकर मैदान बना दूंगा यह सब सख्त प्रशासक की छवि को दिखाता है. साथ ही इस तरह के बयान से अधिकारी समझ लेते है कि उन्हें क्या करना है.”
एक पत्रकार जिन्होंने प्रदेश में हुई हिंसाओं को कवर किया है वह कहते हैं, “कई जिलाधिकारियों ने मुझे बताया है कि उनके ऊपर बुलडोजर की कार्रवाई करने का दबाव है, क्योंकि ऊपर से आदेश है. कुछ अधिकारी ज्यादा से ज्यादा घर गिराकर सीएम की गुड लिस्ट में आना चाहते हैं.”
ऐसे किसी आदेश के दावे की पुष्टि न्यूज़लॉन्ड्री नहीं कर पाया. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एसआर मोहंती कहते हैं, “इस तरह की कार्रवाइयों के लिए कोई आदेश जारी नहीं होता. और ऐसा भी नहीं है कि अधिकारी ज्यादा से ज्यादा बुलडोजर की कार्रवाई कर रहे हैं, यह तो हर कलेक्टर पर निर्भर करता है.”
वह आगे कहते हैं, “प्रदेश में मुखिया मुख्यमंत्री होता है. इसलिए आदेश सिर्फ उसी का चलता है.”
सीएम के ओएसडी सत्येंद्र खरे द्वारा न्यूज़लॉन्ड्री को दिए बुलडोजर अभियान से जुड़े दस्तावेज के मुताबिक, प्रदेश में एक अप्रैल, 2020 से जून 2022 तक 2535 आरोपियों के विरुद्ध 949 अपराध दर्ज किए गए. सरकार ने बताया कि बुलडोजर की कार्रवाई से 25,191 एकड़ शासकीय भूमि मुक्त कराई गई.
सरकार ने अलग-अलग तरह की कार्रवाई को लेकर आंकड़े दिए है. यह तो साफ है कि भले ही बुलडोजर को लेकर कोई लिखित आदेश नहीं है लेकिन सरकार अपने बुलडोजर की कार्रवाइयों के आंकड़े इकट्ठा कर रही है.
शिवराज ‘मामा’ की छवि?
2020 में जोड़तोड़ के बाद सत्ता में वापसी के बाद से शिवराज सिंह अपनी छवि को लेकर काम कर रहे हैं. अब वो पूरी तरह से राजनीति पर ध्यान दे रहे है. इसके पीछे 2018 की हार अहम कारण है. माना जाता है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की निगाह में भी शिवराज अब चुनाव-जिताऊ चेहरा नहीं रह गए हैं, लेकिन हटाया नहीं गया.
बीजेपी के एक विधायक कहते हैं, “ईमानदार छवि और कद के कारण ही उन्हें चौथी बार सीएम बनाया गया, वरना बीजेपी में चेहरों की कमी नहीं है. हाल फिलहाल में ऐसे नेताओं को बीजेपी ने आगे किया है जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा.”
एक राष्ट्रीय टीवी चैनल के पत्रकार कहते हैं, “राजनीति में हर आदमी महत्वाकांक्षी होता है. शिवराज भी सीएम से आगे बढ़ने के लिए काम कर रहे हैं. मोदी के बाद भाजपा में शिवराज ही जो चार बार मुख्यमंत्री बने हैं. लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह से मोदी के बाद योगी की हवा चली है. उससे भी शिवराज के ऊपर अपनी छवि बदलने का दबाव पड़ा है.”
वो पत्रकार कहते हैं, “शिवराज की छवि चमकाने के लिए मुंबई की एक पीआर कंपनी हायर की गई है. यह सब उनको अगला चुनाव जिताने और सीएम पद की दावेदारी में बने रहने के लिए हो रहा है.”
2018 के चुनावों में हार के बाद शिवराज सिंह चौहान का कद थोड़ा कम हुआ है. लेकिन उसका असर बहुत ज्यादा नहीं है. दूसरी तरफ कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव जैसे नेताओं को इनाम भी मिला है.
बुलडोजर की कार्रवाइयां इन दिनों कम हो गई हैं. वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर कहते हैं, “बुलडोजर कोई टिकाऊ मुद्दा नहीं है और स्टेट मशीनरी इन सबके लिए नहीं बनी है.”
चौहान के ओएसडी सत्येंद्र खरे न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “पहले जब चंबल में डकैतों का राज था. तभी भी सीएम ने ठान लिया था कि एमपी में डकैत नहींं रहेंगे जिसके बाद उन्होंने उनका सफाया कर दिया. वैसे ही हम माफियाओं के खिलाफ अभियान चला रहे हैं.”
नरोत्तम से खटास और कांग्रेस ने दिया वॉकओवर
मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में रामनवमी के जुलूस के बाद बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. हिंसा के अगले ही दिन प्रशासन ने लोगों के घरों पर बुलडोजर चलवाना शुरू कर दिया. तलाब चौक पर स्थित जामा मस्जिद में लगे सीसीटीवी फुटेज जो न्यूज़लॉन्ड्री ने खुद देखा है. उसमें साफ दिख रहा है कि भीड़ द्वारा पत्थरबाजी की शुरूआत की गई. लेकिन बावजूद इसके पुलिस ने मस्जिद परिसर में बनी दुकानों को तोड़ दिया साथ ही कई बेगुनाह लोगों के घरों पर बुलडोजर चला दिया.
इस घटना के 25 दिनों बाद कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल प्रभावित परिवार से मिलने के लिए घटनास्थल पर गया. पार्टी ने 25 दिन का इंतजार किया, जबकि जिस इलाके में यह हिंसा हुई वहां कांग्रेस पार्टी के विधायक रवि जोशी हैं. खरगोन जिले की छह विधानसभी सीटों में से पांच पर साल 2018 में कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की थी.
जिस घटना की चर्चा पूरे देश में हो रही थी उस जिले में कांग्रेस पार्टी के चार विधायक होने के बावजूद वह पीड़ित परिवारों तक नहीं पहुंच पाए. न्यूज़लॉन्ड्री को कई ऐसे कई परिवार मिले उन्होंने बताया कि घर टूट जाने के बावजूद विधायक उनसे मिलने तक नहीं आए.
कांग्रेस मीडिया प्रमुख केके मिश्रा कहते हैं, “बतौर विपक्षी दल हमने बुलडोजर के जरिए बेगुनाह लोगों के घरों को गिराए जाने के मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठाया है. हमारा प्रतिनिधिमंडल हिंसा वाली जगहों पर गया और पीड़ित लोगों से भी मिला.”
विपक्ष कमजोर है लेकिन कई बार शिवराज के मंत्रिमंडलीय सहयोगी और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा के बयान विपक्ष की कमी को पूरा कर देते है. एक वक्त था जब मिश्रा हर दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे. अजाकल बंद कर दिया है. एक पत्रकार कहते हैं, “नरोत्तम और शिवराज में पैचअप हो गया है.”
भोपाल में पत्रकारों और बीजेपी-कांग्रेस के दफ्तर में नरोत्तम मिश्रा के बारे में अब प्रचलित है कि मिश्रा अपनी मर्जी से एक कांस्टेबल का भी ट्रांसफर नहीं कर पाते. उनके आदेश मुख्य सचिव और सीएम ऑफिस में अटके रहते हैं. एक अधिकारी के मुताबिक एक बार मिश्रा ने चौहान से पूछ लिया था कि उनके अधिकार क्या हैं.
मिश्रा के पीछे अमित शाह का वरदहस्त माना जाता है. कहते हैं कि शाह के संरक्षण के कारण ही मिश्रा के तमाम बड़बोले बयानों के बावजूद पार्टी ने कभी उन्हें कुछ नहीं बोला.
देश की राजनीति में हिंदुत्व की जो लहर है उसके थपेड़ों से शिवराज भी बहुत ददिनों तक बच नहीं सकते. सौम्य, शिष्ट, विनम्र और सर्वसुलभ अब भाजपा ही नहीं रह गई है तो शिवराज कैसे रह सकते हैं. ‘बुलडोजर मामा’ उसी की परिणति है.
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