झरिया कोलफील्ड का दृश्य.
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झरिया कोलफील्ड की अंतहीन आग में फंसे लोगों की अंतहीन पीड़ा

काफी कोशिशों के बाद भी वो अपना नाम बताने को तैयार नहीं हुईं. गुस्से में बहुत सारी बातें कहने वाली उस महिला ने अपना परिचय कुछ यूं दिया, “अब्दुल जबार की पत्नी, अली की मां.” झारखंड में धनबाद के बेलगड़िया टाउनशिप में रहने वाली करीब 60 साल की उस बुजुर्ग महिला ने कहा, “हमें पता होता तो हम यहां कभी नहीं आते.“ अली भी गुस्से में थे, बोले, “यहां देश-विदेश के मीडिया वाले आते हैं, वे अपना काम कर चले जाते हैं, लेकिन हमारा कुछ नहीं बदलता, यह देखिए कुछ ही साल में यह क्वार्टर टूटकर गिरने लगा है.” मैमून निशा नाम की एक दूसरी बुजुर्ग महिला ने कहा, “हमें यहां का हाल पता होता तो झरिया में ही आग में दब कर मर जाते.”

यह उस बस्ती के लोगों की पीड़ा है, जिसका निर्माण झरिया व उसके आसपास जमीन के नीचे कोयले में लगी आग से प्रभावित परिवारों के लिए किया गया है. झरिया में 595 जगहों को आग और भू धसान प्रभावित क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया गया है. इसके अलावा 868 सार्वजनिक स्थानों को आग और भू-धसान प्रभावित चिह्नित किया गया था, जिसमें बैंक, मार्केटिंग कांप्लेक्स, धार्मिक कांप्लेक्स सब आते हैं. कुछ खबरों में तो इसे दुनिया का सबसे बड़ा बर्निंग एरिया (जल रहा इलाका) बताया गया है. ऐसे में यहां रह रहे लोगों को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट करने के लिए 11 अगस्त 2009 को झरिया मास्टर प्लान लागू हुआ. धनबाद जिले के बलियापुर प्रखंड की पलानी पंचायत के बेलगड़िया में टाउनशिप बसाई गई.

बेरोजगारी और अभाव में कट रही जिंदगी

वैसे बेलगड़िया से धनबाद और झरिया की दूरी महज सात किलोमीटर है. लेकिन यह जगह परिवहन के सुलभ साधनों से कटी हुई है. इस वजह से यहां रोजगार की संभावनाएं भी नहीं है. टाउनशिप में अधिकांश लोग अति निम्न मध्यमवर्गीय या गरीब परिवारों से हैं, जो असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं या दिहाड़ी मजदूर हैं. रोजगार के लिए धनबाद या झरिया जैसी जगहों पर जाने में इनकी दिहाड़ी का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है.

बेलगड़िया कॉलोनी में रहने वाली अली की मां खराब निर्माण व बुनियादी सुविधाओं को लेकर अपना गुस्सा जताते हुए.

बेलगड़िया टाउनशिप में बसाए गए दस में नौ लोगों का कहना था कि यहां रोजगार नहीं मिलना सबसे बड़ी समस्या है. उनके मुताबिक झरिया में रहते हुए कोई भी काम करके घर चला लेते थे, लेकिन यहां ऐसा नहीं है. लोगों ने बताया कि रोजगार के अभाव में पैसों की तंगी बनी रहती है, जिससे घरेलू कलह भी होता है. छह साल पहले डाबरी कॉलोनी से यहां लाकर बसाए गए सुरेश भुईयां ने बताया कि पहले वे रेलवे में टेंडर पर प्राइवेट जॉब किया करते थे, लेकिन अब कमाने के लिए चेन्नई जा रहे हैं.

टाउनशिप में रोजगार से जुड़े सवाल पर बलियापुर के बीडीओ अमित कुमार ने हमसे कहा, “हां ऐसी स्थिति वहां है, हम वहां मनरेगा कैंप लगाकर अधिक से अधिक लोगों को योजना से जोड़ना चाहते हैं, लेकिन हमारा अनुभव यह है कि वहां के लोग मनरेगा में काम नहीं करना चाहते.” वहीं बलियापुर प्रखंड के बीपीओ विशाल कुमार ने कहा कि जून 2022 तक बेलगड़िया टाउनशिप के 380 लोगों का रजिस्ट्रेशन मनरेगा के लिए किया गया लेकिन बामुश्किल 100 लोग ही काम करते हैं.

झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकरण (ज्रेडा) के प्रभारी अधिकारी अमर प्रसाद ने कहा, “झारखंड राज्य आजीविका मिशन के माध्यम से सहयोग समिति बना कर लोगों को रोजगार से जोड़ा जा रहा हैं. ज्रेडा के प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग यूनिट की टीम लीडर आशा कुजूर ने बताया कि बेलगड़िया में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों की संख्या इस साल 30 से बढ़कर 50 हो गई है. हरेक समूह में 12 से 15 महिलाएं होती हैं. झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी उन्हें सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दे रहा है. आचार-मुरब्बा जैसे उत्पाद के प्रशिक्षण का भी प्रबंध किया जा रहा है. हालांकि उनके उत्पाद की मार्केटिग के सवाल पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला और कहा गया कि इसके लिए प्रयास किए जा रहे हैं.

बेलगड़िया में रोजगार से जुड़ी समस्या को सीएसआइएस एनर्जी प्रोग्राम के सीनियर रिसर्च लीड संदीप पाई पेशागत जुड़ाव और ट्रांजिशन से जुड़ी चुनौतियों के रूप में देखते हैं. उदाहरण देते हुए पाई कहते हैं, “अगर आप 20 साल से पत्रकार हैं तो अचानक कोई और काम कैसे करने लगेंगे?” उसी तरह जो लोग दशकों से कोयला से आय अर्जित करते रहे हैं, वे अचानक से मनरेगा या दूसरे कामों में खुद को असहज महसूस करते हैं. पाई आगे कहते हैं, “झरिया या जो भी कोयला क्षेत्र हैं वहां आबादी बढ़ रही है और ट्रांजिशन को लागू करना जटिल प्रक्रिया है. अगर कोयला आधारित समुदाय का अन्य क्षेत्र में ट्रांजिशन करना है तो दीर्घकालिक रणनीति और अर्थव्यवस्था के विविध बनाने की जरूरत होगी. राज्य व जिला स्तर पर नया सेक्टर तैयार करके कौशल विकास करना होगा.”

सनद रहे कि विश्व भर में कोयला खदानों और कोयले से चलने वाले पावरप्लांट को बंद करने की मांग उठ रही है. जलवायु परिवर्तन को देखते हुए एक तरफ यह मांग तेजी पकड़ रही है तो दूसरी तरफ इसकी चिंता भी बढ़ रही है कि जिन लोगों की रोजी-रोटी कोयले की अर्थव्यवस्था पर आधारित है उनका क्या होगा! इसी चिंता को दूर करने के लिए ‘जस्ट ट्रांजिशन’ यानी न्यायसंगत बदलाव की मांग भी जोर पकड़ रही है. एक अध्ययन के अनुसार भारत के कुल 284 जिलों में लोग कोयले की अर्थव्यवस्था पर निर्भर है. इनमें से 33 जिले ऐसे हैं जहां कोयले पर लोगों की निर्भरता अत्यधिक है. भारत मे भी ऐसे लोगों की आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन लोगों के रोजगार और रहवास को लेकर कई तरह के सुझाव आ रहे हैं. ऐसे में यह बेलगड़िया मॉडल एक सीख है कि सरकार को आगे कैसे बढ़ना चाहिए.

वहीं धनबाद के सांसद पशुपतिनाथ सिंह ने कहा, “यह फैसला ही गलत था. उन्हें अगर आग व भू-धसान क्षेत्र से हटाकर कहीं और बसाना था तो वैसी कोयला खदानों के आसपास बसाते जहां आग नहीं है, ताकि उन्हें काम मिल पाता.”

रोजगार के अलावा टाउनशिप में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. कई-कई दिनों तक पानी नहीं आना, टाउनशिप में गंदगी का बढ़ता अंबार, बजबजाती और कुछ जगहों पर सड़कों पर बहती नालियां, 5-10 सालों में ही भवन की दीवारों में दरार पड़ जाना और छत की झड़ती ढलाई को यहां के लोग दूसरी बड़ी समस्या मानते हैं. झरिया के घनुआडीह से यहां लाकर बसाए गए मनोहर शर्मा ने कहा, “इस कॉलोनी में पानी एक बड़ी दिक्कत है. एक दिन छोड़कर पानी की सप्लाई होती है.” इन दिक्कतों की वजह से बेलगड़िया टाउनशिप में बहुत सारे परिवार बबसना नहीं चाहते हैं.

झरिया मास्टर प्लान बनने की पृष्ठभूमि

झरिया देश के सबसे पुराने कोयला खनन क्षेत्र में एक है. यहां जमीन के अंदर आग की समस्या अंग्रेजों के जमाने से है. साल 1916 में यहां पहली बार आग की समस्या दर्ज की गई. धनबाद से सटे पश्चिम बंगाल के आसनसोल से सीपीएम से सांसद रहे हरदन राय एकीकृत बिहार व पश्चिम बंगाल की कोयला खदानों में लगी भूमिगत आग के मुद्दे पर काफी सक्रिय थे और उन्होंने संसद में भी इस मुद्दे को उठाया था और अदालतों में भी लेकर गए. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर झरिया और पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र के असुरक्षित इलाके से लोगों के पुनर्वास की मांग की थी. इसका परिणाम यह हुआ कि वर्ष 2003-04 में एक्शन प्लान बना और फिर 12 अगस्त 2009 को भारत सरकार ने उसे मंजूर किया.

इस मास्टर प्लान में आग से निपटने और बीसीसीएल कर्मियों के पुनर्वास की जिम्मेदारी बीसीसीएल को दी गई, जबकि भूतल पर सर्वे कराने और उस पर बने भवन व अन्य आधारभूत संरचना का डायवर्जन करने व गैर बीसीसीएल कर्मियों के पुनर्वास की जिम्मेवारी ज्रेडा यानी झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकरण को सौंपी गई. इस काम के लिए बीसीसीएल एवं ज्रेडा के लिए 7112.11 करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान किया गया था. यह पैसा कोयल मंत्रालय की मुख्य कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड के द्वारा दिया जाता है.

गौरतलब है कि पिछले साल ही ज्रेडा का कार्य विस्तार समाप्त हो चुका है. जिला प्रशासन की ओर से नया प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है. एक अधिकारी ने बताया कि उक्त प्रस्ताव में यह प्रावधान शामिल है कि अगर कोई व्यक्ति आवास नहीं लेना चाहता है तो उसे उसके एवज में नकद राशि दे दी जाए. प्रस्ताव में यह बदलाव ऐसे हालात में किया गया है जब पूर्व में आवंटित मकानों को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं.

तीन गुना बढ़ी अवैध बसावट वाले परिवारों की संख्या

एक तरफ असुरक्षित क्षेत्रों से लोगों को हटाने की कोशिश हो रही है लेकिन दूसरी तरफ इन्हीं असुरक्षित क्षेत्रों में नए लोग बस भी रहे हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2009 से 2019 के बीच अवैध बसावट वाले परिवारों की संख्या तीन गुना बढ़ी है.

सांसद पशुपतिनाथ सिंह कहते हैं, “झरिया कोयला खनन क्षेत्र बहुत बड़ा है और इसमें कतरास, केंदुआ, सिजुआ जैसे कई इलाके हैं. बीसीसीएल के नोटिस के बाद भी अवैध रूप से लोग आ बसे हैं.” एक अधिकारी के मुताबिक बेलगड़िया में घर बनाने के लिए झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकरण को 378 एकड़ जमीन मिली. संशोधित आकलन के बाद 15713 आवासों का निर्माण किया जाना है, जिनमें 7714 बन गए हैं. बाकी बचे 6321 आवास भी बन चुके हैं, लेकिन इनमें बुनियादी सुविधाओं को जोड़ा जाना बाकी है. 2019 से पहले इन आवासों में 3847 परिवारों और 2019 के बाद 338 परिवारों को शिफ्ट किया गया है. एक अधिकारी के अनुसार, जिन परिवारों को बेलगड़िया टाउनशिप में शिफ्ट किया गया है, उनमें करीब 2600 नॉन लीगल टाइटल होल्डर परिवार हैं. अब साल 2009 के बाद बसे नॉन लीगलटाइटल होल्डर को भी मानवीय आधार पर करीब कुल 4.13 लाख रुपए मुआवजा मिलना है. इसमें ढाई लाख मुआवजा, 500 दिनों का न्यूनतम पारिश्रमिक और करीब 16 हजार रुपए शिफ्टिंग अलाउंस शामिल है.

आग पर कुछ नियंत्रण, पर प्रदूषण विकराल

नए सर्वे के आधार पर यह दावा किया जा रहा है कि झरिया में आग पर काबू पाया जा रहा है. एक अधिकारी ने कहा कि शुरुआत में 595 साइटों को आग एवं भू-धसान प्रभावित माना गया था, वहीं नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर के नए सर्वे के अनुसार यह संख्या 300 से कम हो गई है. वहीं आग नियंत्रण के लिए कई उपाय अपनाए जाते हैं. इसमें ट्रेंच कटिंग, सतह को रेत से भरना, आग वाले क्षेत्र में रेत की फ्लशिंग करना, इनर्ट गैस इन्फ्यूजन, रेत एवं बेंटोनाइट के मिक्सचर की फ्लशिंग करना, पानी के आवरण व तालाब के जरिए ठंडा करना, डिगिंग आउट करना आदि शामिल है. बीसीसीएल की वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेज में कहा गया है कि बीसीसीएल ने अपने अनुभव में डिगिंग आउट को आग बुझाने के लिए सबसे अच्छा विकल्प पाया और डीजीएमएस ने भी इसकी पुष्टि की है. बीसीसीएल के झरिया मास्टर प्लान के महाप्रबंधक पीयूष किशोर ने हमसे कहा, “बीसीसीएल की रणनीति अधिक से अधिक स्पॉट पर आग को नियंत्रित कर लेना है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में 27 आग प्रभावित स्थलों को चिह्नित कर हम वहां पर फोकस काम कर रहे हैं.

विस्थापन एवं पुनर्वास के साथ झरिया में वायु प्रदूषण की समस्या गंभीर बनी हुई है. धनबाद देश के वैसे प्रमुख शहरों में है, जहां वायु गुणवत्ता सबसे खराब है, लेकिन धनबाद में भी झरिया की वायु गुणवत्ता सबसे खराब है. झारखंड सरकार धनबाद में वायु गुणवत्ता सुधार के लिए एक एक्शन प्लान तैयार किया है. इस रिपोर्ट से यह पता चलता है कि 2012 से 2018 तक झरिया की वायु गुणवत्ता डेढ गुणा तक अधिक खराब हो गई. यहां पीएम10 धनबाद में सबसे अधिक 319.89 दर्ज किया गया था. अगर वर्तमान आंकड़े भी देखेंगे तो झरिया की वायु गुणवत्ता सेहत के लिए खराब है.

(साभार- MONGABAY हिंदी)

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