Report
दिल्ली सरकार ने 17 साल में निर्माण श्रमिक सेस से जुटाए 3,273 करोड़ रुपए, खर्च किया सिर्फ 182 करोड़
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने दिल्ली सरकार से जुड़ी अपनी रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में सरकार द्वारा किए गए खर्च आदि का ब्यौरा है. इसमें कैग ने बताया है कि दिल्ली सरकार के पास अतिरिक्त राजस्व है. यानी दिल्ली सरकार की आमदनी उसके खर्च से ज्यादा है. दूसरी तरफ रिपोर्ट बताती है कि बीते चार साल में दिल्ली पर 2,268.93 करोड़ कर्ज भी हो गया है.
कैग ने अपनी रिपोर्ट में उन सरकारी योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी है जो विफल रही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2002 में दिल्ली बिल्डिंग एंड कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड (डीबीओसीडब्ल्यू) की स्थापना की गई. इस बोर्ड की स्थापना का उद्देश्य राज्य में निर्माण क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों के कल्याण के लिए मदद करना है मसलन दुर्घटना के समय मदद करना, 60 साल से ज्यादा उम्र के श्रमिकों को पेंशन देना, श्रमिकों के बच्चों को पढ़ने के लिए आर्थिक मदद देना, बीमा योजना, श्रमिकों को घर बनाने के लिए कर्ज देना इत्यादि.
भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम-1996 के तहत श्रमिकों के कल्याण की परिकल्पना की गई है. इस अधिनियम के जरिए राज्य में हर नए निर्माण पर एक प्रतिशत सेस लगाने का प्रावधान हुआ. इस सेस के जरिए डीबीओसीडब्ल्यू बोर्ड श्रमिकों के कल्याण के लिए काम करता है. साल 2002 से 2019 के बीच दिल्ली सरकार को इस सेस के जरिए 3,273.64 करोड़ मिले लेकिन श्रमिकों के ऊपर इस दौरान सिर्फ 182.88 करोड़ ही खर्च किए गए. यानी सेस के तौर पर जमा कुल राशि में से सिर्फ 5.59 प्रतिशत ही श्रमिकों के कल्याण पर खर्च हुआ.
यहां यह बात साफ कर दें कि साल 2002 से 2013 के दौरान दिल्ली में कांग्रेसनीत शीला दीक्षित की सरकार थी. उस दौरान करीब 2,217 करोड़ रुपए जमा हुए थे जबकि 2016 से 19 के बीच यानी केजरीवाल सरकार के कार्यकाल में 1,056.55 करोड़ रुपए इस सेस के तहत जुटाए गए. अगर खर्च के नजरिए से देखें तो शीला दीक्षित के कार्यकाल में इस मद से सिर्फ 61.41 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. जबकि 2016 से 2019 के बीच यानी केजरीवाल सरकार के कार्यकाल में 121.47 करोड़ खर्च किए गए.
जहां एक ओर यह सेस को श्रमिकों के कल्याण पर खर्च नहीं हो रहा है वहीं दिल्ली सरकार दिल्ली की सरकारी बस में श्रमिकों को मुफ्त यात्रा करवाने का प्रचार ज़ोर-शोर से कर रही है. आम आदमी पार्टी विधायक आतिशी मार्लेना फ्री बस यात्रा को लेकर कहती हैं कि फ्री बस यात्रा से श्रमिक प्रतिमाह 1500-2000 रुपये की बचत कर पाएंगे, जिसका इस्तेमाल वे अपने परिवार के बेहतर भरण-पोषण के लिए कर सकेंगे.
जिसका विज्ञापन करना था उसके विज्ञापन पर कोई खर्च नहीं हुआ
सुप्रीम कोर्ट ने 18 जनवरी 2010 को सभी राज्यों को आदेश दिया था कि मीडिया, ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन आदि का उपयोग कर, निर्माण श्रमिकों के रजिस्ट्रेशन, योजना के फायदों को लेकर लोगों को जागरुक किया जाए ताकि श्रमिकों को इसका फायदा मिल सके.
लेकिन कैग की रिपोर्ट बताती है कि श्रमिकों को जागरुक करने को लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए. साथ ही कैग को श्रमिकों को जागरुक करने के लिए कैंप लगाए जाने या कोई पर्चा बांटे जाने से संबंधित कोई रिकॉर्ड भी नहीं मिला.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जागरुकता नहीं होने के कारण ही श्रमिकों को बोर्ड से फायदा नहीं मिल पा रहा है, और न ही बोर्ड नए श्रमिकों को जोड़ने की कोई कोशिश कर रहा है.
बता दें कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा अन्य योजनाओं का विज्ञापन दिया जा रहा है लेकिन जिन श्रमिकों की बात सरकार करती है उनकी जागरुकता का प्रचार-प्रसार नहीं हो रहा. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने एक मार्च, 2020 से 30 जुलाई 2021 के बीच विज्ञापन पर 490.72 करोड़ खर्च किए हैं.
रजिस्टर्ड श्रमिकों की संख्या में कमी
बिल्डिंग एंड कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर बोर्ड के मुताबिक दिल्ली में 10 लाख भवन निर्माण से जुड़े श्रमिक हैं लेकिन बोर्ड के आंकड़े कुछ और ही कहानी बयान करते हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2019 में बोर्ड में केवल 17,339 श्रमिक ही रजिस्टर हुए, जो कि कुल अनुमान का 1.73 प्रतिशत है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि साल दर साल, रजिस्टर्ड श्रमिकों की संख्या में गिरावट आ रही है. साल 2016-17 में 1,11,352 श्रमिक रजिस्टर हुए जो साल 2017-18 में घटकर 67,823 हो गए. वहीं 2018-19 में वह घटकर 5,409 हो गए.
कैग की रिपोर्ट में श्रमिकों के रिकॉर्ड को लेकर जिला स्तर पर भी ढिलाई देखने को मिली. रिपोर्ट में कहा गया कि दक्षिण पश्चिम जिले में मार्च 2019 तक 1,44,325 भवन निर्माण से जुड़े श्रमिक रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से 1,43,904 श्रमिकों का आवेदन जिले के पास नहीं है. इस कारण से यह कैग की जिले में रजिस्टर्ड श्रमिकों का ऑडिट नहीं कर पाई.
इसी तरह उत्तर पश्चिमी जिले में अप्रैल 2016 से मार्च 2019 तक 1,19,082 श्रमिक रजिस्टर हुए. जिसमें से 45,545 आईडी कार्ड श्रमिकों को नहीं बल्कि कंस्ट्रक्शन वर्कर्स यूनियनों के नाम पर जारी हो गए, जो श्रमिकों की असली संख्या पर सवाल खड़े करता है.
दिल्ली के उपराज्यपाल ने साल 2018 में श्रमिकों के रजिस्ट्रेशन संख्या को बढ़ाने और फर्जी आवेदनों को रोकने के लिए, तथा निर्माण स्थल पर काम कर रहे श्रमिकों को रजिस्टर करने के लिए एनडीएमसी, पीडब्ल्यूडी, सीपीडब्ल्यूडी, डीजेबी, एमसीडी, डीडीए और अन्य विभागों को आदेश दिया था.
लेकिन इनमें से किसी भी विभाग ने निर्माण स्थल पर काम कर रहे किसी भी श्रमिक को जनवरी 2020 तक रजिस्टर नहीं किया था. यानी कि दो साल में जितने भी निर्माण कार्य दिल्ली में हुए उस दौरान वहां काम कर रहे किसी श्रमिक को आदेश के बावजूद रजिस्ट्रेशन करने के लिए विभागों ने कोई पहल नहीं की.
लंबित मामले और मुआवजों में अनियमितता
कैग ने अपनी रिपोर्ट में आगे बताया है कि साल 2016-19 के बीच श्रमिकों के कल्याण पर 121.27 करोड़ रुपए खर्चा किया गया, वहीं इस अवधि में सरकार को 1056.55 करोड़ रुपए का सेस मिला. यानी की कुल सेस का मात्र 11.50 प्रतिशत ही खर्च हुआ.
जुलाई 2019 तक करीब 3,919 आवेदन मुआवजे के लिए अलग-अलग जिलों में लंबित हैं लेकिन अभी तक इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. 2015 की कैग रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र किया गया था लेकिन फिर भी सरकार ने आवेदनों के निपटारे में कोई तत्परता नहीं दिखाई.
साल 2016-19 के बीच कुल श्रमिकों के लिए 19 कल्याणकारी योजनाओं में से छह में कोई भी खर्च नहीं किया गया है. तीन सालों में कुल 121.47 करोड़ नौ अलग-अलग योजनाओं पर खर्च किए गए. जिसमें से 104.74 करोड़ रुपए श्रमिकों के बच्चों को पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद के तौर पर दिए गए. हालांकि बोर्ड के पास कितने श्रमिकों के बच्चों को आर्थिक मदद दी गई इसका कोई आंकड़ा नहीं हैं.
जिन मामलों में मदद दी भी गई वह भी संदेह में हैं. ऐसे ही कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि मृत्यु के बाद श्रमिकों के परिवार को दिए जाने वाली मदद में भी कई तरह की अनियमितताएं हैं. उदाहरण के लिए 54 मृत श्रमिक, जिनके परिजनों को 46.94 लाख रुपए की मदद दी गई, इन श्रमिकों के पास रजिस्ट्रेशन कराने से पहले से ही आईडी कार्ड था. लेकिन इनमें से सात ऐसे श्रमिकों को मदद दी गई जिनका रजिस्ट्रेशन उनकी मौत के बाद हुआ था.
ऐसा ही कुछ पेंशन स्कीम में भी हुआ. योजना के मुताबिक पेंशन 60 साल की उम्र पूरा करने के बाद ही दी जाती है. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक सात ऐसे श्रमिकों को पेंशन दी गई जिनका रजिस्ट्रेशन ही 60 साल की उम्र के बाद किया गया. वहीं चार श्रमिक ऐसे भी थे जिनको 60 साल पूरा किए बिना ही पेंशन जारी कर दी गई.
अनियमितताओं के अलावा कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि डीबीओसीडब्ल्यू अधिनियम के मुताबिक एक स्टेट एडवाइजरी बोर्ड का गठन होना चाहिए, जो सरकार को सुझाव देने का काम करे. लेकिन रिपोर्ट में पाया गया कि 2002 में एक एडवाइजरी बोर्ड का गठन हुआ था, जिसका कार्यकाल 2005 में समाप्त हो गया. साल 2005 से खाली पदों को 14 साल बाद जून 2019 में भरा गया. साथ ही इस दौरान बोर्ड की कोई बैठक भी नहीं हुई.
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बोर्ड का गठन जिस उद्देश्य से किया गया, वह उसे पूरा नहीं कर पा रहा है. इसलिए सरकार बोर्ड के कामकाज की समीक्षा करे और साथ ही श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और उनके सामाजिक संरक्षण को लेकर कदम उठाए.
बोर्ड के चेयरमैन श्रम मंत्री होते है. इस समय श्रम मंत्रायल मनीष सिसोदिया के पास है. हमने उनसे बात करने की कोशिश की और कुछ सवाल भी भेजे हैं. अगर उनकी तरफ से कोई जवाब जाता है तो खबर में जोड़ दिया जाएगा.
(इस रिपोर्ट को बुधवार 7 बजकर 25 मिनट पर अपडेट किया गया है)
Also Read
-
CEC Gyanesh Kumar’s defence on Bihar’s ‘0’ house numbers not convincing
-
Hafta 550: Opposition’s protest against voter fraud, SC stray dogs order, and Uttarkashi floods
-
TV Newsance 310: Who let the dogs out on primetime news?
-
If your food is policed, housing denied, identity questioned, is it freedom?
-
The swagger’s gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream