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क्या यूपी सरकार कोरोना से हुई मौतों का गलत आंकड़ा जारी कर रही है?

भारत में कोरोना से मरे लोगों के आंकड़ों को लेकर अक्सर सवाल खड़े होते हैं. कोरोना की पहली लहर के समय से ही अलग-अलग सरकारों पर आरोप लगा कि वो मृतकों की संख्या कम बता रही हैं, लेकिन केंद्र सरकार या राज्य सरकारें अपने ही आंकड़ों को सत्य मानती रही हैं. जबकि अब उत्तर प्रदेश में कोरोना मृतकों को लेकर सरकार का अपना ही आंकड़ा अलग-अलग है.

भारत सरकार की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 25 मई 2022 तक 23 हजार 519 लोगों की कोरोना से मौत हुई है. अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में भी लगभग यही आंकड़ा सामने आता है. वहीं विधानसभा में एक सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताया कि 31 मार्च 2022 तक कोरोना से मरे 36 हजार 858 लोगों के परिजनों को 50 हजार रुपए की मुआवजा राशि दी गई.

24 मई को संभल जिले के असमोली विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी की विधायक पिंकी सिंह यादव ने, कोरोना मृतकों के परिजनों को मिलने वाले मुआवजे को लेकर विधानसभा में सवाल पूछा था.

पिंकी यादव ने पूछा, ‘‘क्या मुख्यमंत्री बताने की कृपा करेंगे कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने पर आश्रितों को मुआवजा धनराशि देने का सरकार द्वारा क्या प्रावधान किया गया है? क्या सरकार को जानकारी है कि अधिकांश मृतकों के परिवारजनों को दिनांक 31 मार्च 2022 तक सहायता धनराशि नहीं वितरित हुई है?’’

इस सवाल का जवाब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिया. आदित्यनाथ ने बताया, ‘‘कोविड-19 संक्रमण से मृत्यु होने पर 31 मार्च 2022 तक 36 हजार 858 मृत व्यक्तियों के निकटतम परिजनों को प्रति मृतक 50 हजार की दर से कुल 184.29 करोड़ की सहायता दी गई है.’’

इस तरह कोरोना से मरे लोगों की संख्या को लेकर सरकारी आंकड़ें में ही 13 हजार 339 का अंतर है. असल में कोरोना मृतकों का आंकड़ा केंद्र, राज्य सरकारों से लेकर ही प्रकाशित करता है. ऐसे में दोनों आंकड़ें यूपी सरकार के ही हुए. फिर दोनों आंकड़ों में मृतकों की संख्या में 13 हजार का अंतर कैसे?

सवाल यह भी उठता हैं कि यूपी सरकार ने प्रदेश में 36 हजार 858 कोरोना मृतकों के परिजनों को मुआवजा दिया है. यानी कि सरकार मानती है कि इनकी मौत कोरोना से हुई. तो फिर क्यों केंद्र सरकार को कोरोना मृतकों के दिए कुल आंकड़े , यूपी विधानसभा में दिए गए आंकड़ों से 13 हजार कम है?

24 मई को विधानसभा में पूछा गया सवाल.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कोरोना से मरे लोगों के परिजनों को राज्य सरकारें मुआवजा देती हैं. राज्य सरकार यह मुआवजा आपदा प्रबंधन कोष से देती है. सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में आदेश देते हुए कहा था कि मृतक के परिजनों को, सरकार को 30 दिनों के भीतर 50 हजार रुपए का मुआवजा देना होगा. हालांकि कई राज्य सरकारों ने मुआवजा देने में देरी की जिस पर सुप्रीम कोर्ट कई बार फटकार लगा चुका है.

जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट में कुछ राज्यों ने मृतकों के सरकारी आंकड़ें से ज्यादा मुआवजे का आवेदन आने की जानकरी दी थी. वहीं कई राज्यों ने मृतकों के आंकड़ों से कम मुआवजे के लिए आवेदन आने की बात की थी. ऐसे राज्य पंजाब, बिहार, कर्नाटक और असम थे.

मुआवजा लेने के लिए कोरोना से हुई मौत का डेथ सर्टिफिकेट होना जरूरी बताया गया है. इसको लेकर जिला प्रशासन एक फॉर्म जारी करता है. उसमें तमाम कागजात के साथ कोरोना से हुई मौत का सर्टिफिकेट देना होता है. मुआवजा लेने वाले को भी अपने आधार की जानकारी देनी होती है. इन आवेदनों की जांच के लिए भी जिला स्तर पर एक टीम बनाई गई है. जांच के बाद ही मुआवजा मिलता है.

आंकड़ों में अंतर को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक से बात करने की कोशिश की पर बात नहीं हो पाई. हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं. अगर जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

यूपी में मृतकों के आंकड़ों में हुई हेरफेर

पिछले वर्ष कोरोना की दूसरी लहर के समय यूपी से भयावह तस्वीरें सामने आई थीं. मृतकों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि लोग अपनों को जलाने के बजाय उनके शवों को नदी किनारे दफना रहे थे, या नदी में बहा दे रहे थे. श्मशान घाटों में शवों की लाइन लगी थीं, कब्रिस्तानों में मिट्टी की कमी पड़ गई थी. अधिकतर लोग इन आकड़ों में शामिल नहीं हो पाते थे.

न्यूज़लॉन्ड्री ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान यूपी के कई इलाकों से रिपोर्टिंग की. मेरठ में न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया था कि यहां के सिर्फ एक श्मशान घाट में 19 से 30 अप्रैल 2021 के बीच कोविड से मरे 264 लोगों का अंतिम संस्कार हुआ था. वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान सिर्फ 36 मौतें हुई थीं.

सिर्फ मेरठ में ही नहीं बल्कि बरेली के क्यारा गांव में भी अप्रैल के शुरुआती 15 दिनों के भीतर 20 से ज्यादा मौतें हुई थीं. घर-घर में लोग बीमार थे. गांव के लोगों का मानना था कि कोरोना लक्षणों के बाद लोगों की मौत हो रही है. कई लोग तो अस्पताल दर अस्पताल भटके और इलाज नहीं मिलने के बाद उनकी मौत हो गई थी. लेकिन सरकारी आंकड़ों में इस गांव से एक भी कोरोना मौत दर्ज नहीं हुई थी.

मेरठ के श्मशान घाट में अपने क़रीबी के अंतिम संस्कार में मौजूद महिला

आंकड़े छुपाने का काम सिर्फ बरेली और मेरठ में नहीं हुआ बल्कि प्रदेश के अन्य जिलों में भी हुआ था. हालांकि प्रदेश सरकार इससे इंकार करती रही.

हाल ही में वर्ल्ड स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सांख्यिकीय विश्लेषण के बाद कहा कि भारत में 1 जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2021 के बीच, कोरोना से 47 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है. इस आंकड़े को लेकर भारत सरकार ने अपनी नाराजगी जाहिर की और डब्ल्यूएचओ पर सवाल खड़े कर दिए.

कोरोना काल में ऑक्सीजन नहीं मिलने की स्थिति में लोगों की मौत हुई लेकिन कई राज्य सरकारों ने ऑक्सीजन की कमी से मौत होने से इंकार कर दिया था. इसमें से एक राज्य उत्तर प्रदेश भी था. हालांकि यहां सैकड़ों लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई थी. न्यूज़लॉन्ड्री ने इसको लेकर यूपी से कई रिपोर्ट भी की थीं.

यह हकीकत है कि बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई, और ये मौतें इलाज और ऑक्सीजन के अभाव में हुईं. लोगों को दर-दर भटकने के बावजूद ऑक्सीजन नहीं मिली. ऐसे में भले ही सरकारें इन आंकड़ों पर सवाल उठाएं, लेकिन वे लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और इलाज के अभाव में हुई मौतों की जिम्मेदारी से मुंह नहीं फेर सकतीं.

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