Opinion
अन्य की तुलना में आदिवासी और दलित समुदाय के लोगों की जल्दी हो जाती है मृत्यु- शोध
सुनने में अजीब लग सकता है कि भारत में पैदा हुए किसी व्यक्ति की उम्र इससे तय होती है कि उसने किस जाति में जन्म लिया है, लेकिन यही सच है.
चर्चित अर्थशास्त्री वाणी कांत बरुआ ने इससे संबंधित एक विस्तृत शोध “Caste, Religion, and Health Outcomes in India, 2004-14” किया था, जो वर्ष 2018 में इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित हुआ था.[i]
नेशनल सैंपल सर्वे (2004-2014) पर आधारित अपने इस शोध में उन्होंने वर्ष 2004 से 2014 के बीच भारतीयों की मृत्यु के समय औसत आयु का अध्ययन किया.
यह अध्ययन बताता है कि भारत में ऊंची कही जाने वाले जातियों और अन्य पिछड़ी, दलित, आदिवासी जातियों की औसत उम्र में बहुत अंतर है.
आम तौर पर आदिवासी समुदाय से आने वाले लोग सबसे कम उम्र में मरते हैं, उसके बाद दलितों का नंबर आता है और फिर अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों का. एक औसत सवर्ण हिंदू इन बहुजन समुदायों से कहीं अधिक वर्षों तक जीता है.
2014 में आदिवासियों की मृत्यु के समय औसत उम्र 43 वर्ष, अनुसूचित जाति की 48 वर्ष, मुसलमान ओबीसी की 50 वर्ष और हिंदू ओबीसी की 52 वर्ष थी. जबकि इसी वर्ष कथित ऊँची जाति के लोगों (हिंदू व अन्य गैर-मुसलमान) की औसत उम्र 60 वर्ष थी. आश्चर्यजनक रूप से ऊंची जाति के मुसलमानों की औसत उम्र ओबीसी मुसलमानों से एक वर्ष कम थी (चार्ट देखें).
2004 से 2014 के बीच के 10 साल में सवर्ण हिंदू की औसत उम्र 5 साल, हिंदू ओबीसी की 5 साल, मुसलमान ओबीसी की 7 साल, ऊंची जाति के मुसलमान की 5 साल और अनुसूचित जाति की 6 साल बढ़ी. इस अवधि में अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों की औसत उम्र 2 वर्ष कम हो गई. यह बताने की आवश्यकता नहीं कि आदिवासियों की औसत उम्र का कम होना देश के विकास में किस दिशा की ओर संकेत कर रहा है.
स्त्रियों को केंद्र में रखकर इसी प्रकार का एक और शोध इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज द्वारा 2013 में किया गया था, जिसे बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपने एक स्त्री संबंधी विशेष अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में उद्धृत किया था.[ii]
इस शोध में पाया गया कि पुरुषों और स्त्रियों की औसत उम्र में बहुत फर्क है. स्त्रियों में जाति के स्तर पर जो फर्क हैं, वे और भी चिंताजनक हैं. शोध बताता है कि औसतन दलित स्त्री कथित उच्च जाति की महिलाओं से 14.5 साल पहले मर जाती है. 2013 में दलित स्त्रियों की औसत आयु 39.5 वर्ष थी जबकि ऊंची जाति की महिलाओं की 54.1 वर्ष.
इसी तरह, एक ‘पिछड़े’ या कम विकसित राज्य में रहने वाले और विकसित राज्य में रहने वाले लोगों की औसत उम्र में बड़ा फर्क है. “पिछड़े राज्यों” के लोगों की औसत उम्र सात साल कम है. विकसित राज्य में रहने वाले लोगों की औसत उम्र 51.7 वर्ष है, जबकि पिछड़े राज्यों की 44.4 वर्ष.[iii]
इसका मतलब यह नहीं है कि उच्च जातियों के सभी लोग 60 वर्ष जीते हैं और बहुजन तबकों के 43 से 50 साल के बीच, लेकिन अध्ययन बताता है कि भारत में विभिन्न सामाजिक समुदायों की “औसत उम्र” में बहुत ज्यादा फर्क है.
इस शोध से सामने आए तथ्यों से भारत में मौजूद भयावह सामाजिक असमानता उजागर होती है और हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे विकास की दिशा ठीक है? क्या सामाजिक रूप से कमजोर तबकों के कथित कल्याण के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त हैं?
संदर्भ:
[i] Vani Kant Borooah (2018), “Caste, Religion, and Health Outcomes in India, 2004-14”, economic and political weekly, Vol. 53, Issue No. 10, 10 March
[ii] UN Women Report (2018),“Turning promises into action: Gender equality in the 2030 Agenda for Sustainable Development”, Retrieved from: ‘https://www.unwomen.org/en/digital-library/publications/2018/2/gender-equality-in-the-2030-agenda-for-sustainable-development-2018’
[iii] Vani Kant Borooah (2018), “Caste, Religion, and Health Outcomes in India, 2004-14”, economic and political weekly, Vol. 53, Issue No. 10, 10 मार्च.
(साभार- जनपथ)
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