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बंगाल के रास्ते कंगारुओं की तस्करी, मिजोरम के रहस्यमयी फार्म और इंदौर के चिड़ियाघर से जुड़े तार

पश्चिम बंगाल के दोरास इलाके में दो अप्रैल को चारों तरफ सनसनी थी. हर तरफ कंगारुओं को देखे जाने की चर्चा हो रही थी. इसे लेकर लोगों के बीच कौतुहल था. शुरुआत में, बेलाकोबा वन रेंज की एक टीम ने सिलीगुड़ी शहर के नजदीक गजोलडोबा नहर के पास दो कंगारुओं को घूमते हुए देखा. बाद में एक और कंगारू को नेपाली बस्ती क्षेत्र से बचाया गया. यही नहीं, शहर के बाहरी इलाके में एक कंगारू का शव भी मिला. बचाए गए जानवरों को सिलीगुड़ी के बंगाल सफारी पार्क भेजा गया. इस साल उत्तर बंगाल में दूसरी बार इस तरह कंगारुओं को बचाया गया.

इससे पहले मार्च में, अलीपुरद्वार जिले में पश्चिम बंगाल-असम सीमा के पास कुमारग्राम से एक वयस्क लाल कंगारू को बचाया गया था. उस घटना में हैदराबाद के दो लोगों को इस खेप के साथ पकड़ा गया था. यह पहली बार नहीं है जब अधिकारियों ने देश में कंगारू जब्त किया है. दो साल पहले, असम और मिजोरम की सीमा पर एक छोटे से गांव लैलापुर से कंगारुओं के साथ ही विदेशी प्रजाति के जानवरों को बचाया गया था. हालांकि, उत्तर बंगाल में कंगारुओं को बचाने की हालिया घटनाओं की जांच से पता चलता है कि यह खेप एक चिड़ियाघर के लिए थी.

मार्च की घटना में गिरफ्तार किए गए दोनों लोग के पास एक खरीद आदेश (पर्चेज ऑर्डर) था. इससे पता चलता है कि कंगारू को इंदौर के नगर निगम द्वारा चलाए जा रहे चिड़ियाघर कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय में ले जाया जा रहा था. वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीबी) के पूर्वी क्षेत्र के क्षेत्रीय निदेशक अग्नि मित्रा कहते हैं, “ऐसा लगता है कि उत्तर बंगाल में हुई इन दोनों घटनाओं के तार आपस में जुड़े हुए हैं. पहली खेप पकड़े जाने के बाद तस्करों को लगा कि वे बाकी बचे कंगारुओं को नहीं ले जा सकेंगे और इसलिए उन्होंने जानवरों को छोड़ दिया. जिन लोगों को पहली घटना में गिरफ्तार किया गया था, उनके पास इंदौर चिड़ियाघर का एक खरीद आदेश था. चिड़ियाघर ने भी वह आदेश जारी करने की पुष्टि की थी.

गैर सरकारी संगठन अरण्यक के लीगल और एडवोकेसी डिवीजन के वरिष्ठ प्रबंधक जिमी बोरा ने कहा कि इनमें से कई विदेशी जानवर चिड़ियाघरों में जा रहे हैं. इनमें निजी तौर पर पाले गए जानवर भी शामिल हैं. उन्होंने कहा, “जलपाईगुड़ी में खेप की जब्ती अहम है क्योंकि यह विदेशी जानवरों की तस्करी और चिड़ियाघरों के बीच जुड़ते तार को दिखाता है.”

इंदौर के चिड़ियाघर से जुड़ते तार

फिलहाल तो इंदौर में कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय सुर्खियों में हैं क्योंकि तस्करी किए गए कंगारुओं को यहीं लाया जा रहा था. खरीद आदेश से पता चला कि जानवर को मिजोरम के ब्रुनेल एनिमल फार्म से मंगवाया गया था. पहले भी इस फार्म ने विदेशी पक्षियों जैसे शैल तोते को इंदौर के चिड़ियाघर में भेजा था.

इंदौर चिड़ियाघर के क्यूरेटर निहार पारुलेकर ने फार्म से जानवरों को खरीदने से इनकार किया. पारुलेकर ने कहा, “उन्होंने इन्हें हमारे पास उपहार के रूप में भेजा. पहले भी उपहार स्वरूप पक्षी भेज चुके हैं. खेप के साथ गिरफ्तार किए गए दो लोगों के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है. हमने फार्म से कहा था कि हम उपहार तभी स्वीकार करेंगे जब वह उचित कागजी कार्रवाई के साथ आएगा. हमने उनसे कहा कि खेप हम तक पहुंचने के बाद हम परिवहन का खर्च उठाएंगे.”

हालांकि मित्रा ने कहा कि इंदौर चिड़ियाघर के पास फार्म से कंगारू खरीदने की केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) से अनुमति नहीं थी. इंदौर चिड़ियाघर नगर निगम का चिड़ियाघर है. सीजेडए के दिशानिर्देशों के अनुसार, कोई चिड़ियाघर केवल अदला-बदली (एक्सचेंज) या दान के माध्यम से ही जानवरों की खरीद कर सकता है. माना जा रहा है कि इंदौर चिड़ियाघर ने मिजोरम में ब्रूनल फार्म को खरीद आदेश जारी किया था. सभी विदेशी जानवरों के स्टॉक को परिवेश (Parivesh ) वेबसाइट पर घोषित करना होता है. मिजोरम के मुख्य वन्यजीव वार्डन ने मिजोरम के किसी भी फार्म से कंगारूओं की ऐसी कोई घोषणा होने की पुष्टि नहीं की है. इसलिए ये कानूनी रूप से पाले गए कंगारू नहीं हैं. अब इस फार्म का अस्तित्व ही सवालों के घेरे में है.

इंदौर चिड़ियाघर कई वजहों से सवालों के घेरे में है. 52 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह चिड़ियाघर, मध्यम चिड़ियाघर के रूप में वर्गीकृत है. मध्य प्रदेश स्थित वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा, “इंदौर चिड़ियाघर के खिलाफ कुप्रबंधन के आरोप हैं. 2019 में, सीजेडए ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और चिड़ियाघर की मान्यता नियम, 2009 के उल्लंघन के लिए इंदौर चिड़ियाघर के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का आदेश जारी किया. मैंने चिड़ियाघर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी.”

इंदौर चिड़ियाघर या कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय कथित तौर पर तस्करी किए गए कंगारुओं का गंतव्य था. चिड़ियाघर ने जानवरों को खरीदने से इनकार किया है और कहा है कि इसे उपहार के रूप में भेजा गया है.

उन्होंने कहा, “एक पालतू कुत्ते और एक पत्रकार को कैद में रखे गए बाघ के साथ खेलने की अनुमति दी गई थी; यहां आने वालों को को जानवरों की तस्वीरें क्लिक करने और उन्हें खिलाने की अनुमति दी गई थी. कुछ आगंतुकों को बाड़े को छूने और तस्वीरें लेने की अनुमति दी गई, जिसे बाद में सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया गया. आरोपों को सही पाया गया और चिड़ियाघर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई. चिड़ियाघर के निदेशक को भविष्य में इस तरह की कोताही नहीं बरतने के लिए कहा गया. हालांकि, उन्होंने इस अनुभव से कुछ नहीं सीखा और अभी भी जानवरों की खरीद के गैरकानूनी तरीकों में लिप्त हैं.”

दुबे ने कहा कि चिड़ियाघर निजी फार्म से विदेशी जानवरों की खरीद नहीं कर सकता है इसलिए वह इस मामले को उच्च अधिकारियों के सामने रखेंगे.

मिजोरम का रहस्यमयी फार्म

इंदौर चिड़ियाघर को जानवर भेजने वाले मिजोरम के ब्रूनल एनिमल फार्म के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. वन्यजीव अपराध जांचकर्ता राहुल दत्ता ने कहा, “मुझे संदेह है कि मिजोरम में ऐसे फार्म हैं भी या नहीं. इसकी संभावना नहीं है कि कंगारुओं जैसे विदेशी जानवरों को मिजोरम के एक फार्म में पाला जाएगा. इन कंगारूओं को शायद दक्षिण-पूर्व एशियाई देश के किसी फार्म में पाला गया होगा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया से कंगारू लाने की कीमत बहुत ज्यादा होगी.”

उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र और कर्नाटक में कुछ प्रजनन फार्म हैं जहां सांप जैसे विदेशी जानवर और यहां तक कि शुतुरमुर्ग जैसे पक्षी भी अवैध रूप से पाले जाते हैं. हालांकि, कंगारू के प्रजनन के लिए एक बड़े क्षेत्र की जरूरत होती है. इसलिए, अगर मिजोरम में ऐसी कोई सुविधा होती, तो अधिकारियों को इसका पता चल ही जाता.”

दत्ता ने कहा कि इस तरह की कई खेप जब्त की जा रही है लेकिन कुछ पकड़ में भी नहीं आ रहा है. वो कहते हैं, “ज्यादातर समय, खेप ले जाने वाले लोगों को दिया गया पता गलत होता है, ताकि वे गिरफ्तार होने पर भी ज्यादा कुछ खुलासा करने की स्थिति में नही हों. कभी-कभी, वे गुवाहाटी में गाड़ी बदलते हैं ताकि उनका पीछा करने वालों को चकमा दिया जा सके.”

दत्ता ने कहा कि मिजोरम में कंगारुओं के लिए प्रजनन सुविधा की संभावना नहीं के बराबर है, लेकिन यह संभव हो सकता है कि मिजोरम स्थित फार्म इस मामले में एक बिचौलिए के रूप में काम कर रहा हो. तो, यह कंगारू म्यांमार या थाईलैंड जैसे देश से मिजोरम की सीमा के जरिए भारत में प्रवेश कर सकता है. हालांकि खरीद आदेश में लिखा है कि खेप मिजोरम की है, इसलिए असली जगह के बारे में अधिकारियों को अब तक पता नहीं चल पाया है. इसलिए संभव है कि कुछ दिनों के लिए कंगारू को मिजोरम के ब्रूनल फार्म में रखा गया हो.

रेड कंगारू को बचाकर काचर वन मंडल लैलापुर में रखा गया. भारत में विदेश से तस्करी कर लाए ऐसे दुर्लभ जीवों की बढ़ती संख्या की वजह से यहां के स्थानीय वन्यजीवों में संक्रमण का खतरा भी है.

इंटरनेट पर खोजने से मिजोरम में एक ब्रूनल बकरी फार्म मिलता है. हालांकि यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि क्या यह वही फार्म है जिसने कंगारुओं को इंदौर भेजा था. इस पर टिप्पणी करते हुए, दत्ता ने कहा, “कभी-कभी बकरी फार्म अंदर चल रही बड़ी चीजों के लिए कवर का काम कर सकता है. साल 2000 में, मैंने उत्तर प्रदेश के खागा में में एक बड़े ऑपरेशन का नेतृत्व किया था. बाहर से वह स्थान चमड़े के काम की जगह लगती थी जहां बकरी की खाल सुखाई जा रही थी. लेकिन जब वहां छापा मारा गया तो हमने बाघ की चार खाल, तेंदुए की 70 खाल, बाघ की 150 किलो हड्डियां, काले हिरण की 220 खाल और तेंदुए के 18,000 पंजे बरामद किए."

नाम न छापने की शर्त पर, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) के एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि अवैध तरीकों से विदेशी जानवरों की खरीद की परिपाटी वास्तविकता है. उन्होंने कहा, “यह कई दूसरे चिड़ियाघरों में भी होता है. चूंकि चिड़ियाघरों को जानवरों को खरीदना नहीं है इसलिए, जानवरों की लागत को आम तौर पर परिवहन खर्च में शामिल किया जाता है. विदेशी जानवरों को हासिल करने का दूसरा तरीका खेपों को जब्त करना है. उदाहरण के लिए, अगर कंगारू मिजोरम से मध्य प्रदेश आ रहे हैं, तो खेप को इंदौर में जब्त कर लिया जाएगा और उन्हें इंदौर चिड़ियाघर भेजा जाएगा.”

मोंगाबे-हिन्दी के साथ पहले के एक साक्षात्कार में अग्नि मित्रा ने समझाया कि जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सीआईटीईएस या कन्वेंशन का कहना है कि जानवर मूल रूप से जिस देश का है, वह उसे वापस लेगा और परिवहन का खर्च भी उठाएगा.

“हालांकि, जब्त किए गए कई जानवर फार्म में पाले गए हैं. उदाहरण के लिए, यदि भारत में एक कंगारू जब्त किया जाता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि जानवर ऑस्ट्रेलिया से आया है. दक्षिण पूर्व एशियाई देश के किसी फार्म में इसके पैदा होने की संभावना ज्यादा है. फार्म में पाले गए ये जानवर आनुवंशिक रूप से मिश्रित नस्ल के भी हो सकते हैं, इसलिए उनके मूल देश को उन्हें वापस लेने में दिलचस्पी नहीं हो सकती है, खासकर कोविड-19 के बाद. साथ ही, यदि मूल देश आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं, तो वे वित्तीय वजहों से भी ऐसा करने से बच सकते हैं. तो, उस स्थिति में इन जानवरों को अपना बाकी का जीवन किसी चिड़ियाघर में बिताना होगा.”

जिमी बोरा कहते हैं, “विदेशी जानवरों की तस्करी को रोकने के लिए हमें यह जानना होगा कि इनका व्यापार किस जगह से शुरू होता है. वर्तमान में, हम जानते हैं कि इन जानवरों को दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ फार्म में पाला जा रहा है, लेकिन इस व्यापार को रोकने करने के लिए हमें सही जगह तक पहुंचना होगा. साथ ही, कानून को लागू करने वाली एजेंसियों को और ज्यादा चौकन्ना रहना होगा.”

(साभार- MONGABAY हिंदी)

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