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सीएम योगी का दावा- यूपी में किसानों ने नहीं की आत्महत्या, पर यह सच नहीं है!

बुंदेलखंड के झांसी में दूरदर्शन को दिए इंटरव्यू में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि प्रदेश में बीते पांच सालों में किसी किसान ने खेती से जुड़े मामले को लेकर आत्महत्या नहीं की है. आत्महत्या की वजहें पारिवारिक रही हैं.

योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘2017 से 2022 के बीच में न कोई भूख से मौत हुई है, न किसी किसान ने अभाव में आत्महत्या की है. पारिवारिक और व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं, आर्थिक तंगी या किसी अन्य कारण से नहीं. पारिवारिक कारण बहुत सारे होते है. मैं इस बात की गारंटी दे सकता हूं कि इस दौरान उत्तर प्रदेश में किसी किसान ने आत्महत्या नहीं की है...खाद की किल्लत आत्महत्या का कारण नहीं हो सकता. कोरोना काल के दौरान आयात में देरी हुई, जिसकी वजह से हो सकता है मांग के एक सप्ताह बाद खाद मिली हो. लेकिन किसी को खाली हाथ वापस नहीं जाने दिया गया. हर एक किसान को पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध कराई.’’

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ साल 2020 में ही यूपी में 87 किसानों ने आत्महत्या की है. एनसीआरबी को आंकड़े राज्य सरकार ही उपलब्ध कराती है. आंकड़ों से इतर न्यूज़लॉन्ड्री ने योगी आदित्यनाथ के इस दावे की पड़ताल के लिए बुंदेलखंड के ललितपुर और महोबा जिले की यात्रा की. हमने पाया कि सीएम का यह दावा सही नहीं है.

सालों से पानी की समस्या से जूझ रहे बुंदेलखंड में, कभी सूखे तो कभी ओलावृष्टि के कारण फसल बर्बाद होने से किसानों की आत्महत्या करने की खबर आती रहती हैं. लेकिन बीते साल खाद की समस्या के कारण कई किसानों ने खुद को खत्म कर लिया.

ललितपुर जिले से महज आठ किलोमीटर दूरी पर मसौरा खुर्द गांव पड़ता है. गांव के ज्यादातर नौजवान बेरोजगार हैं और काम नहीं मिलने के कारण खेती कर अपना जीवन यापन करते हैं. इस क्षेत्र में लोग दलहन की खेती करते हैं, खासकर मसूर,चना और मटर की.

यहां के रहने वाले 37 वर्षीय रघुवीर सिंह ने 29 अक्टूबर 2021 को आत्महत्या कर ली. इसको लेकर रघुवीर के बड़े भाई पहलवान सिंह ने पुलिस में शिकायत दी है. शिकायत में उन्होंने आत्महत्या के कारणों का जिक्र करते हुए लिखा, ‘‘मेरा भाई खेती-किसानी कर अपने परिवार का भरण पोषण करता था. केसीसी का कर्जा होने और खाद नहीं मिलने के कारण मानसिक रूप से परेशान चल रहा था.’’

छह एकड़ में खेती करने वाले रघुवीर सिंह की पत्नी की मौत सालों पहले हो गई थी. सिंह अपने दो बेटे और एक बेटी के साथ रहते थे. उनके निधन के बाद बेटी अपने मामा के घर रहने लगी है. वहीं दोनों बेटे पहलवान सिंह के साथ रहते हैं.

रघुवीर सिंह ने 29 अक्टूबर 2021 को आत्महत्या कर ली थी

पहलवान सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मेरे भाई ने खाद की समस्या के कारण आत्महत्या की थी. यहां सब खाद की समस्या से परेशान थे. बुआई का समय बीतता जा रहा था और खाद नहीं मिल रही थी. कभी ललितपुर जाते थे तो कभी पास के खाद की दुकान पर, लेकिन खाली हाथ लौटना पड़ता था. हर रोज भागने के बावजूद जब खाद नहीं मिली तो वो परेशान हो गया. खेत में ही रहने की जगह बनाई थी. वो अक्सर रात को उधर ही रुकता था, उस दिन भी वो वहीं था. अगली सुबह जब कुछ लोग खेत में गए तो देखा कि उसने जामुन के पेड़ से लटकरकर फांसी लगा ली.’’

‘‘जहां तक केसीसी ( किसान क्रेडिट कार्ड ) के कर्ज की बात है, तो वो हमारे यहां हर किसान के ऊपर है. हम लोग कर्ज लेते हैं और फिर वापस कर देते हैं. कर्ज के कारण उसने आत्महत्या नहीं की. असली कारण खाद की कमी है.’’ सिंह कहते हैं.

आत्महत्या के बाद पुलिस को दी गई शिकायत

हमारे मन में यह सवाल था कि खाद की व्यवस्था एक-दो दिन में हो ही जाती, आखिर उसकी कमी के कारण कोई आत्महत्या कैसे कर सकता है? यह सवाल हमने पहलवान सिंह से पूछा. उन्होंने जवाब में कहा, ‘‘खेत सूख रहा था. हमें खुद ही खाद नहीं मिली. उनके मरने के बाद भी कई दिनों तक भटकना पड़ा तब कहीं जाकर हमें खाद मिली.’’

सिंह आगे कहते हैं, ‘‘हमारे लिए कमाई का साधन खेती ही है. कर्ज वापस करना हो या कोई और काम, खर्च खेती से ही निकलता है. जब समय पर फसल की बुआई नहीं होगी तो आमदनी कैसे होगी. फिर खर्च कैसे चलेगा. यह सब सोचकर उन्हें टेंशन हो गई थी. अगर बारिश नहीं हुई होती तो यहां के आधे खेत बिना बोए रह जाते. फिर कई और लोग आत्महत्या करते.’’

खाद की कमी का जिक्र सिंह के पड़ोसी रमेश पटेल भी करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए पटेल कहते हैं, ‘‘उन्हें कोई और समस्या तो नहीं थी क्योंकि हम लोग साथ ही रहते थे. उन्होंने कभी किसी परेशानी का जिक्र नहीं किया. खाद की कमी को लेकर यहां सब परेशान थे. अगर उस समय उन्हें खाद की बोरियां मिल जाती तो शायद वो जिंदा होते. इसी समस्या से यहां के कई किसानों की मौत हुई है. उस समय खाद की समस्या पूरे जिले में थी. एकाएक बारिश हो गई. बाजार में खाद उपलब्ध नहीं था. कई दुकानदारों ने ब्लैक में भी खाद बेची. उस वजह से खाद नहीं मिल पाई. मध्य प्रदेश में भी यहां से खाद की सप्लाई हो गई. समय पर खाद नहीं मिली तो समस्या बढ़ गई.’’

सिंह पर केसीसी का करीब तीन लाख रुपए का कर्ज है. उनके निधन के बाद योगी सरकार से किसी भी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिली है. पहलवान सिंह कहते हैं, ‘‘जब उसने आत्महत्या की तो सब आए थे. डीएम, एसडीएम, सपा वाले, भाजपा वाले, टिकैत भी आए थे, लेकिन किसी ने कोई आर्थिक मदद नहीं की. मैं बड़ा भाई हूं तो इन बच्चों की देखभाल करना मेरी जिम्मेदारी है, लेकिन मैं भी कब तक कर पाऊंगा. केसीसी का कर्ज इनके खेत पर है. अब उस कर्ज को चुकाने की जिम्मेदारी बच्चों पर है. यह अभी 16-17 साल के हैं, ऐसे में कहां से भर पाएंगे? ऐसे में सरकार को केसीसी का कर्ज माफ कर देना चाहिए.’’

सौरभ कुमार

सरकार से किसी भी तरह की मदद मिलने से पूरा परिवार इंकार करता है. सिंह के बेटे सौरभ ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘पापा खत्म हो गए तो आगे के खर्चा पानी का कुछ कह नहीं सकते हैं. आगे का माहौल आप समझ ही सकते हैं, सभी तो समझते हैं. मम्मी छोटे में ही खत्म हो गईं, मैंने उन्हें देखा ही नहीं. अभी तक जैसे-तैसे पापा ने पाला. वो परेशान होते थे वो मगर बोल नहीं पाते थे. हमसे क्या बोलेंगे वो? बात शेयर करने के लिए भी चाहिए कोई. उनके नहीं होने से हर चीज की दिक्क्त हो रही है. पढ़ाई में भी परेशानी है. सरकार से कोई मदद नहीं मिली है.’’

गांव के चबूतरे पर हमारी मुलाकात हरगोविंद पटेल से हुई. पटेल न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘खेती से कोई खास फायदा तो बचा नहीं है. हमारी उम्र निकल गई इसी में. बच्चों को पढ़ाया लिखाया लेकिन वो भी घर पर ही रहते हैं. काम नहीं मिलता है. बाहर से आमदनी हो तो खेती में नुकसान होने पर भी लोग मर नहीं सकते हैं, पर यहां तो खेती ही जीवन यापन का एक मात्र आधार है. ऐसे में बुआई में देरी हो या फसल का खराब होना हम किसानों पर सीधे असर करता है. जो लोग हिम्मत हार जाते हैं वो आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं. हमारे आसपास कई लोगों ने ऐसा किया है.’’

‘अकेलेपन से डर लगता है’

ललितपुर में मैलवारा खुर्द नाम का एक गांव है. नहर किनारे की टूटी सड़के होते हुए हम इस गांव पहुंचे. गांव के पहले ही कुछ किसान नहर से मशीन के जरिए खेत में पानी दे रहे थे. यहां खड़े एक नौजवान बिरेन, खाद की कमी का जिक्र आते ही तेज आवाज में कहने लगते हैं, ‘‘खाद की समस्या ने तो इस बार परेशान कर दिया. खाद मिलने की उम्मीद में लोग सुबह जाते थे और शाम को बिना खाद लिए लौट आते थे. परेशानी इस हद तक बढ़ गई कि हमारे पड़ोस के सोनी अहिरवार ने फांसी लगा ली.’’

हम बिरेन से सोनी अहिरवार के घर का पता पूछते हैं तो वे हमारे साथ ही चल देते हैं. सोनी अहिरवार का घर मिट्टी का है जिसके गेट पर ताला लगा हुआ है. 40 वर्षीय अहिरवार ने 26 अक्टूबर 2021 को अपने खेत में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. इनकी पत्नी की मौत आठ साल पहले बीमारी के कारण हो गई थी. अहिरवार का एक बेटा और एक बेटी है. बेटी की शादी हो चुकी है और अब घर में उनका 17 वर्षीय बेटा संदीप अकेले रहता है.

जर्जर दीवारों वाले इस घर के अंदर सोनी अहिरवार और उनकी पत्नी रेखा देवी की तस्वीर रखी हुई है. तस्वीर पर इनकी मृत्यु की तारीख दर्ज है. इन तस्वीरों को दिखाते हुए संदीप उदास हो जाते हैं. संदीप दिल्ली में काम करते थे, घर आ रहे थे. अपनी बुआ के घर पहुंचे थे तभी फोन आया कि उनके पिता ने खुद को खत्म कर लिया. वे बताते हैं, ‘‘बुआ के घर पर था तभी फोन आया कि तुम्हारे पिताजी एक्सपायर हो गए. फिर हम वापस आए तो ललितपुर में बॉडी मिली. मेरे लिए सिर्फ जमीन जायदाद छोड़कर गए हैं. हम कुछ करेंगे तभी होगा. कुछ नहीं छोड़कर गए हैं. अब मैं अकेला हूं, कोई और तो है नहीं. दीदी है तो उनकी शादी हो चुकी है. कभी-कभी मन नहीं लगता तो उनके यहां चला जाता हूं.’’

सोनी अहिरवार ने 25 अक्टूबर 2021 को आत्महत्या कर ली थी

सोनी अहिरवार को उनके छोटे भाई ने आखिरी बार गांव में ही देखा था. 35 वर्षीय फूलचंद उस दिन को याद करते हुए कहते हैं, ‘‘हम दोनों भाइयों का खेत अगल-बगल में है. उस दिन वे खेत से जल्दी निकल आए और बताया कि खाद लेने ललितपुर जा रहा हूं. बीते आठ दिनों से गांव भर से लोग खाद के लिए इधर-उधर भटक रहे थे. उस दिन भी उन्हें खाद नहीं मिली. देर शाम को जब मैं खेत से लौट रहा था तो गांव के दूसरे मोहल्ले में उनसे भेंट हुई. मैंने पूछा कि इस समय कहां जा रहे हो, तो उन्होंने जेब में हाथ रखते हुए कहा कि चाभी खो गई है, वही ढूंढ रहा हूं. इतना कहकर वे आगे बढ़ गए और हम घर आ गए. शाम के छह बजे तक जब वे नहीं लौटे तो हम ढूंढने के लिए आसपास की उन जगहों पर गए जहां वे अक्सर जाते थे. हमें नहीं मिले. फिर हम खेत की तरफ गए तो महुआ के पेड़ से लटके हुए थे.’’

फूलचंद बताते हैं, ‘‘उनकी मौत हो चुकी थी. हमने गांव के प्रधान को बुलाया. फिर पुलिस आई और शव को उतरवाकर पोस्टमार्टम के लिए ले गई.’’

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि खाद, आत्महत्या का कारण नहीं हो सकती है. हमारे मन में यही सवाल था. इस घटना को लेकर भी जो शिकायत दर्ज कराई गई उसमें खाद का जिक्र नहीं है. यह शिकायत पड़ोस के मोहन ने कराई है. शिकायत में बताया गया है, ‘‘पत्नी की बीमारी और खेती में नुकसान के कारण परेशान चल रहा था, जिस कारण उस पर कर्ज हो गया था. उसी परेशानी के कारण उसने फांसी लगा ली.’’

सोनी अहिरवार की मौत के बाद पुलिस को दी गई शिकायत

शिकायत में पत्नी की बीमारी से परेशानी के जिक्र में फूलचंद्र कहते हैं, ‘‘भाभी की मौत 2015 में हुई थी. उनकी बीमारी के कारण वो अब आत्महत्या करेंगे? यह जानबूझकर पुलिस ने लिखवाया था ताकि खाद की परेशानी सामने न आए. वे ही नहीं, हम सब खाद के लिए परेशान थे. दलहन की बुआई का समय निकलता जा रहा था. ठंड के बावजूद हर दिन ललितपुर खाद के लिए जाते थे और खाली हाथ लौट आते थे. जब शव उतारा गया तब भी उनकी जेब में खाद का कागज मौजूद था. ऐसे में कैसे कह सकते हैं कि पत्नी की बीमारी के कारण उन्होंने ऐसा किया? आप गांव में जाकर किसी से पूछ लीजिए. जहां तक रही कर्ज की बात तो कर्ज था, और उसे चुका रहे थे.’’

सोनी अहिरवार के परिजनों को भी कोई आर्थिक मदद सरकार की तरफ से नहीं मिली. फूलचंद कहते हैं कि पुलिस वाले जांच करने तो आए नहीं, तो आर्थिक मदद मिलने की बात तो छोड़ ही दीजिए.’’ हालांकि कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने चार लाख रुपए की मदद की थी. फूलचंद बताते हैं, ‘‘प्रियंका गांधी जी ललितपुर आई थीं तो उन्होंने चार लाख रुपए की मदद की, जिससे हमने कर्ज उतार दिया. उन्होंने हमें चार बोरी खाद भी दिलवाया. उसके बाद ही हम खेती कर पाए. योगी सरकार से हमें कोई मदद नहीं मिली है.’’

अपने बंद घर का दरवाजा खोलते संदीप अहिरवार

ललितपुर में खाद की कमी के कारण तीसरी आत्महत्या, ललितपुर के पाल क्षेत्र के निवासी 40 वर्षीय बब्लूपाल ने की. बब्लूपाल की पत्नी विमला, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अधबने घर के बाहर खड़ी नजर आती हैं. पांच एकड़ में खेती करने वाले बब्लूपाल ने 27 अक्टूबर 2021 को आत्महत्या कर ली थी.

रघुवीर सिंह और सोनी अहिरवार के परिजनों की तरह ही विमला भी अपने पति की आत्महत्या की वजह खाद का नहीं मिलना बताती हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वो कहती हैं, ‘‘हम लोग गरीब हैं. तीन बच्चे हैं. दो इंदौर में और छोटा वाला मेरे साथ रहता था. वो खेती करते थे और साथ में माल ढ़ोने वाली छोटी सी गाड़ी चलाते थे. खाद नहीं मिलने से बेहद परेशान थे. रोज लौटकर कहते आज भी खाद नहीं मिला, चिल्लाते थे. मैं समझाई कि कोई बात नहीं मिल जाएगा, परेशान मत हो. नहीं मिला तो भी कोई बात नहीं. उस रोज वे रात तक नहीं लौटे तो मैंने और मेरे बेटे ने रात के 11 बजे तक ढूंढा, लेकिन वे नहीं मिले. गाड़ी चलाते थे तो हमें लगा कि चलो कहीं होंगे, लौट आएंगे. अगली सुबह हम लोग खेत की तरफ गए तो वहां उनका शव पड़ा हुआ था. उन्होंने फांसी लगा ली थी.’’

विमला बताती हैं, ‘‘चार दिन खाद के लिए लाइन में लगे रहे. इधर-उधर घूमते रहे, फड़फड़ाते रहे, कहते रहे. खेत के पास भी हमारा एक घर था. वहीं जाकर उन्होंने आत्महत्या कर ली. खाद की परेशानी तो सबरे (सब जगह) थी, हर इंसान को थी. न जाने इनको क्या सूझी कि आत्महत्या कर ली. हम थोड़े ही जान रहे थे कि ये ऐसा कुछ कर लेंगे.’’

अपने पति बब्लूपाल की तस्वीर दिखाती विमला

विमला को भी योगी सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है. इन्हें भी कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने ही चार लाख रुपए की मदद की. विमला कहती हैं, ‘‘योगी सरकार ने तो कोई मदद नहीं की. दीदी (प्रियंका गांधी) चार लाख रुपए दीं. जिससे दो लाख तक का जो कर्ज था उसे उतार दिया.’’

इस मामले में उनके बड़े भाई पप्पूपाल ने शिकायत दर्ज कराई है. शिकायत में खाद नहीं मिलने का कोई जिक्र नहीं है. जब हमने पप्पूपाल से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘हमने हरेक बात पुलिस को बताई थी. उसके बाद उन्होंने जो कहा वो किया. मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं तो उसमें क्या लिखा गया, ये वही लोग जानें. उन दिनों खूब बारिश हुई थी. वो सोच रहा था कि अगर अभी फसल बो देंगे तो पानी का पैसा बच जाएगा. हम दोनों भाइयों ने लाइन में लगकर खसरा खतौनी की नकल बनाई थी. साथ ही आधार कार्ड लेकर खाद के लिए कई बार गए लेकिन खाद नहीं मिली. जिससे परेशान होकर उसने आत्महत्या कर ली.’’

योगी आदित्यनाथ के बयान 'खाद की कमी के कारण कोई आत्महत्या नहीं’ कर सकता को लेकर जब हमने पाल से सवाल किया तो वो कहते हैं, ‘‘वो ठीक कह रहे हैं लेकिन मेरा भाई तो खाद की कमी के कारण ही मरा है. कोई दूसरा कारण तो था नहीं. केसीसी का या दूसरे कर्ज तो थे, लेकिन तब वो खाद के लिए ही परेशान था.’’

फसल बर्बाद होने से भी किसान ने लगाई फांसी

ललितपुर के बाद हम महोबा जिला पहुंचे. महोबा जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर चरखारी थाने में गोरखा गांव पड़ता है. इस गांव के 32 वर्षीय बृजभान यादव ने खेती में हुए नुकसान के कारण 24 अक्टूबर 2021 को आत्महत्या कर ली थी. यादव का घर मिट्टी का है. घर के बाहर उनकी दो छोटी-छोटी बेटियां फटी हुई गेंद से खेल रही थीं. उनके पिता खेत में गए थे. घर पर दादी और छोटे भाई से मुलाकात हुई.

बृजभान की दादी उनका नाम सुनते ही रोने लगती हैं, कहती हैं, ‘‘उसकी मां मर गई थी जब वो छोटा था. मैंने पाला. बीमार हुआ तो खेत बेचकर इलाज कराई. फसल के चक्कर में मर गया. उसका बाप रात-रात भर रोता है.’’

बृजभान के पास अपनी खुद की खेती कम ही थी. वे बलकट पर खेती करते थे. बलकट यानी खेत किराए पर लेकर खेती करना. बलकट में किसान जमींदारों को उनकी जमीन का साल भर का किराया देते हैं और उस पर अपने हिसाब से खेती करते हैं.

बृजभान यादव के पिता दृगपाल यादव

बृजभान ने कर्ज लेकर पहले ही दलहन की बुआई कर दी थी. अचानक से हुई बारिश के कारण फसल खराब हो गई. इस सदमे को वो बर्दाश्त नहीं कर पाए. मृतक के पिता दृगपाल यादव हमसे बात करते ही रोने लगते हैं. वे कहते हैं, ‘‘वो बलकट पर जमीन लेकर खेती किया था. बुआई, बीज, खाद में काफी पैसे खर्च हो गए थे. जिसके बाद एकदम बारिश हुई, जिससे वो घबरा गया. गांव में वो कहता फिर रहा था कि अब मैं मर जाऊंगा. मेरा काफी नुकसान हो गया. मेरी खेती सब बिगड़ गई. सबने उसे रोका, समझाया, लेकिन शाम को खेत में जाकर फांसी लगा ली.’’

उनकी तलाश करते हुए उनके भाई अपने एक रिश्तेदार के साथ खेत में गए तो वहां फांसी लगी देखी. वो कहते हैं, ‘‘मामा के घर से चार-साढ़े चार बजे के करीब में आए और सीधे खेत में चले गए. पता नहीं उनके मन में क्या आया? क्या मन में चला? फांसी लगा ली. रात के आठ बजे के करीब हम खेत में पहुंचे तो पेड़ से लटके मिले. इसके बाद हमने घर वालों और प्रधान को फोन किया. प्रधान ने पुलिस को बुलाया तब उनका शव उतारा गया.’’

गांव के प्रधान बाल किशन न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘वो बेहद समझदार लड़का था जिस कारण हमने उसे एक वार्ड का सदस्य भी बनाया था. हमारे गांव के लोगों ने दलहन की बुआई कर दी थी. उसके बाद बारिश हुई तो सबको दोबारा बुआई करनी पड़ी. वो कर्ज लेकर जैसे-तैसे बुआई किया था. ऐसे में वो घबरा गया और आत्महत्या कर ली. दूसरा कोई कारण नहीं था.’’

इसी गांव के रहने वाले रामपाल सिंह भी बारिश के कारण दोबारा बुआई का जिक्र करते हैं. वे बताते हैं, ‘‘डबल-डबल बीज और खाद लग गया. खेती से जीवन घिसट रहा है. सरकार दो हजार रुपए दे रही है, उससे खाद और बीज का काम चल जाता है. इसके अलावा कोई विशेष राहत नहीं है. जहां तक रही प्रधानमंत्री फसल बीमा की बात तो हमारे पांच-छह हजार रुपए तो उसमें कट गए, लेकिन मिला एक रुपया नहीं. बीमा कंपनियां ही बेईमान हैं. ये लोग बीमा देना नहीं चाहते है.’’

बाकियों की तरह बृजभान के परिवार को भी कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. बृजभान की पत्नी और बेटियों की देखभाल उनके पिता कर रहे हैं. हालांकि इन्होने सरकारी मदद के लिए तमाम फॉर्म भरे हैं. दृगपाल कहते हैं, ‘‘उसकी आत्महत्या के बाद तमाम लोग आए. सबने आर्थिक मदद देने की बात की लेकिन मिला कुछ नहीं है. हम तो जैसे-तैसे जी रहे हैं, लेकिन बहू है, उसके बच्चे हैं. हम तो अभी जितना बन सकता है कर रहे हैं, आगे क्या होगा?’’

प्रधान किशन बताते हैं, ‘‘सरकारी मुआवजे के लिए फार्म भरवाकर लेखपाल को दिया है लेकिन अब तक कुछ नहीं मिला.’’

किशन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान को गलत बताते हैं, ‘‘यहां की खेती बारिश पर ही निर्भर है. हर साल फसल बर्बाद होने के कारण किसानों को परेशानी होती है. उन्हें मुआवजा तक नहीं मिलता है. बीते साल अगस्त में लोगों की उड़द बारिश में भीग गई थी तो सरकार ने पांच एकड़ से कम खेती वाले को एक हजार और उससे ज्यादा वाले को दो हजार का मुआवजा दिया. उसी बारिश में यहां के लोगों ने दलहन की बुआई कर दी क्योंकि हमारे यहां पानी की बड़ी समस्या है. यहां तो उस समय खाद बीज की भी बड़ी समस्या पड़ गई थी. लोगों को खाद तक नहीं मिल रहा था.’’

क्या कहते हैं जानकार

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दावे को लेकर स्थानीय पत्रकार अरविंद सिंह परमार कहते हैं, ‘‘खाद की कमी के कारण ललितपुर में ही पांच-छह मौतें हुई हैं. हालांकि प्रशासन ने उसे खाद की कमी से हुई मौत नहीं माना.’’

बुंदेलखंड में किसानों की आत्महत्या के कारणों का जिक्र करते हुए परमार कहते हैं, ‘‘यहां बीते कई सालों से लगातार प्राकृतिक आपदा, बारिश और ओलावृष्टि हुई है. इसकी वजह से किसानों को लगातार नुकसान होता है. वे कर्ज में चले जाते हैं. एक तो कर्ज के कारण अवसाद में रहते हैं, दोबारा फसल नुकसान होने पर उनका मानसिक और आर्थिक संतुलन बिगड़ जाता है. जिस वजह से वे आत्महत्या का कदम उठा लेते हैं.’’

परमार आगे कहते हैं, ‘‘खाद की कमी के कारण जो मौतें यहां पर हुई थीं, उस समय उड़द की फसल कटनी थी तब काफी बारिश हो गई. उड़द की फसल जमींदोज हो गई. उसमें कुछ नहीं निकला. इसके बाद एक साथ बारिश हुई, जिसके बाद लोगों को एक साथ खाद की जरूरत पड़ी. सरकार की यह बात सही है, लेकिन उस समय खाद मिल नहीं पाया. जो खाद की बोरी 1200 रुपए में मिलनी चाहिए थी वो 1800-2000 रुपए की मिली. लोगों को खाद के लिए कई बार गांव से शहर जाना पड़ा जिसके लिए उनके यातायात में काफी रुपए खर्च भी हुए. वे भूखे प्यासे रहे. जब खेत सूखने लगा तो लोगों को लगा कि बुआई नहीं कर पाएंगे. जिस कारण लोगों ने आत्महत्या की. हालांकि प्रशासन ने खाद की समस्या को आत्महत्या का कारण नहीं माना. यह सच है कि आत्महत्याएं होती हैं.’’

किसानों के हक के लिए संघर्ष करने वाले झांसी निवासी शिव नारायण परिहार, प्रदेश किसान कांग्रेस कमेटी के चेयरमैन हैं. मुख्यमंत्री के बयान पर परिहार कहते हैं, ‘‘बुंदेलखंड में पिछले कई वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं और सरकार की गलत नीतियों के चलते, यहां का किसान बर्बाद है और कजर्दार है. कर्ज न चुका पाने की स्थिति में आत्महत्या को मजबूर है. अन्ना (स्थानीय भाषा में खुले पशुओं के लिए शब्द) जानवरों से किसान अपनी फसलों को नहीं बचा पाता है. भाजपा सरकार गांव-गांव गौशाला बनवाने का दावा करती है लेकिन धरातल पर गौशालाओं में खान-पान की कोई व्यवस्था नहीं है. गौशाला में अन्ना जानवर मर रहे हैं और जानवरों द्वारा फसल चर जाने के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं. विगत महीने महोबा में एक किसान ने आत्महत्या की थी क्योंकि अन्ना जानवरों ने उसकी फसल चर ली थी.’’

परिहार आगे कहते हैं, ‘‘कभी ओलावृष्टि होती है तो कभी सूखे की मार पड़ती है. इससे फसलें नष्ट हो जाती हैं. जब फसलें नष्ट होती हैं तब किसानों को समय पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ भी नहीं मिल पाता है. जनपद झांसी में ही बीते कई सालों से फसल बीमा का पैसा लटका हुआ है. हमने इसको लेकर कई बार आंदोलन किया. जब फसल होती है तभी, नहीं तो किसान कर्जदार हो जाएगा. अब जब उसके पास पैसा नहीं होगा तो घर में लड़ाई भी होगी. तो इन सब का रिश्ता आखिर में जाकर खेती से ही जुड़ता है.’’

जमीनी हकीकत और जानकारों से बातचीत के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बयान सही नहीं है क्योंकि बुंदेलखंड में आत्महत्या का सिलसिला रुका नहीं है. बदलाव यह हुआ कि अब प्रशासन, किसानों की आत्महत्या की वजह खाद की कमी या फसल की बर्बादी नहीं मानता है.

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