Assembly Elections 2022
उत्तर प्रदेश सरकार की बहुप्रचारित योजना ‘एक जिला-एक उत्पाद’ की जमीनी हकीकत
‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ओडीओपी, उत्तर प्रदेश सरकार की महत्त्वाकांक्षी और बहुप्रचारित योजनाओं में से एक है. प्रदेश की भाजपा सरकार ने 24 जनवरी, 2018 को उत्तर प्रदेश दिवस के अवसर पर ओडीओपी की शुरुआत की थी. इसके तहत हर जिले से एक-एक उत्पाद लिए गए, और कहा गया कि इसके जरिए इन विशिष्ट शिल्प कलाओं एवं उत्पादों को प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे रोजगार का सृजन होगा.
इस योजना से कितने रोजगार बढ़ेंगे, इसको लेकर अलग-अलग दावे किए गए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद ही कई बार इससे सृजित होने वाले रोजगार के अलग-अलग आंकड़े बताए हैं. उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ई-संदेश नाम से पत्रिका जारी करता है. 28 मार्च 2018 को पत्रिका में बताया गया कि इस योजना के तहत आगामी तीन वर्षों में 20 लाख नवयुवकों को रोजगार और स्वरोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है.
अगस्त 2018 में पत्रिका ने बताया कि राज्य सरकार ने 'एक जनपद-एक उत्पाद' योजना द्वारा पांच वर्षों में 25 हजार करोड़ के वित्तीय सहायता के जरिए 25 लाख लोगों को रोजगार दिलाने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
यूपी सरकार ने इस योजना के विज्ञापन पर भी जमकर खर्चा किया. न्यूज़लॉन्ड्री ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) से मिली जानकारी के आधार पर रिपोर्ट की थी, जिसमें सामने आया था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अप्रैल 2020 से मार्च 2021 के बीच टीवी समाचार चैनलों को 160 करोड़ रुपए का विज्ञापन दिया. इसमें से 0.69 करोड़ रुपए ओडीओपी के प्रचार में खर्च किए गए.
यह तो सिर्फ एक साल में टीवी को दिए गए विज्ञापन हैं. इस दौरान अखबारों को भी विज्ञापन दिए गए थे. कई मौकों पर सरकार, दूसरे राज्यों को इस योजना से सीखने का सुझाव देती रही. ऐसे में हम इस योजना की हकीकत जानने के लिए आगरा, अलीगढ़ और मुरादाबाद पहुंचे और यहां के कारोबारियों, कारीगरों और मजदूरों से बात की.
मुरादाबाद क्या अब भी पीतल नगरी है?
मुरादाबाद को पीतल नगरी के नाम से जाना जाता है. ओडीओपी योजना के तहत यहां धातु शिल्प उधोग का चयन किया गया. मुरादाबाद हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के सचिव अवधेश अग्रवाल की मानें तो सरकार ने यह साफ नहीं किया कि यहां से पीतल उद्योग को लिया गया है या बाकी उद्योगों को भी. अग्रवाल कहते हैं, ‘‘मुरादाबाद में पीतल से ज्यादा अब लोहे और एलुमिनियम का कारोबार होने लगा है. ऐसे में मेरी जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ बैठक हुई थी तो हमने उनसे इस संदर्भ में बताया था, तो उनका कहना था कि हम सबको धातु उद्योग में ही मानते हैं.’’
हालांकि तमाम मीडिया रिपोर्ट में ओडीओपी योजना के तहत पीतल के कारोबार का ही जिक्र किया गया है. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम यहां के पीतल मार्केट पहुंची तो यहां के ज्यादातर कारोबारियों को इस योजना की जानकारी ही नहीं है. यहां तक की उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापर मंडल के प्रांतीय अध्यक्ष और भाजपा व्यापार मंडल से जुड़े रवि अग्रवाल भी इससे अनजान नजर आए.
बिजनेस स्टेंडर्ड की खबर के मुताबिक मुरादाबाद जिले में धातुओं की कलाकृतियां बनाने में प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से लगभग 2.50 से 3 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है. यहां 1,500 छोटी-बड़ी निर्यातक इकाइयां हैं. इनके द्वारा औसतन हर साल 6,000 करोड़ रुपए का निर्यात किया जाता है.
यहां हमारी मुलाकात चौराहा शामली गेट के रहने वाले गुलजार अंसारी से हुई. वे पीतल का कारोबार करते हैं. खराब हालात का जिक्र करते हुए वे बताते हैं, ‘‘फरवरी महीने की पांच तारीख तक यानी पांच दिन में सिर्फ 650 रुपए की बिक्री हुई है. महंगाई के कारण लोग पीतल का सामान खरीदने से बच रहे हैं. यही स्थिति रही तो मुरादाबाद सिर्फ कहने को पीतल नगरी रह जाएगा.’’
अंसारी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘कच्चे माल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. जो पीतल की सिल्ली लम्बे समय तक 350 रुपए किलो आती थी, पिछले साल दिवाली में उसकी कीमत 480 से 500 रुपए किलो हो गई है. कीमतों में अचानक से जो वृद्धि हुई. उससे खरीदार कम हो गए. हम पहले ऑर्डर लेते हैं और फिर उसी हिसाब से बनाते हैं. नोटबंदी से उभरे ही थे कि जीएसटी लाद दी गई. फिर कोरोना आया. कोरोना के बीच कच्चे माल की कीमतें बढ़ गईं. कीमतों में बढ़ोतरी के चलते हमें ऑर्डर ही कम आ रहे हैं. खरीदार पुराने रेट पर मांग कर रहा है लेकिन हम उतने में दे नहीं सकते.’’
गुलजार से हमने ओडीओपी की योजना के बारे में पूछा तो उन्होंने इसकी जानकारी होने से इंकार कर दिया. वे कहते हैं, ‘‘अब तक कोई फायदा नहीं हुआ. आगे देखते हैं क्या होता है.’’
कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि का जिक्र यहां ज्यादातर लोग करते हैं. स्थानीय व्यापारी नरेश अग्रवाल भी बिजनेस की गिरावट का जिक्र करते हैं. अग्रवाल कहते हैं, ‘‘हर चीज की कीमतों में वृद्धि हो रही है. कच्चे माल की कीमतों में बीतें 15 सालों में कोई वृद्धि नहीं हुई. अब अचानक से बढ़ गईं. यह सब तो सरकार पर निर्भर करता है. सरकार कभी इंपोर्ट खोल देते हैं, कभी बंद कर देते हैं. कभी एक्साइज ड्यूटी बढ़ा देते हैं. कीमतों में वृद्धि से बिक्री कम हो गई. अगर किसी का एक हजार का बजट होता है, तो कीमत बढ़ जाने की स्थिति में वो छोटा सामान लेगा या दूसरा सामान खरीदेगा.’’
बढ़ती कीमतों को लेकर लोगों में नाराजगी के सवाल पर अग्रवाल कहते हैं, ‘‘कोई खास नाराजगी नहीं है. कीमतें तो हर जगह बढ़ रही हैं. सुबह ही मैं देख रहा था कि पाकिस्तान में दो हजार रुपए किलो देशी घी है. 2200 रुपए के करीब सिलिंडर की कीमत है. वहां तो यह स्थिति है.’’
भाजपा व्यापार मंडल से जुड़े रवि अग्रवाल हैरान करने वाली जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री से साझा करते हैं, ‘‘यहां काम पहले की तुलना में कम हो गया. जिसका नतीजा यह हुआ कि काफी संख्या में कारीगर ई-रिक्शा चलाने लगे हैं. ये छोटे-छोटे कारीगर थे. इनके पास दो से तीन लाख रुपए का बजट था. ये अपने घर पर काम करते थे. कोरोना काल में काम नहीं हुआ. घर पर बैठे रहे. खर्च तो कम हुआ नहीं. ऐसे में बजट चला गया. आखिर में उन्होंने जैसे तैसे कर ई-रिक्शा लिया और अब उसी से घर चलाते हैं. कई लोग कारीगर से मजदूर हो गए.’’
ऐसे ही एक मजदूर अफसर खान से यहां हमारी मुलाकात हुई. एक बंद कमरे में पीतल का लोटा चमका रहे थे. इससे निकलने वाली धूल के कारण उनका चेहरा बिल्कुल काला हो गया था. खान, अपने दोस्तों के साथ पहले एक उद्योग चलाते थे. कच्चे माल की कीमतों में हुई वृद्धि, जीएसटी और कोरोना की मार ने इन्हें मजदूर बना दिया है. वे कहते हैं, ‘‘हर चीज में वृद्धि हो रही है. अब हम मोटे पैसे वाले व्यापारी तो हैं नहीं. अब मजदूर बन गए हैं. यह धूल देख रहे हैं, इससे कई बीमारियां भी होती हैं लेकिन मजबूरी में कर रहे हैं. पहले हमारे पास काम की कमी नहीं होती थी. अब तो आठ-दस घंटे में काम खत्म कर घर चले जाते हैं. जिससे मजदूरी भी कम हो गई.’’
दिन भर मुरादाबाद में घूमने के बाद हमें अजय अग्रवाल पहले व्यक्ति मिले जिन्हें ओडीओपी की जानकारी थी. अग्रवाल भाजपा से जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया कि मुरादाबाद में इसको लेकर कार्यक्रम भी हुआ था. मुख्यमंत्री महंत जी भी आए थे. अजय अग्रवाल की मानें तो योजनाओं का लाभ लेने के लिए लोगों को भी शिक्षित होना पड़ेगा. यहां के ज्यादातर कारीगर कम पढ़े लिखे हैं. ऐसे में सरकार क्या कर सकती है?
यह सच है कि मुरादाबाद में दिसंबर 2019 में कार्यक्रम हुआ था. ओडीओपी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक प्रदेश सरकार के कई मंत्री और अधिकारी इस कार्यक्रम में पहुंचे थे. दो दिन तक चले इस कार्यक्रम में मुरादाबाद, अलीगढ़, मथुरा, एटा, गाजियाबाद, कानपुर देहात, शामली और संतकबीर नगर के व्यवसाई शामिल थे. यहां इन आठ जिलों के 7,377 व्यवसाइयों को 1230.217 करोड़ का लोन दिया गया.
पीतल का कारोबार करने वाले मोहसिन कहते हैं, ‘‘हम लोन लेकर व्यापार नहीं करते हैं, लेकिन सिर्फ लोन देने से कारोबार हो सकता है क्या? यहां 30 प्रतिशत तक कारोबार घट गया है. हमारा सबसे ज्यादा नुकसान कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि और जीएसटी की वजह से हुआ है. इसी वजह से कीमतों में वृद्धि हुई. बढ़ी कीमतों के कारण लोगों ने खरीदना कम कर दिया’’
2018 में जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओडीओपी योजना को लेकर मुरादाबाद के व्यापारियों के साथ बैठक की थी तो हैंडीक्राफ्ट एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के सचिव अवधेश अग्रवाल ने उनके कुछ सुझाव दिए थे.
न्यूज़लॉन्ड्री ने अग्रवाल से ओडीओपी योजना के असर को लेकर सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘ओडीओपी के अंदर लोगों को सरकार ने सहूलियत तो बहुत दी है, लेकिन वो सहूलियतें लोगों तक पहुंच नहीं पाई हैं. इसीलिए लोगों को इसकी जानकारी नहीं है. दरअसल इस योजना का ढोल तो खूब पीटा गया लेकिन उस ढोल की आवाज ऊपर तक ही रह गई, नीचे नहीं आई. अगर हम सरकार की नीतियां पढ़ें तो लगेगा कि सरकार ने हमारे लिए क्या कर दिया. लेकिन अधिकारियों के द्वारा यह अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाई.’’
पीतल के कारोबार में आई कमी का जिक्र करते हुए अवधेश अग्रवाल कहते हैं, ‘‘मुरादाबाद में पिछले दस सालों से पीतल पांच प्रतिशत हो गया और धातु हो गई 95 प्रतिशत. ऐसे में पीतल के कारोबारी तो वैसे भी कम हो गए. पीतल की जगह एलुमिनियम और स्टील ने ले ली. बाकी जो पीतल का काम बचा था, उसकी सिल्ली की महंगाई और जीएसटी ने कमर तोड़ दी. हमने कई दफा कहा कि मेटल बैंक बना दीजिए. जब जीएसटी लगाया था तब पीएम ने कहा था कि इसका फायदा अंतिम व्यक्ति तक मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’’
दिसंबर 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह मुरादाबाद आए थे. यहां उन्होंने बताया कि मुरादाबाद को ओडीओपी में तीन कॉमन फैसलिटी सेंटर (सीएफसी) दिए गए. इसको लेकर अवधेश अग्रवाल कहते हैं, ‘‘दिसंबर से पहले एक बार मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह के साथ हमारी वर्चुअल बैठक हुई थी, जिसमें उनसे हमारी तेजा-तेजी हुई थी. मैंने उनसे कहा कि आपने इंडस्ट्री को क्या दिया? उस पर उनका कोई जवाब नहीं था. जहां तक रही बात सीएफसी की तो मुझे एक सीएफसी के बारे में बता दें जो पब्लिक के लिए काम कर रहा हो. न उनका निरीक्षण होता है और न कार्यवाही होती है. सीएफसी का मतलब है कि आम आदमी को उसका फायदा मिलना चाहिए. कारीगर को उसका फायदा मिलना चाहिए. वो बताएं तो उससे किसका फायदा हो रहा है? यहां बहुत से सीएफसी बंद पड़े हुए हैं.’’
इस तरह मुरादाबाद में अलग-अलग व्यापारियों और कारीगरों से बात करने के बाद हमने पाया कि सरकार की बहुप्रचारित योजना की जानकारी ही लोगों तक नहीं पहुंची है. जहां एक तरफ सरकार इससे रोजगार बढ़ाने के दावे कर रही है वहीं हकीकत यह है कि रोजगार में कमी ही आई है.
आगरा, जहां बंद हो रहा जूता कारोबार
मुरादाबाद के बाद हम ओडीओपी की हकीकत जानने के लिए आगरा पहुंचे. इस योजना के तहत यहां चमड़ा उद्योग को लिया गया. ओडीओपी की वेबसाइट के मुताबिक आगरा अपने चमड़े के काम के लिए प्रसिद्ध है. जूते, बेल्ट, बैग जैसे कई चमड़े के उत्पाद यहां निर्मित किए जाते हैं. इस काम में सूक्ष्म, लघु और मध्यम स्तर के उद्यम भी शामिल हैं. इस उद्योग को विविध उत्पादों के जरिए विकसित किया जा सकता है.
फरवरी 2019 में आगरा में भी ओडीओपी समिट का आयोजन हुआ था. ओडीओपी वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक इसमें आगरा, कानपुर, संभल, फिरोजाबाद, जालौन, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, महोबा, कुशीनगर, झांसी, देवरिया, हमीरपुर, कन्नौज और फतेहपुर जिलों ने हिस्सा लिया था. मुरादाबाद की तरह यहां भी व्यापारियों को लोन दिए गए. यहां तकरीबन 4,500 करोड़ का लोन दिया गया.
एक तरफ जहां सरकार यहां जूता कारोबार को बेहतर कर रोजगार बढ़ाने की बात कर रही थी, लेकिन हालात यह हैं कि काम कम होने के कारण उद्योग बंद हो रहे हैं. आगरा में काफी संख्या में ऐसे जूता व्यापारी हैं जो सरकारी संस्थाओं, जैसे सेना, पुलिसबल और एनसीसी आदि के लिए जूता बनाते थे. अब ये कारोबारी अपनी जूता फैक्ट्री बंद करते जा रहे हैं. दिन-ब-दिन हो रहे नुकसान का नतीजा ये भी हुआ कि कई कारोबारियों को अपना घर तक बेचना पड़ा है.
आगरा में हमारी मुलाकात ऐसे ही एक कारोबारी से हुई. खुद को भाजपा का कट्टर समथर्क बताने वाली भारती धनवानी कहती हैं, ‘‘अगर रोजगार का मुद्दा छोड़ दिया जाए तो मैं आज भी भाजपा की कट्टर समर्थक हूं लेकिन मेरी खुद की कंपनी बंद हो गई. मेरे साथ जो लोग काम करते थे बेरोजगार हो गए. ऐसे में कैसे कहें कि सरकार ने रोजगार के लिए बेहतर काम किए हैं.’’
धनवानी आगे बताती हैं, ‘‘हमें टेंडर नहीं मिले क्योंकि हम सरकार के मानदंडो पर खरे नहीं उतर सके, लेकिन पहले हमें उन्हीं मानदंडो के तहत काम मिलता था. स्टार्टअप और एमएसएमई (सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम कुटीर एवं ग्रामोद्योग) कंपनियों को काम नहीं दिया जाता. आज आगरा में 35 फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं और करीब पांच हजार लोग बेरोजगार हैं. हम इसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर दूसरे कई नेताओं से मिले, लेकिन हमें कोई सुनने वाला नहीं है. हमें आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिला है.”
धनवानी का कारोबार बंद हो चुका है. उन पर बैंक का पैसा है जिसे चुकाने के लिए वो घर बेचने की नौबत आने की बात कहती हैं. धनवानी बताती हैं, ‘‘सरकार एक तरह स्टार्टअप को बढ़ावा देने की बात करती हैं. प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि आप रोज़गार देने वाला बनें, मैं 48-49 की उम्र में आकर काफी जद्दोजहद के साथ स्टार्टअप शुरू की, लेकिन तीन साल के अंदर ही बंद करना पड़ा.’’
आगरा बूट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के सचिव अनिल महाजन न्यूज़लॉन्ड्री से कारोबार में आई गिरवाट और फैक्ट्रियों के बंद होने का कारण बताते हैं, ‘‘हम लोग साल 1962 से काम कर रहे हैं. कभी भी हमारे प्रोडक्ट में कोई शिकायत नहीं आई है. हमने बीएसएफ, सीआरपीएफ से लेकर हर एक विभाग के लिए जूते बनाए हैं. जबकि जांच करने वाली टीम सरकार की होती है. उसके बाद भी हमें काम नहीं दिया जा रहा है. दरअसल कुछ सालों से टेंडर में टर्न ओवर और मशीन का क्लॉज लगा दिया गया. सरकार के जेम पोर्टल ( गर्वनमेंट ई मार्केटप्लेस ) पर टेंडर निकलता है. उसमें बड़ी कंपनियों ने सरकारी अधिकारीयों से मिलकर टर्नओवर और मशीन का क्लॉज लगा दिया.’’
महाजन हमें आगे बताते हैं, ‘‘अब जब टेंडर निकलता है तो उसमें बताया जाता है कि इतना टर्न ओवर होने पर ही आप टेंडर भर सकते हैं. कभी यह पांच करोड़ होता है तो कभी 10 करोड़. कुछ में तो यह तक लिख देते हैं कि स्टार्टअप वाले हिस्सा नहीं ले सकते हैं. अब यहां सब छोटी कंपनियां हैं. इनका टर्न ओवर 5-10 करोड़ नहीं है. इस कारण वे टेंडर भर ही नहीं पाती हैं. पहले टर्न ओवर की लिमिट नहीं होती थी. ऐसे में सब लोग भर सकते थे. उसमें जो सबसे कम कीमत में जूता तैयार करने की बात करता था. उसे 50 प्रतिशत काम मिलता था. बाकी दूसरों को. अब तो हम हिस्सा ही नहीं ले पाते हैं. दूसरा क्लॉज, मशीन को लेकर किया. वो जिस मशीन से बनाने की बात करते हैं और हम जिस मशीन से बनाते हैं, उसमें क्वालिटी में कोई अंतर नहीं आता है. यह सब क्लॉज सिर्फ हमें रोकने के लिए किया गया.’’
आगरा बूट मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुनील गुप्ता एक और हैरान करने वाली जानकारी साझा करते हैं. गुप्ता बताते हैं, ‘‘बड़ी कंपनियां सरकार को ठगती भी हैं. दरअसल जब हम जैसे छोटे कारोबारी टेंडर की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पाते तो बड़ी कंपनियां आपस में तय कर एक जोड़ी जूते की ज्यादा कीमत लगाती हैं. मान लीजिए उन्होंने 1400 रुपए जोड़ी जूते की कीमत लगाई. करते क्या हैं कि वो जूता हमसे 600 रुपए में बनवा लेते हैं. क्योंकि हमारी क्वालिटी और उनकी क्वालिटी में कोई अंतर नहीं होता है. इस तरह वो 800 रुपए का शुद्ध मुनाफा कमा लेते हैं.’’
ओडीओपी को लेकर गुप्ता कहते हैं, ‘‘ओडीओपी सिर्फ उनको मिलती है जिनकी बैंक लिमिट्स हैं. अगर मेरी 50 लाख की लिमिट है तो मुझे उसी अनुपात में ओडीओपी की मदद मिलेगी. हम ओडीओपी की मदद नहीं चाहते. हम चाहते हैं काम. मान लेते हैं कि आज हमको ओडीओपी से 10 लाख रुपए मिल जाते हैं, और काम नहीं है तो ये छह से आठ महीने में खत्म हो जाएगा. फिर हम क्या करेंगे. अगर काम मिलता है तो हम पैसे का इंतजाम कहीं से भी कर सकते हैं. वैसे भी ओडीओपी में लोन के अलावा मिलता ही क्या है.’’
आगरा शू फैक्टर्स फेडरेशन के अध्यक्ष गगन रमानी आगरा में ओडीओपी का खास असर नहीं मानते हैं. रमानी के मुताबिक, ''ओडीओपी से आगरा के जूता उद्योग पर फायदा नहीं दिखा. सरकार ने घोषणा तो कर दी, लेकिन इसका क्रियान्वयन कैसे होगा, लोगों तक इसका लाभ कैसे पहुंचायेंगे? इसका कोई प्रारूप तैयार नहीं किया गया. कोई गाइडलाइन जारी नहीं की गई. जिस वजह से इसका कोई असर नहीं दिख रहा है."
रामनी कहते हैं, "मैं भाजपा का एक कार्यकर्ता हूं, लेकिन आप व्यापार की बात करेंगे तो मैं कहूंगा आगरा में ओडीओपी में कुछ नहीं है. जहां तक ऋण देने का सवाल है, तो वह एमएसएमई और प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत भी मिल जाता है. ऋण से कुछ नहीं होगा. आधारभूत ढांचा तैयार करें, ट्रांसपोर्टेशन सुविधाएं हो, कुशल मजदूर तैयार करने के लिए ट्रेनिंग आदि सुविधाएं होनी चाहिए. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है."
रमानी आगे कहते हैं, "सवाल यह है कि ओडीओपी को किस संस्था के तहत रखा जाएगा? एमएसएमई, जिला उद्योग केंद्र या कोई और संस्था? अगर आगरा की ही बात करें तो काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट की यूनिट है वो देखेंगी? इसके बारे में भी कोई स्पष्ट गाइडलाइन नहीं है. गाइडलाइन नहीं होने की वजह से हमें पता नहीं चलता कि हम किसके पास जाएं? किससे व्यापार की बात करें?"
आगरा में जूता कारोबार बंद होने के सवाल पर रमानी कहते हैं, "हां यह बात सही है कि बहुत सारे छोटे -छोटे कारखाने बंद हुए हैं. जूता उद्योग को नोटबंदी की बड़ी मार पड़ी है. इससे हम उबरे ही थे, जीएसटी लागू कर दी. जब देखो जीएसटी में संशोधन ही होता रहता है. अब जीएसटी 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया गया है. इन सब की वजह से आगरा का 50 प्रतिशत चमड़ा उद्योग बंद हो गया है."
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मुरादाबाद की तरह आगरा में भी लोग ओडीओपी से बदलाव की बात नहीं करते हैं. एक तरफ जहां सरकार रोजगार बढ़ाने की बात करती है. वहीं यहां मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं और व्यापारी अपनी फैक्ट्री बंद कर रहे हैं.
अलीगढ़, जहां कारोबार पर लग रहे ताले!
अलीगढ़ के ताले बेहद मशहूर हैं. इसे “तालों का शहर” के नाम से भी जाना जाता है. ओडीओपी योजना के तहत यहां से ताले एवं हार्डवेयर के कारोबार को लिया गया.
उत्तर प्रदेश में चुनाव में प्रचार के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘‘सपा-बसपा ने अलीगढ़ के विश्व प्रसिद्ध ताला उद्योग पर ही ताला लगा दिया था. मोदी जी व योगी जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार ने 'एक जिला-एक उत्पाद' योजना के अंतर्गत, अलीगढ़ के ताला उद्योग को पुनः विश्व में नई पहचान दिलाने का काम किया है.’’
पर सच यह नहीं है. अलीगढ़ में तालों के कारोबार में भारी गिरावट आई है. लोग अपना कारोबार बंद करने को मजबूर हैं. न्यूज़लॉन्ड्री यहां के अपर कोट इलाके में पहुंचा. यहां घर-घर में ताले की फैक्ट्री है.
यहां हमारी मुलाकात इकबाल अंसारी से हुई. ताले के व्यापारी अंसारी व्यापर में आई भारी गिरावट की बात करते हैं. अंसारी के मुताबिक इसकी मुख्य वजह कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि और जीएसटी है. वे बताते हैं, ‘‘हमें इसके अलावा कोई काम आता नहीं है और कारोबार का इतना बुरा हाल है कि करने का कोई फायदा नहीं है. ताला बनाने के लिए सरिये का इस्तेमाल होता है. इसकी कीमत पहले 42-43 रुपए किलो थी जो अब बढ़कर 70 रुपए हो गई है. इसके साथ ही पेट्रोल, डीजल और बिजली की कीमतें भी बढ़ी हैं. वहीं जो ताला हम पहले 32-34 रुपए में बेचते थे अब 40 रुपए में बेच रहे हैं. कच्चे माल और दूसरी चीजों की कीमतें तो बढ़ीं लेकिन उस अनुपात में तालों की कीमत नहीं बढ़ी. ऐसे में कोई कैसे काम करे. ऊपर से जीएसटी 18 प्रतिशत है.’’
अंसारी आगे कहते हैं, ‘‘नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के कारण यहां बहुत सी फैक्ट्रियां बंद हो गईं. आप समझिए कि 20 से 25 प्रतिशत कारखाने बंद हो गए हैं. काम कम होने के कारण जहां हमारे यहां पहले 10 लोग काम करते हैं, अब सिर्फ छह हैं, बाकी को हटाना पड़ा. यह स्थिति हर एक कारखाने की है. चाइना की टक्कर ताले के मामले में अलीगढ़ ने ही दी फिर भी हमें कोई सुनने वाला नहीं है.’’
ओडीओपी को लेकर पूछे गए सवाल पर अंसारी हमसे ही इसका मतलब पूछने लगते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हम ज्यादा पढ़े-लिखे तो हैं नहीं. ऐसे में हमें इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है. सरकार से हमें कोई मदद नहीं मिलती है. हम पढ़ लिख नहीं पाए. जैसे तैसे कर बच्चों को पढ़ा रहे हैं उन्हें इस कारोबार में नहीं लाएंगे.’’
अपर कोट में ही हमारी मुलाकात मोहम्मद जमीर अहमद से हुई. अहमद का फर्नीचर लॉक का कारोबार था. बढ़ती महंगाई और कारोबार में आई कमी के कारण उन्होंने फैक्ट्री बंद कर दी. इन्हें भी ओडीओपी की जानकारी नहीं है. अहमद कहते हैं, ‘‘ओडीओपी का नाम मैंने पहली बार आपसे सुना है. हमारे यहां तो लोन भी जल्दी नहीं मिल पाता है.’’
अलीगढ़ के ज्वालापुरी में रहने वाले अभिषेक शर्मा भाजपा समर्थक हैं. वे किसी तरह के नुकसान की बात नहीं करते. हमारे पूछने पर की कच्चे माल की बढ़ती कीमतों और जीएसटी का क्या असर है. वे कहते हैं, ‘‘हां, कच्चे माल की कीमतें बढ़ती रहती हैं तो असर तो होता ही है. अगर मेटल का एक ही रेट हो तो कारोबार करने में परेशानी नहीं होती. लेकिन हर रोज उसमें वृद्धि हो जाती है. ऐसे में आपने आज ऑर्डर लिया और कल कच्चे माल की कीमत बढ़ गई तो नुकसान होता है. वहीं जीएसटी की बात है तो अभी 18 प्रतिशत है. अगर उसे कुछ कम कर दिया जाए तो कारोबार में फायदा होगा.’’
अभिषेक शर्मा को भी ओडीओपी की जानकारी नहीं है.
अपर कोट में एक ताला फैक्ट्री में काम करने वाले अफसार अंसारी बताते हैं, ‘‘काम तो जैसे तैसे चल रहा है. घर वाले महीने में दो हजार रुपए की मांग करते हैं. मजदूरी इतनी कम है कि खर्चा नहीं निकल पाता है. अब ठेकेदार भी कैसे मजदूरी बढ़ाएं जब उसका माल ही नहीं बिकेगा. आमदनी है नहीं और महंगाई रोज बढ़ रही है. हम लोग जितना काम करते हैं, उतना ही पैसा मिलता है. ऐसे में बिजली चली जाए तो काम भी नहीं हो पाता है.’’
अफसर की तरह दूसरे मजदूर वीरेंद्र सैनी भी मजदूरी कम होने और काम की कमी होने की बात कहते हैं. सैनी बताते हैं, ‘‘हर रोज 200 से 300 रुपए की आमदनी होती है. आज सरसों का तेल 200 रुपए लीटर है. हर चीज की कीमत बढ़ रही है. जैसे तैसे परिवार चला पाते हैं. काम कम है तो मजदूरी के लिए लड़ते भी नहीं क्योंकि हमारे जैसे सैकड़ों मजदूर बैठे पड़े हैं.’’
तालानगरी औद्योगिक विकास एसोसिएशन के महामंत्री सुनील दत्ता से न्यूज़लॉन्ड्री ने अलीगढ़ में ताला उधोग और ओडीओपी को लेकर बात की. ताला कारोबारियों के हालात पर बोलते हुए दत्ता कहते हैं, ‘‘पिछले चार-छह महीने से कच्चे माल की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. लगभग 40-50 प्रतिशत सभी कच्चे माल की कीमतें बढ़ चुकी हैं, तो इस वजह से कारोबार काफी प्रभावित हुआ है और इसका असर प्रोडक्शन पर भी पड़ा है. ऐसे में हम अपना प्राइस फिक्स ही नहीं कर पा रहे हैं. हर पांचवें-दसवें दिन कीमतों में वृद्धि हो जाती है. दूसरी बात यह है कि जब कच्चे माल की कीमतें इस कदर बढ़ जाती हैं तो तैयार उत्पाद की कीमत भी बढ़ती है. ऐसे में तालों की कीमतें बढ़ जाए तो मार्केट उसे स्वीकार नहीं करता है.’’
कच्चे माल की बढ़ी कीमतों का जिक्र करते हुए दत्ता बताते हैं, ‘‘ताले के निर्माण में 70 प्रतिशत आयरन सीट का इस्तेमाल होता है. एक साल पहले इसकी कीमत 40-45 रुपए थी जो अब बढ़कर 70-75 रुपए के करीब हो गई है. पहले पीतल 380 रुपए किलो थी जो अब बढ़कर 570-580 रुपए हो गई है. एलुमिनियम मिल रही थी 120 रुपए जो अब 180 रुपए किलो मिल रही है. जिंक जिसकी कीमत 350 रुपए के आसपास है जो पहले 240 से 250 रुपए थी. इस तरह से लगातार कीमतों में वृद्धि हुई है.’’
ओडीओपी से फायदे के सवाल पर दत्ता कहते हैं, ‘‘ओडीओपी का काफी फायदा है. जो छोटे स्टार्टअप हैं. जिन्हें लोन नहीं मिल पाते. इस योजना के तहत उन्हें लोन मिल जाता है. इस योजना का लक्ष्य सिर्फ आर्थिक रूप से मदद करना भर नहीं है. यह आने वाले समय में मार्केटिंग में भी मदद करेंगे. तकनीकी विकास में भी मदद करेंगे.’’
स्थानीय कारोबारियों को इसकी जानकारी नहीं होने के सवाल पर दत्ता कहते हैं, ‘‘ओडीओपी का प्रचार तीन तरह से हुआ है. एक तो सरकार ने किया है. इसके बाद जिला उद्योग केंद्र है, उसने किया. फिर तीसरा जो एसोसिएशन होती है, उन्होंने किया. ऐसे में इसका प्रचार तो काफी हुआ है. इसमें लोन भी दिए गए हैं. इसकी समीक्षा भी हुई हैं. यह अच्छी योजना है.’’
अलीगढ़ में 6000 हजार रजिस्टर्ड ताला यूनिट हैं. इतनी ही बिना रजिस्टर्ड भी हैं. ये करीब 1.50 से दो लाख लोगों को रोजगार देते हैं. दत्त फैक्ट्री के बंद होने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘कोरोना हार्ड टाइम रहा. छोटे उद्योग बंद भी हुए क्योंकि काम हो नहीं रहा था. लेकिन यहां फैक्ट्री का खुलना और बंद होना चलते रहने वाली प्रक्रिया है.’’
सरकार ओडीओपी योजना के तहत हर साल पांच लाख लोगों को रोजगार देने की बात कर रही थी. इस योजना का भाजपा चुनाव में इस्तेमाल कर रही है. न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि जमीन पर लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं है. रोजगार में कमी आई है. फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं और कारीगर करने को मजबूर है.
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