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NL@10: विज्ञापन मुक्त वेबसाइट न्यूज़लॉन्ड्री को हुए दस साल
सब्सक्रिप्शन के सहारे चलने और लगातार मीडिया की समीक्षा करते रहने वाले वेब न्यूज़ चैनल न्यूज़लॉन्ड्री को 10 साल हो चुके हैं, पूरा एक दशक. सब्सक्राइबर चैट्स, पैनल्स और #NLat10 का जश्न मनाने वाले वीडियोज़ से भरपूर फरवरी का यह महीना उन सभी को याद करने और श्रेय देने के लिए एक अच्छा मौका है, जिनकी वजह से यह सब मुमकिन हो पाया.
न्यूज़लॉन्ड्री अनगिनत लोगों की उदारता, जी-तोड़ मेहनत और भरोसे का नतीजा है. ऐसा नहीं है कि केवल हमारे रेवेन्यू मॉडल की बनावट ही आपसी सहयोग की मांग करती है (इस पर बाद में और अधिक विस्तार से चर्चा की जाएगी) बल्कि एनएल का निर्माण भी आपसी सहयोग का ही नतीजा है. एनएल का लुक डिजाइन करने वाले और चैनल के लोगो के लिए 'क्लॉथस्पिन' (रस्सी पर सूखते कपड़े को हवा में उड़ जाने से रोकने वाली चिमटी) का सुझाव देने वाले मिलन मौदगिल से लेकर उन सब्सक्राइबर्स तक का बेहद आभार, जो तकनीक की ताकत लेकर हमारे पास हाज़िर हुए. ऐसे ही सब्सक्राइबर्स की वजह से शुरुआती दिनों में जब हमारे पास पूर्णकालिक संसाधन नहीं थे, तब भी हम हमारी वेबसाइट को स्थिर और सक्रिय रख पाने में हम सफल हो पाए- इन सब लोगों ने मिलकर न्यूज़लॉन्ड्री को बनाया है.
मेरे सह-संस्थापक रूपक और प्रशांत ने मुझे बहुत कुछ ऐसा भी करने की इजाज़त दी जो किसी भी तरह हमारे काम को आगे बढ़ाने की बजाय हमारे दूसरे प्रयासों के ऊपर खोदा हुआ एक गहरा नाला ज्यादा लगती थी. ये दोनों हमारी ऊट-पटांग और अनाड़ियों की सी उछल-कूद वाली हरकतों के लिए नीचे सेफ्टी नेट लिए खड़े थे. वैसे भी उन मौकों पर बहादुरी दिखाना काफी आसान हो जाता है जब आपको गिरने से बचाने के लिए आपके पीछे कुछ लोग खड़े हों.
एक अद्भुत प्रतिभा से संपन्न मिलन, जीवन यापन के लिए डिजाइनिंग का काम नहीं करते, इसके बावजूद उन्होंने अपनी इस रचनात्मक प्रतिभा का इस्तेमाल हमारे लिए एनएल 'क्लॉथस्पिन' बनाने के लिए किया.
कभी न थकने वाले शिव भास्कर, जिन्होंने हमारी वेबसाइट और पहला पेमेंट गेटवे बनाते हुए न केवल इतनी झल्लाहट झेली, बल्कि पड़ोस वाले अंकल जी की तरह नजरअंदाज भी हुए. वेबसाइट को लॉन्च करने के लिए मैं इनका आभारी हूं.
विजय नायर, संजय रॉय और उनकी टीमें, जो कि ओएमएल और टीमवर्क आर्ट्स पर काम कर रही थीं. इन्होंने किसी विज्ञापन या कमाई के दूसरे ज़रियों की गैर- मौजूदगी के बावजूद बिना कोई टालमटोल किए या मीनमेख निकाले, अलग-अलग फोरम बनाने और इवेंट्स कराने में हमारा साझीदार बनकर हमारी मदद की. बिना किसी शर्त के स्पीक आउट और द मीडिया रंबल का सह-निर्माता बनने के लिए भी मैं सदा इनका कृतज्ञ रहूंगा.
बीना सरीन जैसी नायाब डिजाइनर द्वारा हमारा लोगो अपडेट किया गया. इन्होंने कई मौकों पर डिजाइन के बारे में हमारी समझ को बेहतर किया- बिल्कुल मुफ्त, ताकि हम अच्छे दिखें. उनका भी आभारी हूं.
न्यूज़लॉन्ड्री जैसे ख्वाब पर भरोसा करने के लिए टीम ओमीड्यार नेटवर्क का शुक्रगुजार हूं. विशेष रूप से सीवी मधुकर का आभार प्रकट करता हूं, उनके मार्गदर्शन के लिए और इस सपने को सहारा देने के लिए.
उन सभी साथियों के लिए एक खास और जोशीला जयकारा, जो ऊपर ज़िक्र किए गए मुश्किल वक्त के दौरान, देरी से मिलने वाली तनख्वाह के बावजूद, बहादुर, मज़बूत और मददगार बने रहे. ये वो टीमें हैं जो आक्रामक ढंग से हमारी गाड़ी को आगे खींच रही हैं. भले ही ये अपनी खामोशी के कारण अदृश्य हैं - लेकिन ये इसी तरह ब्रैंड्स की नैया को बेहद शालीनता से, तेज़ी से हिलोरें ले रहे सागर के पार लगा देती हैं. विश्वास करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया!
उन शानदार कैब ड्राइवर को भी याद करना ज़रूरी है जो उस वक्त हिरासत में लिए गये, जब हमारे रिपोर्टर हरियाणा में एक स्टोरी कर रहे थे. हमारी रिपोर्ट एक ताकतवर कॉर्पोरेशन में प्रबंधन बनाम मज़दूर पर एक रिपोर्ट तैयार कर रही थी. इन ड्राइवर साहब द्वारा सारी मुश्किलों को बगैर किसी पछतावे के झेला गया क्योंकि उनका कहना था कि हम लोग जो भी काम कर रहे हैं वो बहुत अहम है और इसकी रिपोर्टिंग होनी ही चाहिए. हमें वापस घर लाने के लिए मैं उनका शुक्रगुज़ार हूं.
हमारे स्टोर में सामग्री को शरुआत में राह पर लाने, और हमारे कुछ सबसे शुरुआती रोल आउट्स को मुफ्त में डिज़ाइन करने में मदद करने के लिए हैप्पिली अनमैरिड के निखिल और राहुल को धन्यवाद देता हूं. उन्होंने हमें इस बारे में बहुत कुछ सिखाया.
जब हमारे पास पूर्णकालिक संसाधन नहीं थे तब भी मुस्तफा कल्याणवाला, आदित्य रेलांगी, आकाश अग्रवाल और रमेश केदाल्या जैसे सब्सक्राइबर्स ने आगे आकर वेबसाइट को स्थिर बनाए रखने में हमारी मदद की. वाकई, आप लोगों का जवाब नहीं!
पीपल ट्री की गुरप्रीत जिन्होंने हमारी ब्रांडेड सामग्री को अपने स्टोर में जगह दी ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग उसे देख सकें. हमारी शाखाओं को और ज्यादा फैलाने के लिए उनका भी शुक्रिया अदा करता हूं.
शुक्रगुजार हूं उन तमाम वकीलों का जो शुरू से हमारे पीछे खड़े थे. फीनिक्स लीगल के साकेत शुक्ल और सावंत सिंह के साथ ही उस टीम के वो सारे बेहतरीन सदस्य, जिनसे हमें वो आत्मविश्वास और मदद मिली जो न्यूज़ के परिदृश्य से निपटते वक्त ज़रुरी होती है. इन्हीं की बदौलत हम दुष्परिणामों की चिंता किए बगैर पूरी ताकत और दृढ़ता से खड़े हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री और व्यक्तिगत तौर पर मेरे मन में मधु त्रेहान के लिए बहुत स्नेह और कृतज्ञता है. वो एक बेहतरीन बॉस, मार्गदर्शक और दोस्त होने के साथ ही न्यूज़लॉन्ड्री की सह-संस्थापक भी हैं. उनकी वजह से न केवल न्यूज़लॉन्ड्री जैसी सोच को हकीकत में बदलना मुमकिन हो पाया, बल्कि वो उन सबसे खास हस्तियों की सूची में शामिल हैं जो पत्रकारिता जगत की बेहतरी के लिए दशकों से इस क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन कर रही हैं. उनकी कामयाबी की इस फ़ेहरिस्त में 70 के दशक में इंडिया टुडे मैगजीन को लॉन्च करने से लेकर, 80 के दशक में न्यूज़ट्रैक और 2012 में न्यूज़लॉन्ड्री लॉन्च करने जैसे कीर्तिमान शामिल हैं. हमेशा बेचैन, साहसी और उदार बने रहने के लिए हमेशा आपका ऋणी रहूंगा.
मैं सबसे ज्यादा एहसानमंद उन सब्सक्राइबर्स का हूं, जिन्होंने ख़बरों को आज़ाद बनाए रखने के लिए भुगतान किया. इन सब्सक्राइबर्स ने यह साबित कर दिया कि "भारतीय लोग समाचारों के लिए भुगतान नहीं कर सकते" जैसी किंवदंतियां, जिन्हेँ हम रोज़मर्रा की जिंदगी में सुनते रहते हैं, झूठ हैं. नामुमकिन को मुमकिन बनाने के लिए आप सब एक जादूगर हैं.
और भी बहुत से लोग हैं जिन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बनाया, पाला-पोसा और उसे ज़िंदा रखने में हमारी मदद की; ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनके नामों का यहां पर ज़िक्र नहीं है. इनमें से कई लोग चाहते भी यही थे कि उनके नाम यहां न लिए जाएं. जबकि कई लोगों के नाम यहां लिए ही नहीं जा सकते. हमारे लिए इस मामले में 'एक व्यक्ति के सर्वोतम विकास के लिए उसका पूरा परिवेश जिम्मेदार होता है' वाली कहावत सच्चाई बन गई है. हम इन सब लोगों के आभारी रहेंगे.
अब हमारा अगला कदम क्या होगा? एक विचार है जिस पर फिलहाल हम काम कर रहे हैं? पत्रकारिता को विज्ञापन-मुक्त बनाने से लेकर इसे संसाधनों का एक ग्रिड बनाने तक के काम को अंजाम देने के बाद, हम एक न्यूज़ आर्गेनाइजेशन द्वारा अपनी आधारभूत और लॉजिस्टिक्स की ज़रूरतों से निपटने के तौर-तरीकों में ही बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं.
हजारों लोगों के पास ऐसे दफ्तर, घर या फिर इसी तरह की प्रॉपर्टी हैं, जो खाली पड़ी रहती हैं. इतने सारे संसाधनों का इस्तेमाल कर, उनकी असली कीमत पहचानने (वैल्यू अनलॉकिंग) में लगातार देरी हो रही है और ये बताने के लिए हमें किसी बड़ी परामर्शदाता कंपनी की ज़रूरत नहीं. यहां ऐसे संसाधनों की बात हो रही है जो बिल्कुल दुरुस्त हैं लेकिन फिलहाल उनसे कोई काम नहीं लिया जा रहा.
कॉर्पोरेशन्स में अक्सर अतिरिक्त क्षमता के तौर पर देखे जाने वाले लोगों और उनके छोटे-मोटे कारोबारों, दफ्तरों और घरों में मौजूद रहे वाले संसाधन. जब भी हमें बड़ी-बड़ी संस्थाओं से कानूनी नोटिस आते हैं, तो एक पूरे अनुच्छेद में केवल इसी बात का ज़िक्र होता है कि नोटिस भेजने वाली कंपनी कितनी बड़ी है और पूरे देश में उसके कितने दफ्तर हैं. मैंने हमेशा ये सोचा है कि आखिर नोटिस में इसकी क्या जरूरत है? लेकिन फिलहाल के लिए इस सवाल को छोड़ दीजिए और मान लीजिए कि आपके पास कुछ ऐसे संसाधन हैं जो आप एक न्यूज़ ऑर्गेनाईजेशन टीम को उसकी मंजिल की ओर बढ़ने में मदद करने के लिए दो घंटे से लेकर 48 घंटे तक के लिए दे सकते हैं.
आप में से कुछ लोगों ने अपने वाहन या दफ्तर के लिए जगह देकर अतीत में हमारी मदद की है. ये संसाधन ग्राउंड रिपोर्टिंग में बेहद मददगार साबित हो सकते हैं क्योंकि सफर और उसके किराए की लागत अक्सर कई न्यूज़ ऑर्गेनाइजेशन के लिए एक हताशा पैदा करने वाली चीज़ होती है.
इसीलिए अब हमारा अगला कदम फ्रेंड्स ऑफ एनएल डेटाबेस होगा (जिसे हम एनएल हाइव या एनएल ग्रिड कह सकते हैं). जिस तरह न्यूज़लॉन्ड्री के हजारों (और उम्मीद है कि भविष्य में लाखों-करोड़ों भी हो सकते हैं) ग्राहक हैं, कल्पना कीजिए अगर उनमें से एक बड़ी संख्या एनएल ग्रिड या हाइव में शामिल हो जाती है, तो देश में कहीं भी कोई भी टीम उस नेटवर्क के किसी भी छोर से दो घंटे से ज्यादा की ड्राइव से दूर नहीं होगी. एचडी वीडियो के लिए ब्रॉडबैंड हो, बोर्डिंग के लिए कमरा, क्रू के लिए खाना, रिपोर्टर के लिए वाहन, सेट, स्टूडियो या रिकॉर्डिंग के लिए जगह, यह सब पूरी तरह बदल सकता है. लेकिन यह सब इस पर निर्भर करता है कि न्यूज़ संस्थानों की संरचना और संपत्ति को हम किस तरह देखते हैं. यह वास्तव में आपसी सहयोग पर आधारित एक मिशन होगा.
इसके अलावा यह भी बहुत अच्छा रहेगा कि जब भी कोई मेगा कॉरपोरेशन हमें कानूनी नोटिस भेजकर बताए कि उनके देश भर में 44 दफ्तर हैं, तो हम इस बात का जवाब देते हुए कह पाएंगे कि- "बस इतना ही? हमारे पास 2,000 नोड्स वाली एक पूरी ग्रिड है, लेकिन परेशानी की कोई बात नहीं, एक दिन आप भी वहां तक पहुंच जाएंगे." न्यूज़ की संरचना में बदलाव होना चाहिए. न्यूज़ को जनसेवा में बदलने के लिए इसमें योगदान देने वाले लोगों का बहुत बड़ा नेटवर्क होना चाहिए. यही हमारी मंजिल का अगला पड़ाव होगा.
वैसे तो आपको न्यूज़लॉन्ड्री ग्रिड का एक हिस्सा बनने के लिए तैयार करना और उसके लिए आपका विश्वास जीतना, एक बड़ा ही मुश्किल काम जान पड़ता है. लेकिन यह भी ख्याल रहे कि आज से 10 साल पहले, एक विज्ञापन-मुक्त वेबसाइट को लेकर भी हमारी सोच बिल्कुल ऐसी ही थी.
एक बार फिर से हमेशा के लिए उन सभी का आभार जिनकी वजह से #NLat10 संभव हो पाया.
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