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हरिद्वार धर्म संसद: क्यों उत्तराखंड पुलिस की जांच का किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना तय है
25 दिसंबर, शनिवार की दोपहर हम हरिद्वार के श्री उदासीन कार्ष्णि नारायण आश्रम के कमरा नंबर 24 में मौजूद थे. यह कमरा खुलेआम मुस्लिम, मीडिया, सुप्रीम कोर्ट और संविधान विरोधी बयानों का अड्डा बना हुआ था. इस कमरे में यति नरसिंहानंद सरस्वती, अमृतानंदजी महाराज, त्यागी समाज के राष्ट्रीय प्रमुख सुनील त्यागी और पंडित अधीर कौशिक समेत कई अन्य लोग शामिल थे.
श्री उदासीन कार्ष्णि नारायण आश्रम, वेद निकेतन धाम से महज पांच सौ मीटर की दूरी पर है. यहां बैठे ज्यादातर लोग 17 से 19 दिसंबर को वेद निकेतन में हुई धर्म संसद में शामिल थे.
इस ‘धर्म संसद’ में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को गोली मारने की धमकी के साथ-साथ हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए मुसलमानों का संहार करने की बात कही गई. घटना का वीडियो पूरी दुनिया में वायरल हो रहा है.
‘धर्म संसद’ में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद सरस्वती के अलावा हिंदू रक्षा सेना के स्वामी प्रबोधानंद, निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर मां अन्नपूर्णा, पंडित अधीर कौशिक, दर्शन भारती, अमृतानंदजी महाराज, बीजेपी के पूर्व नेता अश्विनी उपाध्याय, शाम्भवी पीठाधीश्वर के प्रमुख आनंद स्वरूपजी और हाल ही में हिंदू धर्म अपनाने वाले वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी भी शामिल हुए थे.
‘धर्म संसद’ का कौन था आयोजक?
17 दिसंबर से 19 दिसंबर के बीच तीन दिवसीय ‘धर्म संसद’ हरिद्वार के वेद निकेतन धाम के हॉल में हुई थी. यहां हुए कार्यक्रम को लेकर एक एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है, लेकिन यहां के स्थानीय लोग इस घटना से अनजान नजर आते हैं.
वेद निकेतन के प्रमुख महामंडलेश्वर स्वामी वेद भारती हैं. इनके आठ आश्रम देश के अलग-अलग हिस्सों में हैं. 59 वर्षीय अमिता भारती हरिद्वार वाले आश्रम की देखरेख करती हैं.
आश्रम के लॉन में बैठी भारती कहती हैं, ‘‘जब ‘धर्म संसद’ हो रहा था तब मैं बीमार थी. यतिजी (यति नरसिंहानंद सरस्वती) ने बार-बार संसद में आने के लिए कहा तो एक दिन आधे घंटे के लिए मैं चली गई. यतिजी को मैं पहले से जानती हूं. इससे पहले भी वे यहां आ चुके हैं. आखिरी बार आये थे तो वसीम रिजवी भी साथ थे. अब वो जितेंद्र नारायण त्यागी हो गए है.’’
‘धर्म संसद’ का विवादित भाषणों वाला वीडियो दिखाने पर भारती कहती हैं, ‘‘जब तक मैं वहां थी तब तक किसी ने ऐसा नहीं बोला. मेरे जाने के बाद किसी ने बोला हो तो मुझे नहीं पता.’’
किसने हॉल बुक कराया था. इस सवाल पर साध्वी भारती आश्रम के मैनेजर दिनेश का नंबर साझा करती हैं. वे कहती हैं कि तब मैं अस्पताल में थी, दिनेश ने ही हॉल की बुकिंग की थी.
दिनेश हमें बताते हैं, ‘‘लुधियाना के रहने वाले रमन जैन साहब का फोन आया था. वे हमारे आश्रम के ट्रस्टी भी हैं. उन्होंने कहा कि 17 से 19 अक्टूबर तक के लिए हॉल खाली रखना. हमने ऐसा ही किया.’’
हमने रमन जैन से भी बात की. जैन कहते हैं, ‘‘गाजियाबाद वाले यति नरसिंहानंद सरस्वतीजी का फोन आया था. उन्होंने पूछा कि हमें 'धर्म संसद' करनी है, क्या आपका आश्रम खाली है? वे आश्रम में पहले भी आकर रह चुके हैं. आश्रम खाली था तो हमने दे दिया. हमारा इस 'धर्म संसद' से कोई लेना देना नहीं. वहां क्या हुआ ये भी हमें मालूम नहीं है. यदि ऐसा हुआ है तो गलत है. हम आगे से ख्याल रखेंगे.’’
इन तमाम लोगों से बातचीत में साफ हुआ कि कार्यक्रम का आयोजन विवादित संत यति नरसिंहानंद ने किया था. हालांकि मीडिया में कार्यक्रम का आयोजक पंडित अधीर कौशिक को बताया गया. अधीर खुद को सनातन धर्म ह्रदय सम्राट ब्राह्मण शिरोमणि लिखते हैं. वे खुद को आयोजक कहने से बचते हैं.
नारायण आश्रम में हमारी मुलाकात यति नरसिंहानंद से हुई. वो हंसते हुए कार्यक्रम की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हैं. वे कहते हैं, ‘‘अब सब मुझपे ही रहने दो. कोई एक ही फंसे. हालांकि असली आयोजक तो पंडितजी (अधीर कौशिक), दर्शन भारती और अमृतानंदजी महाराज हैं. दर्शन भारतीजी के तो हम चेले हैं. उन्होंने ही मुझे महामंडलेश्वर बनाया.’’ इसके बाद कमरे में जोर का ठहाका लगता है.
हरिद्वार की दर्शनार्थी पुलिस
इस पूरे मामले में उत्तराखंड पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. यति नरसिंहानंद सरस्वती हरिद्वार में ‘धर्म संसद’ करने वाले हैं इसकी जानकारी इस साल के मार्च महीने में ही आ गई थी. मार्च के बाद से यति कई अलग-अलग कारणों से विवादों में रहे हैं.
इसी साल 12 नवंबर को यति नरसिंहानंद और वसीम रिजवी हरिद्वार गए थे. जहां इन्होंने इस्लाम को लेकर विवादित बयान दिया था. इनके खिलाफ स्थानीय लोगों ने विरोध भी किया. इसके अलावा भारतीय पत्रकार संघ के जिलाध्यक्ष दिलशाद अली ने थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. दिलशाद न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘हरिद्वार के प्रेस क्लब में उन्होंने किताबें (मोहम्मद) बांटी और मुहम्मद साहब को लेकर अपशब्द बोले. जिसके खिलाफ यहां विरोध हुआ और हमने शिकायत दर्ज कराई. जिस पर एफआईआर दर्ज हुई.’’
12 नवंबर को वसीम रिजवी और यति ने हरिद्वार में मुस्लिम धर्म के खिलाफ बयानबाजी की थी जिसके बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. करीब एक महीने बाद ये लोग फिर हरिद्वार आए. ऐसे में पुलिस को अंदाजा नहीं था कि ये लोग क्या करने वाले हैं? पुलिस ने क्या तैयारी की? धर्म संसद के पहले दिन से ही विवादास्पद बयानों का दौर शुरू हो गया. फिर भी पुलिस मूकदर्शक बनी रही. सवाल खड़ा होता है कि, 17 से 19 दिसंबर तक चले कार्यक्रम पर पुलिस ने क्यों स्वतः संज्ञान नहीं लिया. क्यों एफआईआर दुनिया भर में हल्ला होने के बाद 23 दिसंबर को दर्ज हुई, क्यों पहली दफा सिर्फ वसीम रिजवी का नाम एफआईआर में डाला गया, जबकि सारे आरोपियों के चेहरे वीडियो में सामने थे. अपनी पड़ताल में हमने उत्तराखंड पुलिस का रवैया बेहद पक्षपातपूर्ण और मिलीभगत वाला पाया.
25 दिसंबर को हम हरिद्वार के कोतवाली नगर थाने पहुंचे. थाने में हमारी मुलाकात एसएचओ राकेंद्र कुमार कठैत से हुई. कठैत से जब हमने इस मामले में अब तक हुई कार्रवाई को लेकर सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘पहले वसीम रिजवी का ही नाम एफआईआर में दर्ज था. आज इसमें धर्मदास और साध्वी अन्नपूर्णा का नाम जोड़ दिया गया है. हम लगातार सबूत इकठ्ठा कर रहे हैं. और भी नाम एफआईआर में शामिल करेंगे.’’
दिलचस्प है कि इतने साफ सबूतों के बावजूद अब तक उत्तराखंड पुलिस ने कोई गिरफ्तारी नहीं की है. इस सवाल पर कठैत कहते हैं, ‘‘मामला 153 (ए) के तहत दर्ज हुआ है. इसमें कार्रवाई के लिए सरकार से इजाजत की जरूरत पड़ती है. हम ठोस चार्जशीट तैयार करेंगे और हमें उम्मीद है कि इजाजत मिल जाएगी. अब तक तो ऐसा नहीं हुआ कि मामला मजबूत हो पर इजाजत नहीं मिली हो.’’
यानी पुलिस ने इतने गंभीर मामले में ऐसी धारा लगाई हैं जिसमें कार्रवाई के लिए उसे राज्य सरकार से अनुमति लेनी पड़ेगी. यह अपने आप में पुलिस के रवैए पर बड़ा सवाल है. क्या आपको इस विवादित ‘धर्म संसद’ की जानकारी पहले से नहीं थी? इस पर कठैत कहते हैं, ‘‘धर्म संसद की जानकारी तो पहले से थी, लेकिन वहां ये सब बोला जाएगा. इसकी तो किसी को उम्मीद नहीं थी न. हमें भी सोशल मीडिया से ही जानकारी मिली.’’
हालांकि हमसे बातचीत में कठैत बेहद सख्त नजर आते हैं, लेकिन कोतवाली में मुलाकात के लगभग घंटे भर बाद उनसे हमारी एक अकस्मात मुलाकात होती है. यह मुलाकात ऐसी जगह पर होती है जहां वो हमसे मिलने की उम्मीद नहीं कर रहे थे. लगभग एक घंटे बाद कठैत से हमारी मुलाकात आनंद स्वरूप महाराज के आवास के बाहर होती है. शाम के करीब छह बजे कठैत वहां अपनी सरकारी गाड़ी से पहुंचते हैं. अपना जूता गेट के बाहर उतारकर बेहद शिष्य भाव से अंदर जाते हैं. करीब आधे घंटे तक वो अंदर मौजूद रहते हैं. उस वक्त वहां आनंद स्वरूप के साथ यति नरसिंहानंद सरस्वती, दर्शन भारती के साथ ‘धर्म संसद’ में मौजूद तमाम आरोपी मौजूद थे. राकेंद्र कठैत बाहर हमको देखकर थोड़ा सकपका जाते हैं. थोड़ी देर अधीर कौशिक से बनावटी बातें करते हैं, हमें नजरअंदाज करते हुए वो चले जाते हैं.
हमने आनंद स्वरूप महाराज से एसएचओ के आगमन का मकसद पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पास तो दर्शनार्थ आए थे. बाकी यति जी से उन्होंने बात की. आगे कुछ बवाल न हो इसके लिए गुजारिश की है.’’
एसएचओ कठैत का ‘धर्म संसद' में शामिल विवादित व्यक्तियों के पास गुपचुप तरीके से ‘दर्शनार्थ’ जाना और मुख्य आरोपी यति से आगे बवाल न करने की गुजारिश करना इस पूरे मामले में पुलिसिया कार्रवाई की नीयत की पोल खोलता है. पुलिस नफरत के आरपियों से गुजारिश करे तो यह अपने आप में पुलिस की कार्यशैली और स्वायत्तता पर सवाल है.
इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने वाले 25 वर्षीय गुलबहार कुरैशी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, '‘मैने अपनी शिकायत में वसीम रिजवी, यति नरसिंहानंद सरस्वती, दर्शन भारती, धर्मदास और स्वामी प्रबोधनंद का नाम दिया था. हमने इनका वीडियो भी पुलिस को दिया, लेकिन पुलिस ने 153 (ए) के तहत सिर्फ वसीम रिजवी को आरोपी बनाया. हम दोबारा अपनी शिकायत लेकर पहुंचे और उन्हें और लोगों का वीडियो दिया तो अन्नपूर्ण और धर्मदास का नाम उन्होंने एफआईआर में जोड़ा.’’
जानकारों के मुताबिक उत्तराखंड पुलिस इस मामले में राजनीतिक दबाव में काम कर रही है. राजनीति आरोपियों को संरक्षण दे रही है. बीबीसी से बात करते हुए दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर एमबी कौशल कहते हैं, ‘‘बयान देने के बजाय अब तक उत्तराखंड की पुलिस को गिरफ्तारी कर लेनी चाहिए थी, और मामले से संबंधित जो प्राथमिकी दर्ज की गई है उसमें और भी धाराएं लगानी चाहिए थीं. पुलिस के रवैये से ही सबकुछ तय होता है.’’
उत्तराखंड पुलिस की जांच का लचर रवैया इससे भी साबित होता है कि घटना के दस दिन से ज्यादा हो चुके हैं और जांच करने वाले अधिकारी या थाने के एसएचओ भी तक घटनास्थल पर नहीं गए हैं. वेद निकेतन की देख रेख करने वाली भारती कहती हैं, ‘‘पुलिस अब तक यहां नहीं आई. मुझसे भी किसी ने कोई पूछताछ नहीं की है.’’
पुलिस जांच की लचर स्थिति और गैर पेशेवर रवैये को लेकर हमने उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव एसएस संधू, अपर मुख्य सचिव (गृह) आनंद वर्धन, डीजीपी अशोक कुमार, हरिद्वार के जिलाधिकारी, एसएसपी, एसपी सिटी और एसपी क्राइम से बात की. इसमें से कुछ लोगों ने हमारे सवालों का जवाब दिया, जबकि कुछ ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
हमारे द्वारा पूछे गए सवाल
1. हरिद्वार में 17 से 19 दिसंबर तक 'धर्म संसद' चला. इस मामले में चार दिन बाद शिकायत दर्ज की गई. क्या 23 दिसंबर से पहले पुलिस को इस घटना की जानकारी नहीं थी?
2. अगर जानकारी नहीं थी तो क्या इसे इंटेलिजेंस का असफल होना नहीं माना जाना चाहिए? और अगर जानकारी थी तो क्या कार्रवाई की गई?
3. 'धर्म संसद' में पूर्व प्रधानमंत्री को गोली मारने की बात की गई. मुसलमानों की हत्या करने के लिए हिंदू युवाओं को उकसाया गया. क्या आपको लगता है कि कार्रवाई की रफ्तार तेज है?
4. जब 12 नवंबर को वसीम रिजवी और यति नरसिंहानंद हरिद्वार में इस्लाम के खिलाफ बोल चुके थे. उन पर एफआईआर भी दर्ज हुई थी. ऐसे में वो दोबारा हरिद्वार आए तो क्या एहतियात बरता गया?
हरिद्वार के जिलाधिकारी विनय शंकर पांडेय घटना की जानकारी और कार्रवाई में की जा रही हीलाहवाली के सवाल पर कहते हैं, ‘‘नहीं ऐसा नहीं है. कोई भी कार्यक्रम होता है तो हमारी यूनिट उसकी जानकारी देती रहती है. जिसके आधार पर विश्लेषण किया जाता है कि उसमें क्या कार्रवाई होनी चाहिए. इसके लिए जिले के एसएसपी को बताया गया था. उसी के आधार पर एफआईआर दर्ज हुई है.’’
लेकिन एफआईआर तो चार दिन बाद, गुलबहार कुरैशी की शिकायत के बाद दर्ज हुई. इतने गंभीर मामले में इतनी धीमी गति से कार्रवाई क्यों? इस पर पांडेय जी नाराज होकर कहते हैं, ‘‘कब कार्रवाई करनी है, नहीं करनी है. यह प्रशासन ही बेहतर ढंग से फैसला करेगा. एक्स, वाई, जेड तो नहीं कर सकता न.’’
लेकिन 19 से 23 दिसंबर तक इंतजार क्यों किया गया, इस पर पांडेय कहते हैं, ‘‘यह प्रशासन का काम करने का तरीका है. कई स्थितियों को ध्यान में रखना होता है. उस मौके पर आप कुछ करते हैं तो उसकी ज्यादा प्रतिक्रिया हो सकती है. इसलिए इंतजार भी किया जाता है.’’
शिकायकर्ता के मुताबिक उन्होंने वासिम रिजवी समेत बाकी कई नाम और वीडियो पुलिस को दिए थे लेकिन पुलिस ने पहले सिर्फ वासिम रिजवी को आरोपी बनाया, बाद में दो लोगों का नाम जोड़ा गया. ऐसा क्यों? इस पर पांडेय कहते हैं, ‘‘इसका ठीक जवाब जिले के एसएसपी और संबंधित थाने के एसएचओ दे सकते हैं. बाकी एफआईआर दर्ज हो चुकी है. आइओ जांच कर रहे हैं. चार्जशीट लगेगी या नहीं वो ही तय करेंगे. इन्वेस्टिगेशन में किसी का हस्तक्षेप नहीं होता.’’
हमने जिले के एसएसपी योगेंद्र सिंह रावत से कई बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनसे हमारी बात नहीं हो पाई. उनके निजी सचिव ने व्यस्तता की बात कहकर फोन काट दिया. हमने उन्हें इस संबंध में कुछ सवाल भेजे हैं.
हमने हरिद्वार के एसपी सिटी स्वतंत्र कुमार सिंह से भी बात की. वे ही इस पूरे मामले को देख रहे हैं. न्यूज़लॉन्ड्री ने अपने सवाल सिंह से पूछे तो उन्होंने कहा, ‘‘विधि सम्मत जो भी हो सकता है हम कर रहे हैं. इस मामले में एफआईआर हो चुकी है. तीन लोगों को आरोपी बनाया गया है. वसीम रिजवी और अन्नपूर्णा को सीआरपीसी की धारा 41 के नोटिस भी दिए जा चुके हैं. विवेचना चल रही है. जल्दी बाकी कार्रवाई की जाएगी.’’ इसके बाद वे फोन रखते हुए कहते हैं, ‘‘मुझे जितना कहना था आपको बता दिया.’’
इस मामले के जांच अधिकारी विजेंद्र सिंह कुमाई है. जांच में अब तक क्या हुआ. इस सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘‘अब तक सिर्फ तीन नाम हैं, बाकी लोगों का नाम नहीं जुड़ा है.’’ लेकिन धर्म संसद में विवादित बयान देने वाले बाकी लोगों का भी वीडियो मौजूद है. ऐसे में कोई नया नाम क्यों नहीं जुड़ा. इस सवाल पर सिंह कहते हैं, ‘’कोई बात नहीं. परेशान मत होइए. जांच चल रही है. और जो भी शामिल मिलेंगे उनके नाम चार्जशीट में दर्ज किया जाएगा. हम किस आधार पर कार्रवाई कर रहे हैं यह बात मैं आपको नहीं बता सकता. यह हमारी जांच का हिस्सा है.’’
घटना पर क्या कहते हैं स्थानीय मुस्लिम
इस घटना की शिकायत करने वाले गुलबहार कहते हैं, ‘‘वहां मुसलमानों की नरसंहार की बात की गई. इसके अलावा वहां जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया गया वो साधु संत के तो नहीं थे. वो गुंडा तत्व के लोग होते हैं वो ऐसा बोलते हैं. वहां जो कुछ भी हुआ उससे हम लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंची है. इसलिए हमने शिकायत दर्ज कराई है. इसका गलत असर समाज पर न पड़े इसीलिए हमने कानूनी कार्रवाई का सहारा लिया है.’'
ज्वालापुर पीठ बाजार से पार्षद और कांग्रेस नेता सुहेल अख्तर पुलिस के रवैये पर सवाल खड़ा करते हैं. सुहेल कहते हैं, ‘‘इस समय पांच राज्यों में चुनाव का वक्त है. इसमें उत्तराखंड भी एक है. हरिद्वार धर्म नगरी में ‘धर्म संसद’ के माध्यम से इन्होंने जो भड़काऊ भाषण दिया. पूर्व प्रधानमंत्री को गोली मारने की बात की. इनसे यहां कोई इत्तेफाक नहीं रखता है. इसमें से दो-तीन चेहरे ऐसे हैं, जिन्होंने बीजेपी से कुछ लालच में आकर इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं. इनमें से कइयों के पैर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने स्पर्श किए हैं. इस '’धर्म संसद’ को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है.’’
‘अफसोस नहीं गर्व’
विवादों के बीच शनिवार को यति नरसिंहानंद सरस्वती हरिद्वार में थे. न्यूज़लॉन्ड्री ने ‘धर्म संसद’ में दिए गए विवादित बयानों पर यति से सवाल किए. वहां मुस्लिम समुदाय की हत्या करने की बात कही गई. क्या यह जायज है. इस सवाल पर यति एक कदम आगे की बात करने लगते हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमें हर मंदिर में लादेन, प्रभाकरन, भिंडरवाले और मुल्ला उमर जैसा धर्म योद्धा चाहिए. हिन्दुओं को तालिबान और आईएसआईएस जैसा संगठन बनाना होगा. जो धर्म के लिए अपनी जान दे दें. आज हमारे देश में ऐसे संगठन नहीं होंगे तो हिंदू खत्म हो जाएंगे.’’
‘धर्म संसद’ में यति मुस्लिमों के आर्थिक बहिष्कार की बात कर रहे थे. इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से वे कहते हैं, ‘‘मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार होना चाहिए, लेकिन हिंदू खुद को केवल आर्थिक बहिष्कार से नहीं बचा सकता है. हिंदुओं का नैतिक दायित्व है कि वो मुसलमानों से कुछ भी ना खरीदें. बहिष्कार के अलावा हिन्दुओं को और भी रास्ते देखने पड़ेंगे.’’
मां अन्नपूर्णा की तरह यति भी दावा करते हैं कि 2029 में भारत का प्रधानमंत्री कोई मुस्लिम होगा. इस दावे का आधार पूछने पर वे मुस्लिम समुदाय को अपशब्द कहते हुए कहते हैं, ‘‘2029 में भारत का प्रधानमंत्री मुसलमान बनने वाला है और एक बार भारत का प्रधानमंत्री मुसलमान बन गया तो वो इस संविधान को कूड़े में फेंक कर शरीयत लगा देंगे. यह संविधान हमें बचा नहीं सकता है. देश को बचा नहीं सकता है. अपने आप को नहीं बचा सकता है. इस संविधान का हम करेंगे क्या. हिन्दुओं में दूरदर्शिता है ही नहीं. मुसलमानों की बढ़ती हुई भयावह आबादी. एक-एक मुसलमान (गाली देते हुए) की तरह 11-12 बच्चे पैदा किए है.’’
‘धर्म संसद’ में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के बयान को भी गलत तरह से पेश किया गया. उन्होंने देश की संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का कहा था, लेकिन यहां अल्पंसख्यकों की जगह सिर्फ मुसलमान कर दिया गया. हालांकि जब हमने धर्मदास द्वारा मनमोहन सिंह की हत्या करने को लेकर यति से सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘मनमोहन सिंह ने जिस दिन संसद में कहा था कि भारत के सांसदों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है. उसी दिन हिन्दुओं को सही से विरोध करना चाहिए था. क्या कहते ही मनमोहन सिंह को गोली लग गई. क्या किसी ने मार दिया मनमोहन सिंह को. मनमोहन सिंह जैसे एहसान फरामोश, गद्दार, केवल इसलिए जीवित रहते हैं क्योंकि हिन्दुओं में दम नहीं है.’’
हमारी घंटे भर की बातचीत में साफ हो चुका था कि ‘धर्म संसद’ में जो कुछ भी कहा-सुना गया उसको लेकर यति को कोई अफसोस नहीं है. वो कहते हैं, ‘‘हमें तो खुशी है. अब तो देश के कोने-कोने में हम ये ‘धर्म संसद’ आयोजित करने वाले हैं. मैं चाहे जेल के अंदर रहूं या मारा जाऊं लेकिन ये ‘धर्म संसद’ रुकेगी नहीं. धरती हमारा बलिदान मांग रही है. मैं अपनी जान देने के लिए तैयार हूं.’’
सिर्फ यति ही नहीं इस कार्यक्रम में शामिल ज्यादातर लोगों को कोई अफसोस नहीं है. वे इसे एक जीत के तौर पर देख रहे हैं. वे मीडिया से और भारत की अदालतों से नाराज हैं. कायर्कम में संचालन करने वाले अमृतानंद जी महाराज मीडिया को दोगला और अदालतों को पापी कहते हैं.
हमने वसीम रिजवी यानी जितेंद्र त्यागी से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया.
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