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उत्तर प्रदेश: मंडियों की कमाई में आई 770 करोड़ रुपए की कमी, विवादित कृषि कानून बना प्रमुख कारण

उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि बीते साल मंडी शुल्क में भारी कमी आई है. जवाब के मुताबिक जहां 2019-20 में मंडी शुल्क के रूप में 1390.60 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे, वहीं 2020-21 में घटकर 620.81 करोड़ रुपए हो गया.

मंडी शुल्क में आई इस कमी की एक वजह केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन विवादित कृषि कानूनों में से एक कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 को बताया गया है.

समाजवादी पार्टी के नेता और मुरादाबाद के बिलारी से विधायक मोहम्मद फहीम इरफान ने गुरुवार 16 दिसंबर को सवाल पूछा कि कृषि विपणन मंत्री बताने की कृपा करेंगे कि वित्तीय वर्ष 2017-18, 2018-19, 2019-20 एवं 2020-21 में उत्तर प्रदेश में मंडी परिषद को मंडी शुल्क के रूप में कितनी धनराशि प्राप्त हुई है? क्या सरकार के संज्ञान में है कि मंडी शुल्क के रूप में प्राप्‍त होने वाली धनराशि में कमी आई है?

इसका जवाब देते हुए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राम चौहान ने बताया कि 2017-18 में 1075.92 करोड़, 2018-19 में 1258.52 करोड़, 2019-20 में 1390.60 करोड़ और 2020-21 में 620.81 करोड़ रुपए मंडी शुल्क आया है.

राज्यमंत्री राम चौहान द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 2019-20 की तुलना में 2020-21 में करीब 770 करोड़ रुपए कम मंडी शुल्क प्राप्त हुआ.

जवाब में आगे मंत्री मंडी शुल्क में आई कमी के कारणों का जिक्र करते हैं. राम चौहान बताते हैं, ‘‘ई-नाम की स्थापना के साथ, 05 जून, 2020 को आया भारत सरकार का अध्यादेश जो बाद में 27 सितंबर को कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 में बदल गया. इसके बाद कृषि उत्पादों को व्यापार मंडी परिसर के बाहर करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई थी. मंडी परिसर के बाहर कृषि उत्पादों के व्यापार को मंडी शुल्क से मुक्त कर दिया गया था. वहीं मंडी परिसर के अन्दर कृषि उत्पादों के व्यापार पर मंडी शुल्क घटाकर 2 प्रतिशत से 1 प्रतिशत कर दिया गया है. साथ ही 45 फल-सब्जी को मंडी शुल्क से मुक्त किया गया है. इन वजहों से 2021 में मंडी शुल्क की धनराशि में वित्तीय वर्ष 2020-21 में कमी आयी.’’

राज्यमंत्री श्रीराम चौहान द्वारा 16 दिसंबर को विधानसभा में दिया गया जवाब

केंद्र सरकार तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस ले चुकी है. इन कानूनों के खिलाफ नवंबर 2020 से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान भी अपने घरों को लौट गए हैं. प्रदर्शन कर रहे किसानों के मन में इन तीनों कृषि कानूनों को लेकर कई आशंकाएं थीं. 'कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020' जिसका जिक्र राज्यमंत्री ने किया है इसको लेकर किसानों को आशंका थी कि इसके कारण मंडियां खत्म हो जाएंगी.

प्रदर्शन कर रहे किसानों का दावा था कि टैक्स नहीं देने की स्थिति में प्राइवेट खरीदार मंडी की तुलना में ज्यादा पैसे देकर कुछ सालों तक खरीदारी करेंगे. ऐसे में किसान मंडी से दूर होते जाएंगे और धीरे-धीरे मंडी खत्म हो जाएंगी. मंडी सिस्टम खत्म होने के बाद प्राइवेट खरीदार अपने हिसाब से खरीद करेंगे. प्रदर्शनकारी किसान इसके लिए बिहार के किसानों का उदाहरण देते हैं. जहां एमएसपी खत्म होने के बाद मंडियां खत्म हो गईं और किसान अपना उत्पादन औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर हैं.

मंडी शुल्क खरीदारी करने वाले कारोबारियों को देना होता है. अलग-अलग राज्यों में मंडी शुल्क अलग-अलग हैं. जानकारों की माने तो मंडी शुल्क का इस्तेमाल मंडी समितियां ग्रामीण इलाकों में सड़क बनाने के साथ-साथ नए मंडियों के निर्माण पर भी करती हैं.

भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मलिक मंडी शुल्क के इस्तेमाल को लेकर कहते हैं, ‘‘मंडी अधिनियम के मुताबिक जो मंडी शुल्क एकत्रित होगा उसे कृषि संबंधित शोध पर खर्च किया जाना था, किसानों के लिए स्ट्रक्चर बनेगा, किसानों को अलग-अलग सुविधाएं दी जाएंगी. समय-समय उन्हें उपहार दिए जाएंगे. और साथ ही किसानों के बच्चों को मंडी समिति छात्रवृति देगी. अधिनियम में उपरोक्त सभी बातें कही गई थीं. हालांकि यह सब औपचारिकता बनकर रह गया है. पहले किसानों के बच्चों को छात्रवृति मिलती थी, लेकिन अब मंडी के सचिव और उनके रिश्तेदारों के साथ-साथ कुछ लोगों तक सीमित रह गया है.’’

मलिक आगे बताते हैं, ‘‘यूपी में भवन और सड़क निर्माण के लिए तो कई संस्थाएं हैं लेकिन मंडी समिति भी किसानों को सुविधाएं देने के बजाय निर्माण का ही काम कर रही है. यूपी में तो मंडियां आवास बनवा रही हैं. जब बसपा की सरकार थी तो मंडियों ने कांशीराम आवास बनवाए, सपा की सरकार में लोहिया आवास बनवाए गए और बीजेपी सरकार दीनदयाल आवास बनवा रही हैं. इससे किसानों को क्या फायदा है? मंडी शुल्क के पैसे किसानों के हित पर खर्च होने चाहिए. हमारे यहां धान की नमी जांचने की जो मशीन है वो थर्ड क्लास है. उसे बदला जाए. वजन करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक कांटे क्यों नहीं लगाए जा रहे हैं. आज भी तराजू और बाट से वजन करते हैं. मंडी अधिनियम भी यही कहता है.’’

कृषि कानूनों पर राज्यसभा में बहस के दौरान कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा था, ‘‘मंडियों में टैक्स किसान नहीं, खरीदार देता है. पंजाब में साढ़े छह प्रतिशत, हरियाणा में चार प्रतिशत टैक्स सरकार को मिलता है. हरियाणा-पंजाब में ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर आज अच्छा क्यों है. हर गांव में अच्छी सड़कें क्यों है? क्योंकि ये जो टैक्स जाता है उसका इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर, मंडियों और किसान के विकास पर खर्च होता है.’’

बीते दिनों 20 अगस्त को उत्तर प्रदेश विपणन राज्यमंत्री श्रीराम चौहान ने विधानसभा में ही नई मंडियों की स्थापना को लेकर पूछे गए सवाल पर बताया था, ‘‘जून, 2020 को पारित अध्‍यादेश/अधिनियम के प्रकाश में बदली हुई परिस्थितियों में परिसर के बाहर मंडी शुल्‍क की देयता नहीं रह गई है, जिसके फलस्‍वरूप मंडी की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. ऐसे में समिति की 58वीं बैठक जो 13 जून 2020 को हुई थी, उसमें निर्णय लिया गया है कि बदली हुई परिस्थितियों में नवीन निर्माण के स्‍थान पर पूर्व से सृजित अवस्‍थापना सुविधाओं की मरम्‍मत एवं आधुनिकीकरण पर बल प्रदान किया जाए.’’

राज्यमंत्री श्रीराम चौहान द्वारा अगस्त महीने में विधानसभा में दिया गया जवाब

केंद्र सरकार लगातार नए कानून के बाद मंडियां खत्म होने के किसानों के आरोप से इंकार करती रही. हालांकि पहले यूपी सरकार द्वारा मंडियों की आमदनी कम होने की संभावना पर नई मंडियों के निर्माण पर रोक लगाना और अब मंडी शुल्क में आई भारी कमी से यह स्पष्ट होता है कि किसानों का अंदेशा सही था कि कानून का असर मंडियों पर बुरा होगा.

12 जनवरी 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों पर रोक लगा दी. वहीं तीनों कृषि कानूनों को लेकर अध्यादेश जून 2020 में आया था. राज्य सरकार ने आठ जून 2020 को शासनादेश जारी कर मंडी से बाहर व्यापारियों से मंडी शुल्क लेने पर रोक लगा दी थी. यानी यह कानून सिर्फ सात महीने लागू रहा.

इसके अलावा राज्यमंत्री ने इसके लिए मंडी शुल्कों में योगी सरकार द्वारा की गई कमी का जिक्र किया है. दरअसल नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश सरकार ने मंडी शुल्क की दर को 02 प्रतिशत से घटाकर 01 प्रतिशत कर दिया था. इसके अलावा मई 2020 में 46 कृषि उत्पादों को मंडी शुल्क से मुक्त कर दिया था.

योगी सरकार का दावा था कि मंडी शुल्क में कमी कृषकों को मंडियों में बेहतर सुविधा प्रदान करने एवं मंडियों में कार्य कर रहे व्यापारियों के प्रोत्साहन के लिए किया गया. गांव कनेक्शन के एसोसिएट एडिटर अरविन्द शुक्ला इसको लेकर कहते हैं, ‘‘सरकार ने इसकी शुरुआत अच्छी नियत से की है. खरीदार और किसान दोनों को इससे कुछ हद तक फायदा हुआ होगा. कहने को तो टैक्स खरीदार देता है लेकिन वो जैसे-तैसे किसान से ही निकाल लेता है. अगर सरकार टैक्स खत्म की तो व्यापारी से किसान को पूरे पैसे मिलने की संभावना बढ़ गई. अब व्यापारी टैक्स का बहाना नहीं कर सकता. लेकिन दूसरी तरफ मंडी को काफी नुकसान हुआ. राजस्व की कमी हुई है. जैसा की आंकड़ें बता रहे हैं.’’

शुक्ला आगे कहते हैं, ‘‘सरकार को एक कदम और बढ़ने की ज़रूरत है. दरअसल उत्तर प्रदेश की मंडियों में किसानों ने वजन करने का भी शुल्क लिया जाता है. अभी दो दिन पहले का ही मामला है. मिर्च लेकर कोई बाजार गया. उसे हर एक किलो पर दो रुपए वजन करने के देने पड़े. तो इस तरह तो टैक्स का पैसा भले ही सरकार कम ले रही हो, लेकिन उसे दूसरे रास्तों से पैसे तो देना ही पड़ रहा है. पहले टैक्स व्यापारी के पास से जाता था, लेकिन अब तो सीधे किसान के हाथ से जा रहा है. पहले इसे बेहतर करने की ज़रूरत है.’’

सत्ता में आने के बाद ही 2017 में योगी सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषक समृद्धि आयोग का गठन किया था, लेकिन इसे लेकर अभी तक कोई बैठक नहीं हुई. इस आयोग के एक सदस्य बांदा जिले के रहने वाले प्रगतिशील काश्तकार प्रेम सिंह भी थे.

न्यूज़लॉन्ड्री ने सिंह ने मंडी शुल्क में की गई एक प्रतिशत की कमी के असर को लेकर सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘इससे किसानों को क्या फायदा हुआ. इसका फायदा तो खरीदारी करने वाले को हुआ. हालांकि हमारे यहां तो मंडी व्यवस्था चौपट हो गई है. हालात यह है कि गल्ला मंडी में सब्जी मंडी लग रही है. टीन शेड उड़े हुए हैं. बमुश्किल 20 प्रतिशत किसान ही मंडी में सामान लेकर जा पा रहे हैं. बाकी बाहर से ही बेच दे रहे हैं. इस सरकार ने मंडियों को खराब करने का काम किया.’’

पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक मंडी से जुड़े वरिष्ठ कर्मचारी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘किसान को इससे सीधे तो फायदा नहीं पहुंचता लेकिन इनडायरेक्ट तो मिलता है. जैसे कि व्यापारी को कम टैक्स देना पड़ेगा तो वो उतनी ज्यादा कीमत देकर किसान से माल खरीद सकता है. वहीं व्यापारी को भी फायदा है. मान लीजिए अगर व्यापारी को किसी उत्पाद को खरीदने पर 20 रुपए टैक्स की बचत हो रही है तो उसमें से 10 रुपए वो किसान को दे भी दे तो उसे 10 रुपए की बचत हो जाती है. लेकिन इनसब में नुकसान मंडी को होता है.’’

वहीं 45 फल-सब्जी को मंडी शुल्क से बाहर करने के सवाल पर कर्मचारी कहते हैं, ‘‘अगर किसान मंडी में उसे बेचने जाते हैं तो उन्हें कोई खास फायदा नहीं होता क्योंकि टैक्स तो नहीं लग रहा लेकिन एक प्रतिशत यूजर चार्ज लग जाता है. वहीं वजन का भी पैसा देना होता है. ये पैसा खरीदार से लेना चाहिए लेकिन ये किसान से भी ले लिया जाता है. कई बार तो दोनों से ले लिया जाता है. जहां तक रही 45 फल-सब्जियों की बात तो अगर खेत से बिके तभी फायदा होता है. हालांकि पहले भी खेत से बिकता था, लेकिन व्यापारी को रास्ते में दिक्क्तें होती थीं. भले ही वो खेत से लोडिंग करवाता था लेकिन पेपर मंडी से बनवाता था. इसीलिए फायदा उन्हें नहीं मिल पाता था.’’

सरकार ने मंडी शुक्ल में आई कमी को लेकर जिन तीन कारणों का जिक्र किया उसमें सबसे ज्यादा किसका असर रहा. इस सवाल पर वरिष्ठ कर्मचारी भारत सरकार के विवादित तीन कृषि कानूनों में से एक कृषि उपज व्‍यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 का जिक्र करते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस संबंध में ललितपुर मंडी समिति के सचिव संजय यादव से बात की. यादव भी मंडी शुल्क में आई कमी में भारत सरकार द्वारा पास कानून को जिम्मेदार मानते हैं. वे कहते हैं, ‘‘भारत सरकार के कानून का ही ज्यादा असर हुआ क्योंकि मंडी शुल्क लेने का दायरा मंडी के अंदर सिमट कर रह गया. दूसरी तरफ मंडी के अंदर के शुल्क में भी डेढ़ प्रतिशत की कमी आ गई. बाहर मंडी शुल्क खत्म होने से व्यापारी बाहर ही ज्यादा खरीदारी करने लगे. जिससे मंडी में माल आना कम हो गया.’’

मंडियों पर क्या होगा असर

मंडी शुल्क में आई भारी कमी का असर मंडियों पर भी होगा. क्योंकि इसी शुल्क से नई मंडियों का निर्माण होता है और जो पुरानी हैं उन्हें बेहतर किया जाता है.

मंडियों पर होने वाले असर को लेकर धर्मेंद्र मालिक न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘राकेश टिकैत साहब कहते हैं कि इन कानूनों की वजह से मंडियां बिकेंगी. अब राज्यमंत्री का ये जवाब आया है कि 700 करोड़ कम शुल्क आया है. यह स्थिति तब है जब सुप्रीम कोर्ट ने कानून पर रोक लगाई हुई थी. अगर कानून पर रोक नहीं होती तो मंडी की आमदनी शून्य होती. मंडी में कोई नहीं जाता. फिर दो साल बाद कोई रिपोर्ट आती कि मंडियां सफेद हाथी हो गई हैं. चूंकि मंडियों की कोई जरूरत नहीं रही है, क्यों न इन्हें बेच दिया जाए? और इसके बाद हमारे पैसे से बनी मंडियां प्राइवेट हाथों में चली जातीं.’’

सपा नेता मोहम्मद फहीम न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘इस सरकार से मंडी व्यवस्था संभल नहीं रही है. सरकार ने मंडियों के लिए या किसानों के लिए कोई काम नहीं किया. इससे सीधा-सीधा नुकसान किसानों को हुआ.’’

फहीम आगे कहते हैं, ‘‘सरकार मंडियों के लिए काम नहीं इसका सबसे बड़ा उदाहरण मेरे विधानसभा क्षेत्र मुरादाबाद का बिलारी है. मेरे क्षेत्र में मंडी बनाने के लिए गजट मंजूर हो गया, जो कैबिनेट में पास हो गया, जिसके लिए साल 2016 में ही 40 बीघा जमीन ग्राम सभा से मैंने दिलाया. तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पैसे जारी कर दिए. लेकिन ये सरकार यहां मंडी नहीं बनवा पाई. मंडी निर्माण का मामला मैंने लगातार उठाया. कृषि मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखा लेकिन अब तक नहीं बन पाया. यह साफ इनकी मानसिकता को दर्शाता है कि ये किसानों के लिए कितना काम कर रहे हैं.’’

एक तरफ जहां ज्यादातर लोगों का मानना है कि मंडियां धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी वहीं अरविंद शुक्ला ऐसा नहीं मानते. वे बताते हैं, ‘‘मंडी शुल्क कम होने का असर तो होगा. मंडियां कई तरह का काम करती है. जैसे सड़क बनाना या छात्रवृति देना आदि. लेकिन उत्तर प्रदेश में मंडियां इतनी जल्द खत्म हो जाएंगी ऐसा नहीं कहा जा सकता है. यहां के किसानों के लिए मंडी एक भरोसा है. उन्हें लगता है कि वे वहां जाएंगे तो कम या ज्यादा में उनका सामान बिक जाएगा. उत्तर प्रदेश में मंडी के समानांतर कोई व्यवस्था अब तक तैयार नहीं हुई. ऐसे में यह कहना जल्दबादी होगा कि मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी.’’

मोहम्मद फहीम ने आगे सवाल किया कि मंडियों की सहायता के लिए सरकार कोई आर्थिक पैकेज देगी? इस सवाल के जवाब में मंत्री चौहान ने कहा, ‘‘भारत सरकार ने 01 दिसंबर 2021 को कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2020 को निरस्त कर दिया गया है. जिसके बाद मंडी का कार्यक्षेत्र मंडी परिसर के बाहर संपूर्ण उत्तर प्रदेश में प्रभावी हो गया है. जिसके बाद मंडियों को किसी आर्थिक सहायता का औचित्य नहीं पाया गया है.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने उत्तर प्रदेश के राज्यमंत्री श्रीराम चौहान से बात करने की कोशिश की. हमारी उनसे बात नहीं हो पाई. अगर बात होती है तो उनका जवाब खबर में जोड़ दिया जाएगा.

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