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पीड़ित बच्चे नहीं जानते कि वह एचआईवी से ग्रस्त हैं, हर पांच मिनट में हो रही एक की मौत

दुनिया में कहीं न कहीं हर पांच मिनट में एक बच्चे की मौत एचआईवी/एड्स के कारण हो रही है. यह जानकारी यूनिसेफ द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट में सामने आई है, जिसके अनुसार 2020 में करीब 1.2 लाख बच्चों की जान एचआईवी संक्रमण के कारण गई थी. यही नहीं यदि रिपोर्ट में जारी आंकड़ों को देखें तो 2020 में कम से कम 300,000 बच्चे एचआईवी संक्रमित हुए थे, जिसका मतलब है कि हर दो मिनट में एक बच्चा इस बीमारी की चपेट में आता है.

चिंता की बात तो यह है कि दुनिया में पांच में से दो एचआईवी संक्रमित बच्चे यह नहीं जानते कि वो इस बीमारी से ग्रस्त हैं. वहीं इनमें से केवल आधे बच्चों को एंटीरेट्रोवायरल उपचार (एआरटी) मिल पा रहा है. पिछले काफी समय से इन बच्चों को एचआईवी का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं. इसमें उनके साथ किया जा रहा भेदभाव और लैंगिक असमानता भी शामिल है.

एचआईवी/एड्स एक लाइलाज बीमारी है, जिसे पूरी तरह दूर करने का अब तक कोई रास्ता वैज्ञानिकों को नहीं मिल पाया है, लेकिन इतना जरूर है कि यदि संक्रमित व्यक्ति को अगर सही समय से इलाज मिलना शुरू हो जाए तो वो लंबे समय तक एक सामान्य जिंदगी जी सकता है.

दुनिया में अफ्रीका एचआईवी/एड्स से बुरी तरह प्रभावित है. 2020 के दौरान बच्चों में एचआईवी संक्रमण के जितने भी नए मामले सामने आए थे उनमें से करीब 89 फीसदी अफ्रीका में दर्ज किए गए थे. यही नहीं इस बीमारी से ग्रस्त 88 फीसदी बच्चे और किशोर अफ्रीका से सम्बन्ध रखते हैं. यही नहीं वहां किशोर लड़कों की तुलना में बच्चियों के संक्रमित होने की सम्भावना करीब छह गुना अधिक है. इसी तरह एड्स के कारण होने वाली 88 फीसदी बच्चों की मौत उप-सहारा अफ्रीका में हुई थी.

2020 में सामने आए थे एचआईवी संक्रमण के 15 लाख नए मामले

गौरतलब है कि आज से पांच दशक पहले इस बीमारी का पहला मरीज सामने आया था, तब से लेकर इस बीमारी के दौर में कई उतार चढ़ाव आए हैं. हालांकि इतना जरूर है कि पिछले कुछ दशकों में इसके मामलों में कमी आई है. एचआईवी से बुरी तरह प्रभावित कुछ देशों में इस बीमारी के खिलाफ उल्लेखनीय प्रगति हुई है.

हालांकि इसके बावजूद यूएनएड्स द्वारा जारी नई रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 में एचआईवी संक्रमण के 15 लाख नए मामले सामने आए हैं. कुछ देशों में इसके मामलों में वृद्धि भी देखी गई है. रिपोर्ट की मानें तो दुनिया में एचआईवी संक्रमण जितना तेजी से घटना चाहिए था वो उतनी तेजी से नहीं घट रहा है.

देखा जाए तो पिछले दो वर्षों में जिस तरह से दुनिया भर में कोविड-19 महामारी ने स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावित किया है उसका असर एचआईवी संक्रमित लोगों के इलाज पर भी पड़ रहा है. रिपोर्ट की मानें तो कोरोना उन असमानताओं को और गहरा रहा है जो लम्बे समय से एचआईवी महामारी को प्रभावित करती रही हैं. इस महामारी के चलते एचआईवी उपचार और सेवाओं को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसके चलते कमजोर वर्ग के बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं का जीवन खतरे में पड़ गया है.

एचआईवी के उपचार पर भी पड़ा है कोरोना का व्यापक असर

रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 2020 की शुरुआत में कोरोना के चलते एचआईवी सेवाओं में भारी कमी आई थी. जहां एचआईवी से बुरी तरह प्रभावित देशों में शिशुओं की जांच में 50 से 70 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी, जबकि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के उपचार की शुरुआत में 50 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई थी.

यही नहीं लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के प्रति बढ़ते हिंसा के मामलों, स्वास्थ्य सुविधाओं में आती कमी और जरूरी सामान की कमी ने एचआईवी संक्रमण की वृद्धि में योगदान दिया था. यही नहीं कई देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं के वितरण और गर्भवती महिलाओं में एचआईवी परीक्षण और एंटीरेट्रोवायरल उपचार में कमी का भी अनुभव किया था. उदाहरण के लिए दक्षिण एशिया में 2020 के दौरान गर्भवती महिलाओं के बीच एआरटी कवरेज 71 फीसदी से घटकर 56 फीसदी पर पहुंच गया था.

इस महामारी के खिलाफ हुई प्रगति के बावजूद पिछले कुछ दशकों में बच्चे और किशोर इस मामले में अभी भी पिछड़े हुए हैं, जिन्हें अभी भी पर्याप्त उपचार और सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं. वैश्विक स्तर पर इस बीमारी के लिए उपलब्ध एआरटी की बात करें तो जहां गर्भवती महिलों को 85 फीसदी और 74 फीसद वयस्कों को यह उपचार मिल पा रहा है, वहीं बच्चों में यह कवरेज अभी भी काफी कम है.

जहां दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा 95 फीसदी बच्चों को यह उपचार मिल रहा है. वहीं मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 77 फीसदी, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में 59 फीसदी, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में 57 फीसदी, दक्षिण अमेरिका और कैरिबियन में 51 फीसदी, जबकि पश्चिम और मध्य अफ्रीका में केवल 36 फीसदी संक्रमित बच्चों के लिए एंटीरेट्रोवायरल उपचार उपलब्ध है. ऐसे में जरूरी है कि इस महामारी से संक्रमित बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान इस महामारी से बचाई जा सके.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

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