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‘‘संसद भवन में पत्रकारों का प्रवेश रोकना लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करना है’’

संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है. आए दिन अलग-अलग मामलों पर संसद के दोनों सदनों में बहस जारी है. इसी बीच गुरुवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में पत्रकारों ने संसद भवन में प्रवेश नहीं मिलने के चलते प्रदर्शन किया.

दरअसल कोरोनावायरस के प्रकोप को देखते हुए संसद की कार्यवाही के दौरान पत्रकारों की एंट्री को सिमित किया गया था. अब जब महामारी का प्रकोप कम हो रहा है और तमाम प्रतिबंध हटाए जा रहे हैं, तब भी पत्रकारों के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध पहले की तरह ही जारी है.

संसद में रिपोर्टिंग की महत्ता बताते हुए प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के प्रमुख उमाकांत लखेड़ा कहते हैं, ‘‘अगर पत्रकारों का प्रवेश रोक दिया जाएगा तो वहां होने वाली राजनीतिक गतिविधियों, प्रेस कांफ्रेस, डिस्कशन आदि में वह शामिल नहीं हो पाएंगे. सेशन के दौरान संसद भवन खबरों का अड्डा होता है. वह केवल लाल रंग का गुबंध नहीं है. वो हमारे लिए सूचना का स्रोत है. पत्रकार वहां स्टोरी करने जाते हैं, आपसे पैसे (सरकार से) तो नहीं मांग रहे हैं.’’

लखेड़ा आगे कहते हैं, ‘‘मुझे याद है कि जो बड़े-बड़े अखबार हैं, जिनके पास संसाधन हैं, उनके छह-छह रिपोर्टर एक साथ पार्लियामेंट कवर करते थे. मान लीजिए किसी संस्थान ने आठ रिपोर्टर पार्लियामेंट कवर करने के लिए रखे हैं. अब आपने कहा कि इसमें से किसी एक को ही प्रवेश दिया जाएगा, ऐसे में बाकी पत्रकार तो संस्थान के लिए गैरजरूरी हो गए तो उनका संस्थान का मैनेजमेंट कहेगा कि आपकी तो जरूरत है नहीं. हमने तो आपको नौकरी पार्लियामेंट कवर करने के लिए दी थी. वहीं पार्लियामेंट कवर करने वाले ज्यादातर पत्रकार 40 साल या 50 साल के हैं. ऐसे में सरकार ने लोगों को बेरोजगार करने लिए एक नया दरवाजा खोल दिया है. जो बेहद खतरनाक है.’’

लोकसभा कवर करने वाले एक पत्रकार नाम नहीं छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘कोरोना महामारी के दौरान जब संसद का मॉनसून सत्र शुरू हुआ तो सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर व्यवस्था बनाई गई कि कम ही पत्रकार यहां आएं. जहां पहले 100 पत्रकार कवर करने आते थे, वहीं तब 19-20 लोगों को ही प्रवेश देने की बात लागू की गई. इसमें से करीब नौ तो न्यूज़ एजेंसी के ही पत्रकार थे. बाकी किसको बुलाया जाए इसको लेकर फैसला लिया गया कि लॉटरी निकाली जाए. मैं पिछले मॉनसून सत्र में केवल चार दिन कवर करने जा पाया. इस बार भी यह व्यवस्था जारी है हालांकि अब पत्रकारों की संख्या में इजाफा कर 20 से 22 किया गया है.’’

पत्रकार आगे बताते हैं कि सत्र के दौरान वहां मौजूद होने का फायदा यह होता है कि आसानी से हर एक नेता तक पहुंच होती है. दूसरा फायदा यह है कि आप नेताओं के साथ चाय पीते हुए बात कर सकते हैं. अनौपचारिक बातचीत के दौरान नेता कई बात बताते हैं, जो कैमरे के सामने नहीं बता सकते हैं. मसलन मान लीजिए अभी ममता बनर्जी काफी चर्चा में हैं. ऐसे में आप शरद पंवार या किसी दूसरे सीनियर नेताओं से बात करेंगे तो पता चलेगा कि वे क्या सोच रहे हैं. जो वे कैमरे में खुलकर बोल नहीं सकते हैं.

प्रदर्शन में वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई भी पहुंचे. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए सरदेसाई कहते हैं, ‘‘पार्लियामेंट को हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का मंदिर कहा जाता है. हम पत्रकार वहां हो रही घटनाओं को जनता के सामने रखना चाहते हैं. मुझे लगता है कि ये हमारा अधिकार है. आप हमें उस अधिकार से वंचित नहीं कर सकते हैं. यह गलत है क्योंकि इससे मैसेज जा रहा है कि आपको पत्रकारों की जरूरत नहीं है. कोरोना का समय है. हम ये नहीं कहते कि आप पहले की तरह ही व्यवस्था शुरू करें, लेकिन पत्रकारों को रोका जाना ठीक नहीं है. वहां जाने से पत्रकारों को खबर मिलती है और उसे रोककर आप खबरों से वंचित कर रहे हैं.’’

राजदीप आगे बताते हैं, ‘‘मुझे सरकार के एक नुमाइंदे ने कहा कि संसद टीवी पर लाइव चल रही है तो वहां जाने की जरूरत क्या है. दरअसल सारी कोशिश यह है कि मीडिया को बाहर रखा जाए. संसद टीवी देखकर रिपोर्टिंग नहीं हो सकती है, वहां पत्रकार को होना पड़ेगा. जो नई पार्लियामेंट की बिल्डिंग बन रही है उसको लेकर खबरें आ रही हैं कि पहले जिस तरह से पत्रकारों की पहुंच थी वैसी आगे नहीं होगी. हालांकि यह खबर कंफर्म नहीं है. अगर आज प्रोटेस्ट नहीं किया गया तो यह परंपरा बन जाएगी.’’

लखेड़ा भी न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए इसी चिंता की तरफ इशारा करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘आज जो संसद भवन में हो रहा है उसका असर अलग-अलग राज्य सरकारों पर भी दिखेगा. राज्य सरकारें पार्लियामेंट की तरह विधानसभाओं में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगा देंगी. कई राज्य सरकारें तो इसके लिए तैयार बैठी हैं. इससे पत्रकारों का और पत्रकारिता का नुकसान होगा.’’

इस विरोध प्रदर्शन में वरिष्ठ पत्रकार सतीश जैकब भी यहां पहुंचे थे. उन्होंने कहा, ‘‘यहां पर कोई भी ऐसा शख्स नहीं है जिसे पता नहीं है कि पत्रकारों के साथ क्या हो रहा है. सिर्फ एक चीज मैं कहना चाहता हूं कि हमारी सरकार अगर समझती है कि वो पत्रकारों को बगैर सरकार चला लेगी तो यह उनकी गलतफहमी है. बिना पत्रकारों के सरकार नहीं चल सकती है और अगर उनके दो चार अपने लोग हैं, जिनके जरिए वो खबर देना चाहते हैं तो लोगों का उनपर विश्वास नहीं होगा.’’

जैकब ने बताया कि कैसे बीते दिनों उन्हें कार्ड होने के बावजूद पार्लियामेंट जाने से रोक दिया गया. वे कहते हैं, ‘‘मैं रिटायर पत्रकार हूं. मुझे पार्लियामेंट में जाने के लिए एक खास कार्ड मिला है. जिसका उन्होंने अंग्रेजी में नाम रखा है, लॉन्ग एंड डिस्टिंग्विश सर्विस. जब मैं उस कार्ड को लेकर वहां गया तो गेट पर बैठे व्यक्ति ने कार्ड देखने के बाद कहा कि अभी आपको जाने की इजाजत नहीं है. मैंने हंस कर कहा कि मुझे मालूम था आप यहीं कहेंगे, लेकिन एक बात बताओ एक वरिष्ठ पत्रकार जो अब खबर भी नहीं लिखता उससे आप लोगों का क्या नुकसान होगा. दरअसल सरकार कुछ राज हमसे छुपाना चाहती है तो मैं नरेंद्र मोदी से गुजारिश करता हूं कि बाहर जाकर सीना ठोककर यह न कहें कि हमारा देश बड़ी डेमोक्रेसी है.’’

लखेड़ा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘जून में भी जब मॉनसून सत्र शुरू हुआ तब हम ओम बिड़ला से मिले और पत्रकारों के प्रवेश की मांग की, तब कहा था कि पत्रकारों को प्रवेश दिया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. स्पीकार ने कहा था कि पत्रकारों को संसद भवन से रिपोर्टिंग करने पर कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन हालात यह हैं कि स्पीकार साहब कुछ और कहते हैं और उनका स्टाफ लॉटरी सिस्टम लगा रहा है. जो कि पत्रकारों के लिए बेहद ही अपमानजनक है. अब एक बार फिर हम लोकसभा के स्पीकर ओम बिड़ला और राज्यसभा के सभापति से मिलकर अपनी मांग रखेंगे और जब तक हमारी मांग नहीं मान ली जाती है तब तक यह प्रदर्शन जारी रहेगा.’’

प्रस्तावना पढ़ने के बाद वहां मौजूद पत्रकारों ने हाथ में तख्तियां लेकर मार्च किया. तख्तियों पर ‘मीडिया को काम की आज़ादी दो’, ‘कोविड की आड़ में पत्रकारों पर पाबंदी बंद करो’ और ‘संसद में पत्रकारों पर प्रतिबंध वापस लो’ लिखा नजर आया.

मार्च को रोकने के लिए भारी संख्या में दिल्ली पुलिस और अर्द्ध सुरक्षा बल के जवान मौजूद थे. मार्च जैसे ही प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया के बाहर निकला तभी उसे रोक दिया गया. करीब आधे घंटे तक नारे लगाने के बाद लोग प्रेस क्लब वापस लौट आए.

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