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किसान आंदोलन में निहंग सिखों की भूमिका?

"हम आंदोलन की ढाल हैं. जब-जब जनता पर जुल्म होगा और उसे परेशान किया जाएगा, हम सबसे आगे उनकी ढाल बनकर खड़े रहेंगे और हमें इस आंदोलन से किसानों के अलावा कोई नेता नहीं हटा सकता." 32 वर्षीय निहंग, शेर शाह सिंह कहते हैं.

किसान आंदोलन को एक साल होने जा रहा है. 26 जनवरी को पंजाब और हरियाणा से कई किसान, बैरिकेडिंग तोड़कर, दिल्ली से सटे सिंघु बॉर्डर पर पहुंचे थे. प्रशासन ने किसानों को जगह-जगह रोकने की कई कोशिशें कीं. उनपर लाठी चार्ज किया गया. वॉटर कैनन चलाया. लेकिन किसानों का हौसला बुलंद था. हजारों किसान अब भी बॉर्डर पर डटे हुए हैं. उनकी मांग है कि सरकार पारित तीनों कृषि कानूनों को वापस ले. बिना अपनी मांग को पूरा कराए ये किसान बॉर्डर छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं.

इस आंदोलन ने अन्य किसानों में भी जागरूक करने का प्रयास किया जिसके चलते पिछले एक साल में आंदोलन ने कई उतार-चढाव भी देखे हैं. देश के अलग-अलग राज्यों से किसान बॉर्डर पर आने लगे. महिलाएं, बुजुर्ग, दिव्यांग और बच्चे सभी इस आंदोलन का हिस्सा बनने लगे.

नीली पोशाक, ऊंची पगड़ी, हाथ में कड़ा, और कमर पर कृपाण बांधे निहंग सिख भी इस आंदोलन का शुरू से हिस्सा बने हुए हैं. निहंग सिख हाल ही में चर्चा में आए थे. बता दें कि 15 अक्टूबर की सुबह दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर धरना दे रहे किसान आंदोलन से कुछ दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आईं थीं. यहां पंजाब के तरन तारन जिले के रहने वाले 35 वर्षीय लखबीर सिंह की बेरहमी से हत्या कर उनका शव बैरिकेड से लटका दिया था. हत्या का आरोप निहंग सिखों के एक समूह पर लगा. बैरिकेड के सामने ही टेंट के अंदर गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी रखी हुई थी. आरोप है कि यहीं से लखबीर सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब उठाकर ले जाने की कोशिश की. जिसके बाद उनकी हत्या कर दी गई.

सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन में प्रवेश करते ही सबसे आगे निहंग सिख बैठे हुए हैं. आंदोलन में निहंग सिखों के कुल आठ दल हैं. टेंट के अंदर ही सोने के लिए गद्दे और कम्बल हैं. हर टेंट में खाने का सामान, गैस चूल्हा और शस्त्र रखे हैं.

टेंट के बाहर घोड़ों के रहने की अस्थाई व्यवस्था भी की गई है. निहंगों के लिए घोड़े का खास महत्त्व होता है. शेर शाह बताते हैं, "घोड़ा हमारा जिगरी दोस्त जैसा होता है. जब भी मुश्किल आती है यह हमारे साथ खड़ा रहता है. घोड़ा ही एक ऐसा जानवर है जो अगर हम मर भी जाए तो हमें उठाकर घर पहुंचा देता है." घोड़ों के लिए चारा सड़क पर ही बिखरा रहता है. बम्बू (बांस) से इनके लिए अस्थाई अस्तबल या घोड़ा रखने का घर तैयार किया गया है.

क्यों निहंग सिखों को आंदोलन से हटाने चाहते हैं नेता?

निहंग को 'गुरु की लाडली फौज' कहा जाता है. लखबीर वाले मामले के बाद से कई किसान संगठनों ने निहंगों को हटाने की मांग की है. लेकिन ऐसा पहली बार भी नहीं हुआ है. शेर शाह बताते हैं कि कई बार स्टेज से कहा जाता है कि निहंग सिखों को आंदोलन से हटाया जाए.

शेर शाह

शेर शाह कहते हैं, "हमारी किसान नेताओं से नहीं बनती. वो यहां आंदोलन के लिए नहीं आए हैं. वो अपनी राजनीति कर रहे हैं. हम अपने टेंट क्षेत्र में ही रहते हैं जो कि स्टेज के बिलकुल बगल में बना है. हमें सब सुनाई देता है. ये लोग स्टेज पर चढ़कर कहते हैं कि निहंग सिखों को आंदोलन से हटाया जाए."

नीली पोशाक पहने 32 वर्षीय शेर शाह को उनके दल के सभी लोग उन्हें 'बाबा' कहकर बुलाते हैं. वह जब 17 साल के थे तभी से निहंग सिखों के इस दल 'साहिबजादा जुझार सिंह दल' से जुड़ गए. अब वह अपने दल के नेता हैं. शेर शाह कहते हैं, "मुझे अपने जीवन में आस्था की तलाश थी. निहंग सिखों ने मुझे सही रास्ता दिखाया."

जब हमने पूछा कि किसान नेता निहंग सिखों के खिलाफ ऐसा क्यों बोलते हैं, इस पर शेर शाह बताते हैं, "निहंग सिख आंदोलन की ढाल हैं. इसीलिए हम सबसे आगे बैठे हैं. हम नजर रखते हैं कोई उपदर्वी आंदोलन को बिगाड़ने का प्रयास न करे. हर किसान नेता यहां अपने मतलब से आया है. वो भी कहीं-न-कहीं बीजेपी से मिले हुए हैं. हमारे हटने से यह फायदा होगा कि बीजेपी और आरएसएस के लिए आंदोलन को खत्म करना आसान हो जाएगा."

वह आगे कहते हैं, "हमारा राजनीति से कोई मतलब नहीं है. हमें जबरदस्ती फंसाया जा रहा है. राजनीती ये किसान नेता कर रहे हैं."

लखबीर सिंह वाली घटना पर शेर शाह कहते हैं, "हिंदुओं की गीता को कोई फाड़ दे तब हिंदू क्या करेंगे? मुसलामानों की कुरान को कोई छेड़ दे तब मुसलमान क्या करेंगे? क्या उन्हें गुस्सा नहीं आएगा? क्या वो उस आदमी को नहीं मारेंगे? हम (निहंग सिख) धर्म के रक्षक हैं. लखबीर ने हमारे पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब को फाड़ने का प्रयास किया. जो कोई भी ऐसा करेगा हम उसके खिलाफ ऐसा ही कदम उठाएंगे. उसे मार डालेंगे."

शेर शाह आगे कहते हैं कि उनके द्वारा लखबीर सिंह को दी गई सजा जरूरी थी. "पंजाब में कई बार गुरु ग्रंथ साहिब को फाड़ा गया है. सरकार उन लोगों पर सख्त कार्रवाई नहीं करती. इसलिए इस बार हमने सजा दी. यह भी बहुत कम थी."

इस बातचीत के दौरान शेर शाह ने हमें निहंग सिखों के बारे में बताया. वह कहते हैं, “निहंग सिख शादी कर सकते हैं लेकिन अधिकतर शादी नहीं करने का विकल्प चुनते हैं. शेर सिंह ने कहा कि उन्होंने परिवार नहीं रखने या महिलाओं के साथ यौन संबंध नहीं बनाने का फैसला किया है.”

परमजीत कौर

थोड़ा आगे बढ़ने पर हमारी मुलाकात परमजीत कौर से हुई. शेर शाह के विपरीत, नरैन सिंह, जो अब लखबीर सिंह की हत्या के आरोप में जेल में बंद है, उनकी शादी परमजीत कौर से हुई है. परमजीत कौर ने अपनी नीली पगड़ी को अपने सिर के चारों ओर कसकर लपेटा हुआ था और अपनी लंबी नीली विशेष पोशाक पहने हुए वह सिंघु बॉर्डर पर एक बांस की झोपड़ी के अंदर एक चारपाई पर बैठी थीं.

उनके पति नरैन सिंह ने लखबीर सिंह हत्या कांड की जिम्मेदारी ली है. उन्होंने लखबीर सिंह की टांग काटी दी थी. 16 नवंबर से वह सोनीपत जेल में बंद हैं. अब उनके पीछे दल की जिम्मेदारी उनकी पत्नी 45 वर्षीय परमजीत के कंधों पर आ गई है जो खुद भी निहंग सिख हैं.

परमजीत नरैन सिंह पर गर्व करती हैं और उन्हें कोई अफसोस नहीं है.

परमजीत किसान आंदोलन पर न्यूज़लॉन्ड्री से कहती हैं, "हम चक्रवर्ती करते हैं, यानी जगह- जगह घूमते हैं. यह पहली बार है जो निहंग सिख अपने घोड़ों के साथ एक जगह पर रूककर बैठ गए हैं. हम भी किसानों के साथ एक साल से आंदोलन में बैठे हैं लेकिन ये किसान नेता कहां हैं? वो अलग एसी में रहते हैं."

सिंघु बॉर्डर पर निहंग

नवंबर 2020 यानी किसान आंदोलन की शुरुआत में किसानों के साथ निहंग भी थे, जो सबसे आगे घोड़े पर सवार थे. प्रदर्शनकारी किसानों के सिंघु पहुंचने के कुछ दिनों बाद निहंग धरना स्थल के बिल्कुल सामने आकर बैठ गए. निहंग बस्ती के एक तरफ दिल्ली पुलिस है और उनके पीछे किसानों की कई किलोमीटर तक झोपड़ियां हैं.

सिंघु में कितने निहंग रह रहे हैं, इसकी अभी तक कोई सटीक गिनती नहीं हो पाई है. निहंग सिखों का दावा है कि फिलहाल, अकेले सिंघु बॉर्डर पर करीब 300 निहंग हैं.

ज्ञानी शमशेर सिंह

53 वर्षीय ज्ञानी शमशेर सिंह रोपड़ के रहने वाले हैं और बुड्ढा दल की कमान संभाले हुए हैं. वह कहते हैं, "हम और हमारा परिवार भी किसान हैं. हमारा भी भाईचारा है. हम आंदोलन में संगत की राखी (रक्षा) करने के लिए आए हैं. यह हमारा कर्म और धर्म है. हमारा नेताओं से कोई लेना-देना नहीं है."

निहंग सिखों की राजनीतिक भूमिका पर ज्ञानी शमशेर सिंह कहते हैं, "हमारी कभी किसी भी सरकार से नहीं बनी, सब लुटेरे हैं. जनता को मारकर अपनी राजनीति चलाते हैं. कोई भी जनता की भलाई के लिए काम नहीं करता. हमारा धर्म है कि हम सरकार और शक्तिशाली ताकतों के खिलाफ जनता की ढाल बनकर खड़े रहें. इसलिए हम आंदोलन से तभी हटेंगे जब आंदोलन में बैठे किसान ऐसा चाहेंगे."इ

बॉर्डर पर तनाव क्यों?

सिंघु सहित दिल्ली के सभी विभिन्न स्थलों पर विरोध का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) नामक 32 किसान यूनियनों का एक संगठन कर रहा है.

सुखविंदर सिंह

फिर भी, आज सिंघु में विरोध असमान रूप से दो भागों में विभाजित है- एसकेएम के नेताओं के नेतृत्व में एक बड़ा समूह और किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के नेताओं के नेतृत्व में एक छोटा समूह. दोनों का स्टेज अलग है. केएमएससी सिंघु बॉर्डर की शुरुआत में बैठता है. उनके पास एक छोटा मंच और लगभग 200 टेंट हैं. उनके मंच के पीछे टिन के कंटेनरों का एक बैरिकेड है. एक व्यक्ति को, एक विरोध स्थल से दूसरे में प्रवेश करने के लिए चक्कर लगाना पड़ता है. सिंघु में केएमएससी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुखविंदर सिंह ने कहा, "हम उनके पक्ष में नहीं जाते हैं और वे हमारे पक्ष में नहीं आते हैं."

ऐतिहासिक रूप से भी, केएमएससी की उनकी अपनी इकाई रही है. 15 साल पहले वे बड़े किसान समूह- किसान संघर्ष समिति से अलग हो गए. रिपोर्टों के अनुसार यह समूह ज्यादातर पंजाब के मांझा इलाके में सक्रिय था, लेकिन आज यह पंजाब के करीब 8 जिलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है.

पिछले साल जब विभिन्न किसान सिंघु पहुंचे, तो समूहों ने एसकेएम के नेतृत्व में आंदोलन के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाने पर सहमति व्यक्त की और शुरू में केएमएससी भी उसका हिस्सा था. फिर भी, तीन महीने बाद 26 जनवरी को चीजें बदल गईं.

एसकेएम नेताओं ने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली आयोजित करने का फैसला लिया था. इसके लिए दिल्ली पुलिस से अनुमति ली गई थी, तब ट्रैक्टर मार्च के लिए एक निर्धारित मार्ग तय किया गया था. लेकिन केएमएससी सहित कई व्यक्तिगत और छोटे किसान समूहों ने इसका विरोध किया था.

इसके बाद लाल किले पर हुई हिंसा में एक किसान की जान चली गई, करीब 40 सुरक्षाकर्मी घायल हो गए और 22 पुलिस शिकायतें दर्ज होने के बाद करीब 200 किसानों को हिरासत में लिया गया. तभी एसकेएम ने केएमएससी से दूरी बनाने का फैसला किया और कहा कि एसकेएम के सदस्यों ने हिंसा में हिस्सा नहीं लिया था.

लेकिन इन सबसे निहंगों को क्या फर्क पड़ता है?

एसकेएम, केएमएससी और निहंग

निहंग समुदाय के प्रत्येक सदस्य जिससे न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की, उन्होंने कहा कि अब उनके मन में एसकेएम नेतृत्व के लिए कोई सम्मान नहीं रहा है. निहंगों का दावा है कि "किसान नेता बिक चुके हैं." क्यों?

जब लखबीर सिंह की हत्या हुई, तो एसकेएम नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि वे हिंसा के खिलाफ हैं और पुलिस का सहयोग करेंगे. एक प्रेस बयान में, एसकेएम के नेताओं ने कहा, "मोर्चा किसी भी धार्मिक दल या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ है. यह किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं देता है."

इस बीच, शेर शाह ने कहा कि वे केएमएससी नेतृत्व में विश्वास करते हैं. उनके अनुसार, केएमएससी नेताओं ने निहंगों को स्पष्ट कर दिया कि वे जरूरत पड़ने पर उनके साथ खड़े होंगे. परमजीत कौर ने यह भी कहा कि जब उनके पति जेल में थे, तब एसकेएम का कोई नेता उनसे मिलने नहीं गया था, लेकिन केएमएससी के नेता आए और उन्हें अपना समर्थन दिखाया.

निहंग सिखों की भूमिका और नेताओं से उनके संबंध समझने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने किसान नेताओं से बात की. बलबीर सिंह राजेवाल की भारतीय किसान यूनियन के महासचिव ओमकार सिंह कहते हैं, "चाहे निहंग सिख हों या कोई भी हो, हम गलत को सहन नहीं करते. 26 जनवरी को जो घटना हुई उसमें सरकार की गलती थी. हमें जो मार्ग दिया गया था उन्होंने हमें जाने से रोका. उसके बाद जो हुआ वह सरकार की नालायकी के कारण हुआ. उसी तरह हम यह भी नहीं बर्दाश्त करते जो निहंग सिखों ने लखबीर सिंह के साथ किया. राजेवाल ने उसी समय इस घटना की निंदा की थी. आंदोलन में शामिल ऐसे तत्वों के साथ हमारी कोई हमदर्दी नहीं है. हमने निहंग सिखों को साफ बोल दिया था कि अगर आराम से रह सकते हो तो रहो. अगर ऐसे काम करना है तो हम सहन नहीं करेंगे."

बता दें कि आज सुबह 9 बजे, प्रधान मंत्री मोदी ने देश को अपने संदेश में विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने का ऐलान किया है. सुबह 9:40 बजे जब एक संवाददाता ने शेर शाह को फोन किया और पूछा, "क्या आपने खबर सुनी है?", शेर शाह इससे अनजान थे.

कानूनों को निरस्त करने के सरकार के निर्णय के बारे में उन्हें सूचित करने पर, शेर शाह को विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने कहा, "क्या आप सही कह रहे हैं? क्या इसकी पुष्टि हो गई है? क्या आप मुझे एक लिंक भेज सकते हैं?"

शेर शाह प्रधानमंत्री के शब्दों की विश्वसनीयता को लेकर बहुत आशंकित थे. "क्या होगा, अगर यह हमें यहां से खाली कराने के लिए एक चाल हो?" उनका एक और सवाल था.

फिर भी शेर शाह ने कहा कि अगर आंदोलन को समाप्त करना है तो निहंग भी सीमा छोड़ देंगे. ऐसा होता है तो शेर शाह का एक ही स्थान पर सबसे लंबा प्रवास समाप्त हो जाएगा.

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