Report
उमर खालिद की जमानत याचिका: किसी गवाह का बयान साजिश या आतंकवादी गतिविधि की ओर इशारा नहीं करता
मंगलवार को एक्टिविस्ट उमर खालिद की जमानत पर सुनवाई के दौरान, उनके वकील त्रिदीप पायस ने तर्क दिया कि खालिद को फंसाने के लिए जिस गवाह के बयान पर 'बहुत भरोसा' किया जा रहा है, वह उसकी किसी भी विशिष्ट गतिविधि की ओर इशारा नहीं कर पाया है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि खालिद ने एक 'आतंकवादी या अवैध हमले' का खाका तैयार किया था, जिसके कारण फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे हुए.
इस मामले की सुनवाई दिल्ली की एक कोर्ट में जज अमिताभ रावत कर रहे थे. खालिद को सितंबर 2020 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दिल्ली दंगों के दौरान हुई हिंसा में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में हैं.
पायस ने ब्रावो नाम के एक गवाह का बयान पढ़ा, और कहा कि 'यह गवाह एफआईआर और चार्जशीट में झूठे संकेतों के एक पैटर्न की ओर इशारा करता है'.
पायस ने खालिद के दिसंबर 2019 में शुरू हुए दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप नामक व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल होने के बारे में बात की, क्योंकि इस गवाह के बयान का एक हिस्सा इसी ग्रुप की चैट पर आधारित था. उन्होंने माना कि 28 दिसंबर को हुई बैठक में 'कुछ कार्रवाई योग्य बातें' थीं लेकिन उनमें खालिद की कोई भूमिका या जिम्मेदारी नहीं थी.
खालिद ने कहा कि उन्होंने दिसंबर 2019 और मार्च 2020 के बीच डीपीएसजी ग्रुप की केवल दो बैठकों में भाग लिया था और केवल चार मैसेज भेजे थे. अदालत को वह मैसेज दिखाते हुए खालिद ने अपने वकील के माध्यम से कहा कि उन संदेशों को देखकर ही पता चलता है कि उनके खिलाफ आरोपों में कोई दम नहीं है.
खालिद और कई अन्य लोगों पर पूर्वोत्तर दिल्ली दंगों का 'मास्टरमाइंड' होने का आरोप लगाया गया है, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे. यह हिंसा नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन के बाद हुई थी. जेएनयू छात्र संघ के पूर्व नेता खालिद को अप्रैल 2021 में पूर्वोत्तर दिल्ली के खजूरी खास इलाके में हुए दंगों के सिलसिले में जमानत मिली थी. लेकिन वह दंगों की 'साजिश' के आरोप में अब भी सलाखों के पीछे है, जिसके लिए उन पर बेहद सख्त यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है.
उनके द्वारा भेजे गए संदेशों में से दो विरोध स्थलों के नाम हैं और एक खालिद की फोन पर हुई बातचीत से संबंधित है जिसमें दिल्ली के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने उनसे विरोध प्रदर्शन रद्द करने का अनुरोध किया था. उस दिन खालिद शहर में नहीं थे. एक संदेश में खालिद ने कहा था कि उन्होंने जामिया कॉर्डिनेशन कमेटी के किसी व्यक्ति से बात की, जिन्होंने बताया कि ऐसा नहीं लगता कि विरोध रद्द हुआ है.
संरक्षित गवाह 'ब्रावो' जेसीसी का हिस्सा था जिसने फरवरी में असहमतियों के कारण समूह छोड़ दिया था.
खालिद के वकील ने कहा कि ब्रावो ने पुलिस को बयान जून में दिया था. ब्रावो का बयान पढ़ने के बाद पायस ने उन पर आरोप लगाया कि उनकी कई बातें मनगढंत हैं जैसे एक 'उच्च-स्तरीय समिति' की मौजूदगी.
गवाह पर यह भी आरोप हैं कि उन्होंने चुन-चुन कर नाम पुलिस को दिए. पायस ने तर्क दिया कि अपूर्वानंद और कविता कृष्णन सहित सीएए के विरोध में शामिल विभिन्न व्यक्तियों पर गलत काम करने का आरोप नहीं लगाया गया, जबकि देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और खालिद जैसे कार्यकर्ताओं पर लगाया गया.
पायस द्वारा कोर्ट में पढ़ी गई खालिद की याचिका के अनुसार, "उनके (ब्रावो) बयानों की मानें तो लोगों को साइट्स सौंपी गई थीं और वह आरोपी नहीं हैं."
पायस ने कहा कि खालिद और बाकियों के बीच कोई गुणात्मक अंतर नहीं है, लेकिन जब उन्होंने किसी को कोई विरोध स्थल नहीं सौंपा था, तब भी वह सलाखों के पीछे हैं.
"यहां चोर की दाढ़ी में तिनका साफ दिख रहा है." पायस ने कहा. उनके अनुसार बयान में 'ब्रावो' ने कहीं भी खालिद का नाम अकेले नहीं लिया, बल्कि हमेशा उन्हें दूसरों के साथ संदर्भित किया.
खालिद के वकील ने चार्जशीट में एक अन्य आरोप का भी उल्लेख किया जिसमें सीलमपुर में एक 'गुप्त बैठक' के बारे में कहा गया है और आरोप लगाया गया है कि खालिद सड़कों पर दंगा और खून-खराबा करवाना चाहते थे.
उन्होंने कहा की इस विषय में 'कोई तलाशी नहीं ली गई, न ही कुछ जब्त किया गया और न ही कुछ बरामद हुआ". और तथाकथित 'गुप्त बैठक' में मौजूद खालिद और अन्य लोगों की फोटो दिखाते हुए उन्होंने कहा कि यह फोटो फेसबुक से डाउनलोड की गई थी, और यदि यह वास्तव में 'गुप्त बैठक' होती तो इसकी फोटो फेसबुक पर अपलोड नहीं की जाती.
"यह एफआईआर 59 की खूबसूरती है. आप स्वेच्छा से चुन कर जो चाहें कर सकते हैं," उन्होंने कहा. मामले में दर्ज 750 प्राथमिकियों में से एक, एफआईआर 59 उस मामले का आधार है जिसे अब 'दिल्ली दंगों की साजिश' के रूप में जाना जाता है.
पायस ने कहा कि किसी भी गवाह या प्रतिभागी ने इसे गुप्त बैठक नहीं कहा. फिर अगले गवाह के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि वह एक चायवाला है. पायस ने पूछा कि एक 'दबी जुबान में बात करने वाला मास्टरमाइंड' (जैसा कि खालिद को पहले चार्जशीट में बताया गया है) एक चायवाले के सामने यह सब कैसे बोलेगा.
"यह निश्चित रूप से तैयार किया गया गवाह है. आप आधे सच के बल पर मेरे विरुद्ध केस नहीं बना सकते," पायस ने अपने मुवक्किल के हवाले से कहा. "बेहद खराब भाषा का प्रयोग किया गया है क्योंकि मनगढंत बयानों में आप कुछ भी कह सकते हैं."
फिर पायस ने अगले गवाह के बारे में बात की, जिसने किसी भी तरह से बैठक को गुप्त नहीं बताया था, लेकिन खालिद के बैठक में उपस्थित होने का उल्लेख किया था. "इस गवाह ने गुप्त बैठक की कल्पना को ध्वस्त कर दिया है," उन्होंने कहा. पायस के अनुसार इस गवाह का बयान खालिद की गिरफ्तारी से ठीक तीन दिन पहले 'गिरफ्तारी को सही ठहराने' के लिए दर्ज किया गया था.
सुनवाई मंगलवार, 16 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई है. अनुमान है उस दिन खालिद की ओर से बहस का समापन किया जाएगा. पिछले महीने सुनवाई के दौरान खालिद के वकील ने दलील दी थी कि चार्जशीट के आरोपों में असंगति है.
इससे पहले वकील ने चार्जशीट को 'शोर मचाने वाले समाचार चैनलों की रात 9 बजे की स्क्रिप्ट' बताया था और कहा था कि चार्जशीट के बयान उस अधिकारी की 'कल्पना' थे जिसने इसे तैयार किया था और जब इसे मीडिया को सौंपा गया तो खालिद के विरुद्ध जनता की राय बनाने के लिए उन कल्पनाओं को सच का रूप दे दिया गया.
खालिद के लिए एक अन्य जमानत सुनवाई में वकील ने कहा था कि उनके खिलाफ मामला बनाने के लिए 'दिल्ली पुलिस के पास रिपब्लिक टीवी और सीएनएन-न्यूज 18' के अलावा और कुछ भी नहीं है.
Also Read
-
Another Election Show: Hurdles to the BJP’s south plan, opposition narratives
-
‘Not a family issue for me’: NCP’s Supriya Sule on battle for Pawar legacy, Baramati fight
-
‘Top 1 percent will be affected by wealth redistribution’: Economist and prof R Ramakumar
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
Never insulted the women in Jagan’s life: TDP gen secy on Andhra calculus, BJP alliance