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पीयूडीआर और जेएनयू के प्रकाशनों की बुनियाद पर यूपी पुलिस ने सिद्दिकी कप्पन को सिमी से जोड़ा

न्यूज़लॉन्ड्री के द्वारा पत्रकार सिद्दिकी कप्पन पर चल रहे मामले पर आधारित सीरीज का यह चौथा भाग है.

कप्पन व उनके साथ तीन अन्य लोगों को 5 अक्टूबर 2020 को हाथरस जाते हुए मथुरा में टोल प्लाजा पर यूपी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. 7 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश पुलिस के द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार कप्पन के खिलाफ, धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (वैमनस्य फैलाना) और धारा 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करना) के साथ-साथ यूएपीए और आईटी एक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है.

बचाव पक्ष के वकील मधुवन दत्त चतुर्वेदी के द्वारा आरोप पत्र के अवलोकन के आधार पर न्यूज़लॉन्ड्री को यह जानकारी मिली है कि कप्पन के दिल्ली आवास से यूपी पुलिस को चार बुकलेट या पुस्तिकाएं मिली थी और उसके पश्चात एक 45 पेज की पुस्तिक उनके लैपटॉप में भी मिली थी. आरोपपत्र में यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने दावा किया है कि पढ़ने की इस सामग्री के मिलने से यह संकेत मिलता है कि "कप्पन सिमी यानी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया के लिए काम कर रहे थे."

बता दें कि सिमी को आतंकवादी संगठन का दर्जा देते हुए भारत सरकार ने 2001 में उस पर प्रतिबंध लगा दिया था.

पांच पुस्तिकाएं

कप्पन मामले के जांच अधिकारी की रोज की डायरी एंट्री के अनुसार, 11 नवंबर 2020 को दिल्ली में जंगपुरा इलाके के एक फ्लैट में खोजबीन की गई जिसमें कप्पन किराए पर रहते थे. बरामद हुए दस्तावेजों में कप्पन के बैंक के खाते के कागजात उनका ड्राइविंग लाइसेंस और चार पुस्तिकाएं बरामद हुईं.

इनमें से एक मलयालम में लिखी हुई है और यह सिमी के इतिहास और विचारधारा का अवलोकन पेश करती है. यूपी एसटीएफ को 26 पन्नों की इस पुस्तिका का अंग्रेजी में अनुवाद कराने में एक महीना लगा. बची हुई तीन पुस्तिकाओं में से दो पुस्तिकाएं मानवाधिकार संगठन पीयूडीआर या पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स के द्वारा प्रकाशित की गई हैं. आखिरी पुस्तिका, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस के द्वारा प्रकाशित किया गया एक शोध पत्र है.

पांचवी बुकलेट जो मलयालम में है कप्पन के लैपटॉप से 20 जनवरी 2021 को बरामद हुई. इसका भी अनुवाद कर, उसे आरोपपत्र में शामिल कर लिया गया है.

यूपी एसटीएफ का तर्क है कि यह पुस्तिकाएं या तो सिमी के बारे में हैं या उससे जुड़ी हुई हैं, इससे पता चलता है कि कप्पन का सिमी से संबंध था. जिसकी वजह से उनके ऊपर यूएपीए के तहत मामला दर्ज होना वाजिब है.

कप्पन के वकील विल्स मैथ्यूज ने कहा है कि उनके मुवक्किल का किसी भी आतंकवादी संगठन से कोई संबंध नहीं है. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "किसी खास विचारधारा पर पांच बुकलेट किसी निष्कर्ष का आधार नहीं बन सकतीं. एक पत्रकार के नाते अपनी जिम्मेदारियों के तहत, कप्पन समाज के सभी वर्गों के लोगों से संपर्क में हो सकते हैं. क्या प्रेस काउंसिल एक्ट के तहत आचार संहिता का कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं, यह मायने रखता है."

पांच हजार पन्नों के आरोपपत्र में यूपी एसटीएफ यह इशारा करती हुई लगती है कि इन पुस्तिकाओं के बरामद होने की वजह से कप्पन राजद्रोह के दोषी हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि कोई साहित्य अपने पास रखने से कप्पन पर लगे यूएपीए के तहत आरोपों में से एक, "आतंकवादी गतिविधियों के लिए धनराशि उगाहने" की धारा का लगाया जाना कितना वाजिब है.

11 नवंबर 2020 की दैनिक डायरी एंट्री कहती है कि कप्पन के आवास से तीन अंग्रेजी में लिखी हुई और एक मलयालम में लिखी हुई पुस्तक बरामद हुई. मलयालम पुस्तिका के अंदर अंग्रेजी में हाथ से लिखा हुआ एक नोट भी था. आरोप पत्र में जांच अधिकारी के अवलोकन के हवाले से लिखा है कि मलयालम बुकलेट में (जिसका तब तक अनुवाद नहीं हुआ था), "कई जगह सुधार किए गए हैं जिससे पता चलता है कि यह दस्तावेज अभियुक्त (कप्पन) के द्वारा संशोधित किया जा रहा था."

वह हाथ से लिखा हुआ नोट, कप्पन के द्वारा लिखा हुआ माना जा रहा है आरोप पत्र में संलग्न है. यह नोट कहता है कि मार्च 1976 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कई बैठकों के बाद, जिनमें केरल सहित पूरे देश से "प्रतिनिधि" शामिल थे, "एक बेनामी समन्वय समिति के गठन का निर्णय लिया गया जिसको स्थानीय नामों को अपनाने की आजादी होगी."

केरल के सदस्यों ने अंसरुल इस्लाम संगठन को अपने नाम के रूप में चुना. नोट यह भी कहता है, "सिमी के गठन की बैठक दोबारा से एएमयू में 24 अप्रैल 1977 और 25 अप्रैल 1977 को थी. सिमी को नाम के तौर पर 24 तारीख को अपनाया गया. 25 तारीख को संविधान को अपनाया गया."

यूपी एसटीएफ के अनुसार, पुस्तिकाओं के साथ कप्पन के नोट्स- जिन्हें "विस्तार से समझने की जरूरत है", इशारा करते हैं कि "कप्पन सिमी के लिए काम करते थे." इसके अलावा सबूत के तौर पर एसटीएफ ने उनके मोबाइल फोन के रिकॉर्ड की तरफ इशारा किया है, जो यह दिखाते हैं कि कप्पन और सिमी के पूर्व सदस्यों के बीच बातचीत हुई थी.

एक पत्रकार का शोध का अधिकार

यूपी एसटीएफ के अनुसार, "इन दस्तावेजों और डाटा ने हमें कप्पन के पत्रकारिता के तरीकों से अवगत कराया है. सिद्दिकी कप्पन मुसलमानों को भड़काने के लिए केवल सांप्रदायिक पत्रकारिता से ही जुड़े थे. प्रतिबंधित संगठन सिमी से जुड़े कागजात की मौजूदगी यह बताती है कि वह पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) के एक थिंक टैंक के रूप में सिमी की विचारधारा पर काम कर रहे थे."

आरोपपत्र यह भी कहता है कि 8 दिसंबर 2020 को एसटीएफ ने कई पुलिस थानों से पीएफआई और उसके विद्यार्थी पक्ष कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए संपर्क किया. साल 2019 और 2020 के बीच उत्तर प्रदेश के 9 अलग-अलग जिलों से एफआईआर आरोपपत्र में सूचीबद्ध की गई हैं. इन सभी में, पीएफआई के सदस्य आरोपियों में शामिल हैं.

जांच अधिकारी अपने नोट में कहते हैं, "उपरोक्त सभी मामले जातीय और सांप्रदायिक झड़पों से जुड़े हुए हैं. पीएफआई के सदस्यों ने गैंग बना लिए हैं जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता को हानि पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं."

यूपी एसटीएफ का कहना है कि अक्टूबर 2020 में जब कप्पन को गिरफ्तार किया गया, तब वह हाथरस में इसी तरह "जातीय हिंसा भड़काने" के लिए जा रहे थे. बरामद किए गए दस्तावेज उनके इरादों के सबूत की तरह पेश किए जा रहे हैं लेकिन आरोप पत्र यह स्पष्ट नहीं करता कि यह दस्तावेज आपत्तिजनक क्यों हैं.

यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि अगर बरामद हुए साहित्य प्रतिबंधित भी हो, जो कि वह नहीं है, तब भी उसको अपने पास रखना राजद्रोह का सबूत नहीं है.

मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस के चंद्रू ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहा, "प्रतिबंधित साहित्य का होना, अपने आप में यूएपीए के अंतर्गत जुर्म नहीं हो सकता. मुकदमा करने के लिए एकत्रित किए गए खंड हास्यास्पद लगते हैं और दिखाते हैं कि यूपी एसटीएफ के इस विषय पर कानून की समझ औसत दर्जे की है."

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने यूएपीए के एक मामले में जमानत दी जिसमें पत्रकारिता की छात्रा थ्वाहा फैसल पर माओवादी साहित्य रखने का आरोप लगा था. न्यायालय ने कहा, "प्रथम दृष्टया, यह सामग्री आरोपी के एक आतंकवादी संगठन सीपीआई (माओवादी) से संबंध स्थापित करती है और संगठन के लिए उसका समर्थन भी दिखाती है. लेकिन ऐसी कोई सामग्री नहीं है जो यह दिखाए कि उनकी आतंकवादी संगठन की गतिविधियों को बढ़ावा देने की कोई मंशा थी."

जस्टिस चंद्रू ने कहा कि कप्पन का मामला, पुलिस की तथाकथित राजनैतिक अपराधों की जांच करने की क्षमता पर सवाल उठाता है.

उन्होंने कहा, "मैंने अधिकतर देखा है कि कानून व्यवस्था और आईपीसी से जुड़े अपराधों की जांच की ट्रेनिंग पाई पुलिस, राजनैतिक अपराधों को संभाल पाने में अक्षम होती है. उनकी समझ से तथाकथित प्रतिबंधित संगठन के साहित्य का किसी के पास होना मात्र ही एक अपराध है, जबकि अदालतों ने इसके विपरीत निर्णय दिए हैं."

वे आगे यह भी कहते हैं कि कप्पन के पत्रकार होने को भी संज्ञान में लेना चाहिए. उन्होंने कहा, "हालांकि हमारे देश में प्रेस को अभिव्यक्ति की आजादी का अधिक हक नहीं है, लेकिन जितने सीमित अधिकार उपलब्ध हैं उनमें भी, आप किसी पत्रकार पर किसी प्रतिबंधित संस्था के कार्यकर्ताओं से बातचीत करने के लिए मुकदमा नहीं चला सकते."

यह पुस्तिकाएं संदेहजनक क्यों हैं?

क्योंकि यूपी एसटीएफ ने कप्पन से बरामद हुई पुस्तिकाओं को चिन्हित किया है, उनके बारे में हमारे पास यह जानकारी उपलब्ध है.

26 पन्नों की Rehearsed truths: Eight successive bans on SIMI by UAPA tribunals, और 36 पन्नों की Banned and Damned: SIMI saga with UAPA tribunals पीयूडीआर के प्रकाशन हैं जो क्रमशः 2020 और 2015 में प्रकाशित हुए.

Rehearsed truths: Eight successive bans on SIMI by UAPA tribunals इस बात का विश्लेषण करती है कि केंद्र सरकार के द्वारा बनाए हुए विशेष ट्राईब्यूनलों ने किस प्रकार 2001 से सिमी पर लगे प्रतिबंध को बरकरार रखा है. रिपोर्ट सिमी के उन सदस्यों के दोषी होने पर सवाल उठाती है जिन पर पहले आतंकवाद का आरोप लग चुका है.

रिहर्सड् ट्रूथ्स में दिए गए उदाहरणों में से दो, अब्दुल सुभान कुरैशी उर्फ तौकीर और एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी के हैं. कुरैशी को दिल्ली पुलिस के द्वारा जनवरी 2018 में गिरफ्तार किया गया और उन पर जुलाई 2006 के मुंबई बम धमाकों व 2008 में दिल्ली और गुजरात में हुए धमाकों में शामिल होने का शक है. कथित तौर पर, सिद्दीकी ने अपने खुलासे के बयान में तौकीर के सिमी से संबंधों की बात की.

2008 में डीएनए अखबार में छपी पत्रकार जोज़ी जोसेफ की खबर का हवाला देते हुए, रिहर्सड् ट्रूथ्स कहता है, "जोज़ी जोसेफ ने सवाल उठाया था कि तौकीर का सारा मामला जांच रिपोर्टों पर ही आधारित है, जिसकी अदालत में ही नहीं कई जांच करने वालों की नजर में भी कुछ खास विश्वसनीयता नहीं है."

रिहर्सड् ट्रूथ्स 2017 में इंडियन एक्सप्रेस में छपी प्रवीण स्वामी की एक खबर की तरफ भी इशारा है जिसमें स्वामी ने इस बात की पुष्टि की है, कि मुंबई बम धमाकों के मामले में 6 आरोपियों को दिए गए मृत्युदंड के मामले में, "फॉरेंसिक डाटा और आरोपियों के पूछताछ के दौरान बयानों में यह सबूत उपलब्ध हैं कि इन तीनों हमलों को असल में आरोपियों ने नहीं बल्कि इंडियन मुजाहिदीन ने अंजाम दिया था."

रिहर्सड् ट्रूथ्स सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है और पीयूडीआर की आधिकारिक वेबसाइट पर देखी जा सकती है. इस रिपोर्ट की कॉपी आरोप पत्र के साथ संलग्न है.

Banned and Damned: SIMI’s Saga with UAPA Tribunals पीयूडीआर की दूसरी पुस्तिका है जो आरोप पत्र का हिस्सा है. द हिंदू अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, "रिपोर्ट गिरफ्तार सिमी कार्यकर्ताओं की अदालतों में रिहाई के जारी ट्रेंड की तरफ इशारा करती है."

पीयूडीआर के सचिव विकास कुमार और राधिका चितकारा ने न्यूज़लॉन्ड्री को अपने संयुक्त वक्तव्य में बताया, "एक नागरिक स्वतंत्रता संगठन होने के नाते, पीयूडीआर नियमित तौर पर विशेष कानूनों जैसे यूएपीए, टाडा, पोटा, मकोका इत्यादि की कार्य पद्धति पर रिपोर्ट करता है. पुस्तकें अपने आप में सिमी पर लगे प्रतिबंध पर सवाल नहीं उठातीं, बल्कि उससे ज्यादा कानून (यूएपीए) में गैरकानूनी करार दी गई संस्थाओं के लिए, ट्रिब्यूनल के कामकाज का गहन विश्लेषण कर, उपलब्ध सुरक्षा उपायों की अपर्याप्तता की जांच करती हैं."

तथाकथित संदेहास्पद सामग्री में, जेएनयू के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस के द्वारा प्रकाशित 26 पन्नों का शोध पत्र Detrimental to the peace, integrity and secular fabric of India भी शामिल है. मयूर सुरेश और जवाहर राजा के द्वारा लिखा गया यह शोध विश्वसनीय इकबाले बयानों की समस्या का विश्लेषण करता है. इसमें सिमी के सदस्यों के वकीलों के तर्कों की तरफ इशारा किया गया है, जिनमें वे कहते हैं कि बयान साक्ष्य कानून के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत अदालत में अस्वीकार्य हैं.

यह स्पष्ट नहीं है कि इस सार्वजनिक रूप से उपलब्ध शोध पत्र से यूपी एसटीएफ ने कप्पन का सिमी से संबंध कैसे स्थापित किया.

पीएफआई और सिमी के बीच का संबंध

यूपी एसटीएफ के द्वारा 20 जनवरी 2021 को कप्पन के लैपटॉप से बरामद किये गए 45 पन्नों के दस्तावेज का शीर्षक सिमी पर रेनी नोट्स है. इसमें सिमी के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व सदस्यों के बयान हैं. इस दस्तावेज का अनुवाद भी आरोप पत्र के साथ संलग्न किया गया है लेकिन अधिकतर जगहों पर उसे समझना कठिन है.

एसटीएफ को कप्पन के घर से बरामद हुई मलयालम पुस्तिका का अनुवाद 10 दिसंबर 2020 को प्राप्त हुआ. एक दैनिक डायरी एंट्री इस तरफ इशारा करती है कि पुस्तिका में लिखी गई बातें सिमी सदस्यों से बातचीत पर आधारित हैं और प्रतिबंधित समूह की कामकाज और विचारधारा पर एक अवलोकन देती है. पन्ना दर पन्ना सारांश भी दिया गया है.

पहले 10 पन्ने सिमी की शुरुआत के बारे में हैं जिसकी स्थापना शेख मोहम्मद काराकुन्नू ने की थी जो 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति से प्रभावित था. छठे पन्ने पर "उन्हें बलिदान की तरह काट डालो कहते हुए एक नोटिस" और एक नारे "भारत की आजादी केवल इस्लाम से" का जिक्र है, जिसे यूपी एसटीएफ ने सिमी के द्वारा इस्लामिक आतंक को बढ़ाने का सबूत माना है. सिमी के नक्सल और दलित समूहों से अच्छे संबंधों का जिक्र करने वाले पृष्ठ 9 की तरफ भी एसटीएफ इशारा करती है.

एसटीएफ का ध्यान अपनी तरफ खींचने वाले कई और पन्ने हैं जैसे पृष्ठ 22 जहां "सेकुलरवाद को एक काल्पनिक चीज बताया गया है" और पृष्ठ 31 जिसमें "मोहम्मद गजनी का स्वागत" नारा लिखा है. पृष्ठ 42 कहता है कि 1991 में मुंबई में आयोजित की गई एक सभा में "स्वागत है गजनी, बाबरी मस्जिद इंतजार कर रही है" के पोस्टर लगाए गए, जिसमें फिलिस्तीनी आतंकवादी संगठन हमास के दो सदस्यों को कथित तौर पर आमंत्रित किया गया था. पृष्ठ 39 पर पुस्तिका कहती है कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद सिमी का भारतीय संविधान, सेकुलरवाद और जनतंत्र से विश्वास उठ गया. पुस्तिका के अनुसार यूपी एसटीएफ किस्मत से इसने सिमी के परिपेक्ष में बदलाव को प्रेरित किया.

एसटीएफ के लिए कप्पन के पास इस पुस्तिका का होना इस तरफ इशारा करता है कि वह सिमी के साथ मिलकर काम कर रहे थे.

जांच अधिकारी आरोप पत्र में कहते हैं, "दस्तावेज में अलग-अलग जगहों पर पेन से लगे निशान बताते हैं कि कप्पन दस्तावेज तैयार कर रहे थे. पीएफआई थिंक टैंक के एक बुद्धिजीवी सदस्य के नाते वह सिमी और उसके आतंकी गतिविधियों में उनके लिप्त होने को कमतर दिखाने की कोशिश कर रहे थे."

पीएफआई और सीमी के बीच कथित संबंध, 4 दिसंबर 2020 को एक मुखबिर के द्वारा दी गई जानकारी पर आधारित है. आरोप पत्र में यूपी एसटीएफ कहती है कि अपने मुखबिर के द्वारा उन्हें पता चला कि पीएफआई के अधिकतर सदस्य सिमी के पूर्व सदस्य थे.

जांच अधिकारी अपने नोट में कहते हैं, "वे (पीएफआई सदस्य) सिमी के एजेंडे पर ही चल रहे हैं. इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ाने के लिए उन्हें केवल अंदर से ही नहीं बल्कि भारत के बाहर से भी फंड मिल रहे हैं."

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए पीएफआई के जनरल सेक्रेटरी अनीस अहमद ने कहा, "हमारे संगठन में कई नेता हैं जो जवानी में सिमी से जुड़े थे, जब सिमी एक प्रतिबंधित संगठन नहीं था. इसी तरह हमारे अभियान में कई नेता और कार्यकर्ता हैं, जो कांग्रेस, मुस्लिम लीग, वामपंथी दलों और दूसरे सेकुलर दलों में सक्रिय थे. इससे हम उन संगठनों या उन दलों का दोबारा इकट्ठा हुआ समूह नहीं बन जाते."

पीएफआई सिमी का ही बदला हुआ रूप है इस बात को अहमद सिरे से नकार देते हैं. वे कहते हैं, "यह आरोप वाहियात है क्योंकि सिमी पर 2001 में प्रतिबंध लगा और एनडीएफ (नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट) जो पीएफआई का पूर्वज था, 1993 में गठित किया गया. किसी भी जांच एजेंसी के द्वारा इस प्रकार के कोई भी संबंध नहीं पाए गए हैं.

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