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यति नरसिंहानंद सरस्वती: नफरत और घृणा की खेती करने वाला महंत

गाजियाबाद स्थित डासना देवी मंदिर नियमित अंतराल पर विवादों में आता रहता है. हाल में एक बड़ा विवाद इस मंदिर से तब जुड़ा जब एक मुस्लिम युवक को मंदिर में पानी पीने के कारण बेहरमी से पीटा गया. उसका वीडियो फैलाया गया. इस मंदिर के मुखिया अकसर किसी न किसी मुद्दे को लेकर विवादों में रहते हैं. भगवान के लिए हर इंसान एक हो सकता है लेकिन भगवान के इस घर में (डासना देवी मंदिर) हर इंसान का प्रवेश आसान नहीं है. मंदिर के बाहर साफ लिखा है कि परिसर में मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है.

मंदिर में घुसने से पहले सबको अपना आधार कार्ड दिखाना पड़ता है. यहां बैठा उत्तर प्रदेश पुलिस का जवान जांच करता है कि कोई मुसलमान भूल से भी मंदिर में प्रवेश न कर सके. आने वाले हर शख्स का नाम, पता और आधार कार्ड नंबर एक रजिस्टर में दर्ज किया जाता है. मंदिर में फोटोग्राफी करना मना है.

इस मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद ने इसे किसी क़िले में तब्दील कर दिया है. यहां पर तालाब, विशाल आंगन, मूर्तियां और जगह-जगह सुरक्षा के लिए पुलिसवाले तैनात रहते हैं.

डासना देवी मंदिर का द्वार

पहले से ही इस मंदिर का क्षेत्रफल काफी था लेकिन अब इसका दायरा और बढ़ाया जा रहा है. साधुओं के बैठने के लिए बड़े-बड़े आंगन हैं. नवीनीकरण का काम चल रहा है. निर्माण कार्य के लिए सिर्फ हिन्दू मजदूर ही बुलाए गए हैं. मंदिर की सुरक्षा के लिए रोजाना 21 पुलिस के जवान तैनात रहते हैं, जो मसूरी पुलिस स्टेशन से आते हैं. यति नरसिंहानंद को वीआईपी सुविधा प्राप्त है. इसके तहत उन्हें उत्तर प्रदेश आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी (पीएसी) की सुरक्षा भी दी गई है.

मंदिर में चल रहा निर्माण कार्य

इससे पहले यह मंदिर युवाओं को हथियार का प्रशिक्षण देने के लिए भी सुर्खियों में आ चुका है. यति नरसिंहानंद का नाम 2020 दिल्ली दंगों में भी उछला था. यति आए दिन अपने मुस्लिम विरोधी और महिला विरोधी बयानों से चर्चा में बने रहते हैं.

कौन है यति नरसिंहानंद सरस्वती? वह महंत कैसे बने और और उनके कठोर-मुस्लिम विरोधी बयानों के बावजूद वो कैसे स्वछंद घूम रहे हैं. देश और उत्तर प्रदेश की मौजूदा सत्ता के संरक्षण की कहानियों का सच क्या है?

दीपक त्यागी से महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती

58 वर्षीय दीपक त्यागी को अब लगभग पूरा देश यति नरसिंहानंद सरस्वती के नाम से जानता है. पैदा ये मेरठ के एक साधारण परिवार में हुए. उनके पांच भाई- बहन हैं. पिता सरकारी नौकरी में थे. उन्होंने मॉस्को के इंस्टिट्यूट ऑफ़ केमिकल इंजीनियरिंग से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और सन 1997 में भारत लौटे. यति नरसिंहानंद सरस्वती मॉस्को में बिताए दिनों को "गोल्डन पीरियड" कहते हैं.

"मैंने मॉस्को में रहते हुए रूसियों से बहुत कुछ सीखा. मैंने रूसियों से लड़ना और अपनों के लिए मर-मिटना सीखा है. रूस एक ऐसा देश है जो कभी गुलाम नहीं रहा. जो लोग कभी गुलाम नहीं रहते उनकी और हमारी भावनाओं और सोचने के तरीके में ज़मीन आसमान का फ़र्क होता है. हिन्दुओं को आज़ाद देश के नागरिकों से सीख लेनी चाहिए," यति न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं.

यति नरसिंहानंद सरस्वती को कभी परिवार की तरफ से सहयोग नहीं मिला. उनकी पत्नी और एक बेटी भी है लेकिन उन सब को छोड़कर सन 2000 के आस पास नरसिंहानंद सरस्वती पहले राजनीति और फिर हिन्दू धर्म के बचाव में लग गए. उनका परिवार चाहता था कि राजनीति में जाएं न कि हिन्दू धर्म के बचाव कार्य में.

बकौल सरस्वती, "मेरा जीवन संघर्ष से भरा रहा. मुझे परिवार की तरफ से किसी तरह से सहयोग नहीं मिला. परिवार ने मेरा बहिष्कार कर दिया. मेरी मां कुछ दिनों में चल बसी थी. मुझे इतना पढ़ाने के बाद भी मैं साधू बनने की ओर निकल गया. इस बात से मेरी मां परेशान रहती थी. उन्हें लगता था मैं जो कर रहा हूं वो कोई काम नहीं है."

मजे की बात है कि आज हिंदू धर्म के झंडाबरदार बने सरस्वती ने मॉस्को से भारत लौटने के बाद छोटी सी राजनीतिक पारी खेली. और वो पारी उन्होंने समाजवादी पार्टी की तरफ से खेली. "सबने मुझे राजनीति में जाने के लिए प्रोत्साहित किया. उस समय पैसे कमाना उद्देश्य था. समाजवादी पार्टी बाहुबल की राजनीति करती है, इसलिए उसमें चले गए," सरस्वती कहते हैं.

नरसिंहानंद का राजनीतिक जीवन लम्बा नहीं चला और तीन महीने बाद ही उन्होंने पार्टी छोड़ दी. वो बताते हैं, "जब मैं समाजवादी पार्टी में था तब एक संस्था बनाई थी. हमारे यहां जातिववाद की राजनीति बहुत स्ट्रांग है. अपनी जाति को संगठित करने के लिए हमने एक छोटी सी संस्था बनाई थी. उसी के माध्यम से मेरी मुलाकात शम्भू दयाल डिग्री कॉलेज की एक लड़की से हुई. तब मुझे लव जिहाद का पता चला. उसकी सहेली ने अपने भाई से उसकी दोस्ती कराई थी. बाद में उस लड़की के साथ बहुत बुरा हुआ. वो लड़की प्रोस्टीट्यूट (वेश्या) बना दी गई थी. यह सब लोग मुसलमान थे."

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए सरस्वती कहते हैं, "उस लड़की ने मुझे मुसलामानों की कई कहानियां बताई. मुझे विश्वास ही नहीं हुआ. मुझे लगा था कि यह एक वेश्या है इसलिए अपने चरित्र को अच्छा दिखाने के लिए यह सब कह रही है. एक दिन मुझे पता चला उस लड़की ने आत्महत्या कर ली. फिर मैंने उसके पीछे पूरी जांच करने का प्रयास किया."

पूर्व बीजेपी एमपी स्वर्गीय बैकुंठ लाल शर्मा के साथ यति नरसिंहानंद सरस्वती, दीपक सिंह हिन्दू और गिरिराज सिंह

अगर हम सरस्वती की बातों पर यकीन करें तो इस घटना ने उनकी ज़िन्दगी को पूरी तरह से बदल दिया. उसी दौरान सरस्वती का परिचय भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद बैकुंठ लाल शर्मा 'प्रेम सिंह शेर' से हुआ. साल 2019 में बैकुंठ लाल शर्मा 'प्रेम' का निधन हो गया. उन्होंने राम मंदिर आंदोलन में काफी अहम भूमिका निभाई थी.

सरस्वती कहते हैं, "उनसे मुझे पता चला कि इस्लाम कुछ अलग सोचता है. मुसलामानों की सोच जानने के लिए मैंने कुरान पढ़ी. मुझे आश्चर्य हुआ कि कुछ लोग इन कलमों पर विश्वास करते हैं. मैं मस्जिद और मदरसों में गया. वहां मैंने इस्लाम को समझना शुरू किया. मुझे समझ आया इस्लाम कैंसर है. अगर इसे धरती से उजाड़कर नहीं फेका गया तो यह धरती को बंजर कर देगा. तभी मैंने इस्लाम की सच्चाई को दुनिया के सामने लाने का प्रण लिया. मैंने मोहम्मद को बेनकाब किया. आज बहुत सारे लोग मेरे कारण इस्लाम की सच्चाई को समझने का प्रयास कर रहे हैं. उनके लिए मैं प्रेरक बना जिसके कारण उनके मन में इस्लाम को जानने की जिज्ञासा उठी."

साल 2016 में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह चौहान के साथ महंत यति भ्रमानन्द सरस्वती और यति नरसिंहानंद सरस्वती

इसके बाद दीपक त्यागी ने सन्यास लेकर यति नरसिंहानंद सरस्वती का चोला ओढ़ लिया. सरस्वती के एक करीबी साथी हैं यति रविंद्रनाथ सरस्वती. 40 साल से आरएसएस (कालकाजी) से जुड़े हुए हैं.

रविंद्रनाथ ने हमें बताया, "यति नरसिंहानंद सरस्वती देवबंद के महंत यति भ्रमानन्द सरस्वती के शिष्य थे. उन्होंने उनसे दीक्षा ली और संन्यास ले लिया. डासना देवी मंदिर का इतिहास रहा है. यहां के महंत की हत्या कर दी जाती है या भगा दिया जाता है. भ्रमानन्द सरस्वती को लगा कि नरसिंहानंद ही डासना देवी मंदिर को संभाल सकते हैं और यह मंदिर उन्हें सौंप दिया."

नरसिंहानंद का राजनीतिक कनेक्शन

सरस्वती हिन्दू समाज पार्टी के कमलेश तिवारी के सबसे करीबी दोस्तों में थे. कमलेश तिवारी अपने मुस्लिम विरोधी बयानों के लिए बदनाम थे. साल 2019 में लखनऊ में कुछ लोगों ने कमलेश तिवारी की हत्या कर दी. इस मामले में पुलिस ने चार आरोपियों की गिरफ्तारी की थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सरस्वती को पुलिस सुरक्षा दी.

कमलेश तिवारी के साथ यति नरसिंहानंद सरस्वती

मसूरी पुलिस स्टेशन में हमें बताया गया कि मंदिर की सुरक्षा पुलिस के हाथ में है. पुलिस अधिकारी अशोक पाल बताते हैं, "आईएसआई और कश्मीर से लोग यति नरसिंहानंद को मारने आए थे. यति नरसिंहानंद कमलेश तिवारी के घनिष्ट मित्र थे. यति नरसिंहानंद अग्रेसिव और अच्छी बातें करते हैं इसलिए उनकी भी जान को ख़तरा है. इसलिए उन्हें पुलिस सुरक्षा दी जाती है.”

यति नरसिंहानंद राजनीति में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के प्रशंसक हैं. यति नरसिंहानंद भोपाल में बीजेपी लोकसभा सांसद प्रज्ञा ठाकुर के समर्थन में वीडियो बनाया था क्योंकि वो सनातन धर्म की रक्षा करने के लिए कार्य करती हैं.

साल 2021 में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने यति नरसिंहानंद सरस्वती के लिए 25 लाख रुपए का चंदा जमा करने की अपील की थी. समय- समय पर कपिल मिश्रा, सरस्वती से मिलते रहते हैं और उनके लिए चंदा इकट्ठा करते हैं.

कपिल मिश्रा के साथ यति नरसिंहानंद सरस्वती और संजीव नेवर

लेकिन हाल ही में सरस्वती के एक महिला विरोधी बयान के बाद बीजेपी के कई नेताओं ने उनसे किनारा कर लिया है. उनमें से एक कपिल मिश्रा भी हैं.

इस घटना ने हमें बताया कि इन के भीतर भी पैसों को लेकर अंदरूनी खींचतान चल रहा है. हालांकि इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं. ग़ाज़ियाबाद के ढोलाना से एमएलए असलम चौधरी आरोप लगाते हैं, "सरस्वती ने कपिल मिश्रा से 25 लाख रुपए मांगे थे. इसके लिए कपिल मिश्रा ने सोशल मीडिया पर चंदा अभियान चलाया. लेकिन पैसों को लेकर इनके बीच में विवाद हो गया. इस कारण कपिल मिश्रा ने खुद सरस्वती का महीनों पुराना वीडियो वायरल कराया."

एमएलए असलम चौधरी का घर

डासना मंदिर के आस पास रहने वालों के बीच मंदिर और सरस्वती को लेकर कोई अच्छी छवि नहीं है. मंदिर से थोड़ी दूर पर स्थित श्री राम कॉलोनी में रहने वाले कई निवासियों से हमने बातचीत की. यहां के रहने वाले एस शर्मा ने बताया कि स्थानीय हिन्दू मंदिर में जाना पसंद नहीं करते. वो कहते हैं, "सरस्वती अव्वल नंबर का गुंडा है. उसका मंदिर बीजेपी और आरएसएस का अड्डा है. पिछले साल सर्दियों की बात है. मैं मंदिर गया था. वहां सरस्वती वीडियो कॉल पर भाजपा के एक बड़े नेता से बात कर रहा था जो अब मंत्री हैं. सरस्वती उनसे अपने इलाके से मुसलामानों को उखाड़ फेंकने के लिए तीन करोड़ रुपए मांग रहा था."

क्या मंदिर में दी जाती है हथियारों की ट्रेनिंग?

डासना देवी मंदिर हथियार चलाने की ट्रेनिंग को लेकर भी विवादों में आ चुका है. लेकिन जब न्यूज़लॉन्ड्री ने यति नरसिंहानंद से इसके बारे में पूछा तो उन्होंने साफ़ इंकार करते हुए कहा कि वह वीडियो मंदिर की नहीं हैं.

मंदिर में लगा पोस्टर

न्यूज़लॉन्ड्री ने यति नरसिंहानंद के शिष्यों से इस बात की पुष्टि करनी चाही. 24 वर्षीय रमेश (बदला हुआ नाम) इस बात की पुष्टि करते हैं कि मंदिर में हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है. वो कहते हैं, "आज के समय में हथियार चलाना ज़रूरी है. हिन्दू देवी-देवताओं के एक हाथ में शस्त्र, दूसरे में अस्त्र हुआ करता है. अगर हमें अपना धर्म बचाना है तो अस्त्र और शस्त्र दोनों का ज्ञान हमें रखना होगा. यही काम मंदिर में हो रहा है."

सरस्वती के एक शिष्य 18 वर्षीय कुनाल जेल में बंद हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया था कि मंदिर में शस्त्र चलाना सिखाया जाता है. इस ट्रेनिंग का कुनाल पर इतना प्रभाव पड़ा है कि उसने हमें बताया था, "जेल मर्दों का अड्डा और हथियार मर्दों का गहना है. युद्ध भूमि मर्दों की कर्मभूमि है. हम इसी जन्मभूमि पर लड़कर मर जाएंगे. लेकिन मुसलामानों का सच सबको बताएंगे. जहां गलत दिखेगा, गौहत्या होगी वहां जाकर विरोध नहीं करेंगे बल्कि हमला करेंगे. अगर कोई हिन्दू भी गौहत्या करेगा तो उसकी हत्या कर दी जाएगी."

सोशल मीडिया पर हीरो, ग्राउंड पर जीरो

सरस्वती का जितना रुतबा और चर्चा सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है, उनके इलाके में उन्हें सम्मान देने वाले उस अनुपात में बहुत कम हैं. न्यूज़लॉन्ड्री ने डासना के आसपास के इलाकों- श्री राम कॉलोनी, वाल्मीकि कॉलोनी और डासना मंदिर का दौरा कर पाया कि वहां के हिन्दू और मुसलामानों के बीच उस तरह की सांप्रदायिक या हिंसा की भावना नहीं है. हमें यह भी पता चला कि मंदिर में तालाब और बाउंड्री का निर्माण मुसलमानों की एक समिति ने किया है.

मंदिर के बाहर एक बड़ा सा बोर्ड लगा है. इस पर लिखा है- "यह मंदिर हिन्दुओं का पवित्र स्थल है. यहां मुसलामानों का प्रवेश वर्जित है." हमने इलाके के मुसलमानों से इस संबंध में बातचीत कर उनका नजरिया जानने की कोशिश भी की.

24 वर्षीय ज़ीशान डासना देवी मंदिर के पास ही अपनी मेडिकल की दुकान चलाते हैं. वो बताते हैं कि यह बोर्ड 2016 में लगाया गया है. "पहले हम (मुसलमान) भी मंदिर में जाया करते थे. कोई नहाने जाता था, कोई पानी भरने जाता था. हर त्योहार पर मंदिर में मेला लगता था. लेकिन यति नरसिंहानंद सरस्वती ने इसे मुसलमानों के लिए बंद कर दिया."

डासना मंदिर से एक किलोमीटर दूर स्थित मस्जिद के पास हमें डॉ. इस्लाम मतीन मिले. वो कहते हैं कि किसी भी मुसलमान को इस बोर्ड से कोई दिक्कत नहीं है. "यहां सभी धर्म के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं. आसिफ के साथ जो हुआ उसके बाद इलाके का भाईचारा बिगाड़ने की कोशिश की गई. लेकिन हम जानते हैं आसिफ को मारने वाले लोग डासना के नहीं थे. वो सभी सरस्वती के चेले थे जो बाहर से आते हैं," मतीन बताते हैं.

वहीं रहने वाली 35 वर्षीय सुनीता कहती हैं, "मैं केवल शिवरात्रि और नवरात्रि में मंदिर जाती हूं. हमें अच्छा नहीं लगता, जिस तरह के बयान सरस्वती देते हैं. यहां उन्हें कोई नहीं पूजता. उनके मंदिर में आने वाले सभी भक्त दिल्ली, नोएडा या आसपास के इलाकों से आते हैं."

लेकिन डासना के एक तबके में सरस्वती को लेकर समर्थन भी है खासकर गुर्जर और यादव समाज में. लोनी के भाजपा एमएलए नन्द किशोर गुर्जर हमें बताते हैं, "यति नरसिंहानंद सरस्वती बेबाक होकर अपनी बात रखते हैं. ऐसे में कुछ लोगों को बुरा लगेगा ही. हर मंदिर की अपनी मान्यता होती है. यति नरसिंहानंद जहां हैं वहां मुसलमानों के मुकाबले चंद हिन्दू बचे हैं. वो उन्हें बचाने का कार्य कर रहे हैं."

नरसिंहानंद की प्रेरणा

सरस्वती खुद को भगवान श्री कृष्ण का अनुयायी बताते हैं. साथ ही उनके अनुसार उन्होंने बीस साल इस्लाम को पढ़ा है. वो कहते हैं, "मैंने इस्लाम बारीकी से पढ़ा और उनकी योजनाओं को समझा है. मैं एक मुसलमान की तरह सोचता हूं. अगर मैं गीता को नहीं पढ़ रहा होता तो हर चीज़ मैं मुसलामानों की तरह कर रहा होता."

सरस्वती के मुताबिक वो उन सभी लोगों को पढ़ते और मानते हैं जिन्होंने अपना जीवन धर्म की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया. सावरकर, नाथूराम गोडसे, भगवान राम, परशुराम, गुरु नानक देव, बंदा सिंह बहादुर, शिवाजी, महाराणा प्रताप और महाराणा सांगा को अपनी प्रेरणा मानते हैं.

देश के संविधान के प्रति सरस्वती में कोई सम्मान या आस्था नहीं है. वो संविधान को मानने से ही इंकार करते हैं, "देश को बचाना है तो सबसे पहले इस संविधान को कूड़े में डालना होगा. हमें संविधान ने बर्बाद किया है."

क्या है यति नरसिंहानंद के लिए इस्लाम और जिहाद का मतलब?

यति नरसिंहानंद अपने भाषणों में बार-बार मुसलामानों और जिहाद को खत्म करने की बात करते हैं. लेकिन इस बात से उनका मतलब क्या है? वो कहते हैं, "अगर आप किसी मुसलमान से जिहाद का मतलब पूछते हैं तो वो संघर्ष की बातें बोलता है. लेकिन असल में जिहाद दुनिया से सभी काफिरों को खत्म करने की प्रक्रिया को कहते हैं. मोहम्मद एक बात कहकर गए हैं. जिहाद अगर ज़मीन पर नहीं चल रहा है तो भी जिहाद मोमिन के दिमाग में होना चाहिए. अगर उसे लड़ने का मौका नहीं भी मिल रहा है तो उसके दिमाग में लड़ाई होनी ही चाहिए."

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्

तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:

यह गीता का वो छंद है जिसे यति नरसिंहानंद मुसलमानों का "काउंटर" बताते हैं. "जो अधर्मी आपके परिवार और धर्म के खिलाफ हो उसे मार दो. यदि तुम मारे गए तुम्हे स्वर्ग मिलेगा, जीते तो सारी धरती तुम्हारी है ही. इसलिए खड़े हो जाओ और युद्ध की तैयारी करो. गीता में यह सब लिखा है. वह धर्मयुद्ध का आदेश देती है. जब कुरान पढ़ेंगे तब पता चलेगा कुरान गीता की ही भद्दी नक़ल है. उसमें शब्दों का फेरबदल कर के अर्थ का अनर्थ कर दिया गया है," सरस्वती ने कहा.

यति नरसिंहानंद का मीडिया कनेक्शन

न्यूज़ नेशन के नियमित पैनलिस्ट रहे यति नरसिंहानंद सरस्वती पर ज़ी हिन्दुस्तान एक पूरा शो कर देता है.

चार अप्रैल, 2021 को प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में एक कार्यक्रम आयोजित कराया गया. इसी कार्यक्रम के दौरान उन्होंने मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. इस कार्यक्रम के लिए बुकिंग पत्रकार विजय कुमार के नाम से हुई थी. न्यूज़लॉन्ड्री ने 55 वर्षीय विजय कुमार से बात की. वह कहते हैं कि वो एक धार्मिक आदमी हैं और गाज़ियाबाद जाने के दौरान मंदिर जाया करते हैं. जहां उनकी मुलाकात यति नरसिंहानंद से हुई.

विजय कुमार बताते हैं, "बुकिंग के लिए मुझे दीपक सिंह हिन्दू का कॉल आया था. उन्होंने मुझसे कहा था कि वो एक कार्यक्रम कराना चाहते हैं जिसके लिए उन्हें कॉन्स्टिट्यूशन क्लब से इजाज़त नहीं मिली. इस कार्यक्रम में सभी धर्मों के लोग मौजूद रहेंगे. मैं यति नरसिंहानंद को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता. मैं बस साधू मानकर उनका आशीर्वाद लेता हूं."

जंतर मंतर पर भड़काऊ भाषण के पीछे थे यति नरसिंहानंद?

आठ अगस्त को जंतर मंतर पर मुस्लिम विरोधी नारेबाजी हुई. यह नारे लगाने वाले तमाम लोगों ने हमें बताया कि वो यति नरसिंहानंद से प्रेरित हैं. इस पर यति नरसिंहानंद न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, "अगर उसने यह कहा कि वो मुझसे प्रेरित है तो मुझे उस पर गर्व है. मैं ऐसे दिलेर शेर पर गर्व करूंगा. मेरे विचार भी बिलकुल वहीं हैं जो उत्तम ने कहा."

यति नरसिंहानंद सरस्वती पर कई मुक़दमे दर्ज हैं लेकिन उनकी गिरफ्तारी नहीं की गई?

आम आदमी पार्टी विधायक अमानतुल्लाह खान ने अप्रैल में यति नरसिंहानंद द्वारा मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर 53A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) और 295A (किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने के उद्देश्य से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करना) के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी.

न्यूज़लॉन्ड्री मसूरी पुलिस स्टेशन पहुंचा. यहां यति नरसिंहानंद के खिलाफ दायर मुकदमों की लम्बी लिस्ट है. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 500, 505, 509, 504, 506, 509 और 66 आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज है.

हाल ही में उनका एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें उन्होंने बीजेपी की महिला नेताओं को लेकर घटिया बातें कही थीं. इस पर सात अगस्त को राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने एफआईआर भी दर्ज कराई थी.

इस केस के आईओ अशोक पाल सिंह कहते हैं, "एफआईआर दर्ज कराने के बाद रेखा शर्मा एक भी बार पुलिस स्टेशन नहीं आई. वीडियो में यति नरसिंहानंद ने रेखा शर्मा को क्या कहा है? उन्होंने बीजेपी की महिलाओं को कहा लेकिन बीजेपी की किसी नेता ने उन पर मुकदमा दर्ज नहीं किया."

इस तरह से पुलिस यति नरसिंहानंद सरस्वती को किसी कार्रवाई के लिए उपयुक्त नहीं पाती. सरस्वती फिलहाल कानून और संविधान से ऊपर खड़े दिखाई देते हैं.

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