Report
डेंगू का प्रकोप और बच्चों की मौत: उत्तर प्रदेश के एक अस्पताल की पड़ताल
फिरोजाबाद के सरकारी मेडिकल कॉलेज के हॉल के कोने में डॉक्टर संगीता अनेजा बैठी हैं, यह जगह जिले में डेंगू के प्रकोप से निपटने के प्रयासों का केंद्र है. हर मिनट में किसी पीड़ित का एक परिवार वाला उनके पास खून की जांच की रिपोर्ट लेकर आता है. वे रिपोर्ट देखकर मरीज की प्लेटलेट संख्या पर नीले पेन से निशान लगाती हैं और उन्हें बताती हैं, "हां, 1 लाख 50 हज़ार ठीक लगती है. आपको अपने बच्चे की छुट्टी करा लेनी चाहिए."
बीते बुधवार को 270 मरीज अस्पताल में भर्ती किए गए. फिरोजाबाद में 24 अगस्त से अब तक 50 से ज्यादा लोगों को बुखार लील चुका है, इनमें से अधिकतर बच्चे थे.
पहले 'रहस्यमय बीमारी’ बताया जा रहा यह बुखार डेंगू निकला, लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय में जांच के लिए भेजे गए 49 सैंपलों में से 46 डेंगू के एडीज वेक्टर पाए गए हैं.
डॉ. अनेजा जो मेडिकल कॉलेज की डीन हैं, अपने पास जितने भी संसाधन हैं, उनका भरसक इस्तेमाल करने का प्रयास संक्रमण को रोकने के लिए कर रही हैं.
अस्पताल के मेन हॉल में दो लाइन लगा दी गई हैं जिसकी कतार एक छोटे कमरे तक जाती है. पहली मेज़ पर बीमार बच्चों का परीक्षण एक डॉक्टर करते हैं और इस परीक्षण के हिसाब से उन्हें दूसरी मेज़ की तरफ भेजते हैं. यहां पर एक नर्स खून के सैंपल लेती हैं और वह सैंपल उस छोटे कमरे में जाते हैं जहां पर टेक्नीशियन प्लेटलेट की संख्या निकालते हैं. प्लेटलेट हमारे खून की कोशिकाओं का एक हिस्सा है जो डेंगू से लड़ाई में महत्वपूर्ण होता है.
यह सुनने में बहुत व्यवस्थित लग सकता है, लेकिन है नहीं. अनवरत अस्पताल आ रहे मरीजों की वजह से अव्यवस्था, शिकायतें और असमंजस की स्थिति पैदा होती है. अस्पताल का स्टाफ जो बहुत मेहनत से अपने निर्धारित समय से ज्यादा काम कर रहा है, डॉक्टर अनेजा से अक्सर घर जाने देने की असफल विनती करता है.
अस्पताल के एक वरिष्ठ कर्मचारी कहते हैं, "युवा डॉक्टरों को सरकारी नौकरी में अब कोई फायदा नहीं दिखाई देता. यूपी में उन्हें राजनैतिक और प्रशासनिक उत्पीड़न झेलना पड़ता है. बाकी अस्पतालों की तरह ही इस अस्पताल के डॉक्टरों से भी खच्चरों जैसा बर्ताव किया जाता है."
'हमारे अस्पताल का प्रांगण साफ है'
बुधवार को न्यूजलॉन्ड्री ने रिपोर्ट की थी कि यह महामारी फिरोजाबाद के कुछ हिस्सों में सफाई न होने और नगर निगम के द्वारा उचित कदम न उठाए जाने की वजह से फैल रही है. सुदामा नगर जहां पर प्रकोप सबसे ज्यादा है, वहां कई प्लॉट सड़ती हुई गंदगी से भरे थे और कई खुले नाले कूड़े से अटे पड़े थे.
सरकारी मेडिकल कॉलेज की हालत इससे कुछ अलग नहीं थी. अस्पताल के प्रवेश द्वार पर कोविड की वैक्सीन का रजिस्ट्रेशन काउंटर था, और यहीं लोगों की भीड़ के बीच सूअर खाना ढूंढते घूम रहे थे.
पास ही में जहां पर लोगों के बैठने के लिए कुछ कुर्सियां पड़ी थीं, कैंपस की दीवार से लगकर बहता एक खुला नाला था जिसमें मिट्टी जमा हो रही थी. वहां बंदर, गाय और कुत्ते भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे.
न्यूजलॉन्ड्री ने कैंपस के अंदर कूड़े के ढेर देखे, इनमें से कईयों में रुका हुआ पानी भरा था जहां मच्छर भिनभिना रहे थे.
जब हमने अस्पताल के कैंपस के अंदर कूड़े के प्रबंधन और स्वच्छता की खराब स्थिति के बारे में सवाल किया तो डॉ. अनेजा कहती हैं, "कैंपस साफ है. अब तो यह पहले से बहुत बेहतर है. आपको इसे पहले देखना चाहिए था. यह एक पुराना अस्पताल है. जब बारिश होती है तो यहां इससे कहीं ज्यादा पानी इकट्ठा होता है."
'अगर सब मुझे ही करना है तो उन्हें किस बात के पैसे मिलते हैं'
अस्पताल के वार्डों में मां-बाप ने न्यूजलॉन्ड्री को उनको बच्चों से हुए बुरे बर्ताव के बारे में बताया. 40 वर्षीय सुनील कुमार अपने दो बीमार बच्चों, 8 वर्षीय अंजली और 10 वर्षीय अविजीत को 25 अगस्त को अस्पताल लाए थे, वे बताते हैं, "उन्होंने बड़ी लापरवाही बरती है. मुख्यमंत्री 30 अगस्त को अस्पताल आए थे, तब से इन लोगों ने कुछ मुस्तैदी दिखाई है."
सुनील जो एक दिहाड़ी मजदूर हैं, कहते हैं कि उनकी बेटी पर पहले 3 दिन अस्पताल में न के बराबर ध्यान दिया गया. वे दावा करते हैं, "पहले दिन उसकी प्लेटलेट 49,000 थीं. जब मैंने डॉक्टरों से उस पर ध्यान देने को बोला, लेकिन उन्होंने कहा कि घबराओ मत, वह ठीक हो जाएगी." सामान्य अवस्था में खून में प्लेटलेट की गिनती 1,50,000 से 4,50,000 प्रति माइक्रोलीटर होती है."
उसके अगले दिन, अंजली की प्लेटलेट गिरकर 18,000 रह गईं. सुनील बताते हैं, "उसे खून की ज़रूरत थी. मेरा खून O+ है और मेरी बेटी का B+. मैंने बैंक को अपना खून देना चाहा, लेकिन उन्होंने कहा कि वे B+ केवल A+ के बदले में देंगे."
सुनील खून की व्यवस्था नहीं कर पाए और 28 अगस्त को अंजली की डेंगू से मौत हो गई.
वह आगे कहते हैं, "योगी जी के आने के बाद, वे अब खून बेच रहे हैं. अगर उन्होंने ऐसा पहले किया होता, तो वह बच गई होती."
दूसरे माले पर, एक दूसरे वार्ड में दो लड़कों को एक ही बिस्तर पर लिटाया गया है. बिस्तरों की कमी की वजह से अस्पताल, मरीजों को आनन-फानन में इधर से उधर शिफ्ट करने या उन्हें छुट्टी ही देने के लिए मजबूर होता है.
16 वर्षीय आकाश को 36 घंटे पहले भर्ती किया गया था, उसकी मां दीपा कहती हैं, "12 घंटे तक मेरे बेटे को कोई देखने भी नहीं आया. उसे दवाई की पहली खुराक रात के 10 बजे दी गई."
केवल दवाईयां ही नहीं, खून की जांच की रिपोर्ट भी देरी से आती हैं. आधिकारिक तौर पर, अस्पताल का दावा है कि खून के सैंपल से प्लेटलेट संख्या पता करने में केवल 3 घंटे का समय लगता है, जबकि आकाश को इसके लिए 9 घंटे इंतजार करना पड़ा. कई अभिभावकों ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि उन्हें अपने बच्चों की रिपोर्ट लेने के लिए स्टाफ से झगड़ा तक करना पड़ा था.
दीपा के तीन बच्चे हैं, सभी को बुखार है. वे कहती हैं, "ऐसे अस्पताल के स्टाफ के साथ मेरे लिए एक बच्चे का ध्यान रख पाना मुश्किल है. मैं तीन का ध्यान कैसे रखूं?"
वार्ड के एक दूसरे कोने में संतोष कुमार अपने 16 वर्षीय बेटे कर्तव्य की तीमारदारी ठंडे पानी से कर रहे थे. उन्हें यह खुद इसलिए करना पड़ रहा था क्योंकि नर्सें या तो बहुत कम थीं, या फिर वे डेंगू के हर मरीज का ध्यान रख पाने में अक्षम थीं.
वे कहते हैं, "मुझे यहां दो दिन हो गए. नर्सें अपना काम नहीं कर रही हैं. उन्होंने हमें मेरे बेटे की खून की जांच की रिपोर्ट लाने के लिए कहा. अगर मुझे ही सब करना है तो उन्हें किस बात की तनख्वाह मिलती है."
संतोष बताते हैं कि वार्ड में केवल उन्हें ही नहीं बाकी अभिभावकों को भी स्टाफ को बिल्कुल साधारण चीजों को भी याद दिलाना पड़ता है. वह शिकायत करते हुए कहते हैं, "चाहे इंजेक्शन, दवाइयां या सिर्फ पानी ही क्यों न हो, वे अपने आप कुछ नहीं करतीं. आपको उन्हें हर चीज़ के लिए जाकर कहना/धकेलना पड़ता है."
फिरोजाबाद की बघेल कॉलोनी में रहने वाले संतोष कहते हैं कि वह अपने घर के पास कम से कम पांच ऐसे बच्चों को जानते हैं जो डेंगू की वजह से गुज़र गए. उन्होंने कहा, "हमारी कॉलोनी में साफ-सफाई की हालत बहुत खस्ता है और कई बच्चे बीमार हैं. सरकार आंकड़ों में मरने वालों की संख्या पर विश्वास करना मुश्किल है."
डॉ. आलोक कुमार सरकारी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) हैं, वे अस्पताल के द्वारा डेंगू के प्रकोप को ठीक से न संभाल पाने का कारण फिरोजाबाद के आसपास के इलाकों से बड़ी मात्रा में मरीजों का आना बताते हैं.
वे मरीजों से भरे हॉल की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, "आप आने वाले मरीजों की संख्या को देखें. कई बार बिस्तर खाली होते हैं लेकिन हम उन्हें देख नहीं पाते. हमें चीजों को संभाल पाने के लिए नर्सों को बाहर भेजना पड़ता है. हम नए मरीजों के लिए नए कमरे भी खोल रहे हैं."
डॉ. कुमार दावा करते हैं कि डेंगू के फैलने के बाद से अस्पताल में केवल चार मौतें हुई हैं. उन्होंने कहा, "कुछ मां-बाप ऐसे बच्चों को भी लेकर आए जो मर चुके थे. वे यहां नहीं मरे."
स्टाफ की कमी को लेकर वे मानते हैं कि अस्पताल इससे जूझ रहा है. वे कहते हैं, "यह एक नया अस्पताल है, इसे 2019 में बनाया गया. हम स्वास्थ्य कर्मचारियों को नौकरी पर भर्ती कर रहे हैं लेकिन अभी भी आवश्यकतानुसार नहीं हैं."
अभी के लिए डॉक्टर कुमार आपातकालीन योजना पर ही निर्भर हैं. वे दावा करते हैं, "कैंपस में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग है, जिसको कोविड-19 की दूसरी लहर में कोविड वार्ड के रूप में इस्तेमाल किया गया था. आज रात तक हम वहां पर 200 बिस्तर और लगा देंगे. फिर हमारी क्षमता बढ़कर 500 बिस्तरों की हो जाएगी."
Also Read
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’
-
Since Modi can’t stop talking about Nehru, here’s Nehru talking back