Opinion
किसानों के लिए 6000 रुपये की सहायता राशि अधिक प्रभावी है या उचित फसल मूल्य?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 अगस्त को पीएम किसान सम्मान निधि योजना के 2000 रुपये की किस्त जारी की. यह योजना छोटे किसानों को हर साल 6000 रुपये की राशि की सुविधा देती है. सरकार का तर्क है कि भारतीय किसान इस राशि से आत्मनिर्भर हो रहे हैं और उनकी आय में भी वृद्धि हुई है. क्या वास्तव में किसान इस छोटी-सी राशि से आत्मनिर्भर बनने में सक्षम हुए हैं? क्या 6000 रुपये की यह सहायता राशि उनके लिए अधिक प्रभावी है या उचित मूल्य और समय पर भुगतान उन्हें आत्मनिर्भर बना सकता है?
उत्तर प्रदेश में 2017 में चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने वादा किया था कि अगर गन्ने की कीमत 400 रुपये प्रति क्विंटल तय की जाती है और 14 दिनों के भीतर भुगतान जारी कर दिया जाता है, तो गन्ना किसानों की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो जाएगा. इसके बाद पश्चिमी यूपी में बीजेपी की जबरदस्त लहर चली और इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में उसे भारी जीत हासिल हुई. इसके तुरंत बाद अगले गन्ने के सीजन में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने गन्ने के दाम में 10 रुपये की बढ़ोतरी भी की, लेकिन उसके बाद से गन्ने की कीमत में कोई वृद्धि नहीं हुई और भुगतान जारी करने में एक साल से अधिक की देरी भी बनी हुई है.
यहां हमें अखिलेश यादव की पिछली सरकार में गन्ना किसानों की स्थिति देखनी चाहिए. अपने पांच वर्षों (2012-17) के शासनकाल के दौरान अखिलेश यादव ने गन्ने की कीमत 250 से बढ़ाकर 315 रुपये की थी, जिससे गन्ने मूल्य में 26 फीसदी की वृद्धि हुई. अपने शासन के अंतिम साढ़े चार वर्षों में योगी आदित्यनाथ केवल 3.17 फीसदी की मामूली वृद्धि के साथ कीमत 315 से 325 तक बढ़ा सके. अब विचार करें कि पिछले चार साल से गन्ने के भाव स्थिर होने के कारण जिस किसान को घाटा हो रहा है, उसकी भरपाई के लिए एक साल में 6000 रुपये की किस्त कैसे दी जा सकती है?
पिछली सरकार के दौरान कीमतों में जो बढ़ोतरी हुई थी अगर इसी पैमाने पर वह जारी रहती तो आज गन्ने का भाव 397 रुपये प्रति क्विंटल होता, जबकि आज भी किसान को 325 रुपये ही मिल रहे हैं. इसलिए एक गन्ना किसान को सीधे एक क्विंटल पर 72 रुपये का घाटा हो रहा है. हम में से कुछ लोगों को 72 रुपये बहुत मामूली रक़म लग सकती है. उन्हें इसे इस तरह समझना होगा कि एक बीघा में औसतन 70 क्विंटल गन्ने का उत्पादन होता है, तो पिछली सरकार के प्रतिशत के हिसाब से कीमत मिले तो किसान को इस एक बीघा पर 5,040 का सीधा नुकसान हो रहा है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अधिकांश किसानों के पास औसतन दस बीघा भूमि है. यानी इन किसानों को अब एक साल में 50,400 रुपये का सीधा नुकसान हो रहा है. इस घाटे की भरपाई के लिए मोदी सरकार जितनी किस्तें दे रही है, वह किसी भी तरह से नाकाफी है.
इसके साथ ही गन्ने के भुगतान में देरी (जब एक साल बाद पैसा मिलता है) के कारण किसान को बैंक के बचत खाते में मिलने वाला ब्याज भी नहीं मिलता है. यदि दस बीघा के किसान को आधार माना जाए तो वह एक वर्ष में 325 की दर से 700 क्विंटल गन्ना मिल में डालता है, जिसके लिए उसे 2,27,500 रुपये मिलते हैं. इस धन पर एक वर्ष में तीन फीसदी की दर से साधारण ब्याज 6,825 रुपये है. अतः इन किसानों को दी गई किश्तों से ही वह ब्याज पूरा हो सकता है, जो किसान को एक वर्ष के विलंब से भुगतान के कारण खो रहा है. इस हिसाब से दस बीघा वाले एक गन्ना किसान को एक साल में 57,225 रुपये का नुकसान हो रहा है.
इसके साथ ही किसानों की बचत अन्य तरीकों से भी बढ़ने के बजाय कम की जा रही है. किसानों को अन्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ा है, जैसे कि खेतों में पानी की आपूर्ति के लिए स्थापित ट्यूबवेल की बिजली की लागत में वृद्धि. पिछले साढ़े चार साल में खेतों में नलकूपों के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली की कीमत दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गई है.
मुजफ्फरनगर के एक किसान देवराज सिंह से बात करते हुए पता चला कि 2016 में उनके नलकूप का एक साल का बिजली बिल 9000 से 9500 रुपये के बीच था, उसी नलकूप का बिल अब 22000 से 24000 के बीच आ रहा है. इसके साथ ही उन्होंने एक और मुद्दे की ओर भी ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा, "पिछली सरकारें समय पर बिजली बिल का भुगतान नहीं करने पर लगने वाले जुर्माने से छूट देती थीं. अब इस सरकार में जुर्माने पर कोई रियायत नहीं दी जाती है."
उन्होंने आगे कहा, "एक तो हमें गन्ने का भुगतान समय पर नहीं मिलता और इसके कारण जब हम समय पर बिजली बिल का भुगतान नहीं कर पाते हैं तो हम पर जुर्माना भी लगाया जाता है. यह किसान पर दोहरी मार है."
इसके साथ ही अब गांवों में बिजली के मीटर भी लग गए हैं. मुजफ्फरनगर के एक गांव में बात करते हुए पता चला कि न सिर्फ खेतों के बिजली के दाम बढ़ाए गए हैं, बल्कि घरों में इस्तेमाल होने वाले बिजली के बिलों में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है. गांव की एक महिला ने बताया कि पिछले साल जब उनका पूरा परिवार घर पर था, तब उनके पूरे घर का बिजली बिल कभी भी 500 रुपये प्रति महीना से अधिक नहीं था, लेकिन इस साल मार्च के बाद से बिल 900 रुपये प्रति महीने से कम कभी नहीं आ रहा है जबकि अब वह घर में रहने वाली एकमात्र महिला हैं.
गांव के अन्य लोग भी ऐसी ही समस्या का सामना कर रहे हैं. कुछ ने तो यहां तक कह दिया कि बिजली के दाम इतने ऊंचे हो गए हैं कि न चाहते हुए भी बिजली चोरी कर रहे हैं क्योंकि उनकी आमदनी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है और खर्चे कई गुना बढ़ गए हैं.
वहीं डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का भी किसानों की आय पर काफी नकारात्मक असर पड़ा है. जिला बागपत में किसान बताते हैं, "डीजल की कीमत बढ़ने से खेतों की बुवाई की लागत दोगुनी से अधिक हो गई है. यहां भी छोटे किसान जिनके पास ट्रैक्टर नहीं है, उन्हें ज्यादा परेशानी हो रही है. 2016 में एक बीघा गन्ने के खेत की जुताई के लिए 350 से 400 रुपये लिए जाते थे. आज उसी एक बीघा खेत में बुवाई के लिए 750 रुपये से 800 रुपये के बीच लिए जाते हैं."
कीटनाशकों पर खर्च भी किसान की आय में वृद्धि की दर से कई गुना तेजी से बढ़ रहा है. मुजफ्फरनगर के एक किसान विपिन मलिक ने बताया, "पांच साल पहले जहां एक एकड़ में कीटनाशकों के लिए 2000 रुपये खर्च होते थे, आज यह खर्च बढ़कर 4500 हो गया है."
विपिन मलिक ने यह भी कहा, "हमें बढ़ी हुई कीमतों का भुगतान करने में कोई दिक्कत नहीं होगी अगर हमारी आय, खासकर गन्ने की कीमत भी उसी दर से बढ़ती रहती.” विपिन ने आगे कहा. "एक साल से अधिक हो गया है, उनके दोनों बच्चे घर पर हैं और वे और उनके जैसे अन्य किसान इस स्थिति में भी नही हैं कि जो ऑनलाइन क्लास बच्चों के लिए हो रही हैं उसके लिए उन्हें एक स्मार्ट मोबाइल ख़रीद कर दे सकें."
इस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को न केवल समय पर भुगतान न होने और गन्ने की कीमतों में वृद्धि नहीं होने से नुकसान हो रहा है, बल्कि खेती की लागत में वृद्धि के कारण भी उन पर असर पड़ रहा है.
लेखक दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टन्ट प्रोफेसर हैं.
(साभार- जनपथ)
Also Read
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Let Me Explain: Banu Mushtaq at Mysuru Dasara and controversy around tradition, identity, politics
-
गुजरात: विकास से वंचित मुस्लिम मोहल्ले, बंटा हुआ भरोसा और बढ़ती खाई
-
September 15, 2025: After weeks of relief, Delhi’s AQI begins to worsen
-
Did Arnab really spare the BJP on India-Pak match after Op Sindoor?