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मध्यप्रदेश: 23 जिंदा लोगों का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी कर किया सरकारी मदद का गबन
30 साल के सतीश सोनी ने अपनी बहन की शादी में मिलने वाली सरकारी मदद के लिए छिंदवाड़ा जनपद सीईओ के दफ्तर में जून महीने में आवदेन किया. उन्हें 15 दिन बाद पैसा मिलने का आश्वासन दिया, लेकिन 15 दिन बाद अधिकारी ने कहा, “कार्ड में कुछ अपडेट है, इसलिए पैसा आने में अभी समय लगेगा.” सतीश कुछ दिनों बाद दोबारा जनपद गए तो फिर से कुछ और बहाना बना दिया गया.
खैर दो महीने बाद भी सतीश को पैसे नहीं मिले हैं. एक दिन सतीश अपनी मां ललिता सोनी के साथ जनपद गए और बताया कि यह कार्ड मेरी मां के नाम पर बना है और जो भी अपडेट करना है वह बता दें.
इसके बाद जनपद ऑफिस में मौजूद अधिकारी ने कहा, ‘‘आप की मां का तो निधन हो गया है और उनके नाम पर दो लाख रुपए भी जारी हो गए हैं.’’ तब सतीश ने कहा, “ये हैं मेरी मां जो आपके सामने खड़ी हैं, वह भी जिंदा.”
यह वाकया सिर्फ सतीश के साथ नहीं हुआ बल्कि यह फर्जीवाड़ा कुल 23 लोगों के साथ किया गया. दरअसल जिंदा लोगों को मृत बताकर उनके नाम से मिलने वाली सरकारी मदद को पंचायत के कुछ अधिकारी चपत कर गए. अब यह लोग जिंदा तो हैं लेकिन सरकारी दस्तावेज में इनकी मौत हो गई.
यह मामला मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के बोहनाखैरी गांव का है. करीब 2700 जनसंख्या वाले इस गांव में 23 जिंदा लोगों को मृत बताया गया है. गांव के 26 साल के एक युवक नाम ना छापने की शर्त पर बताते हैं, “जब हमें पता चला कि सतीश की मां को मृत बताकर सरकार से पैसा ले लिया गया है. उसके बाद हमने साल 2019 से अभी तक गांव के मृत लोगों की लिस्ट पंचायत से निकलवाई जिनका मृत्यु प्रमाण पत्र बना है. इस सूची में दो सालों के दौरान कुल 106 लोगों का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुआ जिसमें से 23 लोग अभी जिंदा है.”
जो लोग जिंदा थे और सरकारी दस्तावेज में मृत घोषित हो गए थे, उन लोगों को इसके बारे में तब पता चला जब कुछ पत्रकार इस सिलसिले में खबर करने के लिए गांव पहुंचे.
जिन लोगों को मृत बताकर पैसे निकाले गए हैं, वह मध्यप्रदेश के सम्बल योजना के तहत पंजीकृत है. यह योजना असंगठित क्षेत्र में नियोजित श्रमिकों के कल्याण और उनके उत्थान के लिए बनाई गई है. इन लोगों को सरकारी नियमों के मुताबिक, सामान्य मृत्यु पर दो लाख रूपए और एक्सीटेंड की वजह से मृत्यु होने पर चार लाख रूपए का मुआवजा आश्रित को दिया जाता है. इसके साथ ही छह हजार रूपए अंतिम संस्कार के लिए अलग से दिए जाते हैं.
ललिता सोनी
44 वर्षीय ललिता सोनी मध्यप्रदेश के सम्बल पोर्टल पर पंजीकृत हैं. सम्बल पोर्टल पर पंजीकृत लोगों को सरकार एक कार्ड बना कर देती है. उनके बेटे सतीश ने उनके उसी कार्ड के आधार पर अपनी बहन की शादी हेतु कन्या विवाह योजना के तहत आवदेन किया था.
सतीश न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “शादी के बाद, कागजात के साथ जनपद में जाकर आवेदन करना होता है. मैंने वहीं किया, लेकिन मुझे बाद में पता चला कि मेरी मां को सरकारी कागजात में मृत दिखाकर दो लाख रूपए सरकार से ले लिए गए हैं.”
“जब मीडिया के लोग हमारे गांव में आए तो हमें पता चला कि पंचायत सचिव और कुछ अन्य लोगों ने मिलकर यह घोटाला किया है” सतीश बताते है.
ललिता सोनी के मृत्यु सर्टिफिकेट में 2 अगस्त 2019, पंजीकरण की तारीख 24 नंबवर 2019 और सर्टिफिकेट जारी होने की तारीख 12 अगस्त 2021 लिखी हुई है.
पूनू यादव और कचरा यादव
पूनू यादव और कचरा यादव दोनों पति-पत्नी कर्मकार भवन एवं सनिर्माण मंडल के तहत पंजीकृत हैं. दोनों का कार्ड बना हुआ है. इन्हें भी सरकारी कागजात में मृत दिखाकर इनके नाम पर दो-दो लाख रूपए ले लिए गए हैं.
पूनू के बेटे विनोद यादव न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “जब लिस्ट निकली तो पता चला कि मेरे माता-पिता के नाम से भी पैसा ले लिया गया है. हम गरीब लोग हैं, जो मजदूरी करते हैं. मैं गांव में ही एक दुकान पर काम करता हूं. सचिव पर भरोसा था, लेकिन उन्होंने हमारे साथ धोखा किया.”
विनोद का घर सहायक सचिव के घर के पास में ही है. जब मामला सामने आया तो वह उनके घर गए, लेकिन घर पर ताला लगा मिला. इसके बाद गांव वालों के साथ मिलकर विनोद के माता-पिता ने भी उनके खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है.
सरकारी आंकड़ो में मृत घोषित किए जाने के बाद क्या अन्य सरकारी सुविधाएं मिलती रहीं? इस सवाल पर विनोद कहते हैं, “हां, हमें राशन मिल रहा है, हमने हाल ही में कोरोना वैक्सीन भी लगवाई है. कोई दिक्कत नहीं आई.”
वह आगे कहते हैं, “अगर हमें अन्य सुविधाएं नहीं मिलती तो हमें शायद पहले ही पता चल जाता. इससे बचने के लिए हो सकता है उन लोगों ने अन्य योजनाओं से हमारा नाम नहीं काटा.”
विनोद ने कहा, “जनपद में जाकर हमने मृत्यु प्रमाण पत्र रद्द करने की मांग की है. आधिकारियों ने कहा जल्द ही जांच कर इसे रद्द कर दिया जाएगा.”
सज्जेलाल यदुवंशी और बीरपाल यदुवंशी
50 वर्षीय सज्जेलाल और 47 वर्षीय बीरपाल दोनों भाई हैं. सम्बल योजना के तहत इनका भी कार्ड बना है. सज्जेलाल और उनका परिवार खेती और मजदूरी कर अपनी गुजर-बसर करता है.
सज्जेलाल ने ही पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई है. जिसमें गांव के अन्य लोगों का भी नाम है. वह कहते हैं, सचिव राकेश चंदेल और सहायक सचिव संजय चौरे दोनों ने मिलकर हमारा फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया और कर्मकार मंडल योजना के तहत मिलने वाले दो लाख रूपए भी गबन कर लिए. इन दोनों ने हमें और सरकार दोनों को धोखा दिया है.
सज्जेलाल के बेटे 23 वर्षीय अमन यदुवंशी ने कहा, “जब लिस्ट सामने आई तब पता चला कि मेरे पिता और चाचा का नाम भी मृतकों की लिस्ट में शामिल है. जिसके बाद हम सभी लोग जनपद गए. वहां उन्होंने भीड़ देखकर पहले ही गेट बंद कर दिया, हमें अंदर नहीं जाने दिया. हम लोगों ने गेट के बाहर से ही अपनी बात अधिकारियों के सामने रखी.”
वह आगे कहते हैं, “गांव के जिन लोगों को मृत घोषित किया गया था, वह जनपद अपना मृत्यु सर्टिफिकेट लेने गए. जब उनको मृतक बताया गया है तो प्रशासन को उन्हें सर्टिफिकेट देना चाहिए.”
कागजों में जो मृत बताए गए हैं क्या उन्हें वैक्सीन लगी है? इस पर अमन ने कहा, “अभी एक-दो महीने पहले ही हम लोगों को वैक्सीन लगी है. वैक्सीन लगाने का टारगेट था तो सभी लोगों को सचिव ने लगवा दी. आधार कार्ड देखकर हमें वैक्सीन लगी है. हमें राशन भी मिलता है. अगर लिस्ट नहीं निकलती तो हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे नाम पर सरकार से पैसे ऐठे गए हैं.”
गांव के एक अन्य व्यक्ति 55 वर्षीय जगदीश पंचेश्वर को भी मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुआ है. उनकी मृत्यु 22 मई 2021 लिखी गई है, पंजीकरण 25 मई 2021 और जारी करने की तिथि 19 अगस्त 2021 है. जगदीश कहते है, “मैं तो जिंदा हूं, आप से बात कर रहा हूं, मरा कहां? आप गांव में किसी से भी पूछ लिजिए वह बता देगें की मैं जिंदा हूं.”
वह आगे कहते है, “हम जनपद गए थे, हमने अधिकारियों को बताया कि हम तो मर गए तो हमारा मृत्यु प्रमाण पत्र दो, तो उन्होंने कहा सर्टिफिकेट हम नहीं पंचायत से मिलेगा. लेकिन ग्राम पंचायत बंद है.”
कैसे हुई हेराफेरी
जिंदा लोगों को मृत बताकर करीब 45 लाख रुपए का गबन किया गया है. यह तो महज साल 2019 से 2021 तक के आंकड़े हैं, उससे पहले क्या हुआ इसको लेकर अभी तक कोई जानकारी सामने नहीं आई है. हालांकि इस मामले के सामने आने के बाद छिंदवाड़ा के प्रभारी मंत्री कमल पटेल जो की कृषि मंत्री भी हैं उन्होंने पूरे जिले में जांच के आदेश दिए हैं.
सर्टिफिकेट जारी होने से लेकर पैसे आने तक की पूरी प्रकिया को एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया.
वह कहते हैं, मध्यप्रदेश शासन की सम्बल योजना के तहत पंजीकृत किसी भी व्यक्ति की मौत होने पर पंचायत सचिव, अंतिम संस्कार के लिए छह हजार रूपए नकद देते हैं. यह राशि जिला पंचायत सीईओ ऑफिस से ग्राम पंचायत सचिव के खाते में आती है, जिसके बाद सचिव वह राशि मृतक के परिवार को देते हैं. सामान्य स्थिति में मौत होने पर दो लाख रूपए की सहायता राशि मिलती है वही किसी हादसे में मृत्यु होने पर चार लाख रूपए दिए जाते हैं.
अधिकारी बताते हैं, ‘‘मृत्यु होने के 21 दिनों के अंदर पंचायत को मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करना होता है, यह नियम है. अगर किसी मृतक के परिजन ने 21 दिनों के अंदर आवदेन नहीं किया तो फिर तहसीलदार के आदेश के बाद मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया जाता है. मृतक के परिजन एक साल या दो साल बाद भी सर्टिफिकेट के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन तब तहसीलदार की अनुमति चाहिए होगी.”
आर्थिक मदद के लिए मृत्यु सर्टिफिकेट के साथ आधार कार्ड और कई अन्य फॉर्म को भरकर ग्राम पंचायत में दिया जाता है. सभी कागज को जांचने के बाद पंचायत से वह कागज जनपद सीईओ के ऑफिस में जाता है. जहां फिर से इन कागजों की जांच की जाती है.
कागजों की जांच के बाद जनपद समन्वय अधिकारी मृतक के घर पर जाकर ‘वेरिफिकेशन’ करता है और आश्रित परिजन के नाम, खाते की जानकारी को फॉर्म में भरकर जनपद में जमा करता है. वेरिफिकेशन के बाद जनपद सीईओ नोटशीट जारी करते हैं. नोटशीट यानी कि, उस व्यक्ति को पैसे देने के लिए शासन को जानकारी भेज दी जाती है और फिर शासन उसके खाते में मुआवजा राशि ट्रांसफर कर देता है.
इस पूरी प्रकिया में कई लोग शामिल होते हैं. बोहनाखैरी गांव में हुए धोखाधड़ी में पंचायत सचिव, सहायक सचिव, कंप्यूटर ऑपरेटर और समन्वय अधिकारी मिले हुए हैं.
इस बारे में स्थानीय पत्रकार जगदीप पंवार कहते है, ‘‘पंचायत सचिव और अन्य अधिकारी फर्जी तरीके से लोगों का मृत्यु प्रमाण पत्र बना लेते थे. क्योंकि गांव के लोगों का उनपर विश्वास होता है और वह अपने काम के लिए पंचायत में कागज देते हैं उसका इन लोगों ने फायदा उठाया. कोरोना काल का समय इसलिए चुना क्योंकि इस समय काफी लोगों की मौतें हुई हैं, तो इन पर कोई शक नहीं जाएगा.”
“यह लोग मृतक के नाम का फर्जी सर्टिफिकेट बना देते हैं, उसके बाद आश्रित परिजन का नाम और अन्य कागज जमा कर लेते हैं. आश्रित परिजन का नाम तो मृतक के परिवार से ही होता है, लेकिन बैक अकाउंट में वह अपना लिखते थे. इन लोगों के पास तीन-चार अकाउंट हैं, जिसका उपयोग पैसे मंगाने के लिए करते थे. क्योंकि जनपद का जांच अधिकारी भी इनसे मिला हुआ था इसलिए यह लोग बेधड़क यह सब करते रहे.”
जिला पंचायत सीईओ गजेंद्र सिंह नागेश न्यूज़लॉन्ड्री से कहते है, “यह लोग मृतक के आश्रित परिजन के पासबुक पर लिखे नाम को तो वैसे ही रहने देते थे लेकिन उसके अकाउंट नंबर की जगह अपना अकाउंट नंबर लिखकर उसका फोटोकॉपी कर लेते थे. फिर उसी कागजात को जनपद में जमा कर देते थे. पहले क्योंकि बैंक में लिस्ट जाती थी पैसे ट्रांसफर करने के लिए तो वहां नाम और अकाउंट नंबर अलग-अलग होने पर यह पकड़ा जा सकता था. लेकिन अब शासन ने काम में तेजी लाने के लिए एक पोर्टल बनाया है, जहां नाम, अकाउंट नंबर और अन्य कागज जमा करना होता है. जिसके बाद मुआवजा राशि खाते में ट्रांसफर हो जाता है.”
क्या पंचायत से कागज भेजे जाने के बाद कोई जांच नहीं होती? इस पर वह कहते है, “जनपद सीईओ के ऑफिस में इन कागजों की जांच होती है. जनपद सीईओ की जिम्मेदारी होती है कि वह जमा किए गए कागजों का ओरिजिनल डाक्यूमेंट से मिलान कर लें. काम में लापरवाही के लिए जनपद सीईओ को कारण बताओं नोटिस जारी किया गया है.”
पंचायत सीईओ आगे कहते हैं, “धोखाधड़ी का यह मामला अपने आप में नया है. किसी ने सोचा नहीं होगा कि इस तरह से कोई फर्जीवाड़ा हो सकता है. हालांकि इस मामले के उजागर होने के बाद हम साल 2018 से लेकर अबतक जारी सभी मृत्यु प्रमाण पत्रों की जांच पूरे जिले में करवा रहे हैं. यह जांच 15 दिनों में पूरी कर ली जाएगी.”
जिंदा लोगों को जारी सर्टिफिकेट पर वह कहते है, “जो लोग जिंदा हैं उन लोगों का सर्टिफिकेट वापस लिया जा रहा है. इसके लिए जिला सांख्यिकी विभाग काम रह रहा है. जिस पंचायत सचिव को अभी बोहनाखैरी गांव का प्रभार दिया है वह लोगों से मिलकर सभी जरुरी कागजात विभाग को देगें, जिसके बाद सर्टिफिकेट को वापस ले लिया जाएगा.”
सरकारी कागजों में जो मृत बताएं गए उन्हें कैसे मिलता रहा अन्य सुविधाओं का फायदा? इस पर वह कहते है, "अभी कोई इंटीग्रेटेड सिस्टम नहीं है, जिससे की एक जगह मृत्यु प्रमाण पत्र जारी होने के बाद अन्य सरकारी सुविधाओं से उसे हटा दिया जाए. मौजूदा समय में मृत्यु प्रमाण पत्र अलग पोर्टल से जारी होता है, जो केंद्र सरकार के तहत होता है. वहीं अन्य सुविधाओं के अलग-अलग पोर्टल हैं."
छिंदवाड़ा के दैनिक भास्कर अखबार के पत्रकार मनोज मालवी जिन्होंने इस खबर को सबसे पहले कवर किया, वह कहते हैं, “इस मामले में पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. साथ ही अब मामले की जांच के लिए एसआईटी भी गठित हो गई है.”
भास्कर की खबर के बाद 28 अगस्त को छिंदवाड़ा के चौरई थाने में पंचायत सचिव राकेश चंदेल, सहायक सचिव संजय चौरे और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.
यह एफआईआर 50 वर्षीय सज्जेलाल यदुंवशी और अन्य लोगों के साथ मिलकर दर्ज कराई है. जिसमें कहा गया हैं कि हमारे जीवित रहते हुए ही फर्जी मृत्य प्रमाण पत्र बना लिया गया और हमारे नाम से पैसे निकालकर गबन किया है. पुलिस ने दोषी लोगों के खिलाफ 7 धाराओं (420, 465, 467, 468, 469, 471, 120-B) के तहत केस दर्ज कर लिया है.
वहीं एफआईआर के बाद पंचायत सचिव राकेश चंदेल, सहायक सचिव संजय चौरे, कंप्यूटर ऑपरेटर और समन्वय अधिकारी सुनिल अंडमान को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है.
मंत्री ने की थी आरोपी सचिव की तारीफ
पंचायत सचिव राकेश चंदेल जो इस मामले में मुख्य आरोपी हैं, मामले के उजागर होने से कुछ दिन पहले ही जिले के प्रभारी मंत्री कमल पटेल ने पंचायत में 100 प्रतिशत कोरोना वैक्सीनेशन के लिए उनके काम की तारीफ की थी.
इस मामले के उजागर होने के बाद मंत्री ने कहा, महज एक गांव में ही 23 जीवित व्यक्तियों के फर्जी तरीके से मृत्यु प्रमाण-पत्र बनना और उनके नाम पर राशि का गबन करना न केवल चिंताजनक बल्कि नियम विरूद्ध भी है.
प्रभारी मंत्री ने जिला कलेक्टर को इस मामले की जांच के साथ ही पूरे जिले में जांच करवाने और दोषियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं.
इस मामले पर पंचायत सचिव संगठन के छिंदवाड़ा अध्यक्ष प्रहलाद उसरेठे कहते हैं, “जब से यह मामला उजागर हुआ है, हम सचिव मुंह दिखाने लायक नहीं बचे हैं. लोग अब हमें भी शक की निगाह से देखने लगे हैं. हमने सोचा नहीं था कभी कि कोई ऐसा काम करेगा. जिंदा लोगों को मृत बताकर भ्रष्टाचार करना गुनाह है.”
पंचायत सचिवों की सैलरी के सवाल पर प्रहलाद कहते हैं, “वैसे तो पंचायत सचिव की सैलरी 35 हजार है, लेकिन कट के खाते में करीब 27 हजार आती है. यह सरकारी नौकरी होती है, लेकिन सहायक सचिव और कंप्यूटर ऑपरेटर संविदा पर होते हैं. सहायक को 10 हजार रूपए महीना मिलता है. वहीं समन्वय अधिकारी की सैलरी 40 से 50 हजार के बीच है. हमने हाल ही में सैलरी बढ़ाने के लिए हड़ताल भी की थी, सातवां वेतनमान लागू करने की मांग भी की है लेकिन अभी शासन उसके लिए राजी नहीं हुआ है.”
क्या हैं कर्मकार कल्याण मंडल योजना
साल 1996 में भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के भवन निर्माण मजदूरों के कल्याण के लिए यह कानून बनाया था. साल 2005 में मध्यप्रदेश में मप्र भवन एवं संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल बनाया है. इसका उद्देश्य मजदूरों और उनके परिवारों को शासन की विभिन्न योजनाओं के तहत सामाजिक सुरक्षा पहुंचाना था.
शहरी क्षेत्र में नगर पालिका को नोडल एजेंसी और ग्रामीण इलाकों की जिम्मेदारी जनपद पंचायत को दी गई है. इसके तहत पंजीकृत ठेकेदार की अनुशंसा पर लगातार 120 दिनों तक मजदूरी करने वाले श्रमिकों का कार्ड बनाया जाता है.
मध्यप्रदेश और पंचायत ग्रामीण विकास विभाग की वेबसाइट पर दिए आंकड़ों के मुताबिक इस योजना से अभी तक 8000 लोग जुड़े हैं, जिसमें 5000 पुरुष और 3000 महिलाएं हैं.
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